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________________ १४४ ___छादश अतिथिसंविजाग व्रत. ३त्रीजो मुनिने देखीने मुनिप्रत्ये बहुमान उत्पन्न थाय. जेम कोश् संसारी सामान्य गरीब गृहस्थने घेर राजा पोतें चालीश्रावे त्यारे ते गृहस्थ, ते राजाने केवं मान आपे ? अर्थात् घणुंज मान आपे, मनमां घणोज आश्चर्यमय थर उमेद नस्यो हर्ष नस्यो थाय. अने मनमां विचारेके अहो ! आज महारे घरे महा राज आव्या, माटे घरमां को सारी अने नवा जेवी चीज होय ते हुँ एमने नेट करुं, फरी फरी एवा महोटा लोको मारे घेर क्या थी आवे ? आवो संयोग फरी क्यारें मलवानो ? आ उर्लन यो ग तो मारा महोटा नाग्योदयथी मटयो. एवो विचार करी घर मां जे सर्व करतां सारी अने नवाश्नी चीज होय, ते राजाने नेट करवा माटे काढे, वती विचारेके आ महारा घरनी चीजने महा राज कबूल करे, तो महारां महोटां नाग्य हुं मानु, एवा उदा सथी ते गृहस्थ, राजाने पोतानी वस्तु नेट करे, तेम श्रावक पण साधुने पोताने घेर व्या देखीने ते प्रत्ये घणुं वहुमान करे. अने विचारे के एवा निस्पृहीमां शिरोमणि, जगबंधु, जगत् हि तकारी, जगात्सल, निष्कामी, आत्मानंदी, आत्मारामी, करुणा निधि, परमोपकारी, परमपात्र, करुणासागर, संसारजलधिन करण, परमउपकार करवामां दद, क्रोधादिकषायनदक, पोतें तरेला, परने तारनारा, एवा महामुनिराज चालीने महारे घेर श्राव्या, तो आज महारां महोटा नाग्य जाणवां, आज रूडो सुवि हाण थयो, आज महारे प्रांगणे कामधेनु, कल्पवृक्ष, चित्रावेली अने चिंतामणि ए अणचिंति चाली आवी अने आज महारी जा गृत दशा सफल थश्. एवो हर्पनखो ससंन्रम होतो थको ते मुनि नी सन्मुख जाय अने त्रिकरण शुद्ध प्रणाम करीने कहे के देखा मि! दीनदयालुजी! पधारीयें. महारा घरनुं आंगणुं पावन करिये. एवं वहु मान दर करीने घरमां पधरावे, पठी मनमा विचारे के,
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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