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________________ अष्टम अर्थ विरमण व्रत. ने चित्त बुद्धिथी जाणे, केमके मिसंस्कार थयो त्यारें चित्त थ या; एवं जाणी खाय, तो तेने चोथ्रो पुष्पक्वाहारा तिचार लागे. ५ पांचमो तुौषधिनदणा तिचारबे, ते तुछ एटले असार, जेना खावाथी कांइ तृप्ति न थाय छाने आरंज तो घणोज थाय. जेम बोडा प्रमुखनी प्रति घणी असार बीमी, जे बोडानी अंदर था बे, एना खावाथी कांइ आत्मानी कुधा प्रबल जांगे नहीं अने प्रसंगदोष लागे. वली कोमल वनस्पतिमां कोइ रीतेंथी अनंतका यी शंका रहे. रसगृद्धिपणुं वधे. कोमल फल फली प्रमुखने חם चित्त करीने खावानो व्यवहार पण नथी. ए माटे बोडा प्रमुख नी कोमल फली खायाने मनमां जाणे के, बोडानी फली तो मारे खावी योग्य. एवं जाणी करीने खाय; पण एम न जाणे के galषधि दोष लागेबे. इति पांचमो अतिचार. ए पांच अतिचार जाणवा, पण यादवा नहीं. इति श्री द्वादशत्रत विवरणे सप्तम जोगोपभोग विरमणनामा द्वि तीयगुणत्रते पंक्ति श्री उद्योतसागरगणिना कृतभाषा संपूर्णा ॥ ७ ॥ ॥ अथ ॥ ॥ अष्टम अनर्थदं विरमणव्रत प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ द्वादश व्रतकी टीपमें, कढ़े सात निरधार; नर्थ का, नेद लिखुं सुविचार ॥ १ ॥ १ प्रथम अर्थदंग. एटले जे सप्रयोजन धन धान्य क्षेत्रादिक नव विध परिग्रह संबंधि दानि वृद्धिरूप जे कारण माटे धनवृ द्धिनिमित्त, संसारी जीवनें घणां पापनां कारण सेववां पडे, तेवारें साधुं जू बोल्या विना रहेवातुं नथी. पापोपकरण मेलववां पडे बे, मनसुबा करवा जोश्यें अनेक विकल्परूप श्रार्त्तध्यान कर १३
SR No.010539
Book TitleSamyaktva Mul Bar Vratni Tip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotsagar Gani
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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