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________________ १७६ दर्शना तिचार स्वरूपं. र्याय प्रकाश करीने कहे नहीं. अथवा गुणवंतना गुण जाणे तो पण तारीफ करीने प्रकाशे नहीं. पांच लोकमां गुणीना गुण प्रस्ता वती वखतें तेना गुण प्रगट जांखे नहीं. प्रकाशे नहीं, मोढेथी क नहीं तथा रागद्वेषादिक, कर्मउपाधि संयोगिक जाव, सर्व दुःखनुं मूलबे. एम वीशदरीतें प्रकाश करीने कहे नहीं, ते पांचो अतिचार . ६ t स्थिरीकरण अतिचार. ते जे आपने कोई पाप कर्मनो उदय थयो, त्यारें आपदा, रोग, शोक, याजीविका, डु जता, कूडां श्राल, तेवी दिनपर दिन दुःखनी चढती जोइने कोइ मिथ्यात्वना प्रदेश उदयवलें करी जैनमार्गथी परिणाम खसता जा य. आचारमां शिथिल थाय, ते पोतेंज पोताना शास्त्रपरिचयथी जाणे जे मारां परिणाम धर्ममार्गथी शिथिल थयाबे, पूर्वथी मा री श्रद्धा पण मलीन रहेबे एवं जाणे तो पण तेनी दृढतानां कारण जे सकुरुसेवन, शास्त्रश्रवण, दृढवृत्ति, महापुरुषचरित्रस्म रण, देवदर्शन, उत्सवादिगमन, कर्मग्रंथादिक अथवा अध्यात्म शास्त्रपठन, इत्यादि दृढतानां कारणवे, ते न सेवे, ने जाणतां तां पण गुरुसंसर्ग, शास्त्रपठनादि उद्यम करे नहीं. अथवा कोइ धर्मरुचि प्राणीथी परचो करे, अथवा कोइ बीजो धर्म रुचि जीव होय, तेने धर्मथी पडतो देखे, त्यारें कहे फलाणो पुरुष, 3 गल धर्ममार्गमां घपोज दृढ थयो हतो, हवे तो दिवसें दि बसें एना शिथिलतानां परिणाम नजरें वंधारे यावे. एवं पोतें जाणे ने पोतामां एवी शक्ति पण वे. के ते धर्म शिथिलने वहुविध हेतुयुक्ति देखाडी ने धर्ममार्गमां स्थिर करे ने पडवा न दीए. एवी शक्ति बतां पण तेने उपकार बुद्धिएं करी शुद्धोप देशें दुर्गतिपतनादि विपाकदर्शन. इत्यादि स्थिरीकरण न करे, मनमां जाणे जे आपणुं शुं वगढेवे ? चेतना तो एनी बगडे
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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