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________________ ३७ द्वितीय स्थूल मृषावाद विरमण व्रत. लोकोनी आगल प्रकाशे, ने तेनी चरचा चलाव्या करे. पनी रहेते रहेते ते वात, राजहार जश् पहोचे. त्यारें राजदंगनो नय उपजे, कांश्चें कांश थर जाय. ते रहस्यनाषण अतिचार जाणवो. ___३ त्रीजो दारमंत्रनेद अतिचार. ते एके, आपणी स्त्री तथा ना प्रमुख घरनां माणस तथा आपणो मित्र के कोश हितेलु ते मनाथी को नूलचूकथी अथवा नादानबुद्धिथी कांश गनी विरुद्ध वात थ गश् अने पनी पस्तावो करी ते दोष तेणे बां डी दीधो होय, ते वहु दिवस वित्या पली को प्रसंगोपात ते गश् गुजरी वातने फरी प्रकाश करीने केहे; त्यारे ते लाजनो मायो आपघात करी जीव काढे. ने तेथी आपणने पण मोटी एव लागें, बहु वेदना तथा पुःख थाय, लौकीकमां अपयशनी वृद्धि थाय, ए दारमंत्रनेद त्रीजो अतिचार जाणवो. ४ चोथो मृषाउपदेश अतिचार . तें एके, पोतें मापणवालो थवानेसारु पापोपदेश जे मंत्र, यंत्र, जडी, बुट्टी, बतावे. ने कहे के, फलाणी बुट्टीतुं मूल कहाढो. ते अमुक बुट्टीना रसमां मेलवीने आटली चीज वाटो. तेनी गोली करीने खाऊ. तेथी वह लोगशक्ति थशे. वली आ मंत्रनो जाप करो, मद्य मांसनी आहुति आपो, जे श्री करी देवता प्रसन्न थाच, वली जेनीचाहना करो तेनी प्राप्ति थ शे.वली कहे के,सांजलो! अमुक जानवरना लोहीथीअमुक औषधि नां पांदडा पर यंत्र लखीएं,घुअडना पग साथें वांधीएं तो शत्रु ना गीजाय अथवा मरण पामे. वीजें कहे के, जनावरना इंझाना रस श्री पारा प्रमुखनो खरल करो.अनेपठीतेपाराने अग्निमां राखरां. शोल प्रहरनी अनिएं करी पारो सिहाथशे.एवा उपदेशनोदेनारो थाय. वली कहे के, हुं कामशास्त्रमा महा निपुण हुँ, तमोने चोरा शी जोगासननो विधि शिखवाड़े,ते तमे शीखो. एथी करी विविध प्रकारनी रतीविलास क्रिया ने वहुवार वीर्य वृद्धि रहेशे. काम जा
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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