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શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય
हेमचन्द्राचार्य - विरचित
छन्दोनुशासन
(अध्याय ४ थी ७ )
प्राकृत- अपभ्रंश-विभाग
अनुवादक : हरिवल्लभ भायाणी
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि
अमदावाद
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हेमचन्द्राचार्य-विरचित
छन्दोनुशासन प्राकृत-अपभ्रंश-विभागनो अनुवाद
(अध्याय ४, ५, ६, ७)
अनुवादक: हरिवल्लभ भायाणी
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य नवम जन्मशताब्दी
स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि
अमदावाद १९९६
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हेमचन्द्राचार्य - विरचित
छन्दोनुशासन
प्राकृत- अपभ्रंश-विभागनो अनुवाद (अध्याय ४, ५, ६, ७)
अनुवादक : हरिवल्लभ भायाणी
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि
अमदावाद
· १९९६
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Hemacandrācāya-Virachit Chandonuśāsana;
Prakrit-Apabhrainsa- Vibhag - no Anuvad [A Gujarati Translation of the Prakrit and Apabhramba
Sections, i.e. Chapters 4, 5, 6, 7 of Hemacandra'sChandonusāsana]
by H. C. Bhayani
© हरिवल्लभ भायाणी
२५१२, विमानगर, सेटेलाईट रोड, अमदावाद-३८००१५
प्रथम अवृत्ति
१९९६
प्रत: ५००
किंमत : रू. ८०-००
प्रकाशक : कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य
नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि, अमदावाद पंकज सुधाकर शेठ २७८, माणेकबाग, आंबावाडी, अमदावाद-३८००१५
प्राप्तिस्थान: सरस्वती पुस्तक भंडार ११२, हाथीखाना, रतनपोळ, अमदावाद-३८०००१
पार्श्व प्रकाशन झवेरीवाडना नाके, रतनपोळ, अमदावाद-३८०००१
मुद्रक : हरजीभाई एन. पटेल
क्रिश्ना प्रिन्टरी ९६६, नारणपुरा जूना गाम, अमदावाद-३८००१३ (फोन : ७४८४३९३)
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प्रकाशकीय
कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रचार्यनी नवम जन्मशताब्दीना उपलक्ष्यमां आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरिजी महाराजनी प्रेरणा तेम ज मार्गदर्शन अनुसार स्थापवामां आवेला आ ट्रस्टना उपक्रमे थई रहेलां समृद्ध प्रकाशनोनी शृंखलामां एक वधु अने श्रेष्ठ ग्रंथनो उमेरो थई रह्यो छे ते अमारा माटे अनहद आनंद तथा गौरवनो विषय छे.
कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यनी विद्वन्मान्य प्रशिष्ट रचना 'छंदोनुशासन'नां प्राकृत-अपभ्रंश भाषानां प्रकरणो, जिज्ञासुओ माटे अने विशेषतः संस्कृत भाषाना अभ्यासी विद्वानो तेम ज विद्यार्थीओ माटे दुरूह अने कठिन प्राय गणाय तेवां छे. आ प्रकरणोनो गुजराती अनुवाद थाय तो आ कठिनाई सहेजे निवारी शकाय - तेवो विचार आपणा मूर्धन्य भाषाविद डो. हरिवल्लभ भायाणीने आव्यो. आ. श्री शीलचन्द्रसूरिजीए आ महत्त्वनुं कार्य करी आपवा माटे तेओने ज आग्रह कर्यो. सद्भाग्ये भायाणीसाहेबे, अनेकानेक अने वळी अतिमहत्त्वपूर्ण एवां अन्य सर्जन-संशोधन- संपादन कार्यो अंगेनी पोतानी व्यस्तता तेम ज पोतानी नादुरस्त तबियत छतां आ अनुवाद - कार्यने अग्रिमता आपी वहेलासर ते कार्य करी आप्युं, अने तेना प्रकाशन माटे अमारा ट्रस्टने हर्षपूर्वक ते सोंपीने अमोने आवा कार्य माटे योग्य तथा विश्वस्त गण्या, जे अमारा ट्रस्ट माटे अत्यंत गौरवप्रद घटना छे.
समग्र विद्याजगत, आवा यशस्वी अने महत्त्वपूर्ण अनुवाद - कार्य बदल भायाणीसाहेबनुं ऋणी थवानुं छे तेमां तो शंका नथी ज, परंतु अमारुं ट्रस्ट पण तेओनुं आ माटे सदैव ऋणी छे अने रहेशे, अने अमोने आशा तथा श्रद्धा छे के श्री भायाणीसाहेब अमोने हंमेशां आ ज प्रमाणे तेओ श्रीना ऋणी बन्या करवानी तक आपतां ज रहेशे.
विद्वज्जगत् आ ग्रंथनो खूब खूब लाभ ले तेवी अभ्यर्थना साथे,
लि.
क. स. हेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति शिक्षण संस्कारनिधि, अमदावादनो ट्रस्टीगण
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अनुक्रम अनुवाद
1-135 चोथो अध्याय : आर्या-गलितक-खंजक शीर्षक-वर्णन आर्या-प्रकरण
विषय विषय
-प्रकरण आर्यो के गाथा
गलितक आर्याना प्रकारो
उपगलितक पथ्या
अंतरगलितक विपुला
विगलितक चपला
संगलितक गीति
शुभगलितक उपगीति
समगलितक उद्गीति
मुखगलितक रिपुच्छंदा
मालागलितक भद्रिका
मुग्धगलितक ललिता
उग्रगलितक विचित्रा... .
सुंदरागलितक स्कंधक
मालागलितक
- उपस्कंधक
भूषणागलितक अवस्कंधक
मालागलिता उत्स्कंधक
विलंबितागलितक संकीर्ण स्कंधक
खंडोद्गत जातिफल
प्रसृतागलितक गाथ उदगाथ, विगाथ, 10
लंबितागलितक अवगाथ, संगाथ, उपगाथ 11 ललितागलितक गाथिनी
12 विषमगलितक मालागाथ..
12 भुक्तावलिगलितक उद्दाम, विदाम, अवदाम, संदाम .. रतिवल्लभगलितक उपदाम, दामिनी, मलादाम 13 ... हीरावलीगलितक
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खंजक प्रकरण खंजक
27 महातोणक सुमंगला खंड उपखंडक खंडिता
28 अवलंबक हेला आवली विनता विलासिनी मंजरी शालभंजिका कुसुमिता द्विपदी रचिता आरनाल कामलेखा चंद्रलेखा क्रीडनक
34 अरविंदक मागधनकुटी नर्कुटक समनओटक तरंगक
36 पवनोद्धृत
36 निध्यायिका अधिकाक्षरा मुग्धिका
चित्रलेखा मल्लिका दीपिका लक्ष्मिका
40 . मदनावतार, मधुकरी, नवकोकिला, कामलीला, सुतारा, वसंतोत्सव 40
शीर्षक प्रकरण द्विपदी-खंड द्विभंगिका गाथा+भद्रिका वस्तुनदनक+कर्पूर वस्तुवदनक + कुंकुम रासावलय+कपूर रासावलय + कुंकुम वस्तुवदनक+रासावलया+कर्पूर 46 वस्तुवदनक+रासावलया+कुंकुम47 रासावलयार्ध + वस्तुवदनकार्ध+
कर्पूर वदनक+ कर्पूर
48 वदनक + कुंकुम षट्पद के सार्ध छंद त्रिभंगिकाः
द्विपदी+अवलंबक + गीति 49 __ मंजरी + खंडिता+भद्रिका 50 समशीर्षक विषमशीर्षक
52 पांचमो अध्याय उत्साहादि वर्णन . रासकादि प्रकरण .. रासक-1 रासक-2
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अवतंसक
कुंद
करभक इंद्रगोप कोकिल
दर्दुर
आमोद विद्रुम
मेघ
विभ्रम कुसुम रासा
उत्थक्क/अवस्थितक धवल धवलना प्रकारो: श्रीधवल
यशोधवल कीर्तिधवल गुणधवल भ्रमरधवल
अमरधवल मंगल फुल्लडक झंबटक
73 छछो अध्याय : ध्रुवा-ध्रुवकःधत्ताचतुष्पदी-षट्पदी-वर्णन
ध्रुवाना प्रकारो छड्डणिका
74 (गणनियम
74 प्रासनियम
षट्पदी ध्रुवा षट्पद-जाति
75 षट्पद-अवजाति
चतुष्पदी ध्रुवा के वस्तुक प्रकारो अंतरसमा चतुष्पदीना प्रकारो 77 चंपककुसुम सामुद्गक
79 मल्हणक सुभगविलास केसर
79 रावणहस्तक सिंहविजूंभित
80
.
o
63
64
64
मात्रा प्रकरण मात्रा मात्राना प्रकारो :
मत्तबालिका मत्तमधुकरी मत्तविलासिनी मत्तकरिणी
बहुरूपा रड्डा के वस्तु वस्तुक
65 वस्तुवदनक रासावलय
66 वस्तुवदनक + रासावलय रासावलय + वस्तुवदनक वदनक
68 संकुलक उपवदनक अडिला मडिला
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मकरंदिका मधुकरविलसित
चंपक कुसुमाव
मणिरत्नप्रभा
कुंकुमतिलक चंपकशेखर
क्रीडनक
बकुलामोद
मन्मथतिलक
मालाविलसित
पुण्यामलक नवकुसुमित पल्लव
मलयमारुत
मदनावास
मांगलिका
अभिसारिका
कुसुमनिरंतर
मदनोदय
चंद्रोद्योत
रत्नावली
भ्रूवक्रणक
मुक्ताफलमाला
कोकिलावलि
मधुकवृंद
केतकीकुसुम
नवविद्युन्माला त्रिवलीतरंगक
अरविंदक विभ्रमविलसितवदन
नवपुष्पंधय किन्नरमिथुनविलास
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विद्याधरलीला
सारंग
कामिनीहास
अपदोहक
प्रेमविलास
कांचनमाला
जलधरविलसित
अभिनवमृगांकलेखा
सहकारकुसुममंजरी
कामिनीक्रीडनक
कामिनीकंकणहस्त
मुखपालनतिलक
वसंतलेखा
मधुरालापिनीहस्त
मुखपंक्ति
कुसुमलतागृह
रत्नमाला
सुमनोरमा
पंकज
कुंजर
मदनातुर
भ्रमरावली
पंकज श्री
किंकिणी
कुंकुमलता
शशिशेखर
लीलालय
चंद्रहास
गोरोचना
कुसुमबाण
मालतीकुसुम
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नागकेसर नवचंपकमाला विद्याधर कुब्जककुसुम कुसुमास्तरण मधुकरीसंलाप सुखावास कुंकुमलेखा नवकुवलयदाम कलहंस संध्यावली कुंजरललित कुसुमावली विद्युल्लता पंचाननललिता मरकतमाला अभिनववसंतश्री मनोहरा आक्षिप्तिका किन्नरलीला मकरध्वजहास कुसुमाकुलमधुकर . भ्रमरविलास मदनविलास विद्याधरहास कुसुमायुधशेखर उपदोहक
100
100
100 100
कुसुमितकेतकीहस्त 104 कुंजरविलसित
105 राजहंस
105 अशोकपल्लवच्छाया
105 अनंगललिता
105 मन्मथविलसित
106 ओहुल्लणक
106 कज्जललेखा
106 किलिकिंचित
107 शशिबिंबित
107 अर्धसमा-चतुष्पदी चंपककुसुम (अर्धसम) 108 मुखपंक्ति (अर्धसम)
108 संकीर्णा चतुष्पदी
108 सर्वसमा चतुष्पदी ध्रुवक
109 शशांकवदना
109 मारकृति
110 महानुभावा अप्सरोविलसित
110 गंधोदकधारा
111 पारणक
111 पद्धडिका
111 रगडाध्रुवक
112 सातमो अध्याय : द्विपदी-वर्णन कर्पूर
113 कुंकुम लय
113 भ्रमरपद गरुडपद
114
101
101
110
101 101 102
102 102
102
103
103
दोहक
103
113
चंद्रलेखा सुतालिंगन कंकेल्लिलताभवन
104 104
114
•104
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116 116 116 117 117 118 118 118 118
125 125 125 126 126 126 126 127 127
128
उपगरुडपद हरिणीकुल गीतिसम भ्रमररुत हरिणीपद कमलाकर कुंकुमतिलकावली रत्नकंठिका शिखा छड्डिणिका स्कंधकसम मौक्तिकदाम नवकदलीपत्र स्कंधकसमा, मोक्तिकदाम्नी,
नवकदलीपत्रा आयामक कांचीदाम रसनादाम चूडामणि उपायामक, उपकांचीदाम,
उपरसनादाम, उपचूडामणि स्वप्नक भुजंगविक्रान्त ताराध्रुवक नवरंगक स्थविरासनक सुभग पवनध्रुवक कुमुद भाराक्रान्त
सिंहविक्रान्त कुकुमकेसर बालभुजंगमललित उपगंधर्व संगीत उपगीत गोंदल रथ्यावर्णक अभिनव चपल अमृत सिंहपद दीर्घक कलकंठीरुत अतिदीर्घ मत्तमातंगविजूंभित मालाध्रुवक ध्रुवा तथा द्विपदी
लघुद्विपदी विजया रेवका गणद्विपदी स्वरद्विपदी अप्सरा वसुद्विपदी करिमकरभुजा लवली अमरपुरसुंदरी कांचनलेखा चारु पुष्पमाला अन्य द्विपदीओ गाथा
128 128 129 129 130 130 131 131
119 119 120 120 120
120
121 121 121 122 122 122 123 123 123 124 124 124
131 131 132 132 132 132 132 133 133 134 134 134 134 135
कंदोट्ट
भ्रमद्भुत सुरक्रीडित
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१२
भूमिका १. 'छंदोनुशासन'नो व्याप अने स्वरूप
हेमचंद्राचार्ये जे भगीरथ ज्ञानयज्ञनुं (जो हिंसक अभिधेयार्थने बाद करीने कहीए तो 'अश्वमेध'नु) अनुष्ठान आदर्यु हतुं, तेमां तेमणे समग्रपणे भाषानो समावेश को हतो : 'वचस्'नो, एटले के व्यवहार अने शास्त्रनी भाषानो अने 'उक्ति'नो, एटले के काव्यभाषानो । काव्य, दर्शन अने शास्त्रना क्षेत्रोने आवरी लेतो ए शकवर्ती पुरुषार्थ हतो । शास्त्रमा व्याकरण, कोश, छंद अने अलंकारना विषयो तेमणे आवरी लीधा । 'छंदोनुशासन'मां संस्कृत अने प्राकृत छंदोर्नु निरूपण कर्यु छे । (१) संज्ञा, (२) समवृत्त, (३) अर्धसम-विषम-वैतालीयमात्रासमक आदि, (४) आर्या-गलितक-रखंजक-शीर्षक, (५) उत्साह आदि, (६) षट्पदी-चतुष्पदी, (७) द्विपदी, (८)प्रस्तार आदि-ए प्रमाणे आठ अध्यायो, ७४६ सूत्रो, तेमना परनी पोतानी 'छंदश्चूडामणि'वृत्ति अने स्वरचित १००० जेटलां संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश उदाहरणो-एवा स्वरूपनो, त्रण हजारथी पण वधारे श्लोकप्रमाण धरावतो ए एक प्रमाणभूत, अनन्य पिंगळग्रंथ छे ।
ह. दा. वेलणकर वडे संपादित (सिंघी जैन ग्रंथमाला, ग्रंथांक ४९, १९६१) आवृत्तिमां (१) अगियार हस्तप्रतोने आधारे मूळ पाठ, वृत्ति अने पाठांतरो, (२) 'पर्याय'नामर्नु अज्ञातकर्तृक संस्कृत टिप्पणक, (३) 'जानाश्रय छंदोग्रंथमांथी प्राकृतवृत्त-विभाग, (४) विस्तृत भूमिका, (५) सूत्रो, छंदो, उदाहरणोनी विविध सूचिओ आपेल छ । अने मात्रागणोनां स्वरूप अने नामकरण, केटलाक प्राकृत अने अपभ्रंश छंदोनो इतिहास, प्राकृत-अपभ्रंश पिंगळकारोनां निरूपणोनी ऐतिहासिक दष्टिए तुलना वगेरे छंद-शास्त्रने लगता विषयोनी ऊंडाणथी चर्चा करी छ। 'छंदोनुशासन'ना प्राकृत-अपभ्रंश विभाग विशे तेमणे कयुं छे के हेमचंद्राचार्ये पोताना पुरोगामीएना कार्यनी बधी महत्त्वनी सामग्री उपयोगमा लईने ए छंदोमुं प्रमाणभूत, व्यवस्थित अने यथाघटित निरूपण कयुं छे. विरहांक अने स्वयंभूना ग्रंथथी तेओ परिचित छे अने संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश छंदोनुं तेमणे स्पष्टपणे विषयविभाजन कर्यु छे. 'स्वयंभूछंद' अने 'छंदोनुशासन' वच्चे केवो संबंध छे तेनी में नीचे सामान्य विचारणा करी छ ।
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प्रस्तुत अनुवादमां वेलणकरना संपादनमां आपेला सूत्रपाठ, वृत्ति अने 'पर्याय' टिप्पणकनो साभार आधार लीधो छ । हस्तप्रतोनी दुर्लभता, कंठस्थ करवाथी अध्ययन-अध्यापनमां सरळता वगैरे कारणे शास्त्रकारो सूत्रपद्धतिए रचना करता हता। सूत्र अने वृत्तिमां सहेजे पुनरुक्ति होईने, अनुवादमा वृत्तिने अनुसरवानुं राख्युं छे । संदर्भ माटे उपयोगी थाय ए दृष्टिए सूत्रपाठ अंते आप्यो छ । प्राकृत अने अपभ्रंश साहित्यकृतिओना संपादन अने समजण माटे ए भाषाना छंदोना स्वरूप, बंधारण अने प्रयोगनी जाणकारी अनिवार्य होवाथी ए माटे आ अनुवाद गुजराती वाचकोने उपयोगी थशे ।
२. हेमचंद्र अने स्वयंभूनुं प्राकृत-अपभ्रंश छंदोनुं निरूपण (तेना केटलांक महत्त्वनां पासां)
(१) १. हेमचंद्राचार्ये रचेला विविध शास्त्रग्रंथोमां तेमनुं 'छंदोनुशासन' (=छंशा.) पण घणुं महत्त्व धरावे छे अने समग्रपणे प्राचीन भारतीय छंदःशास्त्रना साहित्यमां ये तेनुं ऊंचुं स्थान छे । ते बारमी शताब्दीथी पिंगळशास्त्रना सर्वाश्लेषी अने सुव्यवस्थित ग्रंथ लेखे घणो उपयोगी अने प्रभावक रह्यो छे । अहीं हुं तेना प्राकृत-अपभ्रंश-विभागनी चर्चा करीश अने तेनां पण अनेक महत्त्वनां पासांओमांथी थोडांकनां ज विवरण अने समीक्षानो समावेश थई शकशे ।
२. ईसवी सन पूर्वे लगभग पांचमी शताब्दीथी प्राकृतमां औपदेशिक अने पछीथी काव्यनाटकनुं पद्यसाहित्य खेडातुं रघु छ । ईसवी पांचमी-छट्ठी शताब्दीथी अपभ्रंश पद्यसाहित्यनो उदय थयो छे । ए पाकृत-अपभ्रंश साहित्यना विविध प्रकारोमा विविध छंदो प्रयोजाता हता, एटले सर्जको अने भावकोना उपयोग माटे छंदोग्रंथ रचवानी प्रणाली स्थपाई होय ए स्वाभाविक छ । पहेलीबीजी शताब्दी लगभग प्रतिष्ठानना राजा सातवाहन (के हाल) द्वारा कोईक प्राकृत छंदःशास्त्रमा रचायुं होवाना थोडाक संकेत मळे छे । ते पछी दक्षिणना जनाश्रयना १. 'हैमवाङ्मय-विमर्श' (१९९०) पृ. ३१६-१२१ पर प्रकाशित अहीं पुनर्मुद्रित.
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संस्कृत पिंगळना ग्रंथ 'जानाश्रयी' नो समय छठी शताब्दीनो अंत भाग छे । तेना आधार तरीके देखीतां ज कोईक प्राकृत पिंगल होवू जोईए । ते पछी सातमी शताब्दी लगभगनुं विरहांककृत 'गाथालक्षण' मळे छे, पण विरहांकना पिंगलने बाद करतां (जेमां विशिष्टपणे अपभ्रंश एवा मात्र पांचछ छंदोनो समावेश थयो छे), नवमी शताब्दी- स्वयंभूकृत 'स्वंयभूच्छंद' (=स्वछं.), एक ज पिंगल आपणी पासे छे, जे छंशा.नी पूर्वे विस्तारपूर्वक अने सोदाहरण प्राकृत-अपभ्रंश छंदोनुं निरूपण करे छे ।
३. सूत्रो अने ते उपरनी स्वोपज्ञ वृत्ति रूपे रहेला छंशा.मां आठ अध्याय छे, तेना चोथाथी सातमा सुधीना चार अध्यायोमा प्राकृत-अपभ्रंश छंदो निरूप्या छ । तेमां चोथा अध्यायमा प्राकृत छंदो छे, अने बाकीना त्रणमां अपभ्रंश छंदो। विगतो जोईए तो, (चोथा अध्यायमा आर्या, गलितको, खंजक अने शीर्षक वर्गना प्राकृत छेदो, पांचमा अध्यायमा उत्साह, विविध रासक, मात्रा, रड्डा, वस्तुक, वस्तुवदन, रासावलय, अडिल्ला अने उत्थक्क ए छंदोर्नु तथा धवल, मंगल, फुल्लड अने झंबटक ए छंदप्रकारोनु, छठ्ठामां षट्पदी अने चतुष्पदी, अने सातमामां द्विपदीनुं वर्णन छ। सर्वत्र हेमचंद्रे छंदोनां स्वरचित उदाहरणो आपेलां छे । पोताना बीजा शास्त्रग्रंथोनी जेम छंशा.मां पण हेमचन्द्रे पूर्ववर्ती पिंगलोर्नु संकलन करीने एक सुव्यवस्थित, सविस्तर, प्रमाणभूत, छंदोग्रंथ तैयार कर्यो छे । हेमचंद्रे पोते ज आ स्पष्टपणे कडुं छे : छंदोनुं अनुशासन एटले पूर्वाचार्योना शासनने अनुसरीने करेलुं शासन । तेमां स्वछं. मुख्य आधार तरीके होवानुं आपणे जोई शकीए छीए।
४. प्राकृत-अपभ्रंश' छंदोना अध्ययनना मुख्यत्वे त्रण पासां छे : वर्णन, प्रयोग अने इतिहास । ते ते छंदना चोक्कस स्वरूपनुं अने पेटाप्रकारोनुं चोक्कस बंधारण आपवं अने तेमनी स्वरूपगत समानता अने कार्यगत समनताने आधारे वर्गीकरण करवू ते वर्णन नीचे आवे । छंदोनुं गेय स्वरूप तपासवं अने ए छंदो प्राप्त साहित्यमां केवी रीते वपराया छे ते तपासवं ते प्रयोग नीचे आवे । प्राकृतअपभ्रंश छंदो परत्वे अत्यार सुधी थयेलुं संशोधन मुख्यत्वे वर्णन पूरतुं मर्यादित रह्यु छ। प्रयोगना विषयमां भाग्ये ज कशुं थयुं छे, अने इतिहासना विषयमां पण घणुं ओर्छ । प्राकृत-अपभ्रंश छंदोना घणाखरा पिंगलग्रंथोनुं शास्त्रीय संपादन करी तेमनी सामग्रीने व्यवस्थित अने वर्गीकृत रूपे रजू करी ए पिंगलोनो समयनिर्णय
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अने आंतरसंबंध निश्चित करवानुं तथा ए सामग्रीने व्यापक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यमां तपासवानुं पायानुं कार्य कर्यानो यश सदगत प्रा. वेलणकरने घटे छे । ए संपादनोनी भूमिकामां तथा अंते आपेला अनेक परिशिष्टोमां वेलणकरे प्राकृतअपभ्रंश छंदो विशे अने छंदोरचना विशे घणी हकीकतो तारवी आपी छे तथा तेने लगता विविध प्रश्नोनो ऊहापोह कर्यो छे । अहीं प्राप्त अपभ्रंश कृतिओने अनुलक्षीने याकोबी, आल्स्डोर्फ वगेरे ए तथा में छंदस्वरूप अने छंदप्रकारनी दृष्टिए माहिती आपी छे । परंतु ते ते समयमा प्रचलित-प्रयुक्त अपभ्रंश छंदो ने समग्रपणे, परिवर्तननी दृष्टिए तथा अपभ्रंश पिंगळोना संदर्भमां तपासीने कशुं अन्वेषणकार्य भाग्ये ज थयुं छे । ते ज प्रमाणे भारतीय भाषासाहित्यने मळेला अपभ्रंश छंदोना वारसा विशे छूटकजूटक थोडंक काम थयुं छे, पण अपभ्रंश छंदोना अने साहित्यना सघन परिचयने अभावे ते काम उपरचोटियुं के काचुं थयुं छे । जूनी गुजराती छंदोना इतिहासनी पोतानी विचारणामां सद्गत प्रा. रामनारायण पाठके अपभ्रंश छंदोनां गेय स्वरूपने ध्यानमां लीधुं छे खरुं ३. पण तेमनी विचारणा तालना तत्त्व पूरती ज मर्यादित छे, स्वरना तत्त्वनो तेमणे स्पर्श कर्यो नथी ।
५. अहीं, मारुं प्रयोजन थई गयेला कार्य- पुनरावर्तन के दोहन करवानुं नथी । हुं आ विषयना अस्पृष्ट रहेला मुद्दाओमांथी मात्र बे-त्रणने ज स्पर्शवानो अने बीजा थोडाक मुद्दाओनी चर्चा आगळ चलाववानो प्रयास करीश । प्राकृत तथा अपभ्रंशना छंदःशास्त्रनी अत्यार सुधी जे कांई विचारणा थई छे, तेमां बे पायानी बाबतो गणतरीमां नथी लेवाई । एक तो ए के अपभ्रंश साहित्यप्रकारोना संदर्भे अपभ्रंश छंदोनो विचार करवो अनिवार्य छ । बीजूं, प्राकृत तथा अपभ्रंश छंदो मात्र तालबद्ध होवाथी संगीत, नाट्य अने नर्तननां क्षेत्रो साथे पण तेमनो गाढ संबंध हतो । आ बंने बाबतोने ध्यानमां न लईए तो मात्र छंदोनुं स्थूळ, अमूर्त माळखं-तेमर्नु हाडपिंजर आपणा हाथमां आवे, तेमनुं हार्द, तेमनुं सजीव के चेतनवंतु स्वरूप तद्दन अस्पृष्ट रहे ।
६. हेमचंद्रे मुख्यत्वे अपभ्रंश काव्योमा थयेला प्रत्यक्ष प्रयोगोने आधारे नहीं, पण पूर्ववर्ती अपभ्रंश पिंगळोने आधारे-तेमनुं संकलन करीने प्राकृतअपभ्रंश छंदो, निरूपण करेलुं छे । बीजी बाजु स्वयंभू पोते अपभ्रंश साहित्यनो एक अग्रणी महाकवि हतो । ते सो-सो जेटला संधिओ (एटले के सर्गो)मां
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निबद्ध अने अनेकानेक मात्रावृत्तो अने अक्षरवृत्तो वापरतां महाकाव्योनो कर्ता हतो, एटले स्वछं. मांनुं तेनुं अपभ्रंश छंदोनुं निरूपण ए जीवंत परंपरामा सक्रिय रहेला- तथा तेने घडता -- एक समर्थ कलाकारनुं छे । एटलुं ज नहीं स्वछं. मां स्वंयभूए पोताना समयमां प्रचलित विशाळ प्राकृत - अपभ्रंश साहित्यमांथी (तथा संभवतः पूर्ववर्ती पिंगळोमांथी) कविओना नाम साथे उदाहरणो टांक्यां छे । आथी देखीतुं छे के प्रामाण्यनी दृष्टिए तेना निरूपणनी कक्षाने पछीनां पिंगळो आंबी न शके । हेमचंद्रनो मुख्य आधार पण 'स्वयंभूछंद' होवानुं जणाय छे । आ हुं अहीं स्वछं ने केन्द्रमां राखीने चर्चा करीश । ते साथे जरूर प्रमाणे छंशा ना समान्तर संदर्भो पण आपीश । वक्तव्य मुख्यत्वे अपभ्रंश छंदोने अनुलक्षीने रहेशे । प्राकृत छंदोनो अछडतो ज स्पर्श करवानुं बनशे ।
(२)
१. प्रशिष्ट अपभ्रंश साहित्यना स्थूलमाने अने मुख्यत्वे छ प्रकार हता । (१) संधिबंध, (२) रासाबंध, (३) कथा, (४) चरित (५) प्रासंगिक गीत तथा चित्रकाव्यो अने (६) मुक्तको । आमांना छेल्ला बे प्रकार स्वतंत्रपणे तेमज कोईक विस्तृत प्राकृत रचनामां प्रासंगिक अंश तरीके मळता हता । स्वछंना चौद प्रकरणमांथी' पहेला आठमां प्राकृत साहित्यमां वपराता छंदोनुं अने बाकीना छमां विशेष अपभ्रंश साहित्यमां वपराता छंदोनुं निरूपण छे । छंशा मां ते ज प्रमाणे चोथा अध्यायमा प्राकृत छंदो अने पांचमा, छठ्ठा अने सातमां अध्यायमां अपभ्रंश छंदो निरूपेला छे । तेमां अपभ्रंश छंदोनो विचार करतां स्वछं. प्रकरण १०,११,१२, अने १३ मां संधिबंधना लाक्षणिक अंगोमां विशिष्टपणे वपराता छंदोना विविध प्रकारोनुं वर्णन छे, ज्यारे १४मा प्रकरणना एक भागमां संधिना बंधारणनुं निरूपण छे । आ बाबतमां स्वछं. अने छंशा वच्चे नीचे प्रमाणे
I
साम्य छे ।
स्वछं.
छंशा.
