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द्वादश श्रतिथिसंविजाग व्रत.
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हो ! महारां अतुल जाग्यनो उदय थयो होय तो आज या साधु महारां श्राहार पाणीनो अनुग्रह करे जे कारण माटे साधुजीने या हार लेवामां महोटी तजवीजबे. आहारनी गवेषणा करे, शुद्ध निर्दो पनी प्रतीति यावे, त्यारे तो साधु आहार ले. ए कारण माटे रखे कोइ दोष माराथी उपजे ? एवो विचार करी त्रिकरण योगें बहुशुद्ध, मान यो उपयोगी यको विधिपूर्वक याहार लावे, अने मीगं व चनोथी ते साधुनी विनति करे के हे खामिजी ! हे गुरुजी ! या शु द्ध निर्दोषी आहारबे, ए माटे हे कृपानिधान ! मुज सेवक उ पर परम शुभ दृष्टिनो पसाय करी सपात्रकर पसारीयें. महारो निस्तार करीयें. एवां मीगं ने परम नक्तिवंत वचनोयें विनति करतो थको आहार पे, त्यारें ते मुनिराज, ते योग्य आहार जाणीने ले, ने श्रावक पण जेटली दानलायक निर्दोष वस्तु होय, तेज सर्ववस्तुनी निमंत्रणा करे. एवा विधियें करी दान
पीने फरी ते मुनिप्रत्यें हाथ जोडी, नीचो नमी, पृथ्वीपर मस्त क लगावीने नमस्कार करे. पढी वली मीगं वचनोयें विनति क रे के स्वामि ! कृपानिधान ! मुज गरीबनी एक विनतिबे, ते सां जली लेइयें. सेवक उपर मोहोटी कृपा करी मने महोटो कस्यो, मारी पर महोटो उपकार कस्यो, आज महारुं घर पावन थयुं. उत्कृ ष्ट जाग्योदय विना मुनिना चरणकमलनी रज घरमां क्यांथी पडे ? ( गुणिपदकजधूलरजकंचन सेवहुं मूल मेरा ) आजनो दिवस सफल थयो. फरी पण हे स्वामिजी ! अशन, पान, खादिम, खादि म, औषध, द्वेषज, वस्त्र, पात्र, सिझा, संथारकादि प्रयोजन उप जे, त्यारें सेवक उपर कृपा करी अवश्य अनुग्रह करवोजी, स्वामि जी ! आप तो महोटा मुनिराजढो, गुणवान्बो, निस्पृहीतो. आपने कोइ चीजनी कमती नथी, कोइ वातनो प्रतिबंध नथी, वायुनी पेरें प्रतिबंधो. तो पण हे करुणानिधान ! मुज सेवक उपर
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