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________________ श्रष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. पि कोई वखत रोग थाय ? सर्वरोग माराथी दूर रहे तो सारूं? एवं विचारीने कोश्ने पूजे के फलाणो रोग केम करी थाय ? त्यारे ते कहे के, फलाणी चीज खाय तो उतावलें रोग थायडे,अने फलाणी अनदय वस्तु खाय, तो कदापि पण रोग थाय नहीं.त्यारें ते अजदयादिक खाए, वली ते बीजाने बतावे. तथा ज्यारे शरीर मां रोग उत्पन्न थाय,त्यारें घणी हाय हाय करे, घणो आरंज करे, घj अव्य खरचे, अने विलाप करे के हाय हाय, आमारो रोग क्यारें जशे !!! वली ते पलें पलें अने घडी घडीयें ज्योतिषीने पूजे के, मारी दिनदशा केवीले ? श्रा रोगनी व्यथा क्यारें मटशे? वली वैद्यने पूजेके, हे महाराज ! मारा दिलमां महोटी शंका. तमाराथी कांश कर्त्तव्य बार्नु नथी. मारा उपर कोश्यें जाकयुंह शे? फलाणो माणस मारा उपर खुनस राखेडे. तेणे मारा उपर को पा कांजामु कराव्यु हशे, ते केवी रीतें जशे. कराव्युं होय तो हवे तमे साजो करो. एवी रीतें नवी नवी शंका धरे अने रोग जवा माटे कुलविरुफ धर्म आचरे, अजय खावाने तैय्यार थाय अने अकरणीय करवाने पण लागे. एना मनसुबामां सदाय एम रहे. ने जे जे रोगबेदननी चीज जडी, बुटी, औषधि, यंत्र, मंत्र, जतारो, जाडो, हजराय. ए सर्वनी चाहना राखे के ए चीज कोश वखत मारा काममां श्रावशे. नजरमा राखे के ए सर्व मारा काम नी. एने आपणी पासें अमलमा राखी होय तो सारं, फरी एवी चीज हाथ नहीं चढशे, एवं जाणीने ते जडी बुट्टी सर्व एकठी करवा लागे, ए सर्व रोगनिदानार्तध्यान.. ४ तथा चोथो अग्रशोचार्तध्यान, जे आगला कालनीचिंता करे के, आगली शालमांआ विवाहनुं काम करीशु, एवी तरेहथी विवादना उडव सरनजाम करीशु, तथा फलाणा साथै कजियो ' थाशे त्यारें आवी वातोश्री अने आवा जुवापथी एने इरावीशुं.
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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