प्रक. १४ ( एकांश)
अध्या. ७
प्रक. १०
अध्या. ६
प्रक. ११
अध्या. ६
प्रक. १२
अध्या. ७
प्रक. १३
अध्या. ७
संधिनुं बंधारण
संधिबंधना छंदो
षट्पदी
चतुष्पदी
द्विपदी
शेषद्विपदी
(लघुद्विपदी)
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आमांनी लघुद्विपदीओनो संधिबंधमां कडवकनी आदिध्रुवा तरीके तथा क्वचित कडवकदेह माटे वपराती हती । ते उपरांत अन्य प्रकारनी रचनाओमां पण तेमनो प्रयोग थतो हतो ।
२. ए पछी रासाबंधनी वात करीए तो स्वछं. प्रक. १४मां तेना बंधारणनी विगतो आपी छ। हेमचंद्रे 'रासक' नामना छंदोना वर्ग छंशा.ना पांचमा अध्यायमां एक अलग विभागमा वर्णव्या छे । स्वंछ. प्रक. ९ मां तथा छंदो.ना अध्या.५ मां जे छंदोनुं निरूपण छे, तेमांथी पण केटलाक रासाबंधमां वपराता हशे एम आपणे तेना दर्शावेला लक्षणने आधारे अने पछीथी मळता 'संदेशरासक'ने आधारे कही शकीए ।
___अपभ्रंश कथाप्रकारोमां वपराता छंदो विशे आपणने कशी चोक्कस माहिती नथी । पाछळनी परंपरा जोतां लागे छे के वदनक, पद्धडी, अडिल्ला अने पारणक जेवा १६ के १५ मात्राना छंद, अथवा तो वस्तुवदनक, षट्पद के दोहा जेवा छंद कथाकाव्यो माटे वपराता हशे । चरितकाव्यो माटे पण ए छंदो उपरांत रड्डानो उपयोग थतो होवानु केटलाक पुरावाने आधारे स्वीकारी शकीए ।
धवल, मंगल, फुल्लड, झंबटक जेवा गीतो माटे अने प्रहेलिका तथा हृदयालिका जेवा चित्रकाव्यो माटे अपभ्रंशमां विविध छंदो वपराता हता । ए वात मुक्तकोने पण लागु पडे छे ।
सिंहावलोकन, विज्ञप्ति, मंगळ, संविधान वगेरे हेतुओ माटे लघुद्विपदीओ वपराती ।
घjबधुं अपभ्रंश साहित्य-विशेषे धार्मिकेतर, लौकिक रचनाओ-लुप्त थयेल होवाथी तेमना छंदोविधान विशे आपणे बहु ओछु कही शकीए तेम छीए। मुख्यत्वे तो स्वंछ. अने छंशा.मांथी जे छूटकत्रूटक माहिती मळे छे तेने आधारे ज आपणे ते विशे अटकळो करवानी रहे छ ।
१. आ विषयमा ए पण खास ध्यानमा राखवानुं छे के अपभ्रंश कृतिओमां पण जेमने विशिष्टपणे प्राकृत छंदो कह्या छे तेमांथी केटलाकनो नियत करेला स्थाने, तथा अन्यथा वैविध्य खातर प्रयोग करवानी परंपरा हती, अने सामे पक्षे प्राकृत कृतिओमां विविध प्रसंग अने संदर्भनां अपभ्रंश भाषा अने छंदोमां
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निबद्ध होय तेवा खंडो के सुभाषितादि आपणने जोवा मळे छ ।
२. स्वछं. अने छंशा. ना प्राकृत विभागना छंदोनी वात करीए तो, उपलब्ध संधिबद्ध अपभ्रंश महाकाव्यो जोतां आपणे कही शकीए के केटलाक प्राकृत छंदो नियत हेतु माटे संधिबंधमां लाक्षणिक रीते वपराता हता । उदाहरण तरीके स्वयंभूना 'पउमचरिय' मां निध्यायिका, मंजरी, हेला, शालभंजिका, कामलेखा, द्विपदी, आरनाल, मात्रा अने मंजरीनी द्विभंगी-एटला छंद कडवकोनी आधिध्रवा तरीके केटलाक संधिमां वपराया छे ।६ पुष्पदंतनं 'महापुराण' अने एवा बीजा संधिबद्ध पौराणिक काव्योने आधारे आ यादी लंबावी शकाशे । हवे आ छंदोनुं निरूपण छंशा. ना चोथा अध्यायमां तथा स्वछं. ना त्रीजा प्रकरणमां एटले के तेमना प्राकृत विभागमा थयेलुं छे ।'
आ उपरांत संधिबंधमां अमुक संधिना कडवको विविध छंदोमां रचवानी प्रथाने अनुसरीने कविओ तेवे स्थाने द्विपदी वगेरे जेवा प्राकृत छंदो तथा मुख्यत्वे संस्कृत काव्योमां वपरातां मात्रावृत्तो अने अक्षरवृत्तोनो प्रयोग पण करता होवानां घणां उदाहरण आपणी सामे छे ।
३. स्वछं. अने छंदो. ना प्राकृत विभागमां गाथाप्रकरण अने स्कंधकप्रकरण उपरांत गलितक, खंजक अने शीर्षक नामनां छंदप्रकारोने अलग प्रकरण के पेटाविभागमां मूकेला छे । आमांना शीर्षकविभागमा विविध छंदोनां मिश्रणो के संयोजनोनुं निरूपण छे । द्विपदी के चतुष्पदी प्रकारना कोई जुदा जुदा बे के वधु छंदना, तेमना स्वरूप अनुसार बे के चार चरणना एकमोने जोडीने एक पछी एक एम मूकीने बे के वधु घटकोनी एकात्मक रचनाओ--एकवाक्यता धरावती रचनाओ, सामान्य नाम शीर्षक हतुं । बे छंदोर्नु संयोजन द्विभंगी कहेवातुं, त्रण छंदोर्नु संयोजन त्रिभंगी। उपर नोंध्युं छे तेम अपभ्रंशमां प्रचलित मात्रा तथा प्राकृत मंजरी छंदनी द्विभंगी स्वंयभूए 'पउमचरिय' मां एक संधिमां आदिध्रुवा तरीके वापरी छे, अने मात्रा तथा दोहानी रड्डा नामे जाणीती द्विभंगी स्वतंत्रपणे महाकाव्यो के चरितकाव्यो माटे वपरावा उपरांत आदिध्रुवा तरीके वपराती होवानुं स्वयंभूए नोंध्युं छे । छंशा. मां अन्य प्रकारनी पण विविध द्विभंगीओ, निरूपण मळे छे ।
४. छेवटे प्राकृत छंदोना जे एकबे महत्त्वनां पासां अत्यार सुधी घणुखरुं उपेक्षित रह्या छे तेमनो हुं स्पर्श करीश ।
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'विक्रमोर्वशीय'ना चोथा अंकमा उन्मत्त पुरूरवानी एकोक्तिओने अनुलक्षीने नाट्यकारे अभिनय माटेना जे विविध सूचनो आपेलां छे, तेमां अनेक परिभाषिक संज्ञाओ वपराई छे । द्विपदिका, जंभलिका, खंडधारा, चर्चरी, भिन्न खंडक, खुरक, वलंतिका, कुटिलिका, मल्लघटी, द्विलय, अर्धचतुरस्रक, स्थानक, गलितक । आमांनी केटलीक संज्ञाओ विविध नर्तनप्रकारनी गतिओने लगती छे ए तो देखीतुं छे, परंतु घणी संज्ञाओ पुरूरवा वडे के अन्य कोई वडे गवाता प्राकृत, अपभ्रंश के संस्कृत पद्यना संदर्भमां वपरायेली छे । वेलणकरे द्विपदिका चर्चरी, खंडक, खंडिका, खंडधारा, गलितक, भिन्नक जेवी संज्ञाओने हेमचंद्र वगेरे प्राकृत पिंगळकारोए वर्णवेला एवां के एने मळतां नामवाळा छंदो साथे सांकळी शकाय के केम तेनी चर्चा करी छे । आ संदर्भमां रंगनाथ अने कोणेश्वरनी 'विक्रमोर्वशीय' उपरनी टीकाओमां प्राप्त माहितीनो वधु ऊहापोह आवश्यक छे । उपरांत विरहांकना 'वृत्तजातिसमुच्चय'मां जे विशिष्ट स्वरूपनी द्विपदीओनुं निरूपण छे अने जे 'जानाश्रयी' ने पण परिचित छे, ११ तेने पण गणतरीमां लेवुं अनिवार्य छे । आ उपरथी ए स्पष्ट थाय छे के घणी वार एकनी एक संज्ञा अमुक छंद माटे अने ते छंदमां रचेला पद्यनी साधे संकळायेला नृत्यविशेष माटे पण वपराती । आ उपरांत 'चर्चरी' जेवी संज्ञा उपरथी जोई शकाय छे के छंद, गीत, ताल, अने नृत्य तथा उत्सव माटे एकनी एक संज्ञा केटलीक वार प्रचलित बनती । संगीतशास्त्रना 'बृहद्देशी', 'संगीतरत्नाकर' वगेरे जेवा ग्रंथोमां अमुक प्राकृत छंदमां रचायेला गीतना राग, स्वरो अने तालनुं जे निरूपण मळे छे, तेमां जे नाम छंदनुं होय छे ते जनम तेनी साथै संकळायेला गेयप्रबंधने आपेलुं जोवा मळे छे । 22 आ उपरथी समजी शकाशे के प्राकृत- अपभ्रंश छंदो, नर्तनप्रकारो अने संगीतप्रबंधोनुं अध्ययन केटलुं बधुं अन्योन्य साथै संकळायेलुं छे । परिणामे ए पण स्पष्ट छे के तेमांथी कोई एकना अध्ययन माटे बीजां बने शास्त्रो घणां उपकारक थई पडे । परंतु आ विषय स्वतंत्रपणे तपासवा योग्य होईने अहीं ते विशे चर्चा करवी इष्ट गणी नथी ।१३
टिप्पण
१. राजशेखरनुं 'छंदः शेखर', जेना मात्र प्राकृत अपभ्रंश छंदोने लगतो पांचमो अध्याय ज मळे छे, ते 'स्वंयभूच्छंद' ना मूळ ग्रंथनो संस्कृत अनुवाद ज छे ।
2. अहीं पालि अन अर्धमागधी साहित्यमां मळता छंदोने बाद राखी, प्रशिष्ट साहित्यना छंदोनी
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।
ज वात करी छे । ३. जुओ तेमनां 'प्राचीन गुजराती छंदो' (१९४८) अने 'बृहत्पिंगल' (१९५५ १९९२) ए
पुस्तको। वेलणकरने स्वछं. नी पहेला मळेली हस्तप्रतमां शरुआतनो भाग खूटतो हतो, जेनी पूर्ति घणे अंशे, पछीथी मळेली हस्तप्रतने आधारे करी शकाई हती। आथी तेमणे खूटतो भाग 'स्वयंभूच्छंद-पूर्वभाग' एवा शीर्षकथी संपादित करीने खंडित भागनी पाछळ मूक्यो । तेथी तेमणे आपेलो प्रकरणोनो क्रमांक (१ थी ८ अने पूर्वभागना १ थी ६, तेमा आगळनो १ अने पाछळनो ६ एक ज प्रकरणने लगता छे, ज्यारे तेमना आगळना छठ्ठा प्रकरणमां खामीवाळी हस्तप्रतने कारणे द्विपदीनुं अलग गणवू जोईतुं प्रकरण साथे गणाई गयुं छे, एटले तेने जुदुं गणतां प्रकरण-संख्यामा एकनो वधारो थाय छे) भेळवी देतां पूर्वभाग अने
उत्तरभागनां मळीने कुल १४ प्रकरण थाय छे ।। ५. जुओ ह.भायाणी, 'वर्धमानसूरिझ अपभ्रंश मिटस्', संबोधि, ग्रंथ १३, १९८४-१९८५, पा.
१०१-१०९. ६. स्वयंभूकृत 'पउमचरिय' अने 'रिट्ठणेमिचरिय' (मात्र अमुक अंश प्रकाशित) मां प्रयुक्त
बधा छंदोना सर्वेक्षण माटे जुओ माई 'पउमचरिय' नुं संपादन, खंड त्रीजो, १९६०,
भूमिका, पृ. २३-३५. ७. स्वछं. नुं त्रीजुं प्रकरण त्रूटक मळे छे, पण छंशा. नी साथे सरखावतां ए बधा छंदो तेमां
पण निरूपाया होवानो पूरतो संभव छे । स्वछं. अने छंशा. ना शीर्षकवर्गना छंदोना निरूपणने पूर्ववर्ती 'जानाश्रयी' अने 'वृत्तजातिसमुच्चय' ना तथा अनुगामी 'कविदर्पण' वगेरेना निरूपण साथे सरखावतां आ प्रकारनां छंदोमिश्रणोना इतिहासनी थोडीक झांखी थाय छ। पण ए अलग तपासनो विषय छ । ए पछी- कार्य भाषासाहित्यना प्राचीन तबकामां प्रचलित रहेला मिश्र छंदोनी तपासन
९. जुओ वेलणकरचें 'विक्रमोर्वशीय' नुं संपादन, १९६१, भूमिका, पृ. ७४ ९०. १०. जुओ तेमनो लेख 'म्युझिक एन्ड डेन्स इन विक्रमोर्वशीय एक्ट ४', एनल्झ ओव ध
भांडारकर ओरिएन्टल इन्स्टिट्युट, १९८३, पृ. ५९-७५. ११. आ "द्विलय' साथे 'जानाश्रयी'मा 'त्रिभंगी' ने माटे वपारायेली संज्ञा "त्रिकलय' सरखावी
शकाय। १२. आ संबंधमां जुओ, ह. भायाणी, 'ओन सम स्पेसिमेन्झ ओव चर्चरी'- मुंबई युनिवर्सिटी
द्वारा आयोजित 'सेमिनार ऑन प्राकृत स्टडिझ'मां प्रस्तुत निबंध १९७१, जर्नल ओव ध बोम्बे युनिवर्सिटी, पृ.३६; 'इन्डोलिजिकल स्टडीझ-१' (१९९२)मां पृ. ३४ ५३ उपर
पुनर्मुद्रित । १३. सोमेश्वरकृत 'मानसोल्लास' ना वीशमां प्रकरण 'गीतविनोद'मांना संगीत प्रबंधोना छंदो
वगेरेनी चर्चा माटे जुओ ह.भायाणी, 'ध प्राकृत एन्ड देशभाषा पेसेजीझ इन सोमेश्वरझ मानसोल्लास', के. के. हन्दिकी फेलिसिटेयश वोल्युम', पृ. १६७ १७७.
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३. मुक्तक-कवि हेमचंद्र* १. 'छंदोनुशासन'नां उदाहरणोने आधारे
'छंदोनुशासन'मां हेमचंद्रे जे संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश छंदोनी व्याख्या आपी छे तेमनां उदाहरण घणुंखरूं तो तेमणे पोते रचीने आपेलां छे । ए उदाहरणोमां तेमणे व्याख्याप्राप्त छंदनु नाम सर्वत्र गूंथी लीधुं छे । ए रीते जुदाजुदा छंदोमां हेमचंद्रे रचेलां सो जेटलां प्राकृत अने दोढ सो जेटलां अपभ्रंश मुक्तको 'छंदोनुशासन'मां मळे छे । अहीं मुख्यत्वे तेमना आ अपभ्रंश मुक्तकोनो अने थोडांक प्राकृत मुक्तकोनो परिचय आप्यो छे । प्राकृत उदाहरणो चोथा अध्यायमा छे । अपभ्रंश उदाहरणोमांथी दसेक चोथा अध्यायमां अने बाकीनां पांचमा अने छा अध्यायमा छे. एमांथी पांच अपभ्रंश उदाहरण हेमचंद्रे बीजेथी लीधां होवानुं चोक्कसपणे कही शकाय छे । (६.११६ अने ६.११८ 'स्वयंभूछंद'मांथी लीधेल छे, ज्यारे ६.११७, ६.११९ अने ६.१२० मुंजरचित कोईक लुप्त थयेल दोहासंग्रहमांथी लीधेल छे) । बाकीनां उदाहरणोमां कोईक स्वयंभूए आपेलां उदाहरणमां थोडोक फेरफार करीने बनावेल छे । शेष हेमचंद्रे पोते रचेला छे | विषयनी दृष्टिए जोईए तो आमां घणां मुक्तको शृंगाररसनां छे । केटलांक वीररसनां, राजचाटु एटले के राजवीनी प्रशस्तिरूपे छ। प्राकृत विभागनां एवां उदाहरणोमां सिद्धराज, कुमारपाल अने मूलराजनां पराक्रम अने कीर्ति वर्णवायां छ । आ उपरांत देवतास्तुति, वैराग्यबोध के हितोपदेश अने पौराणिक पात्रविशेषनां गौरववर्णननो पण समावेश थयेलो छे । स्वभावोक्तिओमां ऋतुवर्णन (वसंत, वर्षा वगेरे) अने नारीरूपवर्णन मळे छे । उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, दृष्टांत, समासोक्ति, अपहनुति, श्लेष जेवा अलंकारोनो विनियोग छ । भावभंगि, शैली अने पदावलिमां प्राकृत-अपभ्रंश कवितानी परंपरानुं अनुसरण छे । ए पद्धतिए अनायास काव्यो रचवानी ('कुमारपालचरित'मां पण जोवा मळती) हेमचंद्रनी असाधारण शक्ति तेमांथी प्रतीत थाय छे । एमांनां थोडांक आस्वाद्य मुक्तको उदाहरण लेखे जोईए। ★ 'हेम-वाङ्मय-विमर्श' (१९९०), पृ. ३३७-३४८ पर प्रकाशित । अहीं पुनर्मुद्रित ।
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ऋतुवर्णन वसंत
जुओ, वसंतवालमना मिलने आ वनश्री किंशुकनो कसुंबो सजीने मंगळ मनावी रही छे । (६.२५)
२२
उपवनमां पुष्पित थयेलो नागकेसर एवो शोभी रह्यो छे, जाणे के वसंते वनश्रीने पहेरावेलो खूप । (६.७३)
मलयानिले कंपती वेलडीने जोईने पोतानी गोरडीने संभारता पथिको मरणशरण थया ।
[देक्खिवि वेल्लडी, मलय- मारुअ-धुअ
सुमरिवि गोरडी, पंथिअ-सत्थ- मुअ (६.२३)]
पुष्पित बनेली लताने जोईने भ्रमरवृंदे एवो गीतगुंजारव कर्यों के प्रवासे नीकळनारानी आंखे आंसु उभरायां अने तेओ एक डगलुं पण भरी न शक्या । (६.३४)
पुष्पित पलाश एटले प्रज्वलित बनेल मदनाग्नि, खीलेली मल्लिका एटले मदननुं हास्य । (६.९३)
आ हृष्टपुष्ट मलयानिल, भ्रमरनी जेम, चंदनलताना पलंगमां आळोटतो, लवंगलताना झुंडने भेटतो, रमणीय कदलीओ आगळ खंचकातो, नागरवेल पासे ऊछळतो, सरल, कंकोल अने लवलीनी पासे घुमरातो, माधवीलतानुं चुंबन पामतो, कामीओने पुलकित करतो, संचरी रह्यो छे ।
[लुढिदु चंदण - वल्लि-पल्लंकि
संमिलिदु लवंग- वणि, खलिदु वत्यु - रमणीय- कयलिहि । उच्छलिदु फणिलयहिं, धुलिदु सरल - कंक्कोल - लवलिहिं ॥ चुंबिदु माहवि - वल्लरिहिं, पुलईद - कामि - सरीरु । भमर - सरिच्छउ संचरइ, रड्डउ मलय- समीरु ॥ ( ५.३२)
वर्षा
धरतीतळ पर अरुणरंगी इंद्रगोप एवा लागे छे, जाणे के वर्षालक्ष्मीए चरण मांडतां पगलांमां पडेलां अळतानां टपकां, अने आ झबूकती, झळहळती वीजळी एटले वर्षालक्ष्मीनी सोनानी कंठी । (५.८)
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२३
हाय हाय, मित्र ! जो तो, गगनरूपी विपुल सरोवरना बहोळा जळमां सेलारा देता, घोर निनाद करता, भीषण विद्युत्रूपी जीभ लबकारता, लांबालच, आ नवा मेघरूपी मगरमच्छोए क्रीडा करी रहेला चंद्ररूपी राजहंसने ग्रसी लीधो । ( ४.४८ ) ( प्राकृत)
मालतीमाळा उपर मकरंद - पिपासु भ्रमर एवा शोभे छे, जाणे के पर्जन्यप्रियतमे इंद्रनीलजडी रत्नावलि भेट दीधी न होय । (६.३०)
आ झबुक झबकती विद्युत् - लेखा (विरहिणीने) मेघराक्षसनी लांबीलच, कराळ जीभ जेवी भासे छे । (६.३६)
शरद :
नाचता शुकयुगलनो कलरव शालिक्षेत्रने भरी दे छे । खीलेला सप्तपर्णनी उत्कट सौरभ चोदिश मघमघी रही छे, ग्रामीणोने दूध जेवा धवळ लागतां ढगलाबंध काशतृणनुं हास्य स्फुरी रह्युं छे-आवी शरदऋतु आवी पहोंची छे, तो हे प्रिय सखी, तारा प्रियतम उपर कोप करवानुं तुं मांडी वाळजे ।
( ४.९७) (प्राकृत)
आ गोळमटोळ चंद्र एटले रजनी रमणीनो क्रीडाकंदुक । (६.१७)
चंद्र : उदय पामती पिंगळवर्णी चंद्रलेखा एवी भासे छे, जाणे के आकाशरूपी वराहनी दाढ, जाणे के कंदर्परूपी सुभटे भट्ठीमांथी बहार काढेलुं क्षुरप्रबाण, जाणे के ऐंद्री दिशाए पहेरेलुं किंशुकनुं कर्णाभरण ।
(४.२०.४)
आने तारावलि न समजशो : ए तो चंद्र अने रजनीना प्रेमकलहमां तूटी गयेली मुक्तावलि छे । (६.८६), अथवा तो चंद्रे ऊछाळेली घूघरीओ छे ।
(६.६५)
प्रभात :
आ कमलिनीनी पासे जे भ्रमरगण रमेभमे छे, ते तो कलखने मिषे सूर्य आवी रह्यो होवानी कमलिनीने वधाई दई रह्यो छे । (६.२०) नारीरूपवर्णन :
गौरांगीना अंगनी सुंदरता आगळ चंपाना फूल शोभे खयं ? (६.४) आ उत्कंठित रमणी ज्यारे बोलती होय, त्यारे कलकंठीए पोतानुं मों
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बीडी राखवू । (६.५) आ रमणीनी लीलागति आगळ हंसीनी सरवरक्रीडा टके खरी ? (६.६)
आ रमणीना त्रिवलीतरंग एटले त्रिभुवनविजय करीने कामदेवे खेंचेली त्रण रेखा । (६.३७)
चंचळ नयनरूपी भ्रमरे अने दन्तकान्तरूपी केसरे शोभतुं आ रमणीनुं मुखारविंद लक्ष्मीनुं विलासभवन छ । (६.३८)
हे गोरोचना शी गौर रमणी, लोलुप चंद्र तारा गालमा प्रतिबिंबित थईने तने चूमी रह्यो छे । (६.७०)
आ रमणीनां मीन समां चंचळ नयन-कहोने के फरकता मीन-ध्वज, स्तनतंबुमां मदननो मुकाम होवानुं सूचवे छे । (६.२४)
आ युवतीओनी सहजसलूणी, प्रशस्य नेत्रलक्ष्मीने क्यांक नजर न लागी जाय, ते कारणे सखीओए तेने काजळ लगाड्युं छे । मेशनी लीटी ताणी छे ।) (४.३२) (प्राकृत)
तारां अधरोष्ठ-दल एटले जासुदनां फूल, दांत एटले कुंद-कुसुम, हाथ, पग, नयन अने वदन एटले विकसित अरविंद : आम, हे सुंदरी, तारो देह 'कुसुमपुर' होवा छतां तुं उत्तम 'मध्यदेश'ने पण धारण करी रही छे ए एक भारे मोटी विपरीतता छे । (५.६)
स्नान करी पाणीमांथी बहार नीकळेली गोरीनो केशपाश मोट मोटो टीपां टपकावतो जाणे के रडी रह्यो छे-कुसुममाळाना विरहदुःखे । (४.४१) (प्राकृत)
__ हे हंसी, तारो गतिविलास ठालो-नकामो लागे छे; हे कोयल, तारो खंठ बोदो-बेसूरो बनी रहे छे, कारण के अत्यारे विरहीवृक्ष अने अशोकतरु नां दोहद पूरती आ कुवलयनयना गीत गाती भ्रमण करी रही छे । (५.९)
हजी नयनोए चंचळता नथी प्राप्त करी, हजी वदन परथी भोळपण नथी हट्यु, हजी स्तननो उभार नथी प्रगट्यो, अने तो पण आ मुग्धाने जोई लोको मुग्ध बनी जाय छे । (५.३९)
कंकण अने नुपूरनी किंकिणी रणके छे, पवनमां फरफरती साडी अवकाशने रमणीयता अर्पे छे, ऊंची हीलोळा लेवानी क्रीडामां देह डोलंडोल थई
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रह्यो छे। केवी शोभी रही छे आ झूला पर झूलती बाला ! (४.१०१) (प्राकृत) विरह :
ए एकनी एक विलासिनी गाममां अने पत्तनमां, हाटमां अने चौटामां, राजकुलमां, देवळमां अने नगरमां सर्वत्र मने देखाय छे : विरहरू पी इन्द्रजालिके एने बहुरूपिणी बनावी दीधी छे । (५.३१)
तारा विरहे ए रमणी दूबळी अने फिक्की थई गई छे, जेवी सूर्यकिरणे छवायेली चंद्रलेखा । (६.१०२)
आनंद सुधारस पमाडतो ए दिवस क्यारे आवशे, ज्यारे मारा नयनचकोर प्रियनी मुखचंद्रिका वडे पारणुं करशे ? (६.१२७)
हे मन्मथ, अतिसुंदर मारा वालमे तारो रूपगर्व भाग्यो तेथी तुं मने तेनी विरहवेळाए शा माटे त्रास आपे छे ? ( )
दिनप्रतिदिन आंगळीओ वती प्रवासदिवस गणती आ रमणी जाणे के वालमर्नु आकर्षण साधवा एकचित्ते मंत्राक्षरनो जप करी रही छे । (४.३१) (प्राकृत)
ए विरहिणी मुग्धा बोलती नथी । एनुं कारण मने एम लागे छे के कलहंसना जेवो पोतानो कंठ मधुर होई, तेने कोयलनो पंचम सूर सांभळवानो डर छे; दर्पणमा मुख जोती नथी, कारणके पोते चंद्रवदना होई, चंद्रनुं दर्शन ते सही शकती नथी; कामदेवने वेरी मानीने ए क्षणे क्षणे त्रास पामे छे. तेम छतां अचरज ए छे के, हे रूपनिधि कामदेव, ए तारां दर्शन झंखी रही छे। (४.१२९) मिलन :
पुलकावलिना जवथी अने हास्यना श्वेतकुसुमथी रमणीए वालमनो मांगलिक सत्कार कर्यो । (६.२७) अन्योक्ति :
भलेने परम सुगंधी पाटला खीले, भलेने खीचोखीच माधवी मघमघे, भलेने नवमालिकाना दलेदल ऊघडे, भलेने मल्लिका फूलभारे लची पडे, भलेने सरोवर, तळाव, तळावडी अने वावमां कमळो विकसे । तो पण चमेलीना सहज गुणोना स्मरणमां तल्लीन बनेला भ्रमरना चित्तनो कदी ध्यानभंग थाय खरो? (४.१३५) ।
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हे मदमत्त मेघ, धरती पर भरपूर वरसीने तें शुं सिद्ध कर्यु ते सांभळ : जे सरोवर हंसोना कलरवे मनोहर हतुं, तेने तें देडकाओना ड्राउं ड्राउंथी भरी दीर्छ । (५.१०) पौराणिक :
___ परपुरुष पर दृष्टिपात न करती सीता पोतानां चरणनी उज्ज्वळ नखपंक्तिमां प्रतिबिंबित थतां रावणना दश मुख भय, विस्मय अने हास्यना मिश्रभावे निहाळी रही । (६.५६) । प्रकीर्ण :
प्राज्ञजन सागरने रत्नाकर कहे छे ते साचुं छे, केम के तेमांथी चंद्र अने कौस्तुभमणि जेवां बे रत्न नीकळ्यां छ : एमांनुं एक श्रीकंठ- (शिव-) शिरोभूषण बन्युं, तो बीजुं श्रीवल्लभनुं (विष्णु) झळहळतुं उर-आभरण बन्यु । (५.५)
ज्यां 'जल'ने (एटले के 'जळने' अथवा 'जडमतिने') माटे स्थान नथी एवो, अने जेनुं मध्य 'विबुधो' (एटले के 'देवो' अथवा 'प्राज्ञजनो') पण कदी तागी शक्या नथी एवो प्राचीन कविओनो वाणी-गुंफ कोईक अनन्य सागर छे, जेनुं अवगाहन करतां निरंतर अमृतरसनो आस्वाद मळे छ । (४.४४) (प्राकृत)
आ दृष्टांतो परथी पण हेमचंद्रनो अपभ्रंश अने प्राकृतना एक अग्रणी मुक्तक कवि तरीकेनो काईक परिचय मळशे ।
वळी 'छंदोनुशासन'ना प्राकृतविभागमां गलितक वर्गना छंदोनां उदाहरणोमां हेमचंद्रनी चरणांत यमको रचवानी शक्तिनां, तो समशीर्षक अने मालागलितक छंदोनां उदाहरणोमां गौडी शैली परना तेमना प्रभुत्वना दर्शन करी शकीए छीए। समशीर्षकना उदाहरणनां चार चरणोमां एवा पांच समास छे जेमा १५थी मांडीने ४० सुधीनां पदो छे, तो मालागलितकनां चार चरणोमां वीशेक पदोनां त्रण समास प्रयोजाया छ । संस्कृत काव्यपरंपरानी जेम प्राकृत अने अपभ्रंश काव्यपरंपरा हेमचंद्रे केटली आत्मसात् करी हती तेनां आ द्योतक उदाहरण छ ।
२. 'देशीनाममाला'नां उदाहरणोने आधारे हेमचंद्रनी 'देशीनाममाला'मां जे आठ वर्ग-एटले के प्रकरणो छे, तेमां नोंधेला देश्य शब्दोना प्रयोगना उदाहरण लेखे (तेम ज तेमना निर्दिष्ट अर्थनी
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चोक्कस सीमा सूचववा) हेमचंद्रे पोते रचीने सवा छसो उपरांत प्राकृत गाथाओ आपी छे । प्रकरणवार तेमनी संख्या आ प्रमाणे छे : १ (१२३), २(९०), ३(५१), ४(४६), ५(५०), ६(१२३), ७(७६), ८(६५), कुल ६३४ । आ उदाहरणोनी रचना माटे हेमचंद्रे लीधेलो बौद्धिक परिश्रम, तेमां व्यक्त थती परंपरागत काव्यसाहित्यनी तेमनी पारंगतता अने स्वभावसहज होय तेवी काव्यनिर्माणशक्ति (जे तेमनी बीजी पण घणी रचनाओमां आपणने पूरेपूरी प्रतीत थाय छे), आ क्षेत्रमा पण हेमचंद्र केटला प्रतिभाशाली हता तेनां द्योतक छे । 'देशीनाममाला'मां शब्दोनी गोठवणी वर्णानुक्रमे अने शब्दनी अक्षरसंख्याना क्रमे करेली छे । अमुक एक गाथामां जे चारपांच (के वधताओछा) देश्य शब्द तेमना अर्थ साथे आप्या होय, ते ज शब्दोना अर्थ जोडीने एक सुसंगत अर्थवाळु अने काव्यना स्पर्शवाळु मुक्तक रचq ए असाधारण विकट काम छ । वर्णानुक्रमे शब्दो आपता शब्दकोशमांथी कोई पण कटारमाथी पासेपासेना चारपांच शब्द लईने (जेमना अर्थो वच्चे घणुंखरूं बादरायण-संबंध ज होवानो) काव्य बनाववानी आ वात थई । शीघ्र रचनाशक्ति, कल्पनाशक्ति, अने परंपरा परतुं प्रभुत्व होय त्यारे ज आवा काममा सफळता मळे । अहीं काव्यरचनानुं लक्ष्य प्रधान नथी । सामग्रीजु जे प्रकार, नियंत्रण छ तेने कारणे केटलीक कृत्रिमता, दूराकृष्टता, कोणी मारीने कूलडं करवानो आयास केटलेक अंशे अनिवार्य होवानुं देखीतुं छे। आश्चर्य ए वातनुं छे के आवी विषम परिस्थितिमां पण हेमचंद्रे ठीकठीक प्रमाणमां कविता सिद्ध करी छे, अने एक समर्थ मुक्तककवि तरीके तेओ आ उदाहरणोमांथी पण प्रगट थाय छे ।
___'देशीनाममाला'नां बधां उदाहरणोनो पहेली वार अनुवाद करवानो एक समर्थ प्रयास सद्गत पंडित बेचरदास दोशीए तेमना 'देशीनाममाला'ना संपादनसंशोधनना पुस्तकमां करेलो छ । पिशेले तो ए उदाहरणोने तद्दन कृत्रिम, आयाससिद्ध अने निकृष्ट कविता तरीके साव उतारी पाडेलां । पंडितजीना प्रयास द्वारा आपणने तेमनी भारे मूल्यवत्ता समजी शकीए छीए । केटलेक स्थळे तेमणे करेलो अर्थ चिंत्य के खामीवाळो छे, परंतु एम थq आवा विकट काममां कोईने माटे पण सहज गणाय । में तेमना अनुवादनो घटतो लाभ लीधो छ । अहीं नमूनारूपे चाळीशेक मुक्तकोनो परिचय आप्यो छे।।
मुक्तकोना विषयो सुभाषितसंग्रहोमां जोवामां आवता विषयोने मळता
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छ । शृंगाररसना (अनुराग, विरह, मान, अभिसार, प्रवास, दूतीकर्म, असती, वेश्या वगेरे); वीररसना (सुभटनुं शौर्य, राजचाटु के राजप्रशस्ति-तेमां जयसिंह सिद्धराज, कुमारपाल अने सामान्यपणे चौलुक्य राजवीने नामे के अनामिक); बोधक (धर्म के नीतिना उपदेशक); सुभाषित (कहेवतो), स्वभावोक्ति; अन्योक्ति-ए रीते साधारणपणे उदाहरणरूप मुक्तकोनो विषयनिर्देश करी शकाय । अहीं केटलेक अंशे विषयने ध्यानमा राखीने परिचय आप्यो छे । प्रारंभ थोडांक शृंगारिक मुक्तकोथी को छे।
मधुमासमां भ्रमरावलीओ एटले मन्मथवीरना धनुष्यनी पणछ, अने आम्रमंजरी एटले तेनुं पुंखवाळु बाण । (६.१४) ।
जेमनी अनुरागनी उत्कटता ओसरी गई छे तेवां प्रेमीयुग्मोनो (फरी) रतिसज्ज बनीने सुशोभित तरुशाखा हेठळ थतो संगम कोईक अभूतपूर्व अभ्युदय समो भासे छे । (१.११९)
प्रियना हमणां ज मळेला समाचारना भावावेगमां ओढणुं सरी पडतां तेने जोवा जवानी उतावळमां, तेणे ओढवा, पहेरी लीधुं ने पहेरवा, ओढी लीधुं ! (१.१५५)
कंकणप्रेमी एवी तारा हाथमां एरंडपल्लव जेवां श्यामळ कंकण, कमळ पर भ्रमर समां शोभे छे । (१.१२०)
