________________
(१) ज्यास थकी जाणते जाणते पण कांश विरुक थ जाय तो तेथी माहारी प्रतिज्ञा जंग नथाय. ए बीजो आगार जाणवो.
३ त्रीजो ( महत्तरागारेणं) एटले कोश् कार्य विशेष थकी लाजालाननी शैली थकी ( महत्तर के) महोटा गुणवंतनी था। झा थकी कांश कमवेश करवो पडे ते त्रीजो आगार जाणवो. __४ चोथो (सवसमाहिवत्तियागारेणं ) एटले सर्व समाधि व्य त्यय अंही को महोटा सन्निपातादिक रोगनी विक्रिया थकी ज त्पन्न थयुं जे ग्रथिल पणु तेने लीधे बेशुद्ध थर जाय एवी श्र वस्था प्राप्त थयेथी कांश विरुग्छता करवी पडे तेथी पण माहारी सम्यक्त्वनी प्रतिज्ञा जंग नयाय ए चोथो आगार जाणवो.
एब हिंमी अने चार श्रागार सहित समकित पावू अंहीं दिवसनो नियम दिवसमां नकरी शकुं तो बीजे दिवसे करी पो होचाटुं अने महीनानु नियम बीजा महीनामां करी पोहोचाईं तथा वर्षतुं नियम बीजा वर्षमा करी पोहोचाडं एरीते जेवीरीते पोतामां पालवानी शक्ति होय तेवीरीते बूट राखवी. ___ ए हिंमीने चार आगार जेम अहीं समकेत व्रतमां लख्याने तेज नियमनी रीतें यथायोग्य शैली प्रमाणे अंहीं लखवा थकीश्रा गल पण बीजा सर्व बारे व्रतोमां समजी लेवां फरी एकेका व्रतमां नहीं लखीशु बधामां अंहीथीज धारणा करवी अंही सर्व प्रति झार्नु रहस्य लिख्युंजे अंहीं सम्यक्त्व मार्गना कथननी गाथा नी चे लखियेंए गाथा ॥ अरिहंतो महदेवो, जावजीवंसु साहुणो गुरुणो ॥ जिणपन्नत्तत्तं, श्य सम्मत्तं मए गहियं ॥१॥ - इतिश्री स्याहाद शैली पूर्वक सम्यक्त्व अंगीकार
करवानो विधि तेनी पीविकासमाप्त थर.