________________
. हवे शुद्ध निश्चय धर्म कहेजे. शुझ निश्चय धर्म ते आत्मानी आत्मता जाणे, वस्तु खन्नाव उलखे, जे आत्म अव्य ते शुद्ध चैतन्यतारूप असंख्यात प्रदेशी अमूर्त लोक प्रमाण, सर्व पुलथी जिन्न, अखंग, अलिप्त, अनंत ज्ञान दर्शन चारित्र सुख वीर्य अव्याबाधादि अनंत गुणमयी, स्व गुण नोगी, अविनाशी, अनुपाधी, अविकारी एवो मारो आत्म अव्य खन्नाव तेज उपादेय, एनाथी जे विलक्षण परपुजलादिक ते मारुं नथी, हुं तेनो नथी, ते पुजल जे वर्ण, गंध, रस फरसरूप ते ना पांच विकार.शब्द,रूप, रस, गंध, स्पर्श, ए पांचेना उत्तरन्नेद अनेकडे ए शब्दादि एकेक नेद वर्णादि चार चार नेद लश् रह्या बे.आ लोकाकाशमां जे अजवाबुंडे तथा अंधारुबे, शब्द जे उ ठेने, सर्व रूपी वस्तुनो परायो पडे, रत्नादिकनी कांति पडेले, शित पडे, बाया पडे, धूम्र पडे, ताप पडे, नानाप्रकारना रूप, रंग, संस्थानना घाटनो नमुनो दीठामां आवे तथा नाना प्रकारना रूप, रंग, संस्थाननी सुगंध तथा दुर्गंध आवेडे,नानाप कारना रसनी मका बे, सर्व संसारी जीवोनी देह, नाषा, मननी कल्पना तथा प्राणना दश नेद , तथा पर्याप्तिनाउन्नेद, हास्य, रति, अरति, लय, शोक, उगंबा. खुशबख्ती, उदासी, कदाग्रह, हठ, लढार, कषाय, क्रोधादिक चार, साता, असाता, उंचपएं, नीचपणुं, निझा, विकथा, सर्व पुन्य प्रकृति, सर्व पाप प्रकृति, रीज, मोज; खीज, खेद ब, वेश्या; लाजालान, यश, अपयश, मूर्खपणुं, चतुरता, स्त्री, पुरुष, अने नपुंसक वेद, कामचेष्टा, गति, जाति इत्यादिक जे आठ कर्मना विपाकले.ते सर्व जीवने अनुजव सिने.
बीजा पण सुमपुजल जे इंजियोथी अगोचर परमाणु आदि लश्ने अनेक नेदना अग्रहित एवा बुटापुजल .ए पुजलनासंयोग श्री चारे गतिमां जीव जटके बे, ए पुजलनो संग तेज संसारखे.