हे भासपंखी ! तुं ऊडीने तेने मारा निसासाना पिंडनी, हथेळीने वळगी रहेती हडपचीनी, विरहे भ्रमित अने गूमसूम बनी गई होवानी वात करजे । (२.९२) (ते ज प्रमाणे ३.४७ अने ५.१८मां प्रियने संदेश पहोंचाडवा विरहिणी चातकने कहे छे ।)
(रात्रे) चित्तमां तारी छबी प्रतिबिंबित थतां, ते वाडामांथी आवती चांदनीने जे आडपडदो करे छे ते अश्रुने लीधे बेवडाय छे, ज्यारे दिवस तेने ब्रह्मानो दिवस लागे छ । (६.२२)
(प्रवासेथी) प्रिय आवी पहोंचतां, निरंतर विरहथी ढीलीदूबळी अने आंसु नींगळती बापडी वधू ओवारणुं लईने जतां लथडी पडी अने पोते ज ओवारणुं बनी गई । (४.४०)
अरे शठ ! प्रेम नामशेष थया पछी, तुं देवांगनाना जेवू अम्लान पुष्पोर्नु कर्णाभरण पहेरीने आव्यो तेथी य शुं ? (१.९०)
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२९ नित्यना सामान्य गृहजीवननी वास्तविक परिस्थितिनो स्पर्श नीचेनी रचनाओमां माणी शकाशे :
___ हांसीठट्ठामां रचीपची रहेती तुं (तारा वरनी साथेनी) गम्मत अने संताकूकडी रमवी छोड, अने घरने साफसूफ कर । ओलामां ऊधईनां पोडां जोईने तारी नणंद तारी हांसी उडावशे । (१.१५३)
वलोणुं करवा बेठेली नववधू हरणांने हांकलो करता वरना मेघगर्जना समा घेरा होकाटाने सांभळवा, वलोणानो घरघराट धीमो करे छे । (२.८८)
आंबलीवाडमां छोकराने आंबली पर चढेलां जोईने माता दळवारांधवानां काम पडतां मूकीने दोडी । (३.१०)
तमिस्रनो चंदरवो ज्यारे गगने छवाई गयो त्यारे अडदना जेवी काळी डिबांग बिलाडीओनुं रूप धरेली डाकणो छींपावाडमां भमवा मांडी । (१.९८)
हेमचंद्रे उद्धृत करेली एक सुंदर उदाहरण गाथानो पण आपणे अस्वाद लईए :
गृहिणी, तूंबडीने बेठेला, सहेज नमेला दींटवाळा पहेला काचा फळनी, दीकरीना प्रथम गर्भ प्रत्ये रखाता आदर जेवी संभाळ ले छे। (३.३६ नीचे उद्धृत) __ अन्योक्तिनां बे त्रण उदाहरण जोईए :
छोकरी, तुं छाण अने अडायां लेवा परोढिये शेरीमां भटकती नहीं; शेरीनो कोईक सांढ तने कचरी नाखशे । (२.९६)
हे धवल, ज्यां ऊंट आरडता होय छे एवा रणप्रदेशमां तुं न जतो । त्यां शेरडीनुं खाण तो रह्यं, घास- खाण पण तने नहीं मळे । (२.८२)
(३.२९नुं उदाहरण पण एक धवलान्योक्ति छे ।)
पौराणिक विषयोमा कृष्णनुं बालचरित्र, हालाप्रिय बलभद्र अने शिवतांडव स्थान पाम्यां छे :
हे हरि, घडा जेवडा स्तनवाळी, बंधूकपुष्प समा होठवाळी, कसूंबो पहेरेली, हाथे रवैयो फेरवती (गोप)कुमारीनी अभिलाषा करतो तुं क्यांक रांढवाथी बंधाई जईश । (७.३) ।
६-५५नुं उदाहरण कृष्ण-उत्कंठित विरहतप्त राधाने लगतुं छे। जेने जेनी आसक्ति होय ते तेने कदी अबखे पडतुं नथी । बलभद्रनो
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३० हाथ कदी मद्यपात्र विनानो होय छे खरो ? (१.११८)
जेमां गणपतिना गर्जने नाची रहेला कात्तिकेयना मोरना केकारवे कंठे वीटळायेलो नाग त्रस्त बन्यो छे एवं रुद्रनुं तांडवनृत्य चाले छे । (३.५)
आमां ध्वनित थती विनोदवृत्ति नीचेनां मुक्तकमां प्रकटरूप धरे छे :
शंखोज्ज्वल दुकूल पहेरीने जतो गामना मुखीनो जुवान दीकरो माथा पर कागडो चरकतां काकीडानी जेम ऊंची डोके जोई रह्यो छे । (३.४१)
नीचे- मुक्तक फटाणुं होवानो पूरो संभव छे :
बनेवी वरराजा ! तुं गर्भस्थ बच्चानी जेम कशो आचार जाणतो नथी अने कोई कंजूस चमारनी जेम शेकवाने सळिये सहेज चोंटी रहेलुं मांस पण चाटी रह्यो छे । (७.४४)
जयसिंह सिद्धराजना 'बर्बरकजिष्णु' बिरुदना आधारभूत प्रसंगनो निर्देश नीचेना मुक्तकमां थयेलो छ :
हे सिद्धराज, तारी तीक्ष्ण कटारीथी जेनुं कपाळ चीराई गयुं छे एवो, हांडा जेवडी फांदवाळो बाबरो गळिया बळदनी जेम कांटाळी रीगणीथी छवायेला नदीना पाणीमां आळोटे छे । (२.४)
पतित भिक्षु ए भाण अने प्रहसननो कविप्रिय विषय हतो । हेमचंद्रे तेनुं पण एक आस्वाद्य चित्र आप्यु छ :
जवना ढगनी कांति धरती, रथचक्रसमी श्रोणीवाळी, मन्मथना दुर्ग समी शयनगत गणिकाने संभारीने रुद्राक्षनी माळा फेरवतो भिक्षु मूर्छ पामे छे । (२.८१)
नीचेनां जेवां सुभाषितो शामळभट्टनी तथा गई काल सुधी चारणोनी रचनाओमां मळतां रह्यां छे । हेमचंद्रनी पूर्वेथी आ परंपरा चाली आवे छे :
घोडा शोभे जीनथी, गामो शोभे गोचरथी, कण शोभे तुषथी (एटले डूंडारू पे), महिला शोभे नीवीबंधथी अने घरो शोभे घरडाथी । (३.४०)
दहीं शोभे तरे, तलवार शोभे मठे, कुवा शोभे अथाग जळे, (संग्रामनी) विकट वेळा शोभे भडे, गाम शोभे धणे । (५.२४)
__ दरिद्रनुं कशुं मान नथी, उखडेलानुं गौरव नथी, षंढने लिंग नथी, ने स्थापना विनाना पत्थरने पूजा नथी । (४.५)
पोताना अवाजथी घुवड प्रसन्न थाय, श्राद्धपक्षथी ब्राह्मण प्रसन्न थाय,
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३१
अने सुंदरीओ नवी अंकोडाबंध हांसडीथी प्रसन्न था । (६.१२७)
छसोथी य वधारे संख्यानी रचनाओमां कहेवतोने पण स्थान मळ्युं ज होय । तो एवी थोडीक कहेवतो पण नोंधीए :
माटीथी बनावेला शेरीना यक्षने बेचार फूलनी माळा ज होय । ( ३.३१) सरखावो: 'छाणना देवने कपासियानी आंखो ।'
हमेशां कांई दरमां घो ज न होय (४.२३)
सरखावो : 'बिलि बिलि हुंति न गोहडिय' ('भरहेसर - बाहुबलि - घेर', २. १८) तथा 'बिलि बिलि न गोह नीसरइ, कहिं नीसरइ साप' । मरुभूमिमां कदी वृक्षावलि पांगरे ? ( ४.२३)
एक तो ताव, अने एमां ऊपडी हेडकी । (६.१३४)
'तूटेलो प्रेम सूतरना तांतणाथी संधातो नथी' (१.९२) एवां सुवाक्यो, के रस्ते चालता अने कोईक रूपाळीने टीकीने जोता पतिनी कोईए करेली टकोर 'संभाळ, ऊधईना जेवा वेधक मोंवाळी ('उद्देही - तीक्ष्ण - तुंडा') तारी पत्नी तारी पाछळ ज छे,' (१.९३) अथवा तो अत्यंत कृश थई गयेली विरहिणी बलोयां सरी पडवाने डरे हाथ ऊंचा राखीने चालती होवानुं चित्र (१.१४१) — 'वलयपतन - भयेन ऊर्ध्वकरा'- -आमां हेमचंद्रे अपभ्रंश व्याकरणमां उद्धृत करेला एक उदाहरणनो ज पडघो छे : 'वलयावलि - निवडण - भएण धण उद्धब्भुअ धाई' (८.४४४.३) ( परंतु त्यांनी उत्प्रेक्षा घणी सुंदर छे) ।
आवी हीराकणीओ पण हेमचंद्रनी उदाहरणरूप मुक्तकरचनाओमां ओछी
नथी ।
हेमचंद्रे उदाहरणरूपे रचेलुं एक मुक्तक एवं छे जेने कारणे, आपणी मुक्तकरचनानी परंपराथी जे अजाण होय ते तेमना पर अश्लीलतानो उतावळियो आक्षेप मूकी दे । ए मुक्तक द्वि-अर्थी छे अने तेनो गूढार्थ निःशंक लिंगनिर्देशक छे । ए मुक्तकनो अनुवाद आ प्रमाणे छे :
'एय सरस चोटी वाळा ! मत्र त्राक जेवडी कोश चास न ज पाडी शके, माटे बराबर चास पाडी शके तेवी कोश मने घडी आप, (नहीं तो ) हुं तारी चोटी तोडी नाखीश ने चाडवाथी तने झूडीश' । (३.१)
मराठीमा 'चोट' पुरुषलिंग माटेनो अश्लील शब्द छे । चास पडे तेम कोशथी भोंय खेडवानो इंगितार्थ पण तरत पकडी शकाय तेम छे ।
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३
आवी ज गाथाओ 'वज्जालग्ग'मां पुरोगामी कविओमांथी उद्धृत करेल छे, जे सूचवे छे के एवी रचनाओनी एक दीर्घकालीन परंपरा हती ।।
आ बाबतमां जे केटलीक हकीकतो आपणे ध्यानमां लेवी जोईए ते ए छे के 'वज्जालग्ग' नामनो सुभाषितसंग्रह जयवल्लभ (के जगद्वल्लभ) नामना श्वेतांबर जैन कविए अटकळे दसमी अगियारमी शताब्दी लगभग संपादित करेलो छ । तेमां जोशी, पुस्तकलेखक, वैद्य, साधुसंन्यासी, कोलु पीलनार, सांबेलुं अने दोशीने लगती गाथाओ-मुक्तको द्विअर्थी छे, अने बीजो अर्थ सर्वत्र आपणी अत्यारनी रुचिनी दृष्टिए अश्लील छे—संभोगशृंगारना स्थूळ संकेतोवाळो छ । तेमां ध्वनि के व्यंग्य अर्थ होवाथी चातुर्यनी दृष्टिए तेवां मुक्तको आस्वाद्य गणातां । चार पुरुषार्थमां काम पुरुषार्थमां स्थूळसूक्ष्म सर्व प्रकारना शृंगारनो समावेश थतो । उदाहरण तरीके विपरीत सुरतने लगती संस्कृत-प्राकृत रचनाओनो खासो मोटो संग्रह थाय । आ प्रकारना मुक्तको रचवानी परंपरा हती, अने युवानवर्ग बधी संस्कृतिओनी साहित्यपरंपराओमां आ प्रकारनी कवितानो चाहक रह्यो छे । परंपरानुं अनुकरण एकाद मुक्तकमां हेमचंद्रे कर्यु ते तेमना माटे तद्दन स्वाभाविक हतुं । युगयुगनी रुचि अने अश्लीलता अंगेना धोरणमां सारो एवो फरक होवा, पण आपणे जाणीए छीए ।
छेवटे कविविषयक एक मुक्तकथी आपणे समापन करीशुं :
जे कविओ नवीन अर्थ- निर्माण करवा असमर्थ छे, अने चर्वितचर्वण कर्या करे छे, ते बापडा वागोळ्या करतां पशुओ जेवां ज छे । (७.८२) ।
आशा छे आ उदाहरणो परथी मुक्तक-कवि तरीकेनी हेमचंद्राचार्यनी ऊंची प्रतिभानी काईक झांखी थशे, अने केटलांक मुक्तको संस्कृत-प्राकृत कविताना रसिको, मस्तक प्रशंसामा अवश्य डोलावशे ।।
"त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'मां ख्यात इतिवृत्तनी सामग्री होवा छतां महाकाव्यनो आदर्श होवाथी प्रसंगवर्णनो अने भावनिरूपणोमां काव्यत्व माटे पूरो अवकाश हतो । 'व्याश्रय'नुं नाम दर्शावे छे तेम व्याकरणना नियमोने उदाहृत करवाना लक्ष्यनी साथोसाथ महाकाव्य रचवानुं लक्ष्य पण हतुं; अने तेमां 'भट्टिकाव्य' जेवानुं अनुसरणीय दृष्टांत पण हतुं । 'छंदोनुशासन'मां छंदनुं नाम गूंथवाना नाना नियंत्रण सिवाय मुक्तक रचवा माटे कल्पनाने पूरतो अवकाश हतो । ज्यारे 'देशीनाममाला'नां उदाहरणोमां उदाहरणीय शब्दसामग्रीथी हेमचंद्रना हाथ बंधायेला
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होवाथी, कल्पनाने माटे घणो ओछो अवकाश हतो, अने शब्दोनी उपस्थिति काव्येतर हेतु उपर निर्भर होवाथी मात्र अर्थसंदर्भे ज सर्जक कल्पना काम करी शके तेम हती । आवी प्रतिकूळ परिस्थितिमां पण हेमचंद्रे जे गणनापात्र व्युत्पत्तिमूलक कवित्व दर्शाव्युं छे ते कोई पण रचनाकारने गौरव अपावे तेवी सिद्धि छे ।
४. आभारदर्शन
श्री हेमचंद्रार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति शिक्षण-संस्कार निधिनो अने तेना प्रेरक आचार्य श्रीशीलचंद्रसूरिनो आ अनुवादनुं प्रकाशन करवा माटे हुं आभार मानुं हुं । जो सूरिजीनो आग्रह न होत अने जो श्रुतलेखन करवानुं काम बहेन इंदिरा शाहे न स्वीकार्यं होत तो, मायं बीजां कामोनी वच्चे आ काम तरतमां न थई शक्युं होत । एटले तेमना प्रत्ये पण हुं आभारी छु । अनुवादमां जे ऊणपो रही गई होय, ते तरफ ध्यान दोरवा वाचकोने नम्र विनंती छे ।
अमदावाद
महा सुद १४, २०५२ (शीलचंद्रविजयजीनो आचार्य-पद-प्रदान - दिन ३, फेब्रुआरी १९९६ )
हरिवल्लभ भायाणी
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चोथो अध्याय आर्या-गलितक-खंजक-शीर्षक-वर्णन
आर्या प्रकरण आर्या के गाथा
जेना प्रत्येक अर्धमां सात चतुष्कल अने एक गुरु होय ते आर्या ।
आमां एटलो अपवाद छे के, पूर्वार्धमां छठ्ठो चतुष्कल जगण अथवा चार लघु होय छ । उत्तरार्धमां छठ्ठा चतुष्कलने स्थाने मात्र एक लघु होय छे ।
आर्यामां चरणविभाग होतो नथी । आथी नीचेना जेवां उदाहरणोमां, 'द्वीपादन्यस्मादपि' एमां, अंत्य लघु विकल्पे गुरु गणी शकाय छे' ए नियमनो आधार लईने 'पि'ने गुरु गणी न शकाय । ए उदाहरण नीचे मुजब छे :
द्वीपादन्यस्मादपि, मध्यादपि जलनिधेर्दिशोऽप्यन्तात् । आनीय झटिति घटयति, विधिरभिमतमभिमुखीभूतः ॥१
_ 'जो विधाता अनुकूळ थयेलो होय तो इष्ट वस्तु, द्वीपान्तरमांथी, समुद्रनी वच्चेथी-अरे दिशाओने छेक छेवाडेथी पण झटपट लावीने उपलब्ध करे छे ।'
नोंध : संस्कृत सिवायनी भाषाओमां 'आर्या' 'गाथा' कहेवाय छे । आर्यानुं उदाहरण :
उपदिश्यते तव हितं यदि वाञ्छसि कुशलमात्मनो नित्यम् । मा जातु दुर्जन-जन -ष्वार्या- 'चरितं प्रपद्यस्व ॥ २ ___ 'जो तुं सर्वदा पोतानुं कुशळ वांछतो होय तो दुर्जनोनी वच्चे तुं कदी पण आर्यजन- आचरण न आदरतो - एवो अमारो तने हितोपदेश छ ।' प्राकृत भाषामां पण :
कलसभव-तवस्सि-चुलुअ-पूरण-मेत्ते-वि मुणिअ-मज्झाण । जलहीण कहं सरिसा, सया अंगाहा' महप्पाणो ॥ ३
'सदा ये अगाध एवा महात्माओनी, अगस्त्यनी मात्र अंजलिने भरतां जेमनुं मध्य जणाई आव्युं छे (= हृदय प्रकट थई गयुं छे) तेवा समुद्रो साथे तुलना कई रीते करी शकाय?' पैशाची भाषामां पण :
पनमध पनय-पकुप्पित-गोली-चलनग्ग-लग्ग-पतिबिंबं ।
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[2]
तससु नरव-तप्पनेसुं एकातस-तनु-धलं लुद्दं ॥ ४
'प्रणयरुष्ट गौरीने ( मनाववा तेने) पगे लागेला अने तेथी ( चरणनां) दस नखदर्पणमां जेमनां प्रतिबिंब पड्यां छे तेवा एकादश मूर्तिधारी रुद्रने प्रणाम करो' । ए ज प्रमाणे, बीजी भाषाओनां उदाहरण पण जाणवां ।
I
आर्याना स्वरूपनी बाबतमां एवो पण नियम छे के ज्यारे तेना पूर्वार्धमा छठ्ठो चतुष्कल चार लघुनो बनेलो होय त्यारे पद बीजा लघुथी शरू थतुं होवुं जोईए । एनो अर्थ ए के छठ्ठा चतुष्कलना पहेला लघु पछी यति होय । ते ज प्रमाणे सामा चतुष्कलमां चार लघु होय त्यारे पद पहेला लघुथी शरू थतुं होवुं जोईए । एटले के छठ्ठा गणने अंते यति होवो जोईए । उत्तरार्धमां ज्यारे पांचमो चतुष्कल चार लघुनो बनेलो होय त्यारे पहेला लघुथी पद शरू थतुं होवुं जोईए । एनो अर्थ ए के चोथा चतुष्कलने अंते यति होवो जोईए । जेम के
एकाङ्ग
चतुरम्बुराशि- मुद्रित-भू-भारोद्धार - चतुर- भुज- परिघः । - वीर- तिलकः श्रीमानिह जयति सिद्धेशः ॥ ५ 'चार समुद्र साथेनी धरित्रीनो भार ऊंचकवामां जेनी भुजार्गला दक्ष छे एवा वीर शिरोमणि श्रीमान सिद्धराज विजयी वर्ते छे ।'
आर्याना प्रकारो
पथ्या
जेना बन्ने अर्धमा पहेला त्रण चतुष्कल पछी यति होय ते पथ्या । जेम के नेपथ्यानि निरस्यति, संत्रस्यति मत्त - कोकिला - नादात् । निन्दति चेन्दुमयूरवांस् त्वद्विरहे नः सखी सुभग ॥ ६
'हे सुंदर, तारा विरहे अमारी सखी वस्त्रो दूर करी दे छे, कोयलना टहुकारथी त्रासे छे, अने चंद्रकिरणोने निंदे छे ।'
विपुला
बन्ने अर्धमा पहेला त्रण चतुष्कल पछी जेमां यति न होय ते विपुला । तेना त्रण भेद छे । मात्र पूर्वार्धमां ए रीते यति न होय ते आदिविपुला के मुखविपुला । उत्तरार्धमां ते रीते यति न होय ते अंतविपुला के जघनविपुला । बन्ने अर्धमां वो यति न होय ते सर्वविपुला के महाविपुला । जेम के
'मुख - विपुलाः ' पर्यन्ते च लघीयांसो भवन्ति नीचानाम् । वर्षासु ग्राम-पय:- प्रवाह - वेगा इव स्नेहाः ॥ ७
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[3]
'नीच लोकोना स्नेह, वर्षाऋतुमां गामडामां वहेता वहेळाना वेगनी जेम, आरंभे विपुल पण अंते स्वल्प होय छे ।'
नाभी-निम्ना कुच-तट-तुङ्गा 'जघन-विपुला'थ मध्य-कृशा ।
भ्रू-कुटिलाशय-सरला, च मानसं हरति सा बाला ॥८
'ऊंडी नाभिवाळी, उत्तुंग कुचोवाळी, विपुल जघनवाळी, कृश कटिवाळी, कुटिल भमरवाळी अने सरळ हदयनी ए बाळा चित्त हरी ले छे ।'
शस्त्राभ्यासे रतिवल्लभस्य मन्ये खलूरिका रम्या ।
तव कमलदलाक्षि नितम्ब-भूमिरेषा 'महा-विपला' ॥ ९
'हे कमलदल शां नेत्रवाळी, तारो अतिविपुल आ नितम्बप्रदेश कामदेवना शस्त्राभ्यास माटेर्नु रमणीय चोगान होय एम मने लागे छ ।' चपला
जेमां बीजो अने चोथो चतुष्कल जगण होय ते चपला । तेना त्रण भेद छ। ज्यारे पूर्वार्धमां एवं स्वरूप होय त्यारे आदिचपला के मुखचपला । उत्तरार्धमां होय त्यारे अंतचपला के जघनचपला अने बन्ने अर्धमां होय त्यारे सर्वचपला के महाचपला ।
जे पथ्या होय तेवी मुखचपलानुं उदाहरण :
एकोऽपि बाल-चूतः, शिखोद्गमैरभिनवैर्मनो दहति ।।
एतत् पुनरधिकं सखि, कलकण्ठी तत्र 'मुख-चपला' ॥ १०
'हजी तो कुमळु एवं आ आम्रवृक्ष एकलुं ज, तेना पर फूटेलां कूपलियांने लीधे, मारा मनने दझाडे छे । तेमां वळी आ कलकंठी, बोलका मोंनी कोयल, हे सखी, ए दाहने वधारी रही छे ।'
जेमा पूर्वार्धमां विपुला होय तेवी मुखचपला :
मृदु वाच्य एष नैणाक्षि वल्लभस्ते शठोऽन्य-विवश-मनाः ।
तर्जय परुषैर्वचनैर, 'मुख-चपला'नामयं विषयः ॥ ११
'हे मृगाक्षी, आ तारा शठ वालमनुं चित्त बीजीमां आसक्त होईने, तेने नरम वचन कहेवाथी कशुं नहीं वळे । एने कठोर वचनोथी धमकावजे । वाणीनी चपळता वाळा ज एने पहोंची शके ।'
उत्तरार्धमां विपुला होय तेवी मुखचपला : दयितस्तवानुनीतो, मया सखि त्वां किलानुनेष्यति सः । तं पादानतमालोक्य मा कटु ब्रूहि 'मुख-चपले' ॥ १२
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[4]
'हे सखी, में तारा वालमने मनावी लीधो होईने हुं मार्नु के ते हवे तने मनाववानो छे। तो तारा पगमां पडेला तेने जोईने हवे तुं छूटे मोंए कडवां वेण बोलती नहीं ।'
ए ज प्रमाणे जे महाविपुला पण होय तेवी मुखचपला, उदाहरण जाणवू ।
जे पथ्या पण छे तेवी जघनचपला : तस्या नितान्त-'चपला'न्, नेत्र-विलासान् विलोक्य बालायाः ।। को वर्णयेदमुग्धः, कुरङ्गिका-दृष्टि-ललितानि ॥ १३
'ए बालाना अतिशय चंचळ नेत्रविलासोने जोया पछी क्यो चतुरजन कुंरगीओनी ललित दृष्टिने वखाणे ?'
जे जघनविपुला छे तेवी जघनचपला : उद्दाम-मारुत-हत-ध्व ज-घन-चपलानि जीवितव्यानि । जानन् जनः कथं नाम जातुचित् प्रीयते तत्र ॥ १४
'जीवतर झंझावातना माराथी फडफडती धजा जेवू अने वादळां जेवू चंचळ होवानुं जे माणस जाणे छे ते, कहोने, खरेखर तेमां कई रीते आसक्ति राखे ?'
जे महाविपुला छे तेवी जघनचपला : कस्य कृते कृत-पुण्यस्य दृष्टिरियमनिमिषा त्वया ध्रियते । यासीत् पुरा कुरङ्गाक्षि नित्यम त्यन्त-चपले व ॥ १५
'हे मृगाक्षी, आ तारी दृष्टि जे पहेलां हमेशां अत्यंत चंचळ हती तेने हवे तुं क्या पुण्यशाळीने माटे अनिमिष राखी रही छे ?'
ए ज प्रमाणे, जे मुखविपुला छे तेवी जघनचपला, उदाहरण जाणवू ।
जे पथ्या छे तेवी महाचपला : 'चपलं' न कस्य चेतो, नरस्य जायेत पश्यतस्तन्वीम् । नृत्य-क्षणेऽत्र नव्याङ्गहार-लीला-महाचपलाम् ॥ १६
_ 'नृत्योत्सवमां नवनवी अंगहारलीला करती आ अत्यंत चपळ कृशांगीने जोईने क्या नरनुं चित्त चंचळ न बने ?'
जे महाविपुला छे तेवी महाचपला : युगपत्-प्रफुल्ल-कङ्केल्लि-मल्लिका-बकुल-चम्पकान् दृष्ट्वा । जाता मधूत्सवे षट्पदावलीयं 'महा-चपला' ॥ १७ ।
'वसंतोत्सवमां एक साथे खीली ऊठेला अशोक, मल्लिका, बकुल अने चंपाने जोई आ भ्रमरगण अतिशय चंचळ बनी ऊठ्या छ ।'
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ए ज प्रमाणे, जे मुखविपुला छे अने जे जघनविपुला छे तेवी महाचपलानां उदाहरण जाणवां । ए ज प्रमाणे गाथानां पण उदाहरण जाणवां ।
आ रीते, पथ्यानो एक भेद, विपुलाना त्रण भेद अने चपलाना बार भेद मळीने गाथाना कुल सोळ भेद थशे ।
नध : केटलाक पिंगळकारो, ओछामां ओछा त्रण लघुथी शरू करीने बब्बे लघु वधारतां जतां गाथाना जे छव्वीस भेद थाय छे तेमने कमला, ललिता वगेरे नामे ओळखावे छ । परंतु गाथाना प्रस्तारमा ते सर्वनो समावेश थई जतो होईने तेमनां जुदा जुदां लक्षण आपवा जरूरी नथी । गीति
जेमां गाथाना पूर्वार्धना लक्षण प्रमाणे तेनुं उत्तरार्ध पण होय ते गीति ।
पथ्यागीतिनुं उदाहरण : विरचित-कुसुमाभरणा, तन्वाना 'गीति मलि-कुल-निनादैः । अभ्यागच्छति चैत्रे, वासकसज्जेव संप्रति वनश्रीः ॥ १८
'कुसुमरूपी / कुसुमनां आभरण धरी, भ्रमरगणना गुंजनो वडे गीत प्रसारती वासकसज्जा समी वनश्री अत्यारे चैत्रमासमां आवी रही छे ।'
महाविपुला-गीतिनुं उदाहण : मत्त-द्विरेफ-पुंस्कोकिल-वैतालिक-'महाविपुल'-गीत्या । क्रियते निर्भरमुन्निद्र एष यूनां मनःसु मनसिशयः ॥ १९
'मदमत्त भ्रमरो अने कोकिलोरूपी बंदीजनोनां अनेकाअनेक गीतो युवानोना मनमांना सुषुप्त कामदेवने पूरेपूरो जाग्रत करी दे छे ।'
पथ्या-महाचपला-गीतिनुं उदाहरण : यावल्लुनामि चूताङ्कान् पुरोऽस्या मधुं व्यपह्रोतुम् । तावद् बभूव 'गीतिः', पिकाङ्गनानां प्रमोद-'चपला'नाम् ॥ २०
'आ बालाथी वसंतागमनने छुपाववा हुं ज्यां हजी आंबानां कूपळियां तोडी काढुं छु, त्यां तो आनंदे चंचळ बनेली कोकिलाओनो गीतरव ऊठ्यो !'
महाविपुला-महाचपला-गीतिनुं उदाहरण : कष्टां जनस्त्वदालोकनादपि क्षणमिमां दशां लभते । 'विपुला' तनोषि दीर्घाक्षि 'गीति मेतां कुतो 'महा-चपले' ॥ २१
'तने क्षणएक जोनारनी पण जो आवी कष्टदशा थाय छे, तो पछी हे
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[6] दीर्घाक्षी, अति चंचला, आ गीतावलि तुं कां छेडी रही छे ?'
___ए प्रमाणे बीजा भेदोनां पण उदाहरण जाणवां । उपगीति
जेमां उत्तरार्धना लक्षण प्रमाणे पूर्वार्ध पण होय ते उपगीति । पथ्याउपगीतिनुं उदाहरण :
'उपगीति' कुरङ्ग-शिशो, मा गाः श्रुति-सुख-लव-स्पृहया । व्याधं किमिति न पश्यसि, चाप-न्यस्तेषुमिह पुरतः ॥ २२
'हे हरणबाळ, क्षणिक श्रवणसुख मळवानी लालसाथी तुं गीतनी निकट न जा; धनुष्य उपर बाण चडावी आगळ उभेला पारधिने तुं नथी जोतो ?'
महाविपुला-उपगीतिनुं उदाहरण : संप्रति शिलीमुखाः पश्य 'महाविपुलोपगीति'-रवैः ।। सौख-प्रसुप्तिकाः पङ्कजिनीः प्रीत्योपतिष्ठन्ते ॥ २३
'जो, भ्रमरो अतिशय मोटो गुंजारव करता प्रेमपूर्वक कमलिनीओनी पासे आवीने, “तमे निद्रा सुखे तो करीने ?" एम पूछी रह्या छ ।'
पथ्या-महाचपला-उपगीतिनुं उदाहरण 'उपगीति'-गन्ध-रूपादि याति चेतो 'महा-चपल'म् । तेभ्यो निवर्तयैतत्, समीहसे चेत् परां सिद्धिम् ॥ २४
'गीतं, गंध अने रूपनी निकटता होय त्यारे चित्त अत्यंत चंचळ बनी जाय छे । जो तुं परम सिद्धि इच्छतो होय तो तेनाथी विमुख बनजे ।'
महाविपुला-महाचपला-उपगीतिनुं उदाहरण : चूताङ्कराः स्मरास्त्राणि 'चापला'त् कोकिलैर्लीढाः । 'विपुलोपगीत'योऽस्त्राणि तेनिरे तेन तैस्तस्य ॥ २५
'कोकिलोए अळवीतरा थईने कामदेवनां अस्त्र समां आंबानां कूपळियां चाख्यां । तेने लीधे तेमणे टहुकाररूपी पुष्कळ मदनास्त्र छोड्यां ।'
आ ज प्रमाणे बीजा भेदोनां उदाहरण जाणवां । उद्गीति
जेमां आर्यानां पूर्वार्ध अने उत्तरार्ध ऊलटायां होय ते उद्गीति । पथ्या उद्गीतिनुं उदाहरण : वीर-वरेण्य रण-मुखे, श्रुत्वा तव सिंह-नादमिह । सपदि भवन्त्यरि-करिणो, मधु व्रतोद्गीति'-रिक्त-गण्ड-तटाः ॥ २६
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[7]
'हे वीरश्रेष्ठ, अहीं संग्राममोरचे तारो सिंहनाद सांभळीने शत्रुओना हाथीनां गंडस्थळ एकाएक भ्रमरोना गुंजारवरहित बनी जाय छे ।'
महाविपुला उद्गीतिनुं उदाहरण :
'विपुलोद्गीति' -कुल- कोकिला-रवैः पल्लवाताम्रा । मत्तेव पुरस्तरु -पंक्तिरियं मधु-परिचयादितो भाति ॥ २७
'वसंतना स्पर्शे आ सामेनी वृक्षावलि कोकिलना मीठा टहुकाररूपी मुक्त गानने ली तथा रतूमडां पल्लवने लीधे मदमत्त बनी होय तेवी भासे छे ।' पथ्या महाचपला उद्गीतिनुं उदाहरण :
चपले प्रयातु मानादयं वराकः किमाह्वयसि । प्रतिभूरमुष्य भूयः समागमे भाविनी पि कोद्गीतिः ' ॥ २८
' हे चंचला, मानना आवेशमां ए बिचारो भले चाल्यो जतो । शुं काम एने तुं बोलावे छे ? समागम माटे ए पाछो आववानो ज एनो जामीन आ कोकिलोनो टहुकार बने छे ।'
-
महाविपुला महाचपला उद्गीतिनुं उदाहरण :
बाला कुतोऽपि सारङ्गिकेव सा विपुल - चपलाक्षी ।
श्रुत्वा तवाभि धोद्गीति माशु निष्पन्दिनी चिरं भवति ॥ २९
'दीर्घ, चंचळ नेत्रवाळी ए बाळा क्यांकथी तारो नामोच्चार सांभळतां ज, गीत सांभळती हरणीनी जेम, एकाएक लांबो समय निश्चल बनी जाय छे ।' ए प्रमाणे बीजा भेदोनां उदाहरण जाणवां ।
रिपुच्छंदा
जो गीतिमां सातमो गण पंचकल होय तो जे छंद बने ते रिपुच्छंदा । नोंध : हवेना छंदोनो घणुंखरं प्राकृत वगेरेमां प्रयोग थतो होवाथी प्राकृत उदाहरणो ज आपवामां आवशे ।
रिपुच्छंदानुं उदाहरण :
केलास - सेल - तुलणा-माणं मा वहसु संपयं दसमुह ।
उअ 'हरि - पुच्छंदो 'लण- तोलिज्जते महोअहिम्मि गिरिणो ॥ ३०
'हे रावण, तुं कैलास पर्वत ऊंचक्यानुं अभिमान न धरतो । जो, 1 हनुमानना पुच्छमां झूलता पर्वतो ऊंचकीने समुद्रमां लई जवाय छे ।'
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[8]
ललिता
जो गीतिमां त्रीजो गण पंचकल होय तो जे छंद बने ते ललिता ।
ललिता, उदाहरण : अंगुलिआहिँ 'ललिअंगी पवास-दिअहे गणंतिआणुदिणं । वल्लह-आयड्ढण-कए जवइ-व मंतक्खराई एक्क-मणा ॥ ३१
'पति प्रवासे गयाना दिवसो आंगळीओ वडे गणती ललितांगी, जाणे के। एकचित्ते वालमनुं आकर्षण करवा माटे मंत्राक्षरो जपी रही छे ।' भद्रिका
जो गीतिमां त्रीजो अने सातमो गण पंचकल होय तो जे छंद बने ते भद्रिका। भद्रिकानुं उदाहरण :
जुवईण नयण-लच्छीए सहज-सलोणत्तणेण 'भद्दिआए' । चक्खु-भएण व दिण्णय लक्खिज्जइ कज्जलं वयंसिआहिं ॥३२
'आ युवतीओनी नयनश्री स्वाभाविक लावण्यथी ज मांगलिक छे, तो पण जाणे के दृष्टिदोष निवारवा खातर ज तेनी सखीओए तेने काजळ लगाड्युं जणाय छ।' विचित्रा
जो गीतिमां छठ्ठो गण बाद करीने बाकीना गण यथेष्ट पंचकल होय तो जे छंद बने ते विचित्रा । विचित्रानुं उदाहरण :
भासासु 'विचित्ता'सु जुगवं सुर-नर-तिरिआण जीव-जाईण । संवादमणुहवंती जयइ वाणी भयवओ जिणिंदस्स ॥ ३३ ____ 'देवताओ, मनुष्यो अने पशुपंखीओ (तिर्यंचो)- ए प्राणीजातिओनी विविध भाषाओमां एक साथे संवादनो (समजणनो) अनुभव करावती जिनेन्द्र भगवाननी वाणीनो जय हो !"
