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व्य जीवने प्रतिबोध करी चतुर्विध, संघनी स्थापना करीने तीर्थप्र वर्त्तावे. सकल जीवने देशनावडे अनुग्रह करे. एवा जे समोसरणमां विराजमान श्री सीमंधरादि विहरमान परमेश्वर तेने नाव अरिहंत कहिए, एमना चर्णार्विदनी शेवाथी पण अनंत जीव मुक्ति पाम्या.
एवा जे श्री अरिहंत देवाधिदेव, महा गोप, महा माहण, महा निर्यामक, महा सार्थवाह, महावैद्य इत्यादि बिरूदधारी, सकल स मकेति जीवना प्राणाधारक, सकल मुनि मनमोहन एवा जे श्री जिनेश्वर रिहंत देव तेमने हुं देवकरी सरदहुं, एमनी सेवा करूँ, एमनी आज्ञा शिरधरुं, इतिश्री व्यवहार शुद्ध देवतत्व समाप्त. हवे निश्चय देव तत्व कहे.
शुद्धात्म स्वरूप वस्तुगते वस्तुरूप प्रतीतिवडे शुद्ध तत्व श्रद्धा प्रगटे, ते निश्चय देव तत्ववे. एटले वरण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द, रूप, क्रियादिथी रहित, शरीरथी जिन्न, योगथी जिन्न, प्रतिप्रिय, अविनाशी, अनुपाधी, अवंधी, अक्केशी, अमूर्ति, शुद्ध चैतन्य, ज्ञा न, दर्शन, चारित्रादि अनंतगुण जाजन, सच्चिदानंद स्वरूपी एवं मारुं श्रात्मतत्वबे, एम जे जाणवुं तेने निश्वें देवतत्व कहे.
हवे वीजा गुरुतत्वमां प्रथम व्यवहारथी शुद्ध गुरु कहे. जे पांच समिते समिता, त्रण गुप्टेकरी गुप्ता, समतात्मरमणे रमतां, पंचेंद्रिय दमता, अनेक डुःकर परीसह उपसर्ग सर्व द माथी खसता, अनेक स्तुति निंदा सांजलवानुं तजीने समतारूप शुभ ध्यानाशिवडे कर्मरूपी काटने वालता, अनादि परचित विजाव परिणतिने वमता, जेने नहिं माया नहिं ममता, प्रतिक्षणे गुरु चर्णाविंदे नमता, प्रतिक्षणे नव नव संयम स्थाने चढता, प्रति कणे ज्ञान दर्शनादि गुण पर्याये वधता, पोतपोतानी शक्ति प्रमा ऐ नवीन नवीन तप क्रिया करतां प्रतिदिन श्रात्मवीर्योल्लासयुक्त ज्ञान कियाजास वडे लब्धि प्रमुख गुणे वर्त्तता, पंचांगी प्रमाण शु