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________________ ९५४ द्वादश अतिथिसंविजाग व्रत. लोको आग्रह करें के, श्रा साधु तो करामतनुं घरजने; ए सर्ववि द्या जाणे .एवं जाणीने ते साधुने घणा सन्मानथी आहारादि क आपे. तथा वली कहे के हे स्वामीजी! तमोने जे जोश्ये, ते तमे वीजु पण कांश व्यो. एवी रीतें मायाप्रपंच विद्याने फोरवीने साधु आहार ले,ते मायापिंगदोष कहियें. १० दशमो लोनपिंगदोष.ते जे साधु थाहारार्थे गृहस्थने घेर जाय अने त्यां को उदार अने प्रबल दाननो दातार जोश ने ते साधु तेना पासेंथी पोताना खप करतां वधारे थाहार लीए; तेथी ते लोजपिंमदोष साधुने लागे. ११ अगीयारमो पुवपनासंस्तवदोष. ते श्राहारने अर्थे साधु गृहस्थने घेर जाय अने त्यां अहार ले, ते पहेलांज गृहस्थनी स्तवना करे के अहो! आगल पण अमोयें घणा वखत आ घर मांथी घणो सारो अने स्वादिष्ट अशनादि चारे प्रकारनो श्राहार वहोस्यो.एवं को न हशे के जे था गाममां आवीने श्रा घर मां न श्राव्युं हशे.या घर, सदाथी एवुज धर्मात्मा.श्रा घर का आज कालनुं शुं ? वली एनां माता पिता पण एवांज सुधर्मा त्मा हता.जे को अन्यागत साधु श्रावे, ते ने खुशी थश्ने श्रा हार देतां हतां.एमनी नक्तिनी तारिफ केटनी करीयें ? सर्व जग्या यें आ घरनी यश प्रतिष्ठा प्रसिझने. एमना पूर्वजोनी एवी, नक्ति सहित करणी हती तो श्रा पण एमनाज पुत्र. एमनी पण ते करतां सवार नक्ति, एमना वंशमां महोटा कुलदीपक थगया, तेमनां नाम हजी सुधी चाल्यां आवेते. एवी एवी स्तुति करीने संनलावे, अथवा आहार लीधा पठी ते गृहस्थाना महोढा उपर स्तुति करे के शेठजी! तमे घणा लायक गृहस्थगे,साधुजन विषे नक्तिमान् गे,तमारा जेवो वीजो को दाता नथी.आ गाममा ह मेशां तमारं घर साधुने श्रादार थापवामां धोरी .तमे श्री जि
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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