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(२) प्रथम अज्ञान दोष, बीजो क्रोध दोष, त्रीजो मान दोष,चोथो मा यादोष, पांचमोलोन दोष,बकोअविरति दोष, सातमो हास्य दोष श्रामो रति दोष, नवमो अरति दोष, दशमो जय दोष, अगीबार मो शोक दोष, बारमो मुगळा दोष, तेरमो निंदा दोष, चउदमो काम दोष, पन्नरमो अंतराय दोष, सोलमो मोह दोष, सत्तरमो मि थ्यात्व दोष तथा अढारमो निझा दोष. ए अढार दोष जेना मटी ग या बे, अने ए अढार दोषनो नाश थवाथी अढार गुण प्रगट थ यावे, जेमने रत्नत्रयी जे ज्ञान दर्शन चारित्र ते दायक नावे थ ईने, जेमने अनंत चतुष्टयी संपूर्ण प्रगटी, जेनाथी घनघाती कर्म नी सत्ता विघटी बे, जे जिन चारे निकायना देवताउँने अने चो सठे देवेंज तथा नरेंज जे चक्रवर्त्यादिक तेने पूजनीक , तथा जे चोत्रीश अतिशयेकरी युक्त,अने पांत्रीश गुण युक्त वाणीवडे देश नादेडे, जेमना श्राप महाप्रातीहार्य शोलायुक्त सदा विराजे, त था जेमनी एवी प्रज्जुता जगत्रयातिशयरूप, बल, ऐश्वर्य, शकि, सिकि, बुद्धि, जाति तथा कुलादि नावे उत्कृष्ट. तो पण मददोष नो जेमने स्पर्श नथी वली जे अगिलाण पणे यथार्थ अने निर्दो ष एवी सकल जगत जीवने उपकारी देशना देने, वली ज्यां श्री अरिहंतजी विचरे त्यां फरती सवासो योजनमां इति उपनव नि वर्ते, ते इति उपजव सात प्रकारना. पहेलो वर्षानी अतिवृष्टि, बीजो अनावृष्टि, त्रीजो जंदर प्रमुख जीवादिकनी वहुज उत्पत्ती थाय, चोथो पतंग पक्षी तोता तीड प्रमुख घणा थाय, पांचमो मरकी जेनाथी वमनादिक विकारेकरी घणा मनुष्यादिक मरण पामे, छो स्वचक्र ते पोताना देशसंबंधी राजाउनुं सैन्य विग्रह करे अने सातमो परचक्र एटले अन्यदेशनुं श्रावेलु कटक युद्ध हेतुए परस्पर लढाश्थी विग्रह उपञ्व करे. ए प्रमाणेनी साते इति जे मना आगमने करी नाश पामेठे एवा श्रीश्ररिहंतजी. वलीकृत