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________________ अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. १०७ उापे,अने वधारे ले, तेथी पोताना घरनां संबंधीथी वधारे क माय त्यारें मनमां हर्ष पामे अने घरमां फूलाय के, मारा घरमां ए ना प्रमुख, ते सर्व नकाराजे. कोश्मां को वातनी सलुका नथी, तो व्यापारनी कला क्याथी आवशे ? व्यापार करवो तो बहु मुश्केल, अने मोहोटी अक्कलनुं काम. अमे न होत तो ए सर्वनीशी गति थात ? जूठ ! आ चीजना शोदामां तमे केटलो न फो दीधो ? अने तेज चीज अमे वेची, तो सर्वनी हजूर बाट लो नफो लीधो. ए अक्कलनु काम. हमारी कलाने तमे नहीं पामो, एम पोताना जीव साधे फूले. वली राजद्वारमा पोतें जातो होय तो त्यहां साचां जूगं फेल बनावीने लोकोने कर देखाडीने राज्यमा पैशा लेवरावे, अने पोते पण वच्चेथी कांई लश्ने सुखेंथी खाई जाय. चार वातो सारी तरेहथी बनावे. कोश्ने त्या विद्यानुं फेल बनावीने, इंग्रजाल प्रमुख चमत्कार बतावीने विश्वासघात करी, तेनी पासेंथी पैशा ले, अने मुखथी कहेके, अमे तमारुं अव्य फोकट गमावनार नथी. तमे अमारी तरफनी खातर जमा राखजो, एवी रीतें कही ने पारकुं अव्य, खा जाय अने वली खरचावे, अने लोकोमा महोटो विछान् कहेवाय, अने मनमां जाणेके जुर्ड ! मारा जे वो कोण अक्कलवान् बीजो हशे, के आवी रीतें पारकुं अव्य खा य ? लोकमां पण हुं सर्व ठेकाणे विख्यातबु,महाराज जेवा प्रख्यात तो मारा पिता पण न हता. हुँ बालपणामांथीज कसा करीने लावूडं. एवी खोटी कुगतिनी सहायता बांधे, अने फेल करे... क्यारेक औषध, जडी, बुट्टी प्रसुख यहा तछा कंश्कथी लावीने तेनी लोकोना सुख आगल घणी तारीफ करे, के हुँ आजे औषध बना , ते रसायन. ए औषध, खानारने वह गुण करवा वा तुं . में ए औषध उपर घणो पैशो खरच्यो. एना उपर रात
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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