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________________ छादश अतिथिसंविजाग व्रत. १४३ पण मनश्री विसारतो नथी; मनमा एज वांडा लागी रहे के ते श्रापणने क्यारें मलशे ? एवी चाहना राखतां राखतां घणो काल वीत्या पठी लांबी मुदतें को वखत ते सजन अणचिंतव्यो एका एक श्रावी उनो रहे, त्यारेतेपरम वहनने जोश्ने अंतरंग रागनी धारा जरासथी आंखमांथी हर्षनां आंसु पडे. ते शीतल होय जे कारणे वियोगना आंसु गरम होयडे अने हर्षना आंसु शीतल होय. तेम श्रावक पण साधुने आवतो देखी करी प्रशस्त रा गजक्तिना जरासे उठे; अने मनमां विचारे के अहो ! आज हुँ महोटो नाग्यशाली के जे अनादिनो नूख्यो, खजव्य संबलरहित, नाव दरिछे पीडित, शानलोचन रहित अंधनावें पीड्यो, अपारसंसारचक्रमां पड्यो नटकतो हतो, एवो जे हुँ, ते बहु अकथनीय दुःख पामतो अने कशी गणतीमा नहीं हतो, एवो महाकुःखी मने जोश्ने आ महारा मोहोटा हितकारी मुनि राजे महोटो करूणानाव धारण करी मारा उपर महोटी मेहेर बानी कीधी. जे प्रथम तो मने ज्ञानांजनशलाका फेरवीने मा रां सम्यकज्ञान लोचन खोली दीधां अने ए मुनियें त्रण तत्वसे वारूप आजीविकानो व्यापार शीखवाड्यो, तथा मुजने रत्नत्रयी धारणरूप नियमा करी दीधी. एवीरीतें महारोअनादिनो दरिद्र नाव मूकाव्यो, मने सारा आदमीनी गणतीमा आण्यो. एवा नि कारण अने गरज विना महोटा उपकारी महामुनिराज ते मारा घर आंगणाने विषे श्राव्या, ए नावनानी पुष्टिथी, प्रशस्तरागना नाव उदासथी हर्षानंदनां आंसु श्रावे, ते दाननो पहेलो गुण. २ बीजो जेम संसारी जीवने अत्यंत इष्ट वस्तुनो संयोग पा मवाथी रोमावलि उनी थाय, तेम महोटी नक्तिना प्रजावथी मु निने जोश्ने ते श्रावकनी सर्व रोमावति उबसित थाय, अने हृदयमां हर्ष समाय नहीं, ते दाननो वीजो गुण.
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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