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________________ ___३६ द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. वेजणा कजी करवा लाग्या, तेमां कोण साचो ने कोण जूठगे ! तथा कोनो वांक ! हवे जे साचो बे ने जेनो वांक नथी, तेनापर नगरवासी लोकोनो वेष बे. ते पुरुषोयें पोताना दिलमा धारी रा ख्यु होय के क्यारे पण अमे अवसर पामीने एने उपर जबरज स्ती करशं. ए वातनो अवसर जोश्ने साचाने लगाववान वल वांधे, ते एम के द्वेषपोषणने माटे पोते कजीयानी अंदर तत्पर थाय अने मातवर थश् लोकोने कहे के, ए वातथी हुँ माहित गार . एनी सादी हुँ पूरीश. कदापि राजधारमां कोई काम पडशे, अने मारी सादीनी जरूर हशे तो त्यां पण हुं सादी पूरीश, एनी खातरदारी सादी सर्वरीतेंथी मारीपासेथी लेजो. एवीरीतें जूगनो पद करे. उपर प्रमाणेनी वात करीने जूठी सादी पूरे. प ण कूडी सादीनु महापाप .श्रा नवमां पण जूठगे पडे तो श्रा वर जाय, राजदरवारमा खवर पडे के, आ जूगे माणस जे. शेरेरमा जेनी तेनी साथें जगडो कस्वा करे . एवं जाण थतां नी साथै धन धान्य सर्व राजा खूटी जाय. जूठी सादीवालो मार खाय. अने परनवमां तो एवां पापें करी ए फुःखथी पण वली बहुज दुःख लोगवे, दुर्गतिनो साथी थाय, पगले पगले अणचिंतवीआप . दाभावीने प्राप्त थाय, एमाटेश्रावकने सर्वथा जूठी सादी कोश्नी पूरवी योग्य नथी. ए पांच तो महोटां जूठने. जेश्रावक नाम धरावे तेणे ए पांचे जून त्याग करवां. तथा वीजुं पण जे वोलवाथी राज जय उपजे, दंम जरवो पडे. जीन, कान, नाक, हाथ श्रादिक अंग जे बोलवायी वेदाय. एवी नापा वोलवी नहीं. एवी रीतें वीजें मृपावाद विरमण व्रतली, ठे.एमां आजीविका निमित्तं पोता ना परिणामनी कच्चाश्यी कोइरीतं नवं वोलवू पडे, तो तेनो श्रा गार . अहीयां क्रोध,मान, माया, लोन, राग, हेप, रति,अरति, क्रीडा, लजा, विकथा, जय, हास्य इत्यादिक जूवं, बोलवानां का
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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