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अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. एवी रीतें काम करीशुं तथा ए मेहेल, हवेली एवी तो बनावी शुंके, तेने देखी करीने सर्व अचंबो पामे, तथा फलाणा पुरुषे क्षेत्र वगीचो बनाव्योने, तेवो हुँ पण वनावीश. अने ते एवो वनावीश के, बीजा सर्वना बगीचा एना आगल नाकार थश् जाय, अने सर्व कुश्मननी बाती बले एवो बनावीश.
तथा वली या शोदो जे श्रापणे कस्योडे, ते आगल जतां ज्यारे घणो मोघो नाव थशे, त्यारें अमें पोताने मोढे माग्यु मूल्य लेश्युं, बीजा कोश्नी पासें ए माल नहीं मलशे, तो पो तेंज गरजना मास्या लश् जशे, एवां वचन, आर्तध्यानथी बोले, अने विचारे के, एटला पैशानो हाथ मारी लेश्शु. हवे शी फि कर ले ! एवी रीतें दिलमा आगलथी मलकाय, __ तथा श्रा चीज नवी बे, कोश्नी पासें नथी. माटे कोई सारा शि रदार,राजा, पादशाहने ठेकाणे देखाडीशुतोते पण एने देखी,चा हना करीने लेशे, मने पण मान आपशे, प्यार करशे, उपर शिरपाव मलशे,श्रापणुं पण काम थश्श्रावशे, पैशा मोढे माग्या लेश्शु,अने तेणे करी सारी सारी मोज मारिशें,अने लोको सर्व जोरदेशे.एवा एना मनोरथ प्रमाणे कांश थयुं तो ये नहीं,अने ते पहेलांज मनमां महामन थरहे, खोटां कर्म,आगलथी वांधे.आगलथी झुंजाणी ये के शुं थशे ? चीजमां नफो मलशे के नहीं मले ? अथवा ते चीज,कांश खोवा जशे के रेहेशे? एवी तो खवर रहेती पण नथी, अने वातो करवा थकी कर्म तो साचां वांधे. ए पण आतध्यान,
अथवा महारा घरमां अनाज संग्रह घणो ठे, अने आगला व पनां चिन्ह मागं देखाय दे. अने ज्योतिपवाला पण एम कहे के आगढुं वर्प बहु निषिद्ध, ए माटे जो चार दाणा कोराखशे तो चार पेशा सारी पेठे मलशे, माटें अवश्य पुष्काल पडशे, तो पण वेचीश नहीं, तो धान्यमा त्रगणो चोगणो नको मलशे, तो पण नहीं