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________________ सप्तम लोगोपजोग विरमण व्रत. री तवीयतने बदलावे, निरुद्यमी श्राय, परनिंदा अने वाचालपणुं वधारे, मुखथी गमे तेम वचन बोलतो आधु पाईं न जुए, चित्त व्रम थयेलानी पेठे अवस्था थाय, तेना आश्रित बहु जीवने हणावे. इत्यादि अफीण खाधाथी आलोकें दुःख अने परलोकने विषे गह न पुर्गतिमां पडे, ए माटे विष कहीए. तथा सर्व हथीयार तो प्र गट पापना हेतु .ए माटे विषवाणिज्य निषिक.इति विषकुवाणि ज्यत्याज्यस्वरूपं ॥ एटले पांच कुवाणिज्य थयां.ए सर्व मली दश श्रयां.हवे पांच सामान्य कर्म कहे. १ तेमां प्रथम यंत्रपीलनकर्म. ते घाणी, शेरडी पीलवानो शी चूडो, चरखा, चरखी, लीसा, उखल, मुशल, कंगव, सावरणी, वेगडीयंत्र, सराण, जलयंत्र, पातालयंत्र आकाशयंत्र, मोनिकायं त्र प्रमुख यंत्रजाति, शतनीयंत्र प्रमुख जे जे काष्ठ, पाषाण, लो ह, वस्त्रादि अनेक अनेक अंगमेलापथी जे जीवघातकारक प दार्थ होय ते यंत्रपीलनकर्म कहियें, ए यंत्रपीलनकर्ममां घ णो आरंजने, घाणीयंत्रमां तिलादिमिश्रित जे त्रस जीवो होय, तेनो घात थाय, एवीज रीतें रहपीलनकर्मयंत्रमा पण अनेक जीवघात . एम जे जे यंत्र, ते मुकरर करीने जीवघातना हेतु बे, एमाटे श्राजीविकाहेतुयें यंत्रपीलनकर्म निषिक. २ वीजें निलंग्न कर्म बे. ते एमके, वलदनुं नाक विंधावे, घोडाने माग देवरावे, गाय, वलदना कान कपावे, शिंगडां बेदावे, पुट वेदावे, उंटनी पीठ उपर लदावे, गाल नासिका प्रमुखने विं धन करावे, बलद घोडाने खासी करावे, माम देवरावे, खोज क रे, करावे तथा कोटवाली खिजमत लेश्ने नवो कर वेसाडे. जा रोलेश्ने श्राकरो कर वेसाडे, चोरधाडमांवासीनी पेरें दोडा दोडी करे, मनमा एम जाणे के मारू नाम जगत्मा प्रसिद्ध थाय; ए माटे निर्दय शस्त्र चलावे.इत्यादिकनो रसिक थजे नरसां कार्य
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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