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________________ सप्तम नोगोपनोग विरमण व्रत. एमां पण वरफना जेवो महा दोष. जिनआज्ञा विरुकने, ए माटे ए करा पण अनदयजे. १३ तथा खडी माटी, पृथ्वीमा वहुजातिनी थायजे, ते अन यजे. कारण ए माटीमां पण असंख्य जीव. वली ए चीज खा वाथी पेटमा घणा जीवोनी उत्पत्ति थाय, तेमज पांमुरोग, आम वात, कवजीयत, पित्त, पथरि प्रमुख घणा रोग थाय, घणी मा टी खाय, तेना मुखनो चेहेरो पीलो थर जाय,मुखनी सुरखी ए टले तेजी जती रहे, को जातनी माटीमां मिंक प्रमुख जीव नी योनि, त्यां शरदी पामीने जीव सूक्ष्म उपजता होय एवामां तें माटी नक्षण करे तो पंचेंजिय जीवनी पण हिंसा थ जाय. माटी खावातुं जिनाझा विरुधबे, ए माटे ए अन्नदय. १४ तथा रात्रिनोजन तो प्रत्यद दोषनिधान, अने आ लोक तथा परलोकने विषे ए दुःख हेतुबेरात्रीना चारे आहार श्र नदय, जे कारण माटे रात्रीनोजनमां जेवो आहार होय, तेवा रंगना तेमां तमस्काय जीवो उपजे.वली आश्रित जीव संपातिम तेमां घणा आवी मले.रात्रीनोजन करवायी तेमां कांश नेलसेल होय, तेनी खवर न पडे तथा प्रसंगदोप पण घणा लागे केमके जो रात्रीयें नोजन करवानी टेव होय तो, नित्य रात्रे रसोश करवी पडे, त्यहां अग्निना योगें जीवोनो संहार थाय,श्रावकना कुलनो श्राचार पले नहीं, सूक्ष्म त्रस जीवो नजरें न आवे अने जो नजरें आवे तो पण यत्न न थाय. वली रसोश् करतां जे अग्नि वले त्य हां पासेंनी उत तथा दीवाल प्रमुखमा आश्रित जीवो रात्रीने वि पे जे बहु वेग होय,ते सर्व तापना योगें व्याकुल थवाथी अनिमां ज पडे तथा पतंग प्रमुख जीवो चक्षु इंडियना विपयें व्याकुल धश्ने अग्निमां ऊंपापात करी वती मरे. उत के उपरमां रात्रीने विपे सर्प, घरोली करोलीया, मटर प्रमुख घणा जीव वसता हो
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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