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________________ अष्टम अनर्थदंग विरमण व्रत. . १११ करवु जोएं. ए धर्मर्नु काम, माटे एमां ढील करो नहीं. एवी रीतें संसारने वधारनारो उपदेश करे. वली कहे के, हे नाजी ! बगीचो समरावो, को ठेकाणे जमीन सखत होय, तो त्यां आग लगाडो.एमां जंगलनी पवें घांस कुशनो घणो वधारो थयो, ते कपावी नाखीने ए जग्यायेंज बाली ना खो एटले ते जमीन साफ थशे. एवी रीतें कहे. वली वीजी प्रेरणा करे के, फलाणो माणस, तमारी साथें छ इमना करे. तेने जेर करवानो हमणा तमारो वखत. राजद रबारमा तमारे तो वग बे. ए माटे को ठेकाणे को पेचमां वेश्ने फसावी नखावो. आपणुं चालतुं होय, त्यारें तो उश्मनने जेर करवानो उपाय कस्या विना रहीएं नहीं; मारी तो एवी अक्कल. श्रावो अवसर तमें फरी क्यारें पामशो ? पोताना चालता चलण मां सारं नगरं करवामां न आव्युं, तो जींदगीनुं फलशं? ते मा टे दुश्मननो नाश करी, तेने नाबुद करवो, तेज सारुं. ए तो त मारी बदगो लोकोनी आगल घणीज करे, एक बे वखत तो में पण सांजली हती. ते माटे तमे मूर्ख लेखाउँडो, ते पुश्मन शी र उपर चढतो जायजे. एटली पण तमोने कालजी नथी. पुश्मन ने तो उगतोज जड मूलथी कापी नाखवो, लोकोनी एवी कहे वत के, " करतेसेंती कीजीयें, अथवा हणताने दणियें, एमां पाप दोष न गणीयें” एवो एवो उपदेश आपे. वती बीजाने एवी रीतें कहेके आटलो वधो दिवस चढ्यो तो पण हजी रसोश्नी तो कां वातज नथी. उठो जश्ने रसोश्नी कांश तजवीज करो ! चोको प्रमुख देवरावो, स्नान करी रसोई कस्या पली, सर्व काम थायजे. अमे तो उठतां वेत, महोटा परो ढीयामां रसोश करी खायें तो पड़ी थमने का काम काज सुजे. इत्यादिक उपदेश आपे, प्रयोजन विना जूतुं साचुं कहे, तेमां
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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