केटलाकने मते विचित्रामा बधाये गण पंचकल होई शके । स्कंधक
जो गीतिना आठमा गणना गुरुने स्थाने चतुष्कल योजवामां आवे तो जे छंद बने ते स्कंधक । नागराज पिंगलने मते आ छंदनुं नाम आर्यागीति छ ।
स्कंधकनुं उदाहरण :
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[9]
तुह रिउराय-पुरेसुं तरुणी-जण-लालिअम्मि कंकेल्लि-वणे ।
संपइ अरण्ण-महिसाण 'खंध-कं डूअणं पयट्टेइ दढं ॥ ३४
'तारा शत्रुराजाओना नगरोमां जे अशोक-वृक्षराजिनुं तरुणीओए लालनपालन कर्यु हतुं त्यां अत्यारे जंगली पाडाओ पोतानी कांधनी चळ जोरथी घसी रह्या
उपस्कंधक
स्कंधकना बन्ने अर्धमां छठ्ठा गणना स्थाने मात्र एक लघु होय तो जे छंद बने ते उपस्कंधक । उपस्कंधकनुं उदाहरण :
__ 'उअ खंधा'हइ-तुटुंत-बाहु-दंडो वि को वि सुहडओ ।
एसो सहि पर-जोहं पहरड़ पाएण दट्ठाहरओ ॥ ३५ ___ 'हे सखी, जो तो, जेना खभा उपर प्रहार थवाथी बाहुदंड तूटी पड्यो छे तेवो आ कोईक सुभट शत्रुना योद्धाने होठ पर दांत भीसीने पगथी प्रहार करी रह्यो
छ ।'
उत्स्कंधक
जो स्कंधकना पहेला अर्धना छठ्ठा गणना स्थाने लघु होय तो जे छंद बने ते उत्स्कंधक । उत्स्कंधकनुं उदाहरण :
जा बल-मडप्फरेणं निवाण 'उक्खंधया' आसि पुरा ।
सा तुह सासण-भारं ताण वहंताण संपयं कह-वि गया ॥ ३६ __'पोताना बळना अभिमानथी जे राजाओ पहेला उन्नत स्कंधवाळा हता ते राजाओ हवे तारा शासननो भार वहेता होईने तेनी ए उन्नतता क्यांक चाली गई ।' अवस्कंधक
जो स्कंधकना पाछळना अर्धमां छट्ठा गणना स्थाने एक लघु होय तो जे छंद बने ते अवस्कंधक । अवस्कंधक, उदाहरण :
पवण-पहल्लिर-धयवडमुल्लसिअ-कोइला-बंदि-रवं । 'ओ खंधा'वारं चिअ पेच्छ वणं रइवइ-नरिंदस्स ॥ ३७
'ज्यां पवनथी फरकतां पल्लवरूपी ध्वजपट छे, कोकिलारूपी बंदीजनोनो गीतरव ऊठे छे तेवू, अनंगराजना सैन्यना पडाव समुं, आ वन तुं जो ।' संकीर्ण स्कंधक
जो पूर्वार्घमां स्कंधक होय अने उत्तरार्धमां गीति होय, अथवा तो पूर्वार्धमां
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[10]
गीति होय अने उत्तरार्धमां स्कंधक होय तो ए बंने प्रकारे जे छंद बने ते संकीर्ण स्कंधक ।
संकीर्ण स्कंधकनुं उदाहरण : जह जह तुह पहु सेन्नं किज्जइ 'संकिण्णयं' मयगल-घडाहिं । तह तह रिउराय-घरेसु खलइ लच्छि त्ति पेच्छ अच्छरिअं ॥ ३८
___ 'हे महाराज, जेम जेम तारुं सैन्य मदमत्त गजघटाथी संकीर्णं (१. भीडवाळं, २. सांकडूं।) थाय छे, तेम तेम तारा शत्रुओना घरोमां लक्ष्मी ठेस खाय छे । (स्खलित थाय छे) ।'
सा बाला तुह विरहे हिअए 'संकिण्णए' अमंताई । नीसास-धूम-लहरि-च्छलेण दुक्खाई सुहय उव्वमइ फुडं ॥ ३९
'हे सुभग, ए तरुणी तारा विरहमां तेना सांकडा हृदयमां दुःखो न माई शकतां होवाथी निसासा अने धुमाडा जेवा फुत्काररूपे ते बहार काढती प्रगट जोई शकाय छे ।' जातिफल
जो गाथाना पूर्वर्धना अंत्य गुरुनी पहेलां एक वधारानो चतुष्कल आवे तो जे छंद बने ते जातिफल । तेमां उत्तरार्ध तो गाथानो ज होय छे ।
जातिफलनुं उदाहरण : तह रिउणो निवसंता अविरल-'जाईहले'सु जलहि-तड-वणेसु । वणवास-सुह-सइण्हा न रज्जमीहंति सिविणे-वि ॥ ४०
'समुद्रना कांठा परनां वनोमां सघन जायफळनी झाडी वच्चे वसता तारा शत्रुओने वनवासना सुखनी एटली बधी लालसा छे के तेओ स्वप्नमां पण पोतानुं राज्य पार्छ इच्छता नथी ।' गाथ
जो गाथाना पूर्वार्धना अंत्य गुरुनी पहेला बे वधाराना चतुष्कल होय तो जे छंद बने ते गाथ । गाथ, उदाहरण :
गोरीइ चिहुर-भारो जल-'गाहो 'त्तिण्णिआइ निवडत-थोर-बिंदूहि । विअलिअ-पसूण-माला-विरह-दुहेणं रुएइ-व्व ॥ ४१
__ 'जळमां स्नान करीने बहार नीकळेली गोरीना केशपाशमांथी जे मोटां जळबिंदु टपके छे तेथी एवं लागे छे के कुसुममाला दूर कर्याना विरहदुःखे केशपाश रडी
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[11]
रह्यो छे ।' उद्गाथ, विगाथ, अवगाथ, संगाथ, उपगाथ
गाथनी पछी (एटले के गाथाना पूर्वार्धना अंत्य गुरुनी पहेला आवता वधााराना बे चतुष्कल पछी) उत्तरोत्तर बे बे चतुष्कल उमेरवाथी जे छंदो थाय छे ते अनुक्रमे उद्गाथ, विगाथ, अवगाथ, संगाथ अने उपगाथ । उद्गाथ, उदाहरण : सिरिवद्धमाण-जिणवर 'उग्गाहं तो सुराहिवो तुज्झ अइसय-सिरिं परूढ
रोमंचो। अहिलसइ मुह-सहस्सं ठाणे दिट्टी-सहस्सस्स ॥ ४२
'हे जिनवर श्रीवर्धमान, तारा अतिशयोनी शोभानी स्तुति करतो, रोमांचित थयेलो देवराज इंद्र पोतानां हजार नेत्रोने स्थाने हजार मुख होय तो सारुं एवी अभिलाषा सेवे छे ।'
विगाथ, उदाहरण : सिरिकुमरवाल-भूवइ अच्चब्भुअ-चरिअ-वण्णणं तुज्झ जो किर करेउमिच्छइ कुसग्ग-तिक्ख-बुद्धी-वि । बाहाहिं सो 'विगाहि'उमिच्छइ रयणायरं सयलं ॥ ४३
__'हे महाराज कुमारपाळ, जे कोई कुशाग्र जेवी तीक्ष्ण बुद्धिवाळो पण तारा अद्भुत चरित्रनुं वर्णन करवा इच्छे ते पोतानी भुजाओथी आखो समुद्र तरवा इच्छे एवं थाय ।'
अवगाथY उदाहरण : सो जयइ अजल-ठाणं वाया-गुंफो पुराण-सुकईण को-वि अन्नो च्चिअ सरि-नाहो अकलिअ-मज्झो सया-वि विबुहेहि । जो 'अवगाहि'ज्जंतो निरंतरं देइ अमय-रसं ॥ ४४ ___ 'प्राचीन सत्कविओना वाचागुंफनो जय हो ! ए वाचागुंफ एवो कोईक अनोखो सागर छे जे "अ-जल-स्थान" छे (१. जे जळ रहित छे, २. जेमां जडने कशुं स्थान नथी ।), अने विद्वानो जेनुं मध्य (मर्म) सदंतर कळी शक्या नथी ।' संगाथनुं उदाहरण : अने जेनुं अवगाहन करता निरंतर अमृतरसे सांपडे छे ।
नह-कोलस्स व दाढा तिक्ख-खुरुप्पं व जलण-उत्तिण्ण-अणंगमहाभडस्स किंसुअवतंसउ व्व पुरुहूअ-वल्लह-दिसाइ एत्ताहे । कणय-पिसंगा हरिशंक-लेहिआ सहइ उअयंती ॥४५
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'अत्यारे उदय पामती सोनावी चंद्रलेखा केवी शोभे छे ? जाणे के आकाशरूपी वराहनी दंष्ट्रा, जाणे के महासुभट कामदेव- अग्निमांथी बहार काढेलु तीक्ष्ण क्षुरप्र (=एक तीक्ष्ण धारवाळु दातरडाना आकारनुं शस्त्र ), जाणे के प्राचीनुं (=पूर्व दिशानुं) किंशुकनुं कर्णाभरण ।'
उपगाथ, उदाहरण : समरमहोअहिमुब्भड-करि-मयरं उच्छलंत-रुहिर-सलिलमसिवर-दाढिआइ सहसत्ति मेइणि उद्धरंतओ महिहराण आकंपणाई विरइंतो । 'उअ गाह'इ चोलुक्कस्स आइ-कोलु व्व भुअ-दंडो ॥ ४६
__'जेमा प्रचंड हाथीओरूपी मगरमच्छो छे, लोहीरूपी जळ उछळे छे तेवा समरांगणरूपी महासागरमाथी पोताना खड्गरूपी दंष्ट्रा वडे सहसा पृथ्वीनो उद्धार करतो, पहाडोने कंपावतो, चौलुक्यराजनो, आदि वराह जेवो भुजदंड, जो, संग्रामसागरने पार करे छ ।' गाथिनी
जो उपगाथ पछी बे चतुष्कल उमेरवामां आवे तो जे छंद बने ते गाथिनी। गाथिनीनुं उदाहरण :
सिरिमूलराय-भूवइ-कुल-गयण-मिअंक तिहुअण-ललाम जय-सिरिनिवास जस-भर-भरिअ-दिअंत रिउ-भड-कयंत निव-कुमरवाल भणिमो अइ-गहिराइं कह तुज्ज चरिआई। सयल-गुण-'गाहिणी' जस्स न किर चउवयण-वाणी-वि ॥ ४७
___ 'श्रीमूळराज भूपतिना कुलरूपी आकाशमां चंद्र समान, ऋण भुवनना भुषणरूप, विजयश्रीना निवासस्थानरूप, पोताना विशाळ यशथी दिगंतने भरी देनार, शत्रुना सुभटोना काळरूप, हे राजा कुमारपाळ, तारा अत्यंत गंभीर चरित्रने अमे कई रीते वर्णवी शकीए ? - जेना समग्र गुणोनुं ब्रह्मानी वाणी पण कदाच ग्रहण न करी शके। मालागाथ
जेमां गाथिनी पछी इच्छानुसार बब्बे चतुष्कल उमेरवामां आवे तेथी जे छंद बने ते मालागाथ।
मालागाथनुं उदाहरण : इह 'माला गाहाण व वयंस पेच्छसु नवंबुवाहाण गयण-विउल-सरवरम्मिविमुक्क-घोर-घोर-साण विज्जु-जीहा-विहीसणाण बहल-वारि-निचय
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[13] पमच्चिराण अइदीहगत्ताण ।
हद्धी गसड़ मयंकं खेलंतं रायहंसं व ॥ ४८
'हे मित्र, जो तो, विशाळ गगनरूपी सरोवरमां नवा मेघोनी मगरमच्छो जेवी हारमाळा, अति घोर गर्जना करती, वीजळी रूपी जीभने लीधे भीषण, मोटा जळ समूहोथी मत्त बनेली, विशाळकाय एवी ते, अरेरे, क्रीडा करता चंद्ररूपी राजहंसने ग्रसे छे !' उद्दाम, विदाम, अवदाम, संदाम, उपदाम, दामिनी, मालादाम
जातिफलना प्रथम अर्धमां अंतिम गुरुनी पूर्वे क्रमे क्रमे बे बे चतुष्कल उमेरवाथी गाथनी जेम उद्दाम, विदाम, अवदाम, संदाम, उपदाम, दामिनी अने मालादाम एवा छंदो बने छ ।
दामनुं उदाहरण : जूहाउ व वूहाओ कड्डिअ चोलुक्कराइणा दरिअ-वेरि-भूव-मयगलाण । कंठे पाएसु तहा ओ दीसइ घल्लिअं 'दाम' ॥ ४९
'जुओ, चौलुक्यराजे गर्विष्ठ (शत्रुराजाओना) हाथीओने जूथमांथी खेंची काढीने (जाणे के रणव्यूहमांथी खेंची काढ्या होय तेम) तेमना गळामां अने पगोमां दोरडा, बंधन नाख्युं छे ।'
उद्दामनुं उदाहरण : चालुक्क तुज्झ नयरी 'उद्दाम'-सुरालयण सिहरेसु पवण-तरलेहि-दीहरधयवड-करेहि। देइ चविलापहारं किल कलिणो ओअरंतस्स ॥ ५०
___ 'हे चालुक्य, तारी नगरी उन्नत देवालयोना शिखरो उपर पवनथी फरकता दीर्घ ध्वजपटरूपी हाथोवती, नीचे ऊतरी आवता कळियुगने जाणे के थपाटो मारे छ।'
विदाम, उदाहरण : सिरिकुमरवाल मुच्चसि सर-जालं जत्थ जत्थ सुहडम्मि तत्थ तत्थ अणुमग्गलग्गो सयंवर-कए सहसत्ति । मेल्लइ सुर-कुसुममयं सुर-जुअइ-जणो-'वि दाम' नवं ॥ ५१
___ 'हे श्रीकुमारपाळ राजा, ज्यारे ज्यारे तुं (शत्रुसेनाना) सुभटोनी उपर बाणावली छोडे छे त्यारे त्यारे तेनी पूंठे पूंठे तरत ज अप्सराओ स्वयंवर वरवानी दृष्टिए
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[14]
कल्पवृक्षनां पुष्पोनो ताजो हार नाखे छे ।'
___ अवदामनुं उदाहरण : 'ओ दामाई' रयंतीइ तीइ कामस्स पूअण-निमित्तमिह तुह-समागमूसवं तद्दिअहमहिलसंतीए नव-कुवलयच्छीए । कुसुम-समिद्धि-विरहिअं उज्जाणं निम्मिअं सयलं ॥ ५२
- 'खीलेला नीलकमल जेवां नेत्रवाळी तेणे, जे दिवसे तारा मिलननो उत्सव थवानो छे ते दिवसनी अभिलाषा राखीने, कामदेवनी पूजा निमित्ते फूलमाळाओ गूंथवा माटे आखा उद्यानने तेनी पुष्पसंपत्ति वगरनुं बनावी दीर्छ ।'
संदामनुं उदाहरण : अणुरयणि चंद-किरण-प्फंस-प्पसरंत-चंदकंत-सिला-नी' संदाम'य-रससिंचिज्जमाण-तरुतल-निसण्ण-रइ-केलि-खिन्न-विज्जाहर-मिहुणो । जिण-चरण-रय-पवित्तो रेहइ सिरि-उज्जयंत-गिरी ॥५३
'ज्यां प्रत्येक रात्रे चंद्रकिरणना स्पर्शथी चंद्रकांत मणिनी शिलामांथी गळता अमृतरसे छंटाता वृक्षनी नीचे रतिक्रीडाथी थाकेला विद्याधर युगलो बेठां होय छे एवो तीर्थंकरोनी चरणरजथी पवित्र श्रीऊर्जयंत पर्वत शोभी रह्यो छे ।'
उपदामनुं उदाहरण : सिरिमूलराय भूवइ-कुल-गयण-मिअंक तुह दिस-जयम्मि दुद्धर-तुरंगखुर- पुडुक्खायमाण-मेइणी-बहल-धूलि-पडलेण पंकिलिज्जंत-सायरसलिल- सयणिज्जे । 'उअ दामो'अरमेण्हि लच्छी अइ-दुक्करं रमइ ॥ ५४
___ 'हे श्रीमूळराज, राजकुळना गगनमां चंद्र समान, तारा दिग्विजय वेळा वेगथी दोडता घोडाओनी खरीना डाबलाथी खोदाती धरतीमांथी ऊडता धूळना जब्बर गोटाओने लीधे, सागरना जे जळ पर पोतानी शैया छे ते जळ डहोळाई जतां हवे दामोदर साथेनी लक्ष्मीनी क्रीडा घणी दुष्कर बनी गई छे ।'
दामिनीनुं उदाहरण : सिरसिद्धराय--नंदण तुमयं आयंतमिक्खिउं झत्ति धाविरीए इमाइ पज्जाउलत्त-वस-सिढिल-बद्ध-गंठि ल्हसिउण रमण-त्थलाउ चरणग्गएसु रइअ-घणावेढं । मणि-कंचि-दाम निम्मिअ-गइ-वलणं 'दामिणी' होइ ॥ ५५ 'हे श्रीसिद्धराजना पुत्र (कुमारपाळ), तने आवतो जोवा माटे दोडती आ
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[15] तरुणीनी मणिमय कटिमेखला, व्याकुळताने लीधे जेनी गांठ ढीली थई गई छे तेवी, तेना नितंब परथी सरी जईने पगने छेडे सखत वीटळाई जईने तेनी गतिने रूंधती (पशुने पगे बंधाती) नोंझणी बनी गई छे ।'
मालादामनुं उदाहरण : हंहो जुआणय तुमं मा उज्जाणम्मि भमसु भुल्लो-वि अन्नहा इत्थ फुल्लिअनवल्ल-मल्लिआवचय-कोउअ-परायणाण मय-भिभलाण कंदप्पविब्भमुब्भासिआण पोढ-महिलिआण । दूसह-कडक्ख-'माला-दामि'अ-हिअओ न नीहरसि ॥ ५६
'हे जुवान, भूले चूके पण तुं आ उद्यानमां भमतो नहीं, नहीं तो अहीं नव मल्लिकामां रसमग्न, कामविह्वळ, विविध कामचेष्टाओ प्रगट करती प्रौढ महिलाओना असह्य कटाक्षोमां तारुं हृदय बंदी बनी जतां, तुं बहार नीकळी ज नहीं शके ।'
नोंध : मात्राछंदोना मापमां जे रीते लघु अने गुरु वर्णोनी गणतरी करवामां आवे छे ते अनुसार आर्या छंदमां १९ गुरु अने १९ लघु वर्णो - एम बधी मळीने ५७ मात्रा थाय । उदाहरण :
जयति विजितान्य-तेजाः सुरासुराधीश-सेवितः श्रीमान् । विमलस्त्रास-विरहितस्त्रिलोक-चिन्तामणि-वीरः ॥ ५७
'जेनी देवेन्द्र अने असुरेन्द्र सेवा करे छे, जेमणे बीजा बधां तेजोने पराजित कर्यां छे, जे निर्मळ छे अने त्रास वगरना छे (१. निर्भय छे, २. त्रास नामना रत्नदोषथी रहित छे ।) तेवा त्रिभुवन-चिंतामणि श्रीमान् वीरजिननो जय हो !'
आर्या-प्रकरण समाप्त
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गलितक प्रकरण गलितक
जेमां बे पंचमात्रिक, बे चतुर्मात्रिक अने एक त्रिमात्रिक गण होय, ते छंदनुं नाम गलितक । गलितकनां चरणो यमकबद्ध होय छे ।
___ गलितकनुं उदाहरण : 'गलिअंजण-धवले वहइ नयण-पंकए,
सुहय चयइ कालागुरु-चंदण-पंकए । सहीअण-अप्पिअं दलइ-च्चिअ नियं,
सा तुह विरहे मालइ-दाम विणिद्दयं ॥ ५८ 'हे सुभग, तारा विरहमां तेनां नेत्रकमळ आंजण धोवाई गयुं होईने श्वेत बनी गयां छे, कृष्णागर अने चंदननो अंगलेप करवानुं तेणे तजी दीधुं छे अने सखीओने आपेली खीलेला मालतीपुष्पनी माळा ते निर्दयपणे तोडी नाखे छे ।' उपगलितक
जो गलितकमां त्रीजो अने छठ्ठो वर्ण लघु होय अने चरणो यमकबद्ध होय, तो ते छंदतुं नाम उपगलितक ।
उपगलितकनुं उदाहरण : तुह विजय-पयाणय-भेरी-रव-डंबरं,
झत्ति निसुणिउण पडिरव-मुहलिअंबरं । सज्झसेण पकंपिरस्स हरिणो करओ,
'उअ गलिअमिमं खु धणुहं धरए सरओ ॥ ५९ 'जो तो, तारा विजयप्रस्थाननी भेरीनो प्रचंड घोष-जेनो अंतरिक्षमाथी प्रतिघोष पडी रह्यो छे - ते एकाएक सांभळीने गभराटथी धूजता इंद्रना हाथमाथी सरी पडेलु धनुष्य जाणे के शरदऋतु धरी रही छे.' अंतरगलितक
जो मात्र समचरणोपां यमक होय तो ते छंद- नाम अंतरगलितक छ ।
अंतरगलितकनुं उदाहरण : उअ वयंस वित्थरिअ-महूसव-लच्छिअं,
रणरणंत-भसलावलि वणराइअं ।
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[17] कवलिअ-चिर-परूढ-माणंसिणि-माणिअं,
फुल्ल-वल्लि-कुसु मंतर-गलिअ'-पराइअं ॥ ६० 'हे सखी, जेमां वनराजिमां भ्रमरगण गणगणे छे, जेमां विकसित वल्लरीओना पुष्पोमांथी पराग झरे छे, जेणे मानिनीओन लांबा समयथी दृढपणे पकडी राखेलुं मान हरी लीधुं छे एवी वसंतोत्सवनी विस्तरेली शोभा तुं जो ।'
बीजा मते, ज्यारे पहेलुं अने चोथु चरण यमकबद्ध होय छे त्यारे ए छंद अंतरगलितक बने छ ।
आ प्रकारना अंतरगलितकनुं उदाहरण : पत्तलच्छि सुहयं जण-मोह-पयासयं,
'गलिअ'-निद्द-इंदीवर-पत्त-सहोअरं । सहइ तुज्झ एअं तं लोअण-जुअलयं,
पत्तलच्छि सुहयंजण-मोह-पयासयं ॥ ६१ ___ 'हे अणियाळां नेत्रोवाळी, लोकोने मोहित करतुं, विकसित नीलकमलना दलसमुं आ तारुं सुंदर लोचनयुगल, सुंदर आंजणनी कांतिने प्रगट करतुं अने तेथी वधु रमणीय बनेलं, शोभी ऊठे छे ।' । विगलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल, बे चतुष्कल अने एक पंचकल ए प्रमाणे मात्रागणो होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनु नाम विगलितक ।
विगलितकनुं उदाहरण : उअ महु-समओ मिउ-फुरिअ-मलय-पवमाणओ,
'विगलिअ'-चिर-परूढ-माणंसिणि-जण-माणओ। कोइलाहिं कय-कल-गीइहिं गिज्जमाणओ,
__ वम्महस्स विजयम्मि सहाओ असमाणओ ॥ ६२
'जेमां कोमळ मलयानिल फरकी रह्यो छे, जेनुं मधुर गीतथी कोयलो स्तुतिगान करी रही छे, जेमां मानिनीओए लांबा समयथी पकडी राखेलुं मान साव गळी गयुं छे, एवा आ वसंतसमयने- कामदेवना विजयना अनन्य सहायकने- तुंजो ।' संगलितक
जेमां बे चतुष्कल अने एक पंचकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम संगलितक ।
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संगलितकनुं उदाहरण : वण-फलमर'सं गलिअयं',
जस्स य निव्वुइ-दाययं । तस्स सया वण-वासिणो,
किं वण्णामि महेसिणो ॥ ६३ _ 'जे महर्षिओ सदा वनवासी छे अने जे नीचे पडेलां, नीरस वनफळथी संतुष्ट छे (तेमनी महत्तानुं) शुं वर्णन करुं ?' शुभगलितक
जेमां एक षट्कल होय, चार विकल होय, एक गुरु होय अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंद, नाम शुभगलितक ।
शुभगलितकनुं उदाहरण : पुणरवि निअ-रज्ज-सिरि-'सुह-गलिआ'सया,
पव्वय-कंदरेसु निवसंतया सया । पहु तुह रिउणो धरंतया मुणि-व्वयं,
पुणो पुणो वि हु उवालहंति दिव्वयं ॥ ६४ ___ 'हे महाराज, फरी पोतानी राज्यलक्ष्मीनुं सुख प्राप्त करवानी आशा ओसरी गई छे एवा तारा शत्रुओ सदाये मुनिव्रत धारण करीने पर्वतनी कंदराओमां निवास करता वारंवार पोताना भाग्यने उपालंभ दई रह्या छ ।' समगलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम समगलितक ।
समगलितकनुं उदाहरण : दुद्धर-वारि-वुट्टि-घोरा चल-विज्जुल-भीसणा,
सेल-गुहंतराल-पडिसद्दिअ-दुगुणिअ-नीसणा । जाव समुत्थरंति मेहा पिहिअंबर-देसया,
पहिआ ताव हुंति जंबू-फल-सम-गलिआ'सया ॥ ६५ 'ज्यारे दुःसह जळवृष्टिने लीधे घोर, चंचळ वीजळीने लीधे भीषण, जेनी गर्जनानो पर्वतोनी गुफानी अंदर पडघो पडतां ते बेवडाय छे, जेणे गगनप्रदेशने ढांकी दीधो छे एवा मेघो ऊमडे छे त्यारे प्रवासीओनी आशा (अथवा प्रवासीओ, हृदय)
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[19]
अंदरथी गळी जईने नीचे पडतां जांबूनां फळनी जेम तूटी पडे छ ।' मुखगलितक
जो समगलितकनां एकी चरणोमां एक चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, तो ते छंदनुं नाम मुखगलितक ।
मुखगलितकनुं उदाहरण : सयवत्तयं,
___ 'मुह-गलिअ'-महुकर-सुरहिअ-जलमलि-सय-वत्तयं । तमणंगओ,
चावम्मि ठवेविणु कस्स व न हु हंत मणं गओ ॥ ६६ । 'जेमांथी झरेला पुष्कल मकरन्दने लीधे जळ सुगंधी बन्युं छे अने जे सेंकडो भ्रमरोने जीवाडनारुं छे तेवा शतदल कमळने पोताना धनुष्यनी उपर स्थापीने अहो, अनंग कोना हृदयमा प्रवेश करतो नथी ?' मालागलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कलनी पछी दस एवा चतुष्कल होय जेमां एकी स्थाने जगण न होय अने बेकी स्थाने जगण अथवा चार लघु होय, तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम मालागलितक ।
___मालागलितकनुं उदाहरण : खेलिर-कामिणी-कराहय-अविरल-विअसिअ-जलरुह-'माला-गलिअ'-परायसुरहिअ-सलिलयं, तरल-तरंग-परिनच्चिर-कलहंस-मिहुणावलि-सरहस-किज्जमाण-कलयलकलिलयं । अब्भंलिह-तड-परिरूढ-बहल-बउल-तिलय-तमाल-ताली-वण-पडिहयखर-दिणयर-करयं, पिच्छ सरोवरं इममणारयं पि विज्जाहर-सुरवर-किन्नराण एवं विलासहरयं ॥६७
___ 'क्रीडा करती कामिनीओना हाथना प्रहारथी, लगोलग विकसेलां कमळना झूडमांथी खरेला पराग वडे जेनुं जळ सुगंधी बन्युं छे, चंचळ तरंगो उपर आनंदथी नाचतां कलहंसोनां अनेक युगलो वडे उमंगथी कराता कलरवथी जे सभर छे, जेना कांठे ऊगेलां, आकाशने आंबतां पुष्कळ बकुल, तिलक, तमाल अने ताडनां वृक्षो
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[20] वडे सूर्यनां तीक्ष्ण किरणो अवरोधायां छे–एवं आ सरोवर जो, जे देवो, विद्याधरो अने किन्नरोनुं एकमात्र सतत विलासगृह छ ।' मुग्धगलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल पछी आठ चतुष्कल होय अने चरणांते एक गुरु होय, एकी स्थाने जगण न होय अने बेकी स्थाने जगण अथवा चार लघु होय, तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम मुग्धगलितक ।
मुग्धगलितकनुं उदाहरण : नमिर-सुरासुरिंद-सिर--रयण-मउड-रुइ-भर-करंबिअ-चरण-कमल-नहमणि, सयल-तिलोअ-लोअ-लोअण-विहुरण-मोहंधयार-निअर-विहडण-नहमणि । न नवसि जइ जुआइ-जिणइंदममल-केवल-सिरि-कुलहरमिह भव-भयहणणं, ता वयंस तुह रयणं चिअ कराउ 'मुद्ध गलिअं' किर विहलमिदं खु जणणं ॥६८
'जेनां चरणकमळना नखमणिओ, वंदन करता देवेन्द्र अने असुरेन्द्रनां मस्तक परनां मुकुटोनां रत्ननी विपुल कांतिथी चित्रित थयेला छे, जे त्रिभुवनना सर्व जनोनां नेत्रोने पीडता गाढ मोहरूपी अंधकारनो नाश करता सूर्यरूप छे, जे निर्मळ केवळ ज्ञानरूपी लक्ष्मीनुं पियर छे, जे भवना भयने हणनार छे एवा युगादि-जिनेन्द्रने (ऋषभदेव तीर्थंकरने) जो तुं अहीं वंदन नहीं करे, तो हे मित्र, ते जाणे के तारु हस्तगत रत्न खोई नाख्युं अने तारो आ जन्म खरेखर निष्फळ गयो ।' उग्रगलितक
___ जो प्रत्येक चरणमां षट्कल पछी छ चतुष्कल होय, प्रत्येक चरणने अंते गुरु होय, एकी स्थाने जगण न होय, बेकी स्थाने जगण अथवा तो चार लघु होय अने चरणो यमकबद्ध होय, तो जे छंद बने तेनुं नाम उग्रगलितक ।
उग्रतलितकनुं उदाहरण : निम्मल-नाण-दिट्ठि-अवलोइअ-भुवणयलं विसुद्ध-चित्तं,
'उग्ग-गलिअ'-समग्ग-कम्मं निरवहि-नाण-रअ-जग-चित्तं ।
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[21]
वीरं संभरामि तारण-तरंडयं सम-पसन्न-सोहं,
पडिओ दुत्तरस्स भव-सायरस्स लहरी-भरम्मि सोहं ॥ ६९ ___ 'जे पोतानी निर्मळ ज्ञानदृष्टिथी समग्र भुवनने जाणे छे, जेनुं चित्त विशुद्ध छे, जेमां सर्व उग्र कर्मो बळी गयां छे, जेणे पोताना अनंतज्ञानथी जगतना लोकोने चमत्कृत कर्या छे, जे मध्यस्थ छे अने प्रसन्न शोभा धारण करे छे, जे तारणहार त्रापारूप छे, एवा वीरजिनने, दुस्तर भवसागरना तरंगोमां पडेलो एवो हुं स्मरूं छु ।' सुंदरागलितक . जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने एक त्रिकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम सुंदरागलितक ।
सुंदरागलितकनुं उदाहरण : नरवरिंद तुह कित्तिआ, कत्थ कत्थ न पहुत्तिआ । भरिअ-गयण-महि-कंदरा, कंद-संख-ससि-'सुंदरा' ॥ ७०.
