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________________ षष्ठ दिशि परिमाण व्रत. माटे पूर्व जे पंचाएं व्रत कह्यां, तेने ए गुणकारी. ए त्रण व्रत थी पंचाणुं व्रतनी पुष्टि थायडे एमाटे गुणव्रत कहेवाय बे. ते केवी रीतें ? तोके ज्यारें दिशिपरिमाण कऱ्या, त्यारें दिशिनियम क्षेत्रथी बाहेर जे जीव रहे, तेमने अजयदान दी, तो पहेलुं प्रा णातिपात व्रत, तेनी पुष्टि थर. तथा ए देवगत जीवोथी जूवं बोलवानो त्याग थयो, एटले बीजुं मृषावाद व्रत, तेनी पण पुष्टि थ. तथा ते देवनी चीज, दीधा विना लेवानो त्याग थयो, एट ले त्रीजुं व्रत जे अदत्तादान, तेनी पुष्टि थर. तथा ते क्षेत्रगत स्त्री थी काम नोगानिलाष मट्यो, एटले चोथा ब्रह्मचर्य व्रतनी पुष्टि थर, तथा ते देत्रगत वस्तुना क्रय विक्रयना निषेधथी परिग्रह मूळ कमी थइ,एमाटे पाचमा परिग्रहपरिमाण व्रत्तनी पुष्टि थ.तथा ते देवना व्यापार संबंधी अढार पापस्थानकनो त्याग थयो. ते माटे ए व्रत, पांचे व्रतने गुणकारी बे. तेकारणमाटे एने गुण व्रत कले. त्यां दिक्परिमाण ते चारे दिशि, तथा चार विदिशि अने ऊर्ध्व तथा अधोदिक्परिमाण व्रत बे. ते दिक्परिमाणव्रतना वे नेद बे. एक व्यवहारथी, अने बीजो निश्चयथी. १ तेमां एक व्यवहारथी दिकूपरिमाण. ते स्वकायाएं दिशिएं . तथा विदिशियें जावानो अने माणस मोकलवानो तथा व्या पार प्रमुख करवानी श्छा तेनुं परिमाण करीने राखे, ते व्यवहार दिपरिमाण व्रत. २ तथा बीजु निश्चयथी दिक्परिमाणवत. ते जे गतिगम न ते सर्वकर्मनो धर्म . कर्मवशे पडयो जीव, चारे गतिमाहे नटके .परानुयायी चेतना थश्त्यारे जीव, परस्वनावने अनुसर तो थियो, तेथी गतिघ्रमण करे,पण जीव तो शुद्ध चैतन्यरूप अ गतिस्वजाववान् तथा स्थिर निश्चल स्वत्नाववान्जे; एवं श्रीजिन - वाणीना उपकारथी जाण्युं त्यारे चेतना, शुद्धस्वरूपानुयायी थ
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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