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पण पड़ी मेडकाना चूर्णनी पेरे संसार वधे आ स्वरूप दया विषे देखवामां दयाबे पण नावथी हिंसाने.
बही अनुवंध दया एटले श्रावक बहु आम्बर करीने मुनि वं दनने माटे जाय, उपकार बुद्धिवडे बीजा जीवोने आक्रोश ताड नादिक करीने शिक्षा आपे, सुमार्गे लावे कुमार्ग तजावे आमां उपरथी जोतां हिंसा. पण आगल पोताना अने पारका जीवने लान थाय तेथी अनुबंध, फल दयाने पामे. साधु तथा आचार्य पण पोताना शिष्य शिष्यणिने सारणा, वायणा, चोयणा तथा पडिचोयणादिक करे शासनना प्रत्यनीकने पोतानी लब्धिए करी शिक्षा आपे कदापि पंचेंडि जीवने पण शुद्ध मार्गे प्रवर्त्ताववाने अर्थे शिदा करे, शासन स्थिर करे, ते अनुबंध दया कहिए.
सातमी व्यवहार दया एटले विधि मार्गानुयायी जयणा पा ले, कम वेस नकरे, जुले नहिं ते व्यवहार दया कहिए.
आवमी निश्चय दया एटले शुद्ध साध्य उपयोगमा एकी ना व अन्नदोपयोग होय, साध्य नावमां एकता ज्ञान तेने निश्चय दया कहीए ए दया गुण गणे चढावे तेणे करी उत्कृष्ट.
इत्यादिक अनेक प्रकार दया स्वरूप विज्ञान पूर्वक सूत्र, नियुक्ति जाण्य, चूर्णि अने वृत्ति ए पंचांगी संमत्त प्रत्यदादि प्रमाण पूर्वक नैगमादिक नय शैली पूर्वक नामादि निक्षेप रचना पूर्वक स्यादस्ति नास्तिप्रमुख सप्तनंगी स्वरूप रूप, यथार्थ विज्ञान पूर्वक ज्ञान कि या, तथा निश्चय व्यवहार, तथा अव्यार्थिक, पर्यायार्थिक इत्या दिक उन्नय जावमा यथावसरे अर्पितानर्पित नय निपुणताथी मु ख्य गौणनावे, उन्नय नय सम्मत एवी शुरुस्याहाद शैली विज्ञान पूर्वक श्री सिद्धांतोक्त दान, शील, तप, जावना, रूप शुन प्रवर्ति प्रवर्तन तेने व्यवहारथी शुद्ध धर्म कहीए.