'हे नरेन्द्र, कुंद पुष्प, शंख अने चंद्र जेवी धवल तारी कीर्ति के जेणे आकाश अने पृथ्वीना अवकाशने भरी दीधो छे ते क्यां क्यां नथी पहोंची ?' भूषणागलितक
जेमा प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने बे त्रिकल होय अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंदनुं नाम भूषणागलितक ।
भूषणागलितकनुं उदाहरण : पिच्छ पीवर-महा-पओहरा, कस्स कस्स न वयंस मणहरा ।। विप्फुरंत-सुर-चाव-कंठिआ, 'भूसणा' नह-सिरी उवट्ठिआ ॥ ७१
'हे मित्र, जो तो, पुष्ट, मोटा पयोधर (१. वादळां, २. स्तन)वाळी, जेणे झळहळता इंद्रधनुषनी कंठी, आभूषण पहेर्यु छे तेवी, आ आवी पहोंचेली श्रावण मासनी शोभा को, कोनुं मन नथी हरी लेती ?' मालागलिता
जेमां प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक पंचकल, बे चतुष्कल, एक पंचकल, बे चतुष्कल अने एक एक लघु गुरु होय, ते छंदनुं नाम मालागलिता ।
__ मालागलिता, उदाहरण : न मुणिज्जइ गलाउ रयण-माला गलिइआ' न गणिज्जइ भग्गओ,
मणि-वलय-निअरो न य जाणिज्जइ अंसु-अंचलो वि हु विलग्गओ ।
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[22] चोलुक्क-कुलंबर-दिणमणि तुह अवलोअण-निमित्त-धावंतिहिं,
मयरद्धय-बाण-धोरणि-विद्ध-हिअइहिं नारिहिं हरिसिज्जंतिहिं ॥ ७२
'हे चोलुक्यवंशना गगनमां सूर्यसमा (राजा कुमारपाळ), जेमनुं हृदय कामदेवनी बाणावलिथी वींधाई गयुं छे तेवी, तने जोवाने माटे हर्षावेशमा दोडती स्त्रीओने तेमना गळामांथी सरकी पडेली रत्नमाळानुं भान नथी रहेतुं, भांगी पडेला तेमना रत्नकंकणने ते गणकारती नथी, तेम तेमना (पगमां) अटवाता वस्त्रांचलनी तेमने खबर रहेती नथी ।' विलंबितागलितक
जेमा प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने चार चतुष्कल होय, बेकी स्थानोमां जगण अथवा तो चार लघु होय, अने चरणो यमकबद्ध होय ते छंद- नाम विलंबितागलितक ।
विलंबितागलितकनुं उदाहरण : मसि-सब्बंभयारि घण-तिमिर-मालिआओ,
अह समुल्लसंति दुव्वारमालिआओ । वासय-पंजरेसु सुत्ताओ सारिआओ,
तह अविलंबिआ'ओ जंति अहिसारिआओ ॥ ७३ ___हे सखीओ, जुओ तो मश जेवो काळो गाढ दुर्वार अंधकार बधे व्यापी गयो छे, सारिकाओ एमना रहेवाना पांजरामां ऊंघी गई छे अने अभिसारिकाओ झडपथी जई रही छे ।' खंडोद्गत
जेमां प्रत्येक चरणमां अंते एक गुरु होय तेवो चतुष्कल, एक पंचकल, पांच चतुष्कल अने एक पंचकल होय तथा बेकी स्थाने जगण के चार लघु होय ते छंदनुं नाम खंडोद्गत । ___खंडोद्गत, उदाहरण : 'खंडुग्गय मिंदुबिंबमिणमज्ज-वि अहिणव-किंसुअ-कुसुम-सरिसयं,
न हु जा चंदिमाइ तिमिर-भरं किर परिदलिऊण पयडइ हरिसयं । वम्मीसर-भडस्स सर-निअरेहिं अइ-दूसहिहिं पहरिज्जंतओ,
अहिअं ता संपइ अहिसरणे पयट्टइ जुवइ-जणो-तुवरंतओ ॥ ७४
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[23] 'आ ताजा केसूडाना फूल जेवू चंद्रबिंब हजी अरधुं ऊग्युं छे (अने पूरुं बहार नीकळीने) ते पोतानी चांदनीथी अंधकारना समूहनो नाश करीने हर्ष प्रगट नथी करतुं, तेटलामां ज कामदेवरूपी सुभटनी अतिशय दुःसह बाणावलीथी जेमना पर प्रहार थई रह्यो छे तेवी आ युवतीओ अत्यंत त्वराथी अभिसारे नीकळी पडी छ ।' प्रसृतागलितक
__ जेमां प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, चार चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते छंदनुं नाम प्रसृतागलितक ।
प्रसृतागलितकनुं उदाहरण : जं किर मुद्धिआइ तीए अहिणव-महु-समय-लच्छि-तुवरिज्जंतओ, 'पसरिअ'-मलय-मारुओ न हु सुहाइ तुह विरहम्मि सुरूव छिवंतओ । तस्स व चिंतिऊण पडिखलण-कारणं किरइ रुद्ध-नहयल-वहाओ, किर उण्हुण्हिआओ घण-नीससिअ-समीर-लहरीओ अइ-दूसहाओ॥७५
'हे सुंदर, तारा विरहमां ए मुग्धाने वसंतलक्ष्मीना आगमने प्रबळपणे वाता मलयानिलनो स्पर्श सुखद नथी लागतो (पीडित करे छे), तेथी जाणे के तेनो प्रतिकार करवाने ते अति दुःसह अने अति उष्ण एवा भारे निसासानी लहरीओथी (मलयानिलना आगमनना) मार्गनो अवकाश रूंधी रही छे ।' लंबितागलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां पांच चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा एकी स्थाने जगण न होय, ते छंदनुं नाम लंबितागलितक ।
लंबितागलितकनुं उदाहरण : कइलास-तुलण-पयडिअ-बहु-बाह-पएणं,
संजणिअ-तिअस-मंडल-वहुबाहु-पएणं । आलंबिअ'-खय-कारण-दसासएण वणे,
नीआ सीआ तेणं दसासएण वणे ॥७६ 'जेणे कैलासने उंचकीने पोतार्नु बाहु बळ प्रदर्शित कर्यु छे, जेणे देवताओनी स्त्रीओनी आंखमांथी आंसु वरसाव्यां छे एवो रावण नक्की पोताना विनाशनी सेंकडो रीतोनो आश्रय लइने सीतानु (हरण करीने) तेने (अशोक) वनमा लई आव्यो छे ।' विच्छित्तिगलितक
जो लंबितागलितकमां प्रत्येक चरणमा एकी स्थाने पंचकल होय अने
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[ 24 ]
चरणो यमकबद्ध होय, तो ते छंदनुं नाम विच्छित्तिगलितक । विच्छित्तिगलितकनुं उदाहरण :
रणरणंति जत्थ पमत्ता कुसुमेसु सिलीमुहा,
होंति जत्थ लोअ - दूसहा कुसुमेसु - सिलीमुहा । 'विच्छित्ति' - परो तरुणिअणो विणा - वि हु महु समओ,
विब्भमइ जत्थ समुत्थरइ एस इह महु- समओ ॥ ७७ 'आ वसंतऋतु अहीं विस्तरी रही छे, जेमां मदमत्त भ्रमरो पुष्पोनी उपर गणगणे छे, जेमां लोकोने माटे कामदेवना बाणो असह्य बन्यां छे, जेमां तरुणीओ पत्रलेखा वडे पोताने शणगारीने मद्यपान कर्या विना पण मदमत्त थइने भ्रमण
करे छे ।'
ललितागलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक पंचकल अने एक द्विकल होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम ललितागलितक ।
ललितागलितकनुं उदाहरण :
मत्त-मयर- पुच्छ-च्छडोह - भग्ग - वणराइअं ।
तीर-सहंत लवंग-लवलि-कणइ-वण- राइअं ।
नह - मंडल - गरुअ - निरंतर विविह-घण-वालयं,
अहिं पेच्छ 'ललिअ ' - गत्ति एअं घण-वालयं ॥ ७८
'हे ललित गतिवाळी, आ समुद्रने जो, जे मदमत्त मगरोनी पुच्छनी झपटथी वनराजने तोडी पाडे छे जेने कांठे लविंग अने लवली लताओनी श्रेणी शोभे छे, जे आकाशमां निरंतर विचरता विविध प्रकारना मोटा मेघोनो पालक छे अने जेमां पुष्कळ जळचर सर्पो छे ।'
विषमगलितक
जेमां विच्छित्ति अने ललितागलितकनुं अथवा ललिता अने विच्छित्तिनुं मिश्रण होय तथा चरणो यमकबद्ध होय, ते छंदनुं नाम विषमगलितक । विषमगलितकनुं उदाहरण :
तरलं दीहत्तणेणं पाविअ - कण्ण-मग्गं,
'विसम 'त्थ-मोह- सायरे करेइ कं ण मग्गं ।
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[ 25 ]
एअं तुह नयण- -जुअलयं सुंदरि कालसारं,
सोहा - विणिज्जिअ-लोअणं निंदइ कालसारं ॥ ७९
'हे सुंदरी, आ तारुं कृष्णश्वेत अने चंचळ नयनयुगल, जेणे काळियार हरणनी नयनशोभा उपर विजय मेळवीने एने निंद्य बनावी छे अने जेनी दीर्घता कान सुधी पहोंचेली छे ते, कामदेवना मोहसागरमां कोने न डुबाडी दे ?' नोंध
:
अहीं पूर्वार्धमां ललितागलितक छे अने उत्तरार्धमां विच्छित्ति
गलितक छे ।
मुक्तावलिगलितक
जेना प्रत्येक चरणमां चार त्रिकल अने एक चतुष्कल होय, ते छंदनुं नाम मुक्तावलिगलितक ।
मुक्तावलिगलितकनुं उदाहरण : चंदणयं पि हुन हु सा सहए,
गंडयलं कर- कलिअं वहए ।
धरइ न 'मुत्तावलिअं' हिअए,
तुज्झ तणुं चिअ लिहिअं निअए ॥ ८०
'ते चंदनना लेपने पण बिलकुल सही शकती नथी, गालने पोताना हाथ पर ढाळेलो राखे छे, छाती पर मोतीनी माळा धारण करी शकती नथी, मात्र तारी देहाकृतिनुं चित्र नीरखी रही छे ।'
रतिवल्लभगलितक
जेमां प्रत्येक चरणमां त्रण पंचकल होय अने एक चतुष्कल होय, ए छंदनुं नाम रतिवल्लभगलितक ।
रतिवल्लभगलितकनुं उदाहरण : दीसए एस तरुणिअण- दुल्लहओ,
पच्चक्ख-तणू चेव 'रइ - वल्लहओ' ।
जो भाइ मयणो हरेण परिअड्डो,
सो मामि जणो निच्छइण अविअड्डो ॥ ८१
'आ तरुणीओने दुर्लभ तरुण साक्षात् देहधारी कामदेव ज लागे छे । हे सखी, जे लोक एम कहे छे के कामदेवने शंकरे बाळी नाख्यो छे तेओ खरेखर मूर्खा
छे ।'
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[26]
हीरावलीगलितक
जेमा प्रत्येक चरणमां बे पंचकल, एक चतुष्कल अने एक षट्कल होय ते छंदनुं नाम हीरावलीगलितक ।
हीरावलीगलितकनुं उदाहरण : कुवलय-दल-नयणे पयावइणा कयं,
बहु-रयणमयं पिव तुह वयण-पंकयं । जस्सि मणहर-दसणाहर-कुंतलया,
'हीरावलि'-विहुम-दल-इंदनीलया ॥ ८२ ___ 'हे नीलकमलनां पत्र समान नयनोवाळी तरुणी, लागे छे के प्रजापतिए तारुं वदनकमळ अनेक रत्नो वडे निर्मित कर्यु छे । केम के तेमां हीराकणीओ, परवाळा अने इन्द्रनील जेवा मनोहर दांत, होठ अने वांकडिया झुल्फा छ ।'
नोंध: केटलाकने मते जे छंद दंडको, आर्या वगेरेथी जुदो होय अने यमकबद्ध होय, ते छंद गलितक ।
गलितक - प्रकरण समाप्त ।
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[ 27 ]
खंजक - प्रकरण
उपर जेमनी व्याख्या आपी ए गलितको जो यमक वगरना पण अनुप्रासवाळा अने समान चरणवाळा होय, तो ते छंदो खंजक कहेवाय छे ।
हवे खंजकना विशिष्ट प्रकारो वर्णवीए छीए ।
खंजक
मां प्रत्येक चरणमा बे त्रिकल गणो होय, त्रण चतुष्कल होय, एक त्रिकल होय, एक गुरु होय तथा जेमां यमक न होय पण अनुप्रास होय ते छंदनुं नाम खंजक |
खंजकनुं उदाहरण :
मत्त- महुअर - मंडल - कोलाहल - निब्भरेसुं,
उच्छलंत - मलय- वाय-' खंजीक 'य- सिसिर
- परहुअ - कुडुंब - पंचम - सरेसुं ।
र-वया घणेसुं,
विलसइ का विचित्त समयम्मि सिरी वणेसुं ॥ ८३
'जेमां मदमत्त मधुकरमंडळीनो कोलाहल थई रह्यो छे, जेमां कोकिलाओनो पंचम स्वर ऊछळी रह्यो छे, जेमां शिशिरऋतुनो व्यापार मलयपवने तिरस्कार्यो छे, तेवी चैत्र मासनी अवर्णनीय शोभा सघन वनोमां विलसी रही छे ।'
महातोणक
जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते छंदनुं नाम महातोणक । महातोणकनुं उदाहरण :
तुह पयावेण वि दव - दूसहेण महिलए,
दड्ड- दरिअ - वेरि-मंडलेण इह पसाहिए ।
'महा- तूणय' - दरि - विवर- मज्झम्मि अहो - मुहा,
लज्जिअ-व्व ठिआ नरनाह तुज्झ सिलीमुहा ॥ ८४
'हे महाराज, दावानळ समा दुःसह तारा प्रतापथी जे गर्विष्ठ शत्रुवर्ग बळी गयो छे तेने लीधे पृथ्वीमंडळनी उपर तें तारुं शासन स्थापी दीधुं होवाथी तारां बाणो गुफा जेवा भाथामां जाणे के लज्जित थयां होय तेम नीचे मोढे पड्यां रह्यां छे ।'
सुमंगला
जेमां प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम
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[28]
सुमंगला ।
सुमंगला, उदाहरण : चीणं चएसु निवसेसु कंबलं,
चालुक्करायमणुसर महाबलं । मूढ वहसु मा माण-विस-घंघलं,
अत्ताणयस्स चिंते सु मंगलं' ॥ ८५ 'हे मूढ, तुं बळवान चालुक्यराज कुमारपाळने वशवर्तीने रहे । रेशमी वस्त्रनो त्याग करीने तुं कामळो पहेर । तुं अभिमानरूपी विषना संकटोमां फसायेलो न रहे। तुं तारुं कल्याण शेमां छे तेनो विचार कर ।' खंड
जेमां प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कल होय अने एक पंचकल होय, ए खंजकनुं नाम खंड।
खंडनुं उदाहरण : नच्चाविअ-चंदण-वणो, मच्चाविअ-महु-महुअर-गणो । 'खंडि'अ-माणिणि-माणओ, वाअइ दाहिण-पवणओ ॥ ८६
'चंदनवनने नचावतो, मधुकरोने मदमत्त करतो, मानने गळावी देतो दक्षिण पवन वाइ रह्यो छे ।' उपखंडक
जेमा प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते छंदनुं नाम उपखंडक ।
उपखंडकनुं उदाहरण : साहीणो चित्तण्णुओ, पण ओ खंडिअ'-मन्नुओ। माए पयरण-दुल्लहो, कत्तो लब्भइ वल्लहो ॥८७
___ 'हे सखी, जे स्वाधीन छे, चित्तने जाणे छे, प्रणयी छे, मने रूठेलीने मनावतो होय छे, परंतु आ उत्सवसमयमा जे दुर्लभ बन्यो छे, ए प्रियजन क्यांथी मेळववो ?' खंडिता
जेमा प्रत्येक चरणमा एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय, ते छंदनुं नाम खंडिता ।
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[29]
खंडितानुं उदाहरण : उज्जग्गर-कसाय-नयणं, हिअय-लग्ग-जावय-चलणं । 'खंडिआइ दट्टण पिअं, मरणयम्मि हिअयं निहिअं ॥ ८८
'जेनुं मान खंडित थयुं छे तेवी खंडिता नायिकाए, उजागराथी जेनी आंखोमां रताश छे, जेनी छाती पर अळताथी रंगेला चरण, निशान छे तेवा पोताना प्रियतमने जोईने मरवानुं मन कर्यु ।' अवलंबक
___आ खंड, उपखंड अने खंडिता ए खंजकना त्रणेय प्रकारोमांथी प्रत्येक अवलंबक कहेवाय छे । आगळ उपर द्विपदीखंडनी व्याख्या माटे आ संज्ञानो उपयोग
छ ।
हेला
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षटकल अने चार चतुष्कल होय तथा बेकी स्थानमां जगण के चार लघु होय, ते छंदनुं नाम हेला ।
हेलानुं उदाहरण : कोअंडं पसूण-रइअं गुणो महुअरा,
बाणा कामिणीण नयणा विलास-गहिरा । सयमतणू जडो सहयरो तुसार-किरणो,
'हेला 'ए तहवि भुवणं जिणेइ मयणो ॥ ८९ __ 'धनुष्य पुष्पनु बनेलं, पणछ भ्रमरोनी बनेली, कामिनीओना विलासप्रचुर नेत्रोनां बाण, पोते शरीर विनानो (अनंग) अने सहायक तरीके जड चंद्र, अने तो पण कामदेव लीलामात्रमा त्रण भुवन पर विजय मेळवे छे !' आवली
___ हेलाना प्रत्येक चरणमां अंते बे मात्रा ओछी होय, तो ते छंदनुं नाम आवली।
आवलीनुं उदाहरण : * सरखावो टीकाकारे आपेलुं खंडिता नायिकानी व्याख्यानुं उदाहरण : निद्राकषाय-मुकुलीकृत-ताम्र-नेत्रो, नारी-नख-व्रण-विशेष-विचित्रिताकः । यस्याः कुतोऽपि गृहमेति पतिः प्रभाते, सा खण्डितेति कथिता कविभिः पुराणैः ॥
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[ 30 ]
नव-घण-मालिअ त्ति कलिउं विहत्थओ,
सजल - विलोअणेहिं पहिआण सत्थओ |
गिम्हे दव- हुआस-मसि - मलिण - सामलिं,
पेच्छइ हंत विंझ - सिहराण 'आवलिं' ॥ ९०
'अरेरे! ग्रीष्मकाळमां ज्यां शाल्मली तरुओ दावानळने लीधे मश जेवां मलिन बनी गयां छे तेवी विंध्यपर्वतनी शिखरमाळाने, ते वर्षाऋतुनां पहेलां वादळ होवानुं मानी लईने विह्वळ बनेला प्रवासीओ सजळ नेत्रे जोई रह्या छे ।' विनता
जेमां प्रत्येक चरणमां छ चतुष्कल, एक पंचकल अने एक गुरु होय तथा बेकी स्थाने जगण के चार लघु होय, ते छंदनुं नाम विनता । विनतानुं उदाहरण :
मुह - सिरि-कलाव - निज्जिअ - दिवायर - निसायरं तइलोक्क-वई,
अक्खलिअ - सुद्ध - झाणाणलेण निद्दड्ड-सयल - कम्मुग्गइं । 'विणया 'मरिंद- मणि-मउड-कंति- पब्भार- पल्लविअ चरणयं,
तं अणुसरामि भव- जलहि- तारणं वद्धमाणमिह सरणयं ।। ९१ 'जेणे पोतानी अपार मुखशोभाथी सूर्य अने चंद्रने पराजित कर्या छे, जे त्रिभुवनपति छे, जेणे एकाग्र शुद्ध ध्यानरूपी अग्निथी बधा कर्मप्रकारोना उद्भवने बाळी मूक्यो छे, जेनां चरणो वंदन करता इंद्रोना मुकुटमणिनी अपार कांतिथी पल्लवारुण बन्यां छे तेवा, भवसागरने तरवा माटे शरणरूप वर्धमान तीर्थंकरनुं हुं स्मरण करुं छं ।'
विलासिनी
जेमां प्रत्येक चरणमां बे त्रिकल, एक चतुष्कल अने बे त्रिकल होय, ते छंदनुं नाम विलासिनी ।
विलासिनीनुं उदाहरण :
मत्त- कोइला - महुर- भासिणी, हसइ किं पि सा जइ 'विलासिणी' | दोहि हुंति सोहग्ग-लहिआ, मल्लिआ तह य चंद-- जोहिआ ॥ ९२
'ज्यारे ते मदमत्त कोकिलना जेवी मधुरभाषी विलासिनी सहेज स्मित करे छे, त्यारे मल्लिका अने चंद्रनी ज्योत्स्ना बनेनी सुंदरता झांखी पड़ी जाय छे ।'
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[31] मंजरी
जेमा प्रत्येक चरणमां बे त्रिकल, त्रण चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते छंदनुं नाम मंजरी ।
मंजरीनुं उदाहरण : चूअ-'मंजरिं' मंजु-कोइला-गीअयं,
मलय-मारुअं पुण्ण-बिंबयं चंदयं । पाविउण महु-मासि एत्थ विसमत्थओ
हवइ झत्ति तेलोक्क-निज्जय-समत्थओ ॥ ९३ 'आम्रमंजरी, कोयलनुं मंजुल गीत, मलयपवन, पूर्ण चंद्रबिंब-ए बाणो प्राप्त करीने वसंतमासमां कामदेव त्रिभुवन उपर विजय मेळववा समर्थ बने छ ।' शालभंजिका
जो मंजरीमां अंते एक त्रिकल वधारे होय, तो ते छंदनुं नाम शालभंजिका। शालभंजिका, उदाहरण : चरण-कमल-लग्गे-वि हु पिअयमम्मि पकोविरी,
'सालभंजिअ'-व्व सहि कीस तुमं सि अजंपिरी । सुणसु समुल्लसंति पिअमाहवी-कुल-कलयला,
- मयण-विजय-दुंदुहि-झुणी इव पूरिअ-नहयला ॥ ९४ 'हे सखी, तारो प्रियतम तारा चरणकमळमां पड्यो छे तो पण तुं केम तेना प्रत्ये हजी रोष राखे छे अने शालभंजिका (पूतळीनी) जेम मौन ग्रहण करी रही छे ? आ कोयलोनो कलरव अवकाशने भरी देतो, जाणे के ते कामदेवना विजयदुंदुभिनो नाद ऊछळतो होय तेवो, तुं सांभळ ।' कुसुमिता
जेमां मंजरीना प्रत्येक चरणमां, चरणनी शरूआतमां जो एक चतुष्कल वधारे होय, तो ते छंदनुं नाम कुसुमिता ।
कुसुमितानुं उदाहरण : मय-परिपुट-घुट्ठ-कलयंठी-पंचम-निब्भरा,
विहडप्फड-भमंत-भसलावलि-कलयल-सुंदरा । घण-घोलंत-मलय-पवणोद्धअ-'कुसुमिअ'-केसरा,
हिअयं निम्महति न हु कस्स इमे महु-वासरा ॥ ९५
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[ 321 'जेमां मदमत्त कोयलोथी उद्घोषित थतो पंचम स्वर सभर छे, जे व्याकुळ बनीने भ्रमण करता भ्रमरोना गुंजनथी रमणीय छे, जेमां प्रबळपणे फंकातो मलयानिल प्रफुल्ल केसरतरुओने धुणावी रह्यो छे एवा आ वसंतना दिवसो खरेखर कोना हृदयने क्षुब्ध नथी करता ?' द्विपदी
जेमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक गुरु होय तथा बीजा अने छठ्ठा चतुष्कलने स्थाने जगण के चार लघु होय, ते छंदनुं नाम द्विपदी ।
द्विपदी, उदाहरण : मा रे वच्च पहिअ निअ-दइअं परिहरिऊण सव्वहा,
इह हि समुत्थरंत-कुसुमायर-मास-मुहम्मि अनहा । परहुअ-जुवइ-गीअ-हालाहल-विहलंघलिअ-चित्तओ,
चलसि न 'दुवइअं' पि वम्मीसर-सर-निरंब-छित्तओ ॥९६ _ 'अरे पथिक, तारी प्रियतमाने छोडी दईने आ सर्वत्र व्यापी रहेला वसंतमासने आरंभे, तुं प्रवासे नीकळ नहीं। नहीं तो, कोयलोना गीतरूपी हळाहळ झेरथी व्याकुळ चित्तवाळो बनीने कामदेवनी बाणावळीथी विधायेलो तुं बे पगलां पण चाली शकीश नहीं ।'
__नोंध : आ संदर्भमां बीजी केटलीक पण सुमना, तारा, ज्योत्स्ना, मनोवती वगेरे साडतीश गणसमा द्विपदीओ अने विपुला, चपला वगेरे बीजी आठ अर्धसमा द्विपदीओ केटलाके निरूपण कर्यु छे, परंतु ए छंदोनो अहीं निरूपित केटलाक छंदोमा समावेश थई जतो होवाथी तेमनुं अमे अलग निरूपण कर्यु नथी । रचिता
जो द्विपदीमा पहेला चतुष्कलने स्थाने चार लघु होय अने सात मात्रा पछी यति होय, तो ते छंदन नाम रचिता, अथवा तो केटलाकने मते रचिका ।
रचितानुं उदाहरण : नच्चिर-कीर-मिहुण-कोलाहल-मुहलिअ-कलम-छेत्तओ,
दिम्मुह-महमहंत-गंधुक्कड-विअसिअ-सत्तवण्णओ। विरइअ'-मुद्ध-दुद्ध-सुंदेरिम-अविरल-कास-हासओ,
पिअ-सहि मा पिअम्मि परिकुप्पसु जं सरओ समागओ ॥९७ 'हे सखी, जेमां कलमशालिनां खेतरो नाचतां पोपटयुगलोना कलकलाटथी
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[33]
मुखर बन्यां छे, जेमां पोतानी उत्कट सुगंधथी दिशाओने मघमघावतां सप्तपर्ण खील्यां छे, जेणे पुष्कळ दूधना जेवा धवल काशना छोडोथी ग्रामजनोने हसता कर्या छे तेवी शरदऋतु आवी पहोंची होईने, हे प्रिय सखी, तुं तारा प्रियतम प्रत्ये रोष न कर ।'
आरनाल
जो द्विपदीना अंते एक गुरु वधारे होय, तो ते छंदनुं नाम आरनाल । आरनालनुं उदाहरण :
अविरल - बाह-वारि-धारावलि - विअलण- सोण - लोअणाए,
दारुण- पंचबाण-बाणाहय-हिअय- फुरंत - वेअणाए । तुह विरहम्मि चंद-मंदानिल- चंदण - ताव- जालिआए,
अहिणव- 'मार नाल' - वणयं पि तीइ तं कुणसि बालिआए ।। ९८ 'हे कामदेवना नूतन अवतार समा, तारा विरहमां, सतत अश्रुधारा वहेवाथी जेनां लोचन रातां थई गयां छे, निष्ठुर कामदेवनां बाणोना प्रहारथी जेना हृदयमां वेदना प्रगटी रही छे, जे चंद्रना, धीमे वाता पवनना अने चंदनना तापथी बळी रही छे तेवी ते बाळा साथे तुं वात पण करतो नथी ?'
कामलेखा
जो द्विपदीना प्रत्येक चरणमां छेल्ला गुरुनी पहेलांनो एक लघु ओछो होय, तो ते छंदनुं नाम कामलेखा ।
कामलेखानुं उदाहरण :
राई चंद-किरण-धवला मणहरणा पुप्फ-माला,
नीलुप्पल - पसूण- परिवास-महग्घा जुण्ण - हाला । गेहं रयण-दीव - इ - इरं गीअं पंचमेणं,
तेण विणा असारमखिलं खु 'कामलेहा' - धरेणं ॥ ९९
'जेना हृदयमां कामदेव वस्यो छे तेने माटे ज्योत्स्नाथी धवल रात्रि, मनहर कुसुममाळा, नीलकमलना पुष्पनी सुगंधे मघमघती जूनी मदिरा, रत्नदीपथी अजवाळेलुं सुंदर घर अने पंचमराग - एना (= प्रियतमना ) विना बधुं ज असार होय छे ।'
चंद्रलेखा
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, चार चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ए छंदनुं नाम चंद्रलेखा । चंद्रलेखानुं उदाहरण :
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[ 34] मयण-विआर-समुद्द-लहरि-वित्थार-कारिणी,
जणिआणंद-चंदमणि-निज्झर-सार-सारणी । उच्छलत-लायण्ण-मऊहावलि-पसाहिआ,
मज्झ नयण-कुमुआण इमा सा 'चंदलेहिआ' ॥ १०० 'जे मदनविकाररूपी सागरलहरीने विस्तारे छे, जे चंद्रकांत मणिमाथी झरता प्रवाहीना सरस झरणा जेवो आनंद प्रगटावे छ, जे झळहळता लावण्यनां किरणे विभूषित छे तेवी आ मारी प्रियतमा मारा नेत्ररूपी कुमुदो माटे चंद्रलेखा समी छे ।' क्रीडनक
जेमा प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल, एक पंचकल अने एक विकल होय तथा आठ मात्रा पछी यति होय, ते छंदनुं नाम क्रीडनक ।
___ क्रीडनक, उदाहरण : कंकण-किंकिणि-नेउर-कलयल-मुहलं,
पवण-पहल्लिर-सिचयंचिअ-गयणयलं । दीहोच्छल्ल-खेल्लण-कय-लोलणयं,
सहइ इमाए अंदोलण-कीलणयं ॥ १०१ 'जे कंकण अने नुपूरनी घूघरीओना रणकारथी मुखर छे, पवने जेनां फरकतां, वस्त्रो अवकाशमां ऊडे छे, जे ऊंचे सुधी ऊछळवानी रमतमां डोली रही छे तेवी आ बाळानी झूला पर झूलवानी क्रीडा शोभी रही छे ।' अरविंदक
__ जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक पंचकल, एक चतुष्कल, एक त्रिकल अने अने एक द्विकल होय, ते छंदनुं नाम अरविंदक ।
अरविंदक, उदाहरण : उअह तुज्झ विरहे इमाइ मुह-कमलं,
अविरल-बाह-धारा-विलुलिअ-कज्जलं । अब्भ-लेह-पिहिअं व पुण्णिम-चंदयं,
सेवल-संवलिअं व न वारविंदयं' ॥ १०२ 'तुं जो तो, सतत वहेती अश्रुधाराथी जेनुं काजळ फेलाई गयुं छे तेवू आ बाळानुं मुखकमळ मेघरेखाथी ढंकायेला पूनमना चंद्रसमुं के शेवाळथी छवायेला ताजा खीलेला अरविंद समुं दीसे छे ।'
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[ 35 ]
मागधनर्कुटी
जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल, एक गुरु अने ते पछी बे गुरु होय ते छेदनुं नाम मागधनर्कुटी । मागधनर्कुटीनुं उदाहरण :
नव-मयरंद- पाण- पायड- मय - उत्ताला, भमरा रुणरुणंति कायलि-कयसद्दाला ।
पंचममुग्गिरंति एआ अविदिट्ठिओ, चूअंकुर कसाय-कंठा कलयंठीओ ॥ १०३ 'ताजा मकरंदना पानथी जेनो मद ऊछळी रह्यो छे तेवा भ्रमरो काकली स्वरना नादे गूंजी रह्या छे अने आम्रमंजरीना आस्वादथी जेमनो कंठ कषाय बन्यो छे एवी आ मनहर नयनवाळी कोयलो पंचम स्वर उद्गारी रही
'
नर्कुटक
मां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल एक गुरु अने पछी सगण ( - ) होय ते छंदनुं नाम नर्कुटक |
नर्कुटकनुं उदाहरण :
परिमल - लुद्ध-लोल-अलि - गीअ-स' णक्कुडयं',
जाव न जग्गवेइ विसमत्थ - महाभयं ।
माणं मोत्आण माणंसिणि सप्पणयं,
पेम्प - भरेण ताव अणुसर सहि वल्लहयं ॥ १०४
'हे मानिनी सखी, ज्यां सुधीमां परिमलमां लुब्ध बनी डोलता भ्रमरोनुं गूंजन जेना उपर थई रह्युं छे तेवां कुटजपुष्प कामदेवरूपी महान सुभटने जाग्रत न करे त्यां सुधीमां तुं तारुं मान मूकी दईने, प्रेमपूर्वक याचना करीने, तारा प्रियतमनुं शरण ले ।'
समनर्कुटक
जेमां प्रत्येक चरणमा एक षट्कल, एक जगण अने त्रण सगण (~ ~ -) होय ते छंदनुं नाम समनर्कुटक ।
समनर्कुटकनुं उदाहरण :
सयल - सुरासुरिंद-परिवंदिअ-पाय-तलो,
निरुवम - झाण-नाण-वस- नासिअ - कम्म- मलो ।
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[36] निवसउ मे मणम्मि भयवं सिरि-वीर-जिणो,
विलयं जंति काम-पमहा जह ते अरिणो ॥ १०५ 'जेना चरणना तळियाने सर्व असुरेन्द्र अने सुरेन्द्र वंदन करे छे, अनुपम ध्यान अने ज्ञानने बळे जेणे कर्मरूपी मळनो नाश को छे, तेवा भगवान श्रीवीरजिन मारा मनमां निवास करो, जेथी पेला काम वगेरे शत्रुओ नाश पामे ।'
नोध : जेमां प्रत्येक चरण न, ल, ग, ज, स, स, स - एवा, अनुक्रमे आवता गणोना मापवाळु होय ते छंदनुं नाम समनकुंटक, एवं जे एक मते कहेवायु छे तेनो संस्कृत नर्कुटक छंदमां समावेश थई जतो होईने अमे तेनुं निरूपण कर्यु नथी। तरंगक
जे छंदमां प्रत्येक चरणमां, मागधनकुटी, नर्कुटक, समनकुंटक ए त्रणेय छंदोमांना छेल्ला चतुष्कलने स्थाने जो विकल होय, तो ते छंदनुं नाम तरंगक ।
तरंगक, उदाहरण : बहुविह-भाव-मुद्ध-महुरत्तण-मंदिरं,
पवणुद्धअ-साम-सरसीरुह-सुंदरं । निम्मल-संति-पुंज-परिलद्धय-चंगयं,
सोहइ तीइ दीह-नयणाण 'तरंगिअं' ॥ १०६ 'जे अनेक प्रकारना मुग्ध भावोनी मधुरतानो निवास छे, जे पवनथी डोलता नीलकमल जेवां सुंदर छे, निर्मळ क्रांति प्राप्त करवाने लीधे जे रमणोय छे तेवां ते तरुणीनां दीर्घ नयनोनी तरंग समी चंचळता शोभी रही छे ।' पवनोद्भुत
जो तरंगक छंदना प्रत्येक चरणने अंते एक वधारे गुरु होय, तो ते छंदनुं नाम पवनोद्भुत ।
पवनोद्भुतनुं उदाहरण : भसला दंसयंति महु-पाण-परव्वसाण,
उक्कंठा-तरलिअ-मणाण निअ-वल्लहाण । निब्भर-महुर-गीइ-रवमुच्चरिउं इमासु,
दोला-कीलणाई 'पवणुद्धअ'-वल्लिआसु ॥ १०७ 'पवनथी डोलती आ वल्लरीओमां भरपूर मधुर गीतरवे गणगणता भ्रमरो, जे
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[ 37 ]
मधपान करवाथी परवश बनी छे अने जेमनुं मन उत्कंठाथी चंचळ बन्युं छे, तेवी पोतानी प्रेयसीओनी झुलणलीला दर्शावी रह्या छे ।'
निध्यायिका
मां प्रत्येक चरणमां (१) बे चतुष्कल पछी त्रण त्रिकल होय, (२) बे पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय, (३) एक पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय एम त्रणेय प्रकारे जे छंद बने, तेनुं नाम निध्यायिका ।
मां बे चतुष्कल पछी त्रण त्रिकल छे एवी निध्यायिकानुं उदाहरण : हा खामोअरि कुरंग - नेत्तिए, वयण-मऊह - जिअ - चंद- कंतिए । 'निज्झाइअ' - जीवाविअ - मणसिए, दुसहो तुज्झ विरहानलो पि ॥ १०८ 'जेणे पोताना वदननी कांतिथी चंद्रिकाने पराजित करी छे, जे दृष्टिरागथी काम प्रगटावे छे तेवी हे कृशोदरी, मृगनयना प्रिया, तारा विरहनो अग्नि अतिशय दुःसह छे ।'
जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने त्रण त्रिकल होय एवी निध्यायिकानुं
उदाहरण :
'निज्झाइअइ' जत्थ मयमय वल्लरी, ललिअ - कंति-चंगे कलंक - सोअरी । सेवंति तं तुह मुह-चंदयं सया, उब्बिब - बाल - हरिणच्छि चउ ओ )रया ॥१०९ 'जेनां नयन डरथी चकळवकळ थतां मृगबाळनां नयनो समां छे तेवी हे सुंदरी, जे ललित कांतिथी रमणीय छे अने जेना पर कलंकनो भ्रम करावती कस्तूरी वडे रचेली वेलनी भात देखाय छे, ते तारा वदनचंद्रने तारा केशनां झुल्फा (बीजो अर्थ : " चकोरो" ) सेवी रह्यां छे ।'
जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय, एवी निध्यायिकानुं
उदाहरण :
हरइ जम्म-सय- संचिआई, भविआण असेस-दुरिआई ।
तुह मुहं जणिअ-मयण- माह, 'निज्झाइअं ' पि भुवण - नाह ॥ ११० 'कामदेवनो विनाश करनार हे त्रिभुवनना नाथ जिनदेव, तारा मुखनुं मात्र दर्शन पण भव्यजनोना सेंकडो जन्मथी संचित थयेलां सर्व पाप हरी ले छे ।' जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल, एक चतुष्कल अने त्रण त्रिकल होय वी निध्यायिकानुं उदाहरण :
वम्मीसर-कंचण - तोमर - ललिआ,
दिट्ठा छुडु सुंदरि चंपय- कलिआ ।
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घुलिओ छुडु दक्खिणओ गंधवहो,
विअलिओ ता पहिआण मणोरहो ॥ १११ 'हे सुंदरी, कामदेवना सुवर्णना बाण जेवी सुंदर चंपाकळीने जेवी जोई अने जेवो दक्षिणना पवनने घूमतो जोयो तेवो ज प्रवासीओनो (प्रवासे जवानो) मनोरथ गळी गयो ।' अधिकाक्षरा
जेमा प्रत्येक चरणमां पांच चतुष्कल अने एक पंचकल होय अने बेकी स्थाने जगण न होय, ए छंद, नाम अधिकाक्षरा ।
अधिकाक्षरानुं उदाहरण : उज्जागरओ कवोल-पंडुत्तणं तणुअत्तं,
दीहुण्हा सास-दंडया चित्तए विवसत्तं । 'अहिअक्खर'-जंपिएण किं वा सुहय तुह विरहे,
सा एत्ताहे वराइआ निअयं मरणं लहे ॥ ११२ 'हे सुभग, तारा विरहमां ते मुग्धा उजागरो, गालोनी फिकाश, कृशता, लांबा अने ऊना निःश्वासो, हृदयनी परवशता (ए बधुं वेठी रही छे)-अथवा तो वधु वचनो शुं कहुं ? (जो तुं नहीं आवे तो) ए बिचारी नक्की मरणने शरण थशे ।' मुग्धिका.
