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________________ १०५ अष्टम अनर्थदंम विरमण व्रत. शुं तो वली एनाश्री पण घणी सारी रसोश्वनावीशु,तथाराजजोज नअनदय चीजनी नकल बनावीने, तेनोआशय धरीनेखाय खवरा वे, ज्यारे रसिया लोको जमणने वखाणे, त्यारे जाणेके सर्व सफल थयु अने पोताना मनमा खुशी थाय. जुवो! हुं केवी चीज बनाएं डं ? मारा जेवो कोश्होंशवालो तथा जोगी जन नश्री.अथवा राज विग्रह युद्धादिकनी वात सांजलीने खुशी थाय, अने विचारे के ए राजायें सारं कडं, राजा महोटो शमसेर बाहादूरडे. बागलं पण एना बाप, दादा, पादशाहीमा महोटा प्रख्यात हता अने शिपाश गीरीमा घणा मजबूत हता, तेना वंशनो एजे. एना वडवाउँथे.आ जग्यायें फतेह मेलवी, किलो पण खाली कराव्यो, बड़ा अक्कल ब हादूर हता.महोटा मोहोटा संग्रामोमां कुश्मनोने जेर कस्या हता, सर्वनां पोताने चरणे शिर नमावी करी, चोतरफपोताना अमलनो डंको वगडाव्यो हतो, हमणां पण सर्व जुवान एवाज, एऊनी ज्यहां ज्यहां चोकी,त्यहां त्यहारस्तामांपडी चीजने कोश्पण जपाडतोन थी;तो बीजुंझुकहीयें? फलाणो सुलट, एकज चोटमां सिंहने मारी ने पोते एकलो निर्जय थ तेने उन्नो चीरी नाखेडे, बीजाथी एवं शुं थशे? एम कहीने शाबाश, शाबाश कहे, तथा कुश्मनने आप दा अथवा मूवो सांजलीने बहुज खुशी थाए, सीरणी वांदे,मुख म रोडे, मूळे हाथ फेरवे, हाथना पोहोचा मसले, अने महोढेथी कहेके, ए हरामखोर अमारा पुण्यथी मरी गयो, एवां एवां कूडां कर्म बांधे; पण एवी खबर न राखेके, तुं कोण मारवा वा लो? एनी जवस्थिति आवीने पूरी थश, एना उदयमां इती ते जोगवी, एक दिवस, तमे पण एज रस्तो पकडशो, एनो जूगे गर्व , करवो तेमां कांश सारं नथी,अने तुं मारनारो हतो, तो आटला दिवस शुं काम ढील करी? माटे एवीजे व्यर्थ विचारणा करवी, ते हिंसानंदरौअध्यान कहीएं, ए सर्व मतलब विना कर्म बांधवूने; १४
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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