__ जो अधिकाक्षराना प्रत्येक चरणमां चोथो गण पंचकल होय, तो ते छंदनुं नाम मुग्धिका । ___ मुग्धिकानुं उदाहरण : जीए लग्गेइ चंदणं गरल-रसं व दूसहं,
अंगं पि अ जीए तावइ रस्सी अणंग-नीसहं । कयली-दल-मारुओ वि किरइ हुअवहं पिव जीए,
दाहो 'मुद्धाइ' एस कह समइ गुणालय तीए ॥११३ 'जेने चंदननो लेप विष जेवो दुःसह लागे छे, मदन(पीडा)थी नखाई गयेलां जेनां अंगोने चंद्र तपावे छे, कदलीपत्रथी नखातो पवन जेने आग जेवो लागे छे ते मुग्धानो दाह हे गुणवंत, (तारा विना) कई रीते शमी शके ?' चित्रलेखा
जो अधिकाक्षरानी शरूआतमां एक पंचकल वधु होय, तो ते छंदनुं नाम
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चित्रलेखा ।
चित्रलेखानुं उदाहरण : नहयलम्मि सयल-दिसा-मुहेसु गहणम्मि गिरिवरे,
सरि-पुक्खरिणिआसु देवउलएसु भित्तिसु नयरे । दूरम्मि-पासे घरम्मि अंगण-पएसए तुह,
'चित्तलिहिअं' पिव मयच्छि पेच्छामि सुंदरं मुहं ॥ ११४ _ 'हे मृगनयनी, अवकाशमां, बधी दिशाओमां, वनमां, पर्वतमां, नदी अने वावोमां, देवळोमां, भींतो पर, नगरमां, दूर तेम ज निकट, घरमां तेम ज आंगणामां जाणे के चितर्यु होय एम सर्वत्र तारुं सुंदर मुख मने देखाय छे ।' मल्लिका
जो अधिकाक्षरानी शरूआतमां बे पंचकल वधु होय, तो ते छंदनुं नाम मल्लिका ।
मल्लिकानुं उदाहरण : उब्भिज्जउ मायंद-मंजरी पाडला दलउ चिरं,
सा पायड-विआस-सिरी अ नोमालिआ वि निब्भरं । विअसउ वसंतम्मि फुडं मणहरा असोअ-वल्लिआ,
एक्क च्चिअ भसलस्स माणसं हरइ हंत 'मल्लिआ ॥११५ 'वसंतऋतुमां भले आम्रमंजरी विकसे, पाटलापुष्प पूरेपूरूं खीले, नवमालिका लता पण भरपूर विकासनी रमणीयता प्रगट करे, मनहर अशोकवल्लरी पण पूरेपूरी विकसे, पण भ्रमर, हृदय तो मात्र मल्लिका ज हरे छे ।' दीपिका
____ जो मल्लिकाना प्रत्येक चरणमां चोथो गण पंचकल होय तो ते छंदनुं नाम दीपिका ।
दीपिकानुं उदाहरण : मत्त-वारिहर-पंति-रुद्ध-हरिशंक-मऊह-सोहए,
रोअसी-कंदरूससंत-घोर-अंधयार-वूहए । रमण-वास-भवणाहिसारिआण रुइर-विज्जु-लेहिआ,
कामिणीण अवलोअ-कारिणी हवइ इह कर-दीविआ' ॥ ११६
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1401
__'ज्यारे मदमत्त मेघमाला चंद्रकिरणोनी शोभाने रूंधी दे छे,ज्यारे घोर अंधकारनो समूह ऊछळीने आकाश अने पृथ्वीनां पोलाणोने भरी दे छे, त्यारे प्रियतमना वासभवन प्रत्ये अभिसार करती कामिनीओ माटे झबकती विद्युत्लेखा रस्तो बतावती करदीपिका बनी रहे छे ।' लक्ष्मिका
जेमां अधिकाक्षरा वगेरेनुं मिश्रण होय ते छंदनुं नाम लक्ष्मिका ।
लक्ष्मिकानुं उदाहरण : केसर-कुरबय-मायंद-तिलय-असोअ-कोरया,
विरहाणल-डज्झंत-निअंबिणि-जीविअ-चोरया । एदे किर दुप्पिच्छा विलसंति मणोहव-सरा,
जेसुं ते कह निग्गमिअव्वा महु लच्छि'-वासरा ॥११७ 'जेमां केसर, कुरबक, आम्र, तिलक, अने अशोकनी कुसुमकळीओ प्रगटे छे, जे बळबळता विरहाग्निथी कामिनीओना प्राणने हरी ले छे, जेमा जोवां दुःसह एवां कामदेवनां बाणो छूटी रह्यां छे-एवा आ वसंतऋतुना रमणीय दिवसो, हे सखी, (प्रियतम विना) कई रीते विताववा ?'
नोंध : आ उदाहरणमा पहेला त्रण चरण अधिकाक्षराना छे, चो, चरण मुग्धिकानुं छे । आ ज प्रमाणे बीजां मिश्रणोनां उदाहरणो आपवां । केटलाकने मते लक्ष्मिकामां बधा प्रकारना खंजको, मिश्रण थई शकतुं होय छे । मदनावतार, मधुकरी, नवकोकिला, कामलीला, सुतारा, वसंतोत्सव
जेमा प्रत्येक चरणमां चार पंचकल होय ते छंद- नाम मदनावतार । जेमां प्रत्येक चरणमां पांच पंचकल होय ते छंदनुं नाम मधुकरी । जेमां प्रत्येक चरणमा छ पंचकल होय ते छंदनुं नाम नवकोलिला । जेमां प्रत्येक चरणमा सात पंचकल होय ते छंदनुं नाम कामलीला । जेमां प्रत्येक तरणमां आठ पंचकल होय ते छंद- नाम सुतारा । जेमा प्रत्येक चरणमां नव पंचकल होय ते छंद, नाम वसंतोत्सव
चार पंचकलवाळा मदनावतार छंदनुं उदाहरण : गिज्जति गीईओ पिज्जंति मइराओं, नच्चंति वेसाओं परिल्हसिअ-केसाओं। एवमन्नोन्न-परिरंभणा-सारए, कीलंति रामाओ 'मयणावयारए' ॥ ११८
_ 'जेमां अरसपरसने आलिंगन अपातां होय छे, एवा वसंतऋतुना आगमने गीतो गवाय छे, मदिरा पीवाय छे, मोकळा थयेला केशपाशवाळी वेश्याओ नृत्य करे
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| 41] छे अने एम सुंदरीओ क्रीडा करे छे ।' -(टीकाकार ‘सारए' नो 'शारदे' - एटले के शरदऋतुमां, ज्यारे कामदेवनो प्रभाव प्रवर्तवा लागे छे त्यारे, ए प्रमाणे अर्थ करे छे) !
__ पांच पंचकलवाळा मधुकरी छंद- उदाहरण : चरणेण-वि नव-फुडिअ-कुडयमपरिघट्टयंतिआ,
पक्ख-वाएण वि विहसिअ-केअयमच्छिवंतिआ । उअह झत्ति एसा निम्मलयर-गुणाणुरंजिरी,
___ अहिसरइ विअसंत-जाइ-कुसुमं चेअ 'महुअरी' ॥ ११९ .
'पोतानां चरणथी नवविकसित कुटज, कुसुमने अथडावा न देती, विकसित केतक-पुष्पनो पांखनी झपटथी स्पर्श पण न करती, जुओ, आ मधुकरी, जे निर्मळ गुणोथी ज मन रंजित करती जाईना विकसता फूल प्रत्ये झडपथी अभिसार करी रही छ ।'
छ पंचकलवाळा नवकोकिला छंद, उदाहरण : 'नव-कोइल'-रवाउल-मंजरिअ-मायंद-तरु-कंतारए,
सच्छंद-मल्लिआ-मयरंद-रस-मत्त-घोलंत-छप्पए । जिंभंत-मलयद्दि-समीरण-लोल-नोमालिआ-वल्लिए,
संभरइ पंथिओ पिअयमं ओसहिं हिअयए सल्लिए ॥ १२० _ 'जेमां महोरेलां आम्रतरुओ, उपर आवी बेठेली कोयलोना कलरवे गूंजी रह्यां छे, जेमां मल्लिकाना मकरंदरसे मदमत्त बनीने भ्रमरो घूमी रह्या छे, जेमां प्रसरता मलयानिले नवमालिका लताओ डोली रही छे, तेवा वनमांथी पसार थतो पथिक पोताना वींधायेला हृदय माटे जाणे के औषधि होय तेम पोतानी प्रियतमा- स्मरण करी रह्यो छे ।'
सात पंचकलवाळा कामलीला छंद- उदाहरण : मत्त-पिअमाहवी-पंचमोग्गार-गुंजंत-चूअहम-त्तंबओ,
मिउ-लय-मारुउद्धअ-वल्लि-प्पसणग्ग-घोलंत-रोलंबओ । चारु-कंकेल्लि-साहंत-दोला-समंदोलणासत्त-नारीअणो,
'कामलीला'-सहो संपयं विलसए एत्थ एसो वसंतक्खणो ॥ १२१
'जेमां आम्रतरुओ, झुंड मदमत्त कोयलोना पंचम स्वरे गूंजी रह्यु छे, जेमां कोमळ मलयपवने डोलती लताओनां पुष्पो उपर भ्रमरो घूमी रह्या छे, जेमां सुंदरीओ रमणीय अशोकवृक्षनी शाखाए बांधेला झूला उपर उमंगथी झूली रही छे–एवो कामक्रीडाने अनुकूळ आ वसंतोत्सव अहीं अत्यारे पूरबहारमा उजवाई रह्यो छे ।'
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आठ पंचकलवाळा सुतारा छंदनुं उदाहरण : पिअयम कहं जासि एआइणि मं चइत्तूण देसंतरं पेच्छ निल्लज्ज,
सुरहि-मासो पयट्टो असेसाणं जणाणं विलासेक्कदिक्खा-गुरू अज्ज । एस सविसट्ट-कंदोट्ट-कंकेल्लि-मायंद-घोलंत-रोलंब-गीइ-स्सणो, जं 'सुतारो' धणुदंड-टंकारओ इह निसामिज्जए सुहड-पंचेसुणो ॥ १२२
'हे प्रियतम, तुं मने एकली मूकीने केम अन्य देशे जइ रह्यो छे ? निर्लज्ज, जो तो खरो, अत्यारे सर्वजनो माटे विलासनो एकमात्र दीक्षागुरु एवो वसंतमास प्रवर्ते छे अने कामदेवसुभटनो, पूर्णपणे विकसेलां कमळ, अशोक अने आम्रतरुओ उपर घूमी रहेला भ्रमरोना गुंजनरूपी अत्यंत तीव्र धनुष्टंकार संभळाई रह्यो छे ।'
नव पंचकलवाळा वसंतोत्सव छंदमुं उदाहरण : फुल्लिआणेअ-कंकेल्लि-महुपाण-मत्तालि-झंकार-कल-गीइ-गिज्जंत-कुसमाउहो,
मायंद-नव-मंजरी-कसाय-कंठ-कलयंठी-कोलाहलाउलिज्जंत-तरुसमूहो । पिअयम-परिरंभ-चुंबणाइ-प्पसंग-संगलिअ-रस-नीसुंदुद्धसिअ-रोम-कूवओ, हलहलिअ-तरुणिअण-हिअयओ पवंचिअ-पंचमो विलसिओ वणेसुं वसंतयऊसओ' ॥ १२३
'जेमां विकसित थयेला पुष्पोनो मकरन्द पीने मत्त बनेला भ्रमरोना मधुर गंजारवरूपी गीतो वडे कामदेवनां गीत गवाय छे,
जेमां ताजी फूटेली आम्रमंजरीना स्वादथी जेमनो कंठ कषाइत थयो छे तेवी कोयलोना कलरवथी वृक्षो छवाई गयां छे,
जेमां प्रियतमने आलिंगन, चुंबन वगेरे करवाने लीधे झरता प्रेमरसथी रूंवाडां खडां थाय छे,
जेमां तरुणीओनुं हृदय आकुळव्याकुळ बने छे, जेमां पंचमरागनो आलाप थई रह्यो छे, । तेवो वसंतोत्सव वनोमां बिलसी रह्यो छे ।'
खंजक-प्रकरण समाप्त ।
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शीर्षक-प्रकरण
खंजकने विस्तृत करवाथी जे छंदो बने तेमनुं नाम शीर्षक । केटलाक विशिष्ट शीर्षकोनुं निरूपण करीए छीए । द्विपदी - खंड
जो गीतिनी पछी बे अवलंबको होय तो ते छंदनुं नाम द्विपदी - खंड | जेम के 'रत्नावलि' मांथी द्विपदी - खंडनुं उदाहरण :
कुसुमाउह - पिअ - दूअयं, मउलावंतो चूअयं ।
सिढिलिअ - माण- गहणओ, वाअइ दाहिण -पवणओ ॥ विअलिअ - बउलामेलओ, इच्छिअ-पिअयम-मेलओ । पडिवालण-असमत्थओ, तम्मइ जुअइ- सत्थओ |
इअ पढमं महु- मासओ जणस्स हिअयाइं कुणइ मउआई । पच्छा विंधइ कामओ लद्धावसरेहिं कुसुम - बाणेहिं ॥ १२४
'ज्यारे कामदेवना प्रिय दूत जेवा आम्रतरुने मुकुलित करतो, ग्रहण करेला मानने शिथिल करतो दक्षिणनो पवन वाय छे, अने ज्यारे जेमनो बकुलनो पुष्पमुकुट ढीलो पडी गयो छे अने जे पोताना प्रियतम साथे मिलन माटे प्रतीक्षा करी रही छे तेवी युवतीओनो समूह तडपे छे, तेवो आ वसंतमास पहेलां लोकोना हृदयने नरम करी दे छे, अने पछी कामदेव लाग जोईने पुष्पबाणोथी तेमने वींधे छे ।'
द्विभंगिका
जो द्विपदी पछी गीति होय तो ते छंदप्रकारनुं नाम द्विभंगिका । तेमां बे भंग के वळांक होवाथी ते द्विभंगिका कहेवाय छे । द्विभंगिकानुं उदाहरण :
दारुण-देह - दाह - पविअंभण- फुड-फुट्टंत-हारए,
हिअय-स्थल - निहित्त-घण- -चंदण-पंकुच्चोड-कारए ।
दीहर- सास- दड्ढ - सहि- करयल - धुअ-विअणारविंदए, तिणयण- तइअ - नेत्तानल - जाल - कराल - -चंद ॥ विरहम्मि तुज्झ एरिसे तह झीणा कुवलयच्छ सं दुहंगिआ' । जह सह- लक्ख-हणणयं तीए अंगम्मि सिक्खड़ अणंगओ ॥ १२५ 'जेमां शरीरमां दारुण दाह प्रसर्यो होवाथी हार एकाएक तूटी पडे छे, जे वक्षःस्थळ पर रहेला चंदनना गाढ लेपने सूकवी नाखे छे,
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[44] जेमां सखीओना हाथे वींझातो कमलनो वींझणो लांबा निसासाथी बळी जाय छे, . जेमां चंद्र महादेवना त्रीजा नेत्रनी अग्निज्वाळा जेवो कराळ लागे छे,
एवा तारा विरहमां अंगअंग दुःखी थती ए नीलकमळ जेवां नेत्रवाळी एटली कृश थई गई छे
के कामदेव सूक्ष्म लक्षने केम वींधवं ते तेना अंग परथी शीखे छ ।'
नोंध : आ सिवाय बीजा पण बब्बे छंदोने जोडीने द्विभंगी बनती होवार्नु केटलाक पिंगळकारोए कयुं छे । जेम के गाथानी साथे भद्रिकाने जोडवाथी । गाथा + भद्रिकानी द्विभंगी- उदाहरण :
उद्धाइअ-झंझानिल-झडप्प-झंपण-पडंत-विडवोहे, अविरल-बहल-झलक्कंत-विज्जुला-वलय-लल्लक्के ॥ सरहस-रडंत-दद्दुरे कणंत-मोरे पडत-जल-निवहए, गज्जंत-मेह-मंडले को जिअइ विणा पिअह पाउसम्मि ॥ १२६ 'जेमां वेगथी फुकाता वंटोळनी झापटथी ऊछळीने डाळो तूटी पडे छे, जे वारंवार झबक्या करती वीजळीना वलयोने लीधे भीषण छे, जेमां देडका जोरशोरथी ड्रांउं ड्रांउं करी रह्या छे, जेमां मोर किंगारव करी रह्या छे, जेमां जळनो धोध पडी रह्यो छे, जेमा मेघमंडळी गर्जना करे छे,
तेवा वर्षाकाळमां प्रियतम विना कोण जीवती रही शके ?' वस्तुवदनक+कर्पूरनी द्विभंगी, उदाहरण :
निक्कंदल कय कच्छ नलिणि-वज्जिअ कय सर-सरि, निच्चंदणु किउ मलउ तुहिण-वज्जिउ किउ हिम-गिरि । निप्पल्लव किअ करि पयत्तु कंकेल्लि-विडवि-सय, पत्त-चत्त कय बाल-कयलि अकुसुम कय तरुलय ॥ सिसिरोवयार-किहिं परिणिहिं निम्मुत्ताहल कय भुवण । तो-वि हु न तीइ तुह विरह-भरि खसइ दाह-दारुण-विउण ॥ १२७ 'सखीओए तेना शीतोपचारने माटे नदीना तटने कूमळा घास विनाना करी
दीधा, सरोवरो अने नदीओने कमळ विनानां करी दीधां,
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[45]
मलयगिरिने चंदन वगरनो करी दीधो, हिमालयने हिम वगरनो करी दीधो, सेंकडो अशोकवृक्षोने प्रयत्न पूर्वक पल्लव वगरनां करी दीधा, कोमळ केळोनां बधां पत्र तोडी लीधां, तरुलताओने पुष्प विनानी बनावी दीधी, अने जगतने मोती वगरनुं करी मूक्यु,
तो पण हे निर्गुण, असह्य विरहना दाहथी थयेली ए तरुणीनी दारुण वेदना फीटती नथी ।'
वस्तुवदनक+कुंकुमनी द्विभंगी, उदाहरण :
गयणुप्परि कि न चडहि कि न रि विक्खरहि दिसिहि वसु, भुवण-त्तय-संतावु हरहि कि न किरवि सुहा-रसु । अंधयारु कि न दलहि पयडि उज्जोउ गहिल्लउ, कि न धरिज्जहि देवि सिरहं सई हरि सोहिल्लउ । कि न तणउ होहि रयणायरह, होहि कि न सिरि-भायर । तु वि चंद निअवि मुह गोरिअहि, कु-वि न करइ तुह आयरु॥ १२८
___ 'तुं ऊंचे आकाशमां केम न चडे ? चारे दिशाओमां तारी संपत्तिनो झळहळतो प्रकाश प्रकटावीने अंधकारनो नाश केम न करे ? स्वयं महादेव शोभा माटे तने शिर पर केम धारण न करे ? रत्नाकरनो पुत्र तुं केम न हो? लक्ष्मीनो तुं भाई केम न हो? आ बधुं होय तो पण हे चंद्र ! ए गोरी- मुख जोया पछी कोई पण तारो आदर न करे ।' रासावलय+कर्पूरनी द्विभंगी, उदाहरण :
परहुअ-पंचम-सवण-सभय मन्नउं स किर, तिंभणि भणइ न किं पि मुद्ध कलहंस-गिर ।
(पाठांतर : कलकंठि-गिर) । चंदु न दिक्खण सक्कइ जं सा ससि-वयणि, दप्पणि मुहु न पलोअइ तिंभणि मय-नयणि ॥ वइरिउ मणि मन्नवि कुसुमसरु खणि खणि सा बहु उत्तसइ । अच्छरिउ रूव-निहि कुसमसर तुह दंसणु जं अहिलसइ ॥ १२९ 'मने लागे छे के कोकिलाना जेवा स्वरवाळी ए मुग्धा कोयलनो पंचम सूर
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[46] सांभळवाथी पोते डरे छे ते कारणे कशुं पण बोलती नथी । ए चंद्रवदना चंद्रने जोई शकती नथी, ते कारणे ए मृगनयनी दर्पणमां पोतानुं मुख जोती नथी । कामदेवने पोताना मनमां वेरी मानीने ए क्षणे क्षणे त्रास पामे छे । तेम छतां हे रूपनिधि कामदेव, ए मोटुं आश्चर्य छे के ते तने जोवाने झंखी रही छे ।' रासावलय+कुंकुमनी द्विभंगी, उदाहरण :
जइअ झलक्कहिं नयण दीह-नयणिअहि खणु, केअइ-कुसुम-दलम्मि भसलु विलसइ त जणु । जइ तीए मुहि हावि मंदु हासउ चडइ, ता जणु हीरय-पउमराय-संचउ झडइ ॥ जइ तीए महुर-मिउ-भासिणिहि वयण-गुंफु निसुणिज्जइ । तावह करेप्पि जणु अमय-रसु कण्ण-पण्ण-पुडि पिज्जइ ॥ १३०
___ 'जेवां ए दीर्घनेत्रवाळी तरुणीनां नयन क्षणिक चमके छे त्यारे एवं लागे छे के केतकीपुष्पनी पांखडीओमां भ्रमर विलसी रह्यो छे । तेना मुख पर हावभावमां जेवं मंदस्मित फरके छे त्यारे एवं लागे छे के हीरा अने पद्मराग वरसी पडे छ । ज्यारे ते मधुर अने मृदु भाषिणीनी वचनरचना संभळाय छे, त्यारे श्रोता पोताना काननो पडियो बनावीने जाणे के अमृतरस पी रह्यो छ ।' वस्तुवदनक+रासावलयार्ध+कर्पूरनी द्विभंगी, उदाहरण :
अविरह-अवरुप्पर-परूढ-गुण-गंठि-निबद्धउ, एआरिण हलि गलइ पिम्मु सरलिम-वस-लद्धउ । माण-मडप्फरु तुह न जुत्तु उत्तिम-रमणि, तिंभणि वारउं वार-वार वारण-गमणि ॥
अह करिहि कलहु वल्लहिण सहुं, इच्छि मयच्छि उ पणय-सुहु । माणिक्कि-मणंसिणि करि ठवलु, हेल्लि खेल्लि ता जूउ तुहं ॥ १३१
'हे सखी, परस्परना गुणोनी छूटी न शके तेवी गांठथी गाढपणे गूंथायेलो सरळताने लीधे प्राप्त थयेलो प्रेम पण अहंकार करवाथी गळी जाय छे । हे उत्तम रमणी, मान अने अहंकार तुं करे छे ते योग्य नथी ते कारणे हे गजगामिनी, हुं तने वारंवार वारुं छु। एटले हे मृगनयनी, जो तारा प्रियतम साथे कलह करीश तो पछी मनगमता प्रणय सुखनी आशा तुं न राखीश । (माटे) हे मनस्विनी सखी, तारा मानने दावमां मूकीने तुं जुगार खेल ।'
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[ 471
5+ रासावलयार्ध + कुंकुमनी द्विभंगीनुं उदाहरण : पंडि-गंडयल - पुलय-पयर- पयडण- बद्धायरु,
वस्तुवदनक+
कंचिवाल-बाला - विलास - बहलिम-गुण- नायरु ।
दविडि- दिव्व-चंपय-चय- परिमल - ल्हसडउ,
कुंतल - कुंतल - दप्प - झडप्पण - लंपडउ ॥ मरहट्ठ- माण-निट्ठाह-वय-विहव-विहंसण- सक्कउ ।
कसु करइ न मणि हल्लोहलउ मलयानिलहु झुलक्कउ ॥ १३२ 'जे पांड्यदेशनी सुंदरीओना गालने पुलकित करवा माटे तत्पर छे, जे कांचीदेशनी बालाओना विलासोने समृद्ध करवामां दक्ष छे,
जे द्राविडदेशनी सुंदरीओनां चंपककुसुमोना दिव्य परिमलनो लूंटारो छे, जे कुंतलदेशनी सुंदरीओना केशकलापना दर्पनुं हरण करवामां लंपट छे, जे महाराष्ट्रनी सुंदरीओना दृढ व्रतरूप मानवैभवने नष्ट करवाने तत्पर छे, तेवा मलयानिलनी लहरी कोना चित्तमां सानंद उत्कंठा न जन्मावे ?' रासावलयार्ध + वस्तुवदनकार्ध + कर्पूरनी द्विभंगीनुं उदाहरण : तरुणि-हूणि-गंड-प्पह-पुंछिअ - तिमिर-मसि,
उक्क - झुलुक्कावडणु दुसहु मा करउ ससि । मलयानिलु मय- नयणि धुणिअ-कप्पूर-कयलि-वणु, संधुकिअ-मयणग्गि सहि इ मा तुज्झ तवउ तणु ॥ तणुअंगि म खडहडि पडहि तुहुं, मयण-बाण- वेअण- कलहि ।
चय माणु माणि वल्लहिण सहुं, चडि म शवसंसय - तुलहि ॥ १३३ 'जेणे हूण तरुणीओना गाल प्रदेश परनी मेश जेवी काळाशने भूंसी काढी छे तेवो आ चंद्र रखे असह्य उल्कानो खंड फेंके ।
हे मृगनयनी, जे कपूर अने कदलीना तरुओने धुणावी रह्यो छे अने कामाग्नि प्रदीप्त करी रह्यो छे ते मलयानिल तारा शरीरने रखे बाळे ।
हे कृशांगी, तुं प्रेमकलह करीने कामदेवना बाणोनी वेदनामां लथडीने पड
नहीं,
तुं मान तजी दे, तारा प्रियतम साथे भोग भोगव । प्राणना संशयनी तुला उपर तुं चड नहीं ।' रासावलयार्ध+वस्तुवदनकार्ध+कुंकुमनी दिभंगीनुं उदाहरण :
सवण- निहिअ - हीरय- हसंत - कुंडल-जुअल,
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[ 48 ]
थूलामल-मुत्तावलि - मंडिअ - थण - कमल । सेअंसुअ- पंगुरण - बहल - सिरिहंड - रसुज्जल,
बहु-पहुल्ल-विअइल्ल-फुल्ल-फुल्लाविअ - कुंतल ॥ तो पयड धाइ दंसण - जणिअ - खलयण - डर - भर - भारिअ ।
अहिसरइ चंद-सुंदर-निसिहिं पई पिअयम अहिसारिअ ।। १३४ 'जेणे पोताना कानमां झगमगती हीराना कुंडळनी जोड पहेरी छे, जेणे पोताना स्तनकमळने मोटा निर्मळ मोतीनी माळाथी विभूषित कर्यां छे । जेणे श्वेत वस्त्र धारण कर्यां छे,
जेनुं शरीर श्वेत चंदनना लेपथी गौर बन्युं छे ।
जेना केश सुविकसित विचकिल पुष्पोथी शणगारेला छे,
तेवी आ अभिसारिका, चांदनीथी उज्ज्वळ रात्रिमां दुष्ट लोको तेने जोई जशे
अने ते खुल्ली पडी जशे एवा डरथी भयभीत बनेली,
हे प्रियतम तारा तरफ अभिसार करी रही छे ।
वदनक + कर्पूरनी द्विभंगीनुं उदाहरण :
किं न फुल्लइ पाडल पर परिमल, महमहेइ किं न माहवि अविरल । नवमालिअ किं न दलइ पहिल्लिअ, किं न उत्थरइ कुसुम - भरि मल्लिअ ॥ दीहिअ - तलाय - सर - तल्लडिहिं, किं न पसाहि पउमिणि फुडइ ।
तु-वि जाइ - जाय-गुण-संभरणु, झाणु कि भसलहु मणि खुडइ ॥ १३५ 'शुं भरपूर परिमलवाळी पाटला विकसित नथी ?
शुं माधवी अविरत मघमघती नथी ?
शुं डोलती नवमालिका खीलती नथी ?
शुं मल्लिका पुष्पसमूहे समृद्ध बनती नथी ?
शुं वाव, तळाव, सरोवर अने तळावडीमां कमलिनीनां दल विस्तरतां नथी ? ते छतांये जाईना गुणोनुं स्मरण करतां भ्रमरना चित्तनी एकाग्रता तूटती नथी ।'
वदनक + कुंकुमनी द्विभंगी नुं उदाहरण : जइ तुहुं महु करयलु उम्मोडवि, चल्लिअ चीरंचलु अच्छोडवि । माणिणि तु-वि पसाउ करि सुम्मउ, पई पिइ उत्तावलिअ म गम्मउ ॥
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[49]
जइ किवँइ-वि खंचह पय-जुयलु इहु विहि-वसिण विहट्टइ । ता तुज्झ मज्झु खीणउ खरउ, किं न खामोअरि तुट्टइ ॥ १३६
___ 'हे मानिनी, तुं मारो हाथ मरडीने अने तारा चीरनो पालव छोडावीने भले चाली जती, तो पण तुं कृपा करीने मारुं कहेवू सांभळ : हे प्रिया, तुं उतावळे चाल मा, केम के जो अकस्मात् खचको आवतां तारा बंने पग लथडशे तो हे कृशोदरी, तारी अतिशय कृश कटि तूटी तो नहीं पडे ?
नोंध : वस्तुवदनक, कर्पूर वगेरे छंदो जोडाईने बनती विविध द्विभंगीओ मागधोमां षट्पद के सार्धछंद एवा सामान्य नामे प्रसिद्ध छ । कां छे के :
जइ वत्थुआण हेतु उल्लाला छंदयम्मि किज्जंति ।। दिवढ-च्छंदय-छप्पय-कव्वाइं ताई वुच्चंति ॥ १३७ ।
'वस्तुकना प्रकारना छंदोनी पछी उल्लाल योजीने जे छंदो रचवामां आवे, ए छंदोने सार्ध छंद, षट्पद के काव्य एवी संज्ञाओ अपाय छ ।'
__आ ज प्रमाणे मात्राछंदनी साथे द्विपदी अने उल्लाल ए छंदो जोडीने तथा वस्तुक वगेरे छंदोनी साथे दोहा वगेरे छंदो जोडीने द्विभंगीओ बनावाय छे ।
मान्य परंपरा अनुसार रडा छंदनु (ते द्विभंगी होवा छतां पण) अलग निरूपण कर्यु छे तो तेमां कशो दोष नथी । त्रिभंगिका (त्रण छंदोगें जोडाण) द्विपदी + अवलंबक + गीतिनी त्रिभंगिकानुं उदाहरण : निब्भर-दलिअ-सत्तदल-पायव-संकड-तडिणि-पुलिणिआ,
सेहालिअ-पसूण-पर-परिमल-पुण्ण-पहाय-पवणया । कुवलय-गंध-लुद्ध-फुलंधुअ-पत्थुअ-गीति-भंगिआ',
__पंकय-वण-कणंत-कलहंसी-कुल-हुंकार-संगिआ ॥ ओहट्टिअ-चिक्खल्लया, निम्मल-जल-सोहिल्ल्या,
राय-रणूसव-दूअया, कलमामोअ-पसूअया ॥ तिहुअण-लच्छी-भवणया जोण्हा-जल-भरिअ-नहयलाभोअया,
कस्स न हरंति चित्तयं एए लोअम्मि सारया दिअहया ॥ १३८ 'जेमां पूरेपूरा विकसित सप्तपर्णना तरुओथी नदीना तीरप्रदेशो खीचोखीच
छे,
जेमां प्रभातनां पवनो शेफालिकाना पुष्पपरिमले सभर छे,
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[501
जेमां नीलकमळना परिमलमां लुब्ध बनेला भ्रमरोए विवध रीते गीत गावानुं आरंभ्युं छे, जेमां कमळवनमां कलरव करती कलहंसीओना नाद प्रसरी रह्या छे, जेमां कीचड सूकाई गयो छे, जे निर्मळ जळथी शोभे छे, जे राजवीओना संग्रामउत्सवना दूत छे, जेमां कलमी चोखानी आछी सुगंध आवे छे, जे त्रिभुवननी सुंदरताना आवास छे, जेमां आकाशना विस्तारने ज्योत्स्नाजळ भरी दे छे, तेवा आ शरदऋतुना दिवसो आ जगतमां को, चित्त हरी लेता नथी ?' _आ ज प्रमाणे बीजा पण कर्णमधुर त्रण त्रण छंदोने जोडवाथी त्रिभंगिका बने छ । मंजरी खंडिता+भद्रिकानी त्रिभंगी- उदाहरण : उच्छलंत-छप्पय-कल-गीति-भंगि-धरे, विप्फुरंत-कलयंठि-कंठ-पंचम-सरे ।
गिज्जमाण-हिंदोलालवण-पसाहिए, चच्चरि-पडहोद्दाम-सद्द-संबाहिए । विअसिअ-रत्तासोअ-लए, केसर-कुसुमामोअमए । पप्फुल्लिअ-मायंद-वणे, घण-घोलिर-दक्खिण-पवणे ॥ इअ एरिसम्मि चेत्तए जस्स न पासम्मि अस्थि पिअ-माणुसं । सो कह जिअइ वयंसिए विद्धो मयरद्धयस्य भल्लिआहिं ॥ १३९ 'जेमां भ्रमरना मधुरगाननी भंगि ऊछळी रही छे, जेमां कोयलना कंठमांथी पंचमस्वर स्फुरी रह्या छे, जे गवाता हिंडोळरागना आलापथी विभूषित छ, जेमां चर्चरीमां बजता मृदंगनो प्रबळ धमधमाट छे, जेमां रक्त अशोकनी लता विकसी छे, जेमां केसर पुष्पनो परिमल मघमघे छे, जेमां अमराई महोरी छे, जेमां दक्षिणानिल वेगथी घूमी रह्यो छे, तेवा चैत्रमासमां जेना संगमां पोता- प्रियजन नथी ते माणस,
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[ 51] हे सखी, कामदेवनां बाणोथी वींधायेलो कई रीते जीवी शके ?' समशीर्षक
ज्यारे गाथ छंदना पहेला अर्धना छेल्ला गुरुनी पहेला बेकी संख्याना चतुष्कल गण उमेरवामां आवे, अने छेल्ला गुरुने स्थाने एक त्रिकल योजवामां आवे, त्यारे ए रीते बनेलां चार चरणोनो जे छंद बने, तेनुं नाम समशीर्षक ।
समशीर्षक छंदनुं उदाहरण :
सरसयर-सुरहि-सुस्साय-तरुण-मायंद-मउल-मंजरि-दलोह-कवलणकसाय-संसुद्ध-कंठ-कलयंठि-निअर-कंठोच्छलंत-पंचम-पलाव-वोल्लालयम्मि रुंदारविंद-मयरंद-बिंदु-संदोह-पाण-साणंद-भमर-निउरंब-बहल-झंकारमुहलिउज्जाण-चारु-लच्छीए तिहुअण-मणहरे,
दक्खिण-समुद्द-कलोल-मालिआ-तरण-संग-निव्वविअ-मलय-मारुअझडप्प-हल्लंत-विविह-बहु-वेल्लि-गहण-घण-कुसुम-गोच्छ-उच्छलिअ-पउरपिंजर-पराय-पडिहत्थ-दह-दिसा-चक्क-दसणुप्पण्ण-पिअयमा-भरण-मिलिअमुच्छा-पहार-निवडत-पहिअ-संघाय-रुद्ध-मग्गंतर-दूसंचर-धरे ।
पप्फुडिअ-सघण-किंसुअ-समूह-कणिआर-कुंज-वर-कंचणार-केसरलवंग-चंपय-पिंअंगु-मल्ली-महल्ल-माहवि-विआण-कंकेल्लि-तिलय-कुरुबयपिआल-पुन्नाग-नागकेसर-सुवण्ण-केअइ-कुडंग-पाडल-तमाल-नोमालिउल्लपसरंत-परम-परिमल-थवक्क-महमहिअ-समत्त-वणंतरे,
मा वच्च कंत चत्तूण मं इमं मयण-पीडिअंतरुणि-सत्थ-चच्चरि-विणोअ'समसीस'-नट्ट-दंडाहिघाय-सइंतराल-तालाणुलग्ग-घुम्मंत मद्दलोल्लसंत-सरभेअ-साहण-ट्ठाण-सहम्मि वसंतए ॥ १४०
___हे कान्त, मदनथी पीडित एवी मने त्यजी दईने तुं आ वसंतऋतुमा प्रवासे न जा।
केवी छे ए वसंतऋतु ?
जे सरस, सुगंधी, स्वादिष्ठ ताजी विकसेली कोमळ, आम्रमंजरीनी पांदडीओ खावाथी जेमनो कंठ कषायित अने शुद्ध बन्यो छे तेवी कोयलोना कंठमांथी ऊछळता पंचम सूरोना कोलाहलनो निवास छे,
जे ऋतुमां विकसेलां कमळोनां मकरन्दबिंदुओ, पान करवाथी आनंदित बनेला भ्रमरवृंदना प्रबळ गुंजारवथी मुखरित बनेला उद्यानोनी रमणीय शोभाथी
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[ 52 | त्रिभुवन मनोहर बन्युं छे,
जे ऋतुमां दक्षिणसमुद्रनी तरंगमाळाना स्पर्श शीतळ बनेला मलयानिलनी लहरीओथी डोलती जातजातनी अनेक वल्लरीओना भरपूर अने सघन कुसुमगुच्छोमांथी ऊछळता परागथी रक्तवर्ण बनेल दशे दिशाओना समूहने जोईने प्रियतमानुं स्मरण थवाथी मूर्छाविवश बनीने नीचे पडेला प्रवासीओने लीधे मार्गो आवजा माटे मुश्केल बन्या छे;
जे ऋतुमां विकसित बनेल घाटा किंशुकतरुओ, करेणनी कुंजो, सुंदर कांचनार, बोरसल्ली, लविंग, चंपक, प्रियंगु, मल्लिका, विस्तृत माधवीमंडपो, अशोक, तिलक, कुरबक, प्रियाल, पुन्नाग, नागकेसर, सोनेरी केवडानी कुंजो, पाटल, तमाल, नवमालिका-एमना प्रसरता प्रचुर भीना परिमलना गुच्छोथी समस्त वनांतराल मघमघी रयुं छे;
अने जे ऋतु तरुणीओना स्पर्धायुक्त चर्चरीनृत्यना उत्सवमां दांडियाओना । तालबद्ध ठपकारानी वच्चे जोरथी वगाडाता मृदंग साथे गवाता मधुर हिंडोळरागना आलापनी सुंदर छटाओ साथे वांसळीनां छिद्रोमांथी ऊछळता विविध स्वरोना सुमेळथी संपन्न छ ।'
नोंध :- आ छंदमां बेकी स्थाने जगण अथवा चार लघु होवा जोईए अने छेल्ला चतुष्कलनी पहेलाना एक चतुष्कलने स्थाने जगण के चार लघु न होवा जोईए एवी प्रथा छ । विषमशीर्षक
जो मालागलितक छंदना प्रत्येक चरणने अंते एकी संख्यानी चतुष्कलनी जोडीओ उमेरवामां आवे तो जे छंद बने तेनुं नाम विषमशीर्षक । मालागलितक छंदनी जेम आ छंदमां पण बेकी स्थाने जगण के चार लघु होवा जोईए अने एकी स्थाने जगण न होवो जोईए ।
विषमशीर्षक, उदाहरण :
हयवर-खुर-खणिज्जमाण-महि-रेणु-पडल-बहलिज्जमाण-गयणंगणुत्थरिद-अविरलंधार-पुंज-संवलण-रुद्ध-लोअण-विलोअण-पवंचमच्छरिअ-पर-वसो अवयरइ समंतदो तुरिदममर-निसरो,
निब्भर-संचरंत-चउरंग-सेन्न-पब्भार-चलिर-नीसेस-भू-वलय-खडहडंतमंदर-सुमेरु-कइलास-विंझ-गिरिनार-पभुदि-गिरि-सिहर-निवडणाइ-भर
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[ 53] भंगुरिद-कंधराइ तम्मइ वराह-पवरो ।
धाणुक्कावमुक्क-नाराय-विद्ध-करडि-घड-कुंभ-तड-निवडिदाविरल-रंधनिज्झर-झरंत-सोणिद-तरंगिणी-रइअ-बहल-पंक-खुप्पंत-चक्क-रह-संचराओ एआओ भीसणाओ समरवसुहाओ,
सुविसम-सीसयाइ' निवडंति हुंकरंताई पिच्छ निसिद-करवालधाराहिघाय-घुम्मंतयाइं संपइ इमाओ नच्चंति बहुविह-सुहड-कबंध-पंतीओ सुरवहु-मुक्क-पारिजाय-विडवि-कुसुमाओ ॥ १४१
'आ संग्रामभूमिमां
घोडाओनी खरीओथी खोदाती भोंयनी धूळना गोटाथी भराई जता आकाशमाथी प्रसरतो गाढ अंधकार आंखो पर छवाई जतां दृष्टि रूंधाई जवाथी जे आश्चर्यथी वशीभूत बनी गयुं छे तेवू देवोनुं वृंद उतावळे चोतरफ नीचे ऊतरी रडुं छे;
__विशाळ तुरंगसेनाना समुदायनी कूचथी खखडी जतां समग्र पृथ्वीमंडळ परनां मंदर, सुमेरु, कैलास, विध्य, गिरनार वगेरे पर्वतोनां शिखरो ढळी पडवाथी जेनी कांध भारने लीधे वांकी वळी गई छे तेवो धरणीवराह दुःखी थई रह्यो छे;
धनुर्धारीओए छोडेला बाणोथी गजघटाना वींधायेला कुंभस्थळोनां छिद्रोमांथी अविरत झरता शोणितप्रवाहथी बनेली नदीने लीधे थयेला कादवकीचडमां पैडा खूपी जतां मुश्केलीथी फरी शकता रथोने लीधे भीषण बनेली आ संग्रामभूमिमां जेमनां हुंकार करतां मस्तक तीक्ष्ण तलवारनी धारना प्रहारथी घूमतां कपाईने पडी जाय छे,
तेवी सुभटोना धडोनी केटकेटली हारमाळा नाची रही छे ते तुं जो-जे सुभटोनी उपर अप्सराओए पारिजात वृक्षनां पुष्पोनी वर्षा करी छ ।'
हेमचंद्राचार्य-रचित वृत्तियुक्त छंदोनुशासननो 'आर्या-गलितक-खंजक-शीर्षक-वर्णन'
नामनो चोथो अध्याय समाप्त
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पांचमो अध्याय
उत्साहादि-वर्णन मंगल अवमनिअदुट्ठ-चित्त-संगमय-चक्क-घाय
जे ते सोच्छाह नाह झायंति तुज्झ पाय । ते ते संसारि वीर कह-वि न लहंति दुक्खु,
जं किर वच्चंति झत्ति पहु निच्छएण मोक्खु ॥ १ 'दुष्ट आशयवाळा (अधमदेव) संगमकना चक्र वडे करायेला प्रहारोने जेणे अवगण्या हता तेवा हे महावीर, जे लोको उत्साहपूर्वक तारा चरण- ध्यान धरे छे, तेओ संसारमां कोई पण प्रकारे दुःखी थता नथी; केम के ए लोको निश्चितपणे तरत ज मोक्ष पामे छे। सुर-रमणी-अण-कय-बहुविह-रासय-थुणिअ,
जोइ-विंद-विंदारय-सय-अमुणिअ-चरिअ । सिरि-सिद्धत्थ-नरेसर-कुल-चूला-रयण,
जयहि जिणेसर वीर सयल-भुवणाभरण ॥ २ 'देवीओए रचेला अनेक विध रासमां जेमनुं स्तोत्रगान करायुं छे अने सेंकडो योगीवों पण जेमना चरितने पामी शक्या नथी, एवा त्रिभुवनभूषण अने सिद्धार्थ राजाना कुळना चूडमणि हे जिनेश्वर महावीर, तारो जय हो ।' रासक (सामान्य संज्ञा)
केटलाकना मते जातिवर्गना बधा छंदो रासक कहेवाय छे । कयुं छे के सयलाओ जाईओ, पत्थाववसेण एत्थ बज्झंति । रासा-बंधो नूणं, रसायणं वेज्झ-गोट्ठीसु ॥ ३
_ 'रासाबंधमां सर्व जातिछंदो प्रस्तुतता प्रमाणे योजवामां आवे छे । काव्यरसिकोनी गोष्ठीओमां रासाबंध खरेखर रसायणरूप छे ।' रासक (विशेष)
अथवा तो पांच चतुष्कल अने एक लघु तथा एक गुरु जेनी प्रत्येक पंक्तिमां होय, तेवो छंद ते रासक । आ व्याख्या प्रमाणेना रासकमां चौद मात्रा पछी यति होवी जरूरी नथी ।
आ प्रकारना रासकनुं उदाहरण :
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गोवी अण-दिज्जंत- 'रासय' निसुणंतहं,
वासारत्ति पहुच्चइ पहिअहं पवसंतहं ।
निअ - वल्लह तिवँ केवँइ हिअयंतरि निवडिअ,
जिवँ जंतह न वहंति चलण नावइ निअडिअ ॥ ४ 'प्रवासे नीकळता प्रवासीओनो ज्यारे वर्षाकाळ आवी पहोंचे छे, त्यारे गोपीओ वडे रमाता रासोने सांभळतां पोतानी प्रियतमा तेमना हृदयनी भीतर कंईक एवी रीते आवी पडे छे, जेथी करीने तेमना चरण जाणे के बेडीमां बंधायां होय तेम प्रयाणवेळा चाली शकतां नथी' ।
अवतंसक
जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, एक पंचकल, बे जगण अने एक यगण (~ - ) होय, ते छंदनुं नाम अवतंसक | अवतंसकछंदनुं उदाहरण :
सायरु रयणायरु बोल्लहिं जें बुह-सत्थ,
तं सच्चु जि जाय निसायर - कुच्छुह जत्थ ।
जह एक हूउ सिरिकंठ - सिरे 'अवयंसु',
अवरु सिरि-नाह - उरि भूसणु उल्लसिअंसु ॥ ५
'डाह्या लोको सागरने रत्नाकर कहे छे ते साचुं जे छे, कारण के सागरमांथी चंद्र अने कौस्तुभनो उद्भव थयो छे : तेमांथी एक (चंद्र) शंभुना मस्तकनुं आभूषण बन्यो छे अने चमकतां किरणोवाळो बीजो (कौस्तुभ ) लक्ष्मीपति विष्णुना वक्षःस्थळनुं आभूषण बन्यो छे ।'
कुंद
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, एक ज गण अने बे गुरु होय, ते छंदनुं नाम कुंद |
कुंदछंदनुं उदाहरण :
अहरुट्ठ दलइ जवा-पसूण दंत 'कुंद',
पाणि-चरण- नयण - वयण विअसिआरविंद ।
कुसुमपुरु पच्चक्खु वि सुंदरि तुझ देहु,
तुहुं वरु मज्झु - देसु वहसि विवरीउ एहु ॥ ६
'हे सुंदरी, तारा अधरोष्ठ जासुदना फूलने, दांत कुंद पुष्पने अने तारा हाथ चरण, नयन अने वदन विकसित अरविंदने पराजित करे छे । आ रीते तारो देह प्रत्यक्ष
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“कुसुमपुर” (१. पुष्पसमूह, २. पाटलिपुत्र नगर) छे। तो पण तुं उत्तम " मध्यदेश" ( १. कटिप्रदेश, २. मध्यदेश) धरी रही छे ए तो एक भारे विरोध छे ।'
करभक
जेना प्रत्येक चरणमां बे पंचकल, बे चतुष्कल, एक जगण अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम करभक ।
करभकछंदनुं उदाहरण :
'कर - हय - 'थणहर - गलिअ - लोल-मणोहर - हारय,
गंडस्थल - लुलिअ - मइल - जडिल - कुंतल - भारय । अणवरय-बाह- निवडण-सूण- सोण - विलोअण,
तुहु हुअ नरवइ - तिलय संपय वेरि-वहुअण ॥ ७ 'हे नृपतिओना तिलकरूप, हाथवती स्तनो पर प्रहार करवाथी जेमना डोलता सुंदर हार तूटी पड्या छे, जेमनो मेलो, गूंचवायेलो केशपाश गाल पर आळोटी रह्यो छे, जेमना लोचन सतत अश्रुपातथी सुझेलां अने लाल बनी गयां छे-एवी तारा शत्रुओनी स्त्रीओनी अत्यारे दुर्दशा थई छे ।'
इंद्रगोप
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल गुरु होय, ते छंदनुं नाम इंद्रगोप ।
इंद्रगोपछंदनुं उदाहरण :
हहिं अरुण - कंति धरणीअलि 'इंदगोवया',
पाउस - सिरिहि नाइ पय जावय-बिंदु - लग्गया ।
एह-वि विज्जु-लेह झलकंतिअ बहल - कंतिआ,
अने एक
लक्खिज्जइ जायरूव-निम्मिविअ-व्व कंठिआ ॥ ८
' धरणीतल उपर राता वर्णना इंद्रगोप जाणे के वर्षालक्ष्मीनां अळतानां टपकांवाळां पगलां होय तेवां शोभे छे, अने आ अतिशय प्रकाशे चमकती विद्युत्रेखा वर्षालक्ष्मीनी सोनानी कंठी जेवी लागे छे' ।
कोकिल
जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल, एक लघु अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम कोकिल ।
कोकिलछंदनुं उदाहरण :
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हंसि तुहारउ गइ - विलासु पडिहासइ रित्तओ,
' कोइल' - रमणिअ तुह-वि कंठु कुंठत्तणु पत्तओ । विरहय-कंकेल्लिहिं दोहल संपड़ पूरंतिअ,
जं किर कुवलय - नयण एह हिंडइ गायंतिअ ॥ ९ 'हे हंसी, तारो गतिविलास जाणे के शून्य समो लागे छे, हे कोयल, तारो कंठ जाणे के जड़ बनी गयो लागे छे, कारण के विरहकतरु अने अशोकना दोहदने पूरा करती आ नीलकमळ जेवां नयनवाळी सुंदरी गाती गाती भ्रमण करी रही छे ।' दर्दुर
जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, बे पंचकल एक लघु अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम दर्दुर ।
दर्दुरछंदनुं उदाहरण : मत्तंबुवाह वरसंतिण पइं समहिउ,
आयण्णसु संपय महिअलि जं विरइड ।
हंसहं कल - सद्दिण जं आसि मणोहरु,
'दद्दुर' - रडिआउलु निम्मिउ तं सरवरु ॥ १०
'हे मदमत्त जळधर, तें पुष्कळ वरसीने हवे धरती उपर केवी दशा करी छे ते सांभळ ! जे सरोवर हंसोना कलरवथी रमणीय हतुं, तेने तें देडकाओना ड्राउं ड्राउंथी भरी दीधुं छे' ।
आमोद
-)
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक रगण ( ) एक जगण ), एक मगण (- - ) अने एक गुरु होय ते छंदनुं नाम आमोद | आमोदछंदनुं उदाहरण :
असोअ-मंजरी - फुरंत - 'आमोए 'सुं, कल - रोलंब - वंद्र - कायली - सद्देसुं । अणवरयं वहंत-सारणी-तोएसुं, धन्ना के वि जे रमंति उज्जाणेसुं ॥ ११
'जेमां अशोकमंजरीनो परिमल स्फुरी रह्यो छे, जेमां भ्रमरगणोनो मधुर गीतध्वनि संभळाय छे, जेनी नीकोमां सतत जळ वही रह्युं छे, तेवां उद्योनोमां जे कोईक लोक क्रीडा करता होय ते धन्य छे ।'
विदुम
जेना प्रत्येक चरणमां एक मगण (लघु, एक गुरु, बे पंचकल अने एक सगण (
-), एक रगण (
-), एक
- ) होय, ते छंदनुं नाम विद्रुम ।
V
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विद्रुमछंदनुं उदाहरण : भू-वल्लिं चावयं मणोहवस्स ससि-तुल्लं वयणं,
अंगं चामीअर-प्पहं अहिणव-कमल-दलं नयणं । तीए हीरावलिं व दंत-पंति 'विद्रुमं' अहरं,
पेच्छंताणं पुणो पुणो काण न हवइ मणं विहुरं ॥ १२ 'तेनी कामदेवना धनुष्य जेवी भ्रूलता, चंद्र जेवू वदन, सोनावरणुं अंग, विकसित कमळनी पांखडी जेवां नयन, हीरानी श्रेणी जेवी दंतपंक्ति अने परवाळां जेवो अधरोष्ठ–ए जोनारा कया लोकोतुं मन वारंवार आकुळव्याकुळ न बने ?' मेघ
जेना प्रत्येक चरणमां एक रगण (- - ), अने चार मगण (- - -) होय ते छंदनुं नाम मेघ ।
मेघछंदनुं उदाहरण : 'मेहयं' मच्चंतं गज्जंतं संनद्धं पेच्छंता,
उब्भडेहिं विज्जुज्जोएहिं धोरेहिं मुच्छंता । केअइ-गंधेणोद्दामेसुं मग्गेसुं गच्छंता,
ते कहं जीअंते कंताणं दूरेणं अच्छंता ॥ १३ 'मदमत्त बनी गाजता घेरायला मेघोने जेओ जुए छे, वीजळीना प्रबळ, घोर झबकारथी जेओ मूर्छित बन्या छे, अने केवडानी उग्र सुगंधवाळा रस्ताओ उपर जेओ जई रह्या छे, ए लोको पोतानी प्रियतमाथी दूर रहेतां कई रीते जीवी शके ?' विभ्रम
जेनी प्रत्येक पंक्तिमां एक तगण (-- -), एक रगण ( - - --), एक यगण ( * - -), एक लघु अने एक गुरु होय ते छंदनुं नाम विभ्रम ।
विभ्रमछंदनुं उदाहरण : लायण्ण-'विब्भमं' तरंगंतिहिं, निद्दङ्क-वम्महं जिआवंतिहिं । प्रेमिं प्रियाहिं जे पुलोइज्जइ, ता मत्त-लोइ सग्गु पाविज्जइ ॥ १४
'लावण्यना लीलाविलासनी लहरीओ जे रेलावे छे, दहन थयेला मन्मथने जे पुनर्जीवित करे छे तेवी प्रियतमाओ ज्यारे प्रेमदृष्टिथी जुए छे त्यारे मृत्युलोकमां ज स्वर्गनी प्राप्ति थाय छे ।' नोंध :- मेघ अने विभ्रम छंद बंने वर्णवृत्त होवा छतां तेमनुं निरूपण त्रीजा अध्यायमां नथी कर्यु, कारण के पुरोगामीओए एमनो अपभ्रंश छंदोमा समावेश
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कर्यो छे ।
कुसुम
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक पंचकल, एक जगण ( - ) अने बे गुरु होय ए छंदनुं नाम कुसुम | कुसुमछंदनुं उदाहरण :
निच्छिउ करिवि चंदु दोण्णि खंड, वर - 'कुसुम' घडेविणुं गंध - चंगु,
तहि निम्मिअ मय - नयणाहि गंड । कोमलु तहि विरइड एहु अंगु ॥ १५ 'नक्की आ मृगनयनाना गाल चंद्रना बे भाग करी एना वडे निर्मित कर्या छे, अने पहेलां एक उत्तम सुंगधी पुष्प घडी काढीने तेनो आ देह रच्यो छे' । नोंध :पुरोगामीओए अहीं चंद्रक, खंजकांत, चंचल, चलतनु, वीरप्रिय, कुपित, रुष्ट, कृष्ण, सित, दानद, कुरर, शिव वगेरे बीजा पण रासकप्रकारोनुं निरूपण कर्तुं छे । परंतु तेमांथी केटलाकनो बीजा छंदोमां समावेश थई जतो होवाथी अमे तेमनुं निरूपण नथी कर्यं ।
रासा
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जेना की चरणोमां सात मात्रा अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा होय ते छंदनुं
नाम रासा ।
रासाछंदनुं उदाहरण :
सुणिवि वसंति, पुर- पोढ - पुरंधिहिं 'रासु' ।
सुमरिवि लडह, हुअ तक्खणि पहिउ निरासु ॥ १६
'वसंतऋतुमां नगरनी प्रौढ रमणीओ वडे गवातो रास सांभळीने प्रवासीने पोतानी सुंदरीनुं स्मरण थई आवतां ते हताश बन्यो ।'
मात्रा
जेना पहेला, त्रीजा अने पांचमा चरणमां बे पंचकल, एक चतुष्कल अने एक द्विकल होय, बीजा अने चोथा चरणमां त्रण चतुष्कल होय, तथा त्रीजा अने पांचमा चरणमां जे चतुष्कल होय, तेमनुं स्वरूप जगणनुं ( ) अथवा तो चार लघुनुं होय त्यारे, त्रण चरणथी जेनो पूर्वार्ध बन्यो छे अने बे चरणोथी जेनो उत्तरार्ध बन्यो छे तेवा पंचपदी छंदनुं नाम मात्रा !
मात्राछंदनुं उदाहरण :
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[601 'मत्त'-कोडल-नाय-णंदीहिं.
सिंगार-रसोग्गमिण, नच्चमाण-मायंद-पत्तिहिं । अहिणिज्जइ मयण-जय-, नाडउ-व्व संपइ वसंतिण ॥ १७
'जेमां मदमत्त कोयलना कलरवनी नांदी छे, शृंगाररसनुं प्रकटन छे, आम्रतरुओनां पर्णोनुं नृत्य छे, तेवा वसंतकाळ वडे अत्यारे मदनविजय नाटक भजवाई रह्यं छे ।'
नोंध :- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश वगेरे विभागमां निरूपित छंदोनो घj खरं ते ते भाषामा प्रयोग थाय छे, एम अमे कह्यु होवाथी आ मात्राछंदनो संस्कृत भाषामां पण प्रयोग मळे छे । जेम के (धनपालकृत 'तिलकमंजरी' मां) :
शुष्क-शिखरिणि कल्प-शाखीव, निधिरधन-ग्राम इव, कमल-खंड इव मारवेऽध्वनि । भव-भीष्मारण्य इह, वीक्षितोऽसि मुनि-नाथ कथमपि ॥ १८
__'हे मुनिराज, निर्जळ पर्वत उपर कल्पवृक्षनी जेम, निर्धन गाममां धनभंडारनी जेम, मरूभूमिना मार्ग पर कमळसरोवरनी जेम केमे करीने आ संसाररूपी भयानक अरण्यमां तमारां दर्शन थयां छे ।' मात्रा छंदना प्रकारो मत्तबालिका मात्रा
जो मात्रा छंदना त्रीजा के चोथा चरणमां अथवा तो ए बंने चरणोमां, पहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तो ते मात्रानुं नाम मत्तबालिका ।।
जे मत्तबालिकामां बीजा चरणमा पहेलां चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेनुं उदाहरण :
कुमुअ-कमलहं एक्क उत्पत्ति, मउलेइ तु वि कमल-वणु, कुमुअ-संडु निच्चु-वि विआसइ । सच्छंद विआरिणिअ, चंद-जोण्ह किं 'मत्त-बालिअ' ॥ १९
'कुमुदनी अने कमळनी उत्पत्ति एक सरखी होवा छतां चंद्रनी ज्योत्स्ना कमळोने करमावे छे अने कुमुदोने विकसावे छे । जेणे मदपान कएँ छे तेवी बालिकानी जेम ज्योत्स्ना स्वछंदपणे वर्ते छे ।'
जेना चोथा चरणमा पहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तबालिकाछंद- उदाहरण :
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1 61]
गहिरु गज्जइ धरइ मय-वारि, विहलंधलु नहु कमइ, दुन्निवारु दिसि-दिसि पलोट्टइ ।
ओ ‘मत्त-बालिअ'-सरिसु, विसम-चेट्ट पाउसु पयट्टइ ॥ २०
_ 'वर्षाऋतु घेरी गर्जना करे छे, अमृत जेवं जळ धरावे छे, व्याकुळपणे आकाश पर आक्रमण करे छे, अने न निवारी शकाय एवी रीते ते दिशोदिश आळोटे छ : एम विचित्र चेष्टा करे छे— जेम कोई मदपान करेली बालिका मोटेथी बबडाट करे, व्याकुळ होईने चाली न शके, लाचारीथी आमतेम बधे आळोटे - एम अस्वस्थपणे वर्ते ।'
___ जेना बीजा तेम ज चोथा चरणना पहेला चतुष्कलना स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तबालिकाछंदनुं उदाहरण :
पेच्छ पाउस-ल्च्छि उच्छलइ, मउलंति सव्वाउ दिस, धडहडंति घण-'मत्त वालिअ' । फुटुंति केअइ-कुसुम, पिइ पउत्थि कह जिअइ बालिअ ॥ २१
___ 'जो तो, बधी दिशाओने ढांकी देती वर्षालक्ष्मी प्रसरी रही छे । अत्यंत मत्त बनेला मेघो गडगडे छे । केतकीपुष्पो विकसे छे । जेनो प्रियतम प्रवासे गयेलो होय तेवी बाळा (आ ऋतुमां) कई रीते जीवन धारण करे ?' । मत्तमधुकरी मात्रा
जे मात्राछंदना बीजा के चोथा चरणमां, अथवा तो बने चरणोमां त्रीजा चतुष्कलने स्थाने एक त्रिकल होय-त्यारे ते मात्रानुं नाम मत्तमधुकरी ।
___ जेमां बीजा चरणना त्रीजा चतुष्कल ने स्थाने त्रिकल होय तेवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण :
'मत्त-महुअरि'-तार-झंकार, कलयंठि-कलयलहिं, मयण-धणुह-टंकार-सरिसिहि । कह जीवहुं विरहिणिउ, दूर-देस-पवसंत-रमणिउ ॥ २२
___ 'ज्यारे कामदेवना धनुष्यना टंकार जेवा मदमत्त भ्रमरोना उत्कट गुंजारव थता होय, कोयलोनो कलरव थतो होय, त्यारे जेमना प्रियतम दूर देशमां प्रवासमां होय, तेवी विरहिणीओ कई रीते जीवन धारण करी शके ?'
जेमां चोथा चरणमां त्रीजा चतुष्कलना स्थाने विकल होय, तेवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण :
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[62 ] फुडिअ-केसर-तिलय-मायंदि, पप्फुलिअ-कमल-वणि, सुरहि-मासि संपइ पयट्टइ। मत्त-महअरि-रविण, मयण-चरिउ वण-लच्छि गायइ ॥ २३
'जेमां बोरसल्ली, तिलक अने आम्रतरु खील्यां छे, कमळवन विकस्युं छे तेवो वसंतमास अत्यारे प्रवर्ते छे, जेमां वनलक्ष्मी मदमत्त भ्रमरीओना गुंजारव मिषे कामदेवना चरित्रनुं गान करी रही छे' ।
जेमां बीजा अने चोथा ए बंने चरणोमां त्रीजा चतुष्कलने स्थाने त्रिकल होय एवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण :
गुण-विवज्जिइ पुरिसि रच्चेइ, गुणवंति परम्मुहि, तह य पंकउप्पन्नि निवसइ। 'मत्त-महअरि' कमलि, अहह लच्छि अविआर विलसइ ॥२४
'निर्गुण पुरुषमा राचे छे, गुणवान पुरुषथी मोढुं फेरवी ले छे अने कादवमां उत्पन्न थता, मदमत्त मधुकरवाळा कमळमां निवास करे छे : अरेरे ! अविचारी लक्ष्मीनो आ केवो विलास छे !'. मत्तविलासिनी मात्रा
__ जे मात्राछंदमां त्रीजा अथवा पांचमा चरणमां, अथवा तो ते बंने चरणोमां रहेला बे पंचकलने स्थाने जो बे चतुष्कल होय, तो तेनुं नाम मत्तविलासिनी ।।
जेमां त्रीजा चरणमां बे पंचकलने स्थाने बे चतुष्कल होय, तेवा मत्तविलासिनी छंद- उदाहरण :
समय-मयगल-गमण-रमणिज्जु, मय-भिंभल-नयण-जुउ, आरत्त-कवोल-सोहिरु। 'मत्त-विलासिणि'-निअरु , हरइ चित्तु लल्लुर-पयंपिरु, ॥ २५
'मदमत्त हाथीनी जेवी गतिने लीधे रमणीय, मदपानथी विह्वळ बनेल नयनयुगलवाळु, रताशवाळा गालथी शोभतुं, तूटक तूटक वचनो बोलतुं एवं मदमत्त विलासिनीओ, वृंद चित्तने हरी ले छे ।'
जेमां पांचमा चरणमा रहेला बे पंचकलोने स्थाने बे चतुष्कल होय एवा मत्तविलासिनीछंदनुं उदाहरण :
मत्त-जलहर गहिरु गज्जंति, केक्कारहिं मत्त-सिहि, मत्तु मयणु पहरेइ दुज्ज। विणु 'मत्त-विलासिणिहिं', भणि संपइ काइं किज्जउ ॥ २६
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। 63 ] 'मत्त मेघो घेरी गर्जना करे छे, मत्त मोरो केकारव करे छे, मत्त अने दुर्जय मदन प्रहार करे छे । आवा समयमां, कहे, मत्तविलासिनी विना शुं करवु ?'
जेना त्रीजा अने पांचमा चरणमा रहेला बे पंचकलने स्थाने बे चतुष्कल होय, एवा मत्तविलासिनीछंदनुं उदाहरण :
ते ज्जि पंडिअ ते ज्जि गुणवंत, ते तिहुअण-सिर-उवरि, ताहं चिअ जम्मु जाणहु । जे 'मत्त-विलासिणिहिं', न वि खोहिअ सुद्ध-झाणहुं ॥ २७
__ 'ते ज साचा पंडित, ते ज गुणवान, ते ज त्रिभुवनना मस्तक पर मुकुटरूप तेमनो ज जन्म सफळ जाणो, जेओनुं शुद्ध ध्यान मदमत्त विलासिनीओ क्षुब्ध करी शकती नथी ।' मत्तकरिणी मात्रा -
___ जो मात्राछंदना त्रीजा अथवा पांचमा अथवा तो बंने चरणमा रहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तो तेनं नाम मत्तकरिणी ।।
जेना त्रीजा चरणमा रहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तकरिणीछंद- उदाहरण :
जासु अंगहि घणु नसाजाल, जसु पिंगलु नयण-जुउ, जासु दंत पविरल-विअडुन्नय । न धरिज्जइ दुह-करिणी, 'मत्त-करिणि' जिवँ घरणि दुन्नय ॥ २८
__ 'जेना शरीर पर घणी नसोनी जाळ देखाती होय, जेनी बंने आंखो पीळाश पडती होय, जेना दांत छूटा छूटा, विकराळ अने आडाअवळा होय एवी मत्त हाथणी जेवी, दुर्मति, दुःखकारी स्त्रीनो गृहिणी तरीके स्वीकार न करवो ।'
जेना पांचमा चरणमा रहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तकरिणीछंदनुं उदाहरण :
दिव्व कहिं ते 'मत्तकरि णीअ', कहिं घल्लिअ भिच्च-भडा, कहिं निहित्त हयवर वहिल्लय । ढंढोल्लिर गिरि-गहणि, इअ तुज्झ रिउ रोअहिं गहिल्लय ॥ २९
'हे दैव, ए अमारा मदमस्त हाथीओ तुं क्यां लई गयो ? अमारा सेवको अने सैनिकोने तें क्यां नाख्या ? अमारा घोडा अने रथने तें क्यां मूकी दीधा ? एम बोलता अने पहाडी जंगलोमां घेला बनीने भटकता तारा शत्रुओ रडी रह्या छे ।'
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| 641 जेना त्रीजा अने पांचमा चरणमा रहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय एवा मत्तकरिणीछंदनुं उदाहरण :
जेत्थु गज्जहिं मत्त-करि-णिवह, रंखोलहिं जेत्थु हय, जेत्थु भिउडि-भीसण भमंति भड । तहिं तेहइ रणि वरइ, विजय-लच्छि पइं पर-समरोब्भड ॥ ३०
'जेमां मदमत्त हाथीओनो समुदाय गर्जना करे छे, घोडाओ घूमे छे, भीषण भ्रूकुटी ताणीने सुभटो भ्रमण करे छे, तेवा युद्धमां, हे शत्रुसंग्राममां वीर, मात्र तने ज विजयलक्ष्मी वरे छे ।' बहुरूपा मात्रा
जे छंदमां उपर्युक्त लक्षणवाळा मात्राप्रकारोनुं मिश्रण होय तेनुं नाम बहुरूपा। बहुरूपा मात्रानुं उदाहरण :
गाविँ पट्टणि हट्टि चउहट्टि, राउलि देउलि पुरि, जं दीसइ लडह-अंगिअ । विरहिंदजालिएण तं, सा एक्क वि कय 'बह-रूव'-कलिअ ॥३१
'ए रमणीय अंगोवाळी गाममां, पट्टनमां, बजारमां, चौटामां, राजकुळमां देवळमां, नगरमा एम (जाणे) सर्वत्र देखाय छे । एथी लागे छे के विरहरूपी जादुगरे, ते एक ज होवा छतां एने बहरूपिणी बनावी दीधी छे ।' .
नोंध :- आ उदाहरणमा पहेलुं चरण मात्रानुं छे, बीजुं चरण मत्तमधुकरीनुं छे, त्रीजुं चरण मत्तविलासिनीनुं छे, चोथु चरण मात्रानुं छे अने पांचमुं चरण मत्तकरिणीनुं छे । रड्डा के वस्तु
जो उपर्युक्त मात्राछंदना प्रकारोना त्रीजा अने पांचमा चरण प्रासबद्ध होय अने तेमनी पछी दोहक, अपदोहक के अवदोहक छंद होय तो ते रीते बनता छंदनाम रड्डा के वस्तु ।
रड्डा(वस्तु)छंदनुं उदाहरण : लुढिदु चंदण-वल्लि-पलंकि, संमिलिदु लवंग-वणि, खलिदु वत्थु-रमणीय-कयलिहिं । उच्छलिदु फणि-लयहि, घुलिदु सरल-कक्कोल-लवलिहिं ॥ चुंबिदु माहवि-वल्लरिहिं, पुलइद-कामि-सरीरु। भमर-सरिच्छउ संचरइ, 'रड्डउ' मलय-समीर ॥ ३२
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'जे चंदनलताना पलंग पर आळोटी रह्यो छे, लवंगलताओने भेटी रह्यो छे, रमणीय केळोनी वच्चे लथडी रह्यो छे, नागरवेलोमां ऊछळी रह्यो छे, सरळ कंकोल अने लवली लताओमां धूमी रह्यो छे, जेने माधवीलताओ चूमी रही छे, जे कामीओना शरीरने पुलकित करी रह्यो छे ते, भ्रमर समो, प्रबळ मलयानिल वाई रह्यो छे ।'
मात्रा- प्रकरण समाप्त
वस्तुक
जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कल, जेने अंते एक लघु होय तेवा बे त्रिकल, बेचतुष्कल अने एक त्रिकल होय, एवां चार चरणोथी जे छंद बने तेनुं नाम वस्तुक । वस्तुक छंदनुं उदाहरण :
सुरवहु - महुअरि-पंति - पीअ-गुण- परिमल - जालहं,
नह-मणि-किरण-कलाव-चारु- केसर-निअरालहं ।
पत्थुअ - ' वत्थुअ' - गीति - चारु- मुणि- निवह- मरालहं,
तिहुअण- सिरि-कुलहरहं नमहु जिण-पहु-पय- कमलहं ॥३३ 'जेना गुणोरूपी प्रचुर परिमलनुं अप्सराओरूपी मधुकरीओए पान कर्तुं छे, जेमां मणि जेवा नखोनी किरणावलिरूपी सुंदर केसरो रहेलां छे, मुनिओरूपी हंसोए वस्तुकछंद वडे जेमनुं गीत गावानुं आरंभ्युं छे, जे त्रण भुवननी सुंदरतानुं कुलगृह छे, तेवा जिनप्रभुना चरणकमळने प्रणाम करो' ।
वस्तुवदनक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल होय, त्रण चतुष्कल होय अने एक षट्कल होय, ए छंदनुं नाम वस्तुवदनक । आमां बेकी स्थाने रहेल चतुष्कलनुं रूप जगणनुं न होय अने एकी स्थाने रहेल चतुष्कल जगण होय अथवा तो चार लघुनो बनेलो होय |
वस्तुवदनक छंदनुं उदाहरण :
मायाविअहं विरुद्ध-वाय-वस- वंचिअ-लोअहं,
पर- तित्थिअहं असार - सत्थ- संपाइअ - मोहहं ।
को पत्तिज्जइ सम्म - दिट्ठि-जह - ' वत्थुअ - वयणहं',
जिणहं मग्गि निच्चल-निहित्त मणु करुणा भवणहं ॥३४
'जेओनी दृष्टि सम्यक् छे, जेमना वचन यथार्थ छे, जेओ करुणाना भवन जेवा छे - एवा जिनदेवोना मार्गमां जेणे पोतानुं मन स्थिर राख्युं छे, एवो कयो माणस
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[661
एवा परधर्मीओनो विश्वास करे जे मायावी छे, असंगत वचनोथी जेओ लोकोने छेतरे छे अने जेओ नि:सार शास्त्रो द्वारा मोह फेलावे छे ?'
नोंध :- केटलाकने मते आ छंदनुं नाम वस्तुक छे ! केटलाक पिंगळकारो आ वस्तुकछंदना विविध प्रकारोनुं निरूपण करे छे. सोळ लघु वर्णोथी शरू करीने तेमां बब्बे लघु वधारतां जईने वस्तुकना जे प्रकारो बने तेमनां नाम नीचे प्रमाणे छ :
वंसो वित्तो बालो वाहो वामो बलाहओ विंदो । विद्धो विसो विसालो विसारओ वासरो वेसो ॥ ३५ तुंगो रंगो भिंगो भिंगारो भीसणो भवो भालो । भद्दो भग्गो भट्टो भीरू तत्तो भडो भसलो ॥३६ अलओ वलओ मलओ मंजीरो मयमओ मओ माणी । महणो मसिणो मउलो महो मुहो मइहरो मुहलो ॥३७ एए नामनिबद्धा चउवीस-कला हंवति वत्थुवया । सोलह-लहुआउ लहूहिं वड्डमाणेहिं दो-दोहिं ॥३८
सोळ लघुवर्णथी शरू करीने बे बे लघु वधारतां जतां, चोवीस मात्रावाळा वस्तुवदनकना जे विविध प्रकारो बने छे एमनां नाम नीचे प्रमाणे छ :
__ 'वंश, वित्त(वृत्त), व्याल, व्याध, वाम, बलाहक, वृंद, विद्ध(वृद्ध), विष(वृष), विशाल, विशारद, वासर, वेश, तुंग, रंग, भुंग, भंगार, भीषण, भव, भाल, भद्र, भग्न, भट्ट, भीरु, तप्त, भट, भ्रमर, अलक, वलय, मलय, मंजीर, मृगमद, मृग, मानी, मथन, मसृण, मुकुल, उत्सव, मुख, प्रधान, मुखर ।
परंतु आ प्रकारोनो वस्तुवदनकना प्रस्तारमा समावेश थई जतो होवाथी अमे तेमनुं अलग निरूपण नथी कर्यु. वळी तेना प्रस्तारमा आठ करोडथी पण वधु प्रकारो बने छे तो तेमांथी केटला प्रकारोने अलगअलग वर्णववा ? रासावलय
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, जगण न होय तेवो एक चतुष्कल, एक षट्कल अने एक पंचकल होय, ते छंदनुं नाम रासावलय ।
रासावलय छंदनुं उदाहरण : माणु म मेल्हि गहिल्लिए निहुइहोहि खणु,
उअयउ चंदु पयट्टउ 'रासावलय'-खणु । दिक्खिसु एहिं वि नयणिहिं पई हलि मयण-हय,
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वल्लह - पयहं पडंति भांति अ वयण-सय ॥ ३६
'हे घेली, तुंमाननो त्याग न कर, एक क्षण शांत रहे, चंद्रने ऊगवा दे । रासमंडळनो उत्सव शरू थवा दे । त्यारे हे सखी, हुं मारी आज आंखो वडे तने कामातुर थईने सेंकडो वचनो बोलता तारा प्रियतमना पगे पडती हुं जोईश ।'
नोंध :- केटलाकने मते आ छंदनुं नाम चतुष्पदी अथवा वस्तुक एवं छे । वस्तुवदनक अने रासावलयनुं मिश्रण
जेमां अर्धो भाग (ओटले के बे पंक्ति) वस्तुवदनकछंदनो होय अने अर्धो भाग (ओटले के बे पंक्ति) रासवलयछंदनो होय त्यारे जे मिश्र छंद बने, तेमां ए बे छंदमांथी गमे तेनो पूर्वार्ध होय अथवा उत्तरार्ध होय ।
जेमां वस्तुवदनकनो पूर्वार्ध छे अने रासावलयनो उत्तरार्ध छे तेवा मिश्र छंदनुं
उदाहरण :
अविहड-अवरुप्पर-परूढ-गुण- गंठि-निबद्धउ,
अइआरिण हलि गलइ पेम्मु सरलिम -सय-लद्धउ ।
माण- मडप्फरु तुह न जुत्तु उत्तिम - रमणि,
तिभणि वारउं वारवार वारण- गमणि ॥ ३७
'हे सखी, जे दृढ अने न छूटी शके एवी गुणोनी गांठथी परस्पर साथे बंधायेलो छे, अने जे सेंकडो सरळताथी प्राप्त थयेल छे तेवो प्रेम अतिचार करवाथी गळी जतो होय छे । तो हे उत्तम सुंदरी, मान अने दर्प करवां तने घटतां नथी । ए कारणे ज हे गजगामिनी, हुं तने वारंवर वारुं छं ।'
रासावलय अने वस्तुवदनकना मिश्रणनुं उदाहरण : सवण- निहिअ - हीरय- हसंत- कुंडल-जुअल,
थूलामल-मुत्तावलि - मंडिअ - थण-कमल । सेअंसुअ- पंगुरण- बहल - सिरिहंड - रसुज्जल,
बहु-पहुल - विअइल - फुल्ल-फुल्लाविअ - कुंतल ॥ ३८
‘तेणे कानमां हीरानां झळहळतां कुंडळनी जोड पहेरेली छे, तेना स्तनकमळ मोटां, निर्मल मोतीओनी माळाथी भूषित छे, तेणे चंदनना रसथी भीनी अने मघमघ रेशमी साडी पहेरी छे, तेना वांकडिया केश अतिशय श्वेत, विचकिल पुष्पोथी शणगारेल छे ।'
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वदनक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकल होय ते छंदनु नाम वदनक ।
वदनक छंदनुं उदाहरण : अज्ज-वि नयण न गेण्हइ तरलिम,
अज्ज-वि 'वयणु' न मेल्लइ भोलिम ।, अज्ज-वि थणहरु भरु न पडिच्छइ,
तु-वि मुद्धहे दंसणि जगु मुज्झइ ॥३९ ___ 'हजी तो नयनोमां चंचळता आवी नथी, हजी तो वदन उपरथी भोळपण हट्युं नथी, हजी तो स्तन भरायां नथी-तेम छतां आ मुग्धाने जोईने लोको मुग्ध बनी जाय छे ।'
नोंध : केटलाक पिंगलकारो समचतुष्पदीना विभागमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकलथी बनता संकुलक छंद- निरूपण करे छे । परंतु तेनो आमां ज समावेश थई जाय छे । उपवदनक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय ते छंदनुं नाम उपवदनक ।
उपवदनकछंद- उदाहरण : आमूलु-वि बहु-पंकिण संवलिअ,
सव्व-वार-पडिबोह-सोह-रहिअ । कंटय-सय-संसेविअ जल-सयण,
जिण-'उववयण' न सोहहिं कमल-वण ॥४० __ 'जेने मूळमांथी ज बधे पुष्कळ कादव वळगेलो छे, जेमां बधो समय विकसती शोभा होती नथी. जेमां सेंकडो कंटको होय छे अने जे "जलशयन" (जळ पर स्थित) होय छे तेवां कमळो जिनदेवना वदननी पासे सहेज पण शोभतां नथी । (केम के जिनदेवनुं वदन निर्मळ, लोकोने सर्वदा प्रतिबोध करनारूं, कंटकरहित अने "अजलशयन" - एटले के जेमां जडताने सहेज पण आश्रयस्थान नथी एवं छ) । अडिला
जो वदनक अने उपवदनक ए छंदोनां चारेय चरणो अथवा तो बब्बे चरणो यमकथी जोडायेलां होय तो ते छंदनुं नाम अडिला ।
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। 69] जेमां चारेय चरणोमां अंते यमक छे तेवा अडिलाछंदनुं उदाहरण : नव-घण-भम-भमंत-सारंगह, कुंज-कुसुम-गुंजिर-सारंगहं । सुह-विलसंत-'अडिल'-सारंगहं, लीला-वणहं तरणि सारं गह ॥ ४१
__'हे तरुणी, जेमां नवा मेघोना भ्रमे मोरो (अथवा चातको) भ्रमण करी रह्या छे, कुंजोनां पुष्पोमां भमरा गुंजारव करी रह्या छे, जेमां हरण सुखेथी विलसी रह्या छ तेवां क्रीडा माटेनां उद्यानोनो उत्तम आनंद तुं माण ।' मडिला
केटलाकने मते आ रीते चारेय चरणो जो यमकबद्ध होय तो ते छंदन नाम मडिला छे ।
जेमां बब्बे चरणो यमकबद्ध होय छे तेवा अडिलाछंद- उदाहरण : जहिं छिज्जहिं नर-सीस भुअग्गल, तहुं नरयहुं जा दार-भुअग्गल । सा मई सुअणहं कह पारद्धिअ, जं निसुणंत बुद्ध पारद्धिअ ॥४१
__ 'जेमां माणसना मस्तक अने आगळा जेवी प्रचंड भुजाओ छेदी नाखवामां आवे छे तेवां नरकोना प्रवेशद्वारने भोगळ भीडी देती एवी धर्मकथा में श्रोताओ समक्ष कहेवानो आरंभ कर्यो छे, जे सांभळीने पारधीओ पण बोध पाम्या ।' उत्थक्क/अवस्थितक
जेना प्रत्येक चरणमा त्रण पंचकल अने एक द्विकल होय अने यमकनी योजना होय ते छंदनुं नाम उत्थक्क । (केटलाकने मते 'अवस्थितक' एवं नाम छे ।)
उत्थक्कछंदनुं उदाहरण : निद्दड्ड दड्ड-विरहानलेण, संताव-तुलिअ-वडवाणलेण । मच्छाविअ नव-घण-मंडलेण, 'ओ थक्क' पहिअ कय-घंघलेण ॥४२
'अरेरे, बळ्या विरहाग्निथी अतिशय दाझेला, वडवानल जेवा दाहथी मूर्छित बनेला, नवीन मेघमाळाथी भारे संकटमां पडेला पथिको (मार्गमां ज ) अटकी पड्या
धवल
धवल नामना छंदना त्रण प्रकार छ : ते आठ चरणनो होय, छ चरणनो अथवा चार चरणनो होय । कहेवायं छे के :
धवल-निहेण सुपुरिसो वणिज्जइ जेण तेण सो धवलो । धवलो-वि होइ ति-विहो अट्ठपओ छप्पओ चउप्पाओ ॥ ४४ 'कारण के तेमां कोई सत्पुरुष- धवल वृषभ तरीके वर्णन करवामां आवे
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छे तेथी ते छंद धवल कहेवाय छे । धवलछंदना त्रण प्रकार होय छे : आठ चरणनो, छ चरणनो, अने चार चरणनो ।'
नोंध :- धवलोनां उदाहरण सातवाहन कविनी काव्यरचनाओमां जोवा मळे छे. अहीं तो मात्र दिशा बताववा पूरतां उदाहरण आपवामां आवशे । श्रीधवल
जो आठ चरणना बनेला धवलमा एकी चरणोमां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय अने बेकी चरणोमां त्रण चतुष्कल होय, तो तेनुं नाम श्रीधवल । केटलाकने मते तेनु नाम वसंतलेखा छे ।
श्रीधवलछंद- उदाहरण : खीर-समुद्दिण लवण-जलहि, कुवलय कुमुइहि ।
कालिंदी सुरसिंधु-जलिण, महुमहणु हरिण ॥ कइलासिण सरिसउ हूं किरि, सो अंजण-गिरि ।
इह तुह जस-'सिरि-धवलि'उ पहु, किं पंडुरु नहु ॥ ४५ 'लवणसमुद्र जाणे के क्षीरसमुद्र बनी गयो, नीलकमळ श्वेतकमळ बनी गयां, यमुनानुं जळ गंगाजळ बनी गयुं, विष्णु शिव जेवा बनी गया, अंजनपर्वत कैलास जेवो बनी गयो-हे स्वामी, तारी कीर्तिलक्ष्मीथी धोळाईने कई वस्तु श्वेत नथी बनी गई ?' यशोधवल
__जो आठ चरणना धवलमां पहेला अने त्रीजा चरणमां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, बीजा अने चोथा चरणमांत्रण चतुष्कल होय, अने बाकीनां चार चरणोमांथी पांचमा अने सातमा चरणोमां बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, तथा छट्ठा अने आठमा चरणमां बे चतुष्कल अने एक द्विकल होय (अथवा तो बीजाने मते त्रण चतुष्कल होय), तो तेनुं नाम यशोधवल । ___ यशोधवलनुं उदाहरण : जे तुह पिच्छहिं वयण-कमलु, ससहर-मंडल-निम्मलु । जे-वि हु पालहिं भिच्च-कम्मु, थुणहिं जि निरुवमु विक्कमु ॥ जे-वि हु सासणु धरहिं, पाय-कमलु जे पणमहि । ताहं न लच्छी विमुह, पहु 'जस-धवलिअ'-दिसि-मुह ॥ ४६ 'जेणे पोतानी कीर्तिथी दिशाओनां मुख उज्ज्वळ कर्यां छे तेवा हे प्रभु, जे
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लोको चंद्रमंडळ जेवा निर्मळ तारा वदनकमळनां दर्शन करे छे, जे लोको तारा प्रत्ये सेवकवृत्ति सेवे छे, जे लोको तारा अतुल्य पराक्रमनी प्रशंसा करे छे, जे लोको तारुं शासन स्वीकारे छे, जे लोको तारा चरणकमळने प्रणाम करे छे, तेमनाथी लक्ष्मी कदी पण विमुख बनती नथी ।' कीर्तिधवल
छ चरणना धवलमां जो पहेला अने चोथा चरणमां बे षट्कल अने एक द्विकल हो, बीजा अने पांचमा चरणमां बे चतुष्कल होय अने त्रीजा तथा छट्ठा चरणमां बे पंचकल अने एक चतुष्कल (अथवा तो एक पंचकल होय), तो तेनुं नाम कीर्तिधवल ।
कीर्तिधवल, उदाहरण : उक्करडा खवलउ गज्जउ, चिरु जुज्झण-मणु,
उन्नामउ सिरु कसरुम लज्जउ । थक्कु महब्भरु तुहुँ कड्डहि, अन्नु न तिहुअणि,
'कित्ति धवल' विसाउ तुह वट्टइ ॥ ४७ 'गळियो बळद भलेने ऊकरडा ऊखेळे, लडवा माटे भांभर्या करे ने माथु ऊंच करे, हे धवलवृषभ तुं लज्जित न था । वच्चे अटकी पडेलो भारे बोजो आ त्रण लोकमां तारा सिवाय बीजो कोई खेंची काढी शके तेम नथी । तुं शुं काम खिन्न थाय छे ?' गुणधवल
___ चार चरणना बनेला जे धवलना एकी चरणोमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय, तथा बेकी चरणोमां एक षट्कल, बे चतुष्कल, एक द्विकल अथवा तो त्रिकल होय, ते धवलनुं नाम गुणधवल ।
गुणधवल, उदाहरण : कद्दम-भग्गा मग्गुलया, वह-बहुला दुत्तर-जलुल्लया । तिवँ भरु वहसु 'गुण-धवलया', जिवँ केवइ न हसंति पिसुणया ॥ ४८
___ 'हे गुणधवल (गुणवान धवल वृषभ), रस्ताओ कादववाळा होवाथी दुर्गम बनेला छे, तेमां दुस्तर जळ भरेला घणा वहेळा छे, तेथी तुं बोज एवी रीते वहेजे जेथी दुर्जनो केमेय तारी हांसी न उडावे ।' भ्रमरधवल
जेमा एकी चरणोमां एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक विकल होय
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अने बेकी चरणोमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय तेनुं नाम भ्रमरधवल ।
भ्रमरधवलनुं उदाहरण : कित्ति तुहारी वण्णविणु, कइ अन्नु न वण्णहिं । मालइ माणिवि किं 'भमर', धत्तुरइ लग्गहिं ।। ४९
'कविओ तारी कीर्तिनुं वर्णन करीने पछी बीजा कोईनी कीर्तिनुं वर्णन करता नथी । शुं भमराओ मालतीने भोगव्या पछी धंतूरामां आसक्त बने खरा ?' अमरधवल
जेना एकी चरणोमां एक षट्कल, एक चतुष्कल, एक विकल होय अने बेकी चरणोमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय तेनुं नाम अमरधवल ।
अमरधवलनुं उदाहरण : इंदहु तुहं गुणि अहिअउ, सग्गहु पहु मइं चाहिअउ । 'अमर'-विलासिणिअ-गीअए, तुह पर कित्ति निसामिअए ॥ ५० ॥
'इंद्र करतां पण तारा गुणो अधिक छे, में तने स्वर्गना अधिपति तरीके जोयो छे, अप्सराओना गीतमां तारी महान कीति (कीतिनुं गान) संभळाय छे ।'
मंगल
जेना पहेला अने बीजा चरणमां एक षट्कल अने त्रण चतुष्कल होय तथा ते पछी त्रिकल के द्विकल होय, अने त्रीजा अने चोथा चरणमां पांच चतुष्कल अने एक त्रिकल के द्विकल होय, ते छंदनुं नाम मंगलछंद, केम के ते मंगळ व्यक्त करवा माटे वपराय छे।
मंगलछंदनुं उदाहरण : तुह असि-लट्ठिहिं नरवइ 'मंगल'-कारिणि,
वित्थारिअ-निम्मलयर-सत्थिअ-धोरणि । संगर-रंगि विवाह-महूसवि जय-लच्छिहिं,
दारिअ-मयगल-कुंभत्थल-मोत्तिअ-गुच्छिहिं ॥ ५१ ___'हे नृपति, तारा दीर्घ खड्ने समरांगणरूपी मंडपमा, विजयलक्ष्मीना विवाहना महोत्सवमां, हाथीओनां कुंभस्थळ चीरीने काढेलां मोतीओना गुच्छोथी मंगळकारी उज्ज्वळ साथियाओनी श्रेणी रची छे ।' ।
नोंध :- धवल अने मंगल प्रकारनां भाषागीतो, हमणां रासावलय वगेरे जे छंदोनुं निरूपण कर्यु तेमां, ते पहेलां हेला वगेरे जे छंदोमुं निरूपण कर्यु तेमां, अथवा हवे पछी जेमनुं निरूपण करवामां आवशे ते दोहक वगेरे छंदोमां, जो रचायां होय,
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। 73] तो ते ते छंदना नामनी संज्ञा तेमने अपाय छे : जेम के, उत्साहधवल, वदनधवल, हेलाधवल वगेरे । ते ज प्रमाणे उत्साहमंगल वगेरे । कहेवायुं छे के।
उत्साह-हेला-वदनाडिलाद्यैर्, यद् गीयते मङ्गल-वाचि किञ्चित् । तद्रूपकाणामभिधान-पूर्वं, छन्दो-विदो मङ्गलमामनन्ति ॥ ५२ तैरेव धवल-व्याजात् पुरुषः स्तूयते यदा तद्वदेव तदनेको धवलोऽप्यभिधीयते ॥ ५३
___ 'मंगल अर्थ- वाचक जे गीत उत्साह, हेला, वदन, अडिला वगेरे छंदमां होय, तेमनुं नामकरण ते ते छंदना नामनी पूर्वे 'मंगल' मूकीने करवानुं छंदःशास्त्रीओए विधान कर्यु छे ।'
ज्यारे धवलवृषभने नामे ए छंदो वडे कोई विशिष्ट पुरुषनी प्रशंसा करवामां आवे, त्यारे ते ज प्रमाणे ए अनेक धवलोने नाम आपवामां आवे छे । फुल्लडक
उत्साह वगेरे छंदो वडे ज्यारे देवता- गीत रचवामां आवे छे, त्यारे एने फुलडक कहे छे। झंबटक
ज्यारे कोईने पण उद्देशीने, जेना प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय तेवा मापना छंदमां गीत रचवामां आवे त्यारे तेने झंबटक कहे छे ।
झंबटकनुं उदाहरण : पह तुह वेरि अरण्णि गय, निच्च-वि निवसहिं जिवँ ससय । घण-कंटय-दूसंचरणि, तहिं झंबडइ करीर-वणि ॥ ५४
___ 'हे स्वामी, अरण्यमां नासी गयेला तारा शत्रुओ, ससलानी जेम, जेमां भरचक कांटाने लीधे हालचाल करवी मुश्केल छे तेवी केरडांनी झाडीमां निवास करी रह्या छे ।'
नध :- हकीकते आ झंबटक छंद, आगळ उपर जेनुं निरूपण करवामां आवशे ते गन्धोदकधारा छंद ज छे । पण ज्यारे तेनो गीत रचवामां उपयोग थाय छे, त्यारे तेने 'झम्बटक' एवं नाम आपवामां आवे छे ।
हेमचंद्राचार्य-रचित वृत्तियुक्त छंदोनुशासननो
__ "उत्साहादि-वर्णन' नामनो। पांचमो अध्याय समाप्त थयो ।
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छछो अध्याय ध्रुवा-ध्रुवक-घत्ता-चतुष्पदी-षट्पदी-वर्णन
कडवकना समूहरूप जे संधि, तेना आदिमां; अने पद्धडिका वगेरेनी चार कडी रूप जे कडवक, तेने अंते, जे ध्रुवपणे होय -निश्चित रूपे होय- ते माटे ते 'ध्रुवा' कहेवाय छे. 'ध्रुवक' अने 'घत्ता' तेनां नामान्तर छ । (१) ध्रुवाना प्रकार
ध्रुवा त्रण प्रकारनी छे : षट्पदी, चतुष्पदी अने द्विपदी । (२) छड्डुणिका
___ 'प्रारब्ध' एटले प्रस्तुत विषय अनुसार आवता अर्थने कडवकने अंते जदी भंगीथी कहे त्यारे षट्पदी अने चतुष्पदी 'छड्डणिका' पण कहेवाय । तेमनुं नाम मात्र 'ध्रुवा' वगेरे ज नहीं, 'छड्डणिका' पण खरं एम कहेवानुं छे । (३) गणनियम
षट्पदी अने चतुष्पदी ध्रुवानां सात सात मात्राथी लईने सत्तर मात्रा सुधीना चरण होय छे, एटले तेमां गणनियम बतावाय छे :
सात मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल अने त्रिकल, अथवा तो पंचकल अने द्विकल एवा बे गण होय छे । (४)
आठ मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां पंचकल अने त्रिकल, षट्कल अने द्विकल, अथवा तो बे चतुष्कल एवा बे गण होय छे । (५)
नव मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां षट्कल अने त्रिकल, त्रण विकल, अथवा तो पंचकल अने चतुष्कल एवा बे गण होय छे । (६)
दस मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां बे चतुष्कल अने एक द्विकल, षट्कल अने चतुष्कल, अथवा तो बे पंचकल एवा गण होय छे । (७)
____ अगियार मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल, पंचकल अने द्विकल, पंचकल, चतुष्कल अने द्विकल अथवा तो षट्कल, द्विकल अने त्रिकल एवा गण होय छे । (८)
बार मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल, पंचकल अने त्रिकल, षट्कल, चतुष्कल अने द्विकल, बे पंचकल अने एक द्विकल अथवा तो त्रण चतुष्कल एवा गण होय छे । (९)
तेर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां बे पंचकल अने एक त्रिकल, बे चतुष्कल
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[75]
अने एक पंचकल अथवा तो षट्कल, चतुष्कल अने त्रिकल एवा गण होय छ । (१०)
चौद मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल, अथवा तो षट्कल अने बे चतुष्कल एवा गण होय छे । (११)
पंदर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां त्रण चतुष्कल अने एक त्रिकल, अथवा तो त्रण पंचकल एवा गण होय छे । (१२)
सोळ मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकल अथवा तो चार चतुष्कल एवा गण होय छे । (१३)
सत्तर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल, अथवा तो त्रण चतुष्कलने अंते एक पंचकल एवा गण होय छे । प्रासनियम
आ प्रमाणे सात मात्राथी लईने सत्तर मात्रा सुधीनां (१) असमान, अने (२) समान अथवा तो (३) सर्वसमान-एवां चरणो जेना अर्धमां होय छे, तेवी विदग्धोनी गोष्ठीमा उत्तम षट्पदी ध्रुवा होय छे । षट्पदी ध्रुवामां पहेला चरणनो बीजा चरण साथे, त्रीजा चरणनो छठ्ठा चरण साथे अने चोथा चरणनो पांचमा चरण साथे प्रास होवो जोईए ।
चतुष्पदी ध्रुवामां पहेला चरणनो बीजा चरण साथे अने त्रीजा चरणनो चोथा चरण साथे प्रास होवो जोईए ।
अंतरसमा ध्रुवामां तथा संकीर्णा ध्रुवामां घणुंखरूं बीजा चरण साथे चोथा चरणनो प्रास होय छे । षट्पदी ध्रुवा : षट्पद-जाति
___ हवे षट्पदी ध्रुवाना प्रकारो वर्णवाय छ । जेनां त्रीजा अने छठ्ठा चरणमां दस मात्राथी शरू करीने एक एक मात्रा वधारतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय छे, तथा बाकीनां चार चरणोमां सात सात मात्रा होय छे, तेवा प्रकारनी षटपदी ध्रुवार्नु नाम षट्पद-जाति छे । दस मात्राथी शरू करीने सत्तर मात्रा सुधीनां चरणो अनुसार तेना आठ पेटाप्रकार होय छे ।
__ पहेला पेटाप्रकारनुं उदाहरण : इअ नारिहिं, रससारिहिं, मुह-परिमल-लुद्धउ । दुरुदुल्लइ, न हु मेलइ, 'छप्पय'-गणु मुद्धउ ॥ १
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[761 'रसिक रमणीओना मुखनी सुगंधथी लोभायेलुं भोळं आ भ्रमरवृंद एमनी आसपास भम्या करे छे, पासेथी खसतुं ज नथी ।' ।
ए प्रमाणे बाकीना पेटाप्रकारोनां उदाहरण जाणवां । षट्पद-उपजाति
जे षट्पदी ध्रुवामां त्रीजा अने छठ्ठा चरणमां दसथी शरू करीने सत्तर सुधीनी मात्राओ होय, अने बाकीनां चरणोमां आठ मात्राओ होय एवी ध्रुवानुं नाम उपजाति छ । तेना पण जातिनी जेम आठ पेटाप्रकार छ । (१६)
पहेला पेटाप्रकार, उदाहरण : इअ 'उवजाइ'हिं, सुरहिअ-वाइहिं, गुंजिर-घण-छप्पउ । उववणु सारउ, केअइ-फारउ, कसु नवि रइ अप्पउ ॥ २
___ 'जेनी समीपमां पवनने सुगंधित करी रहेली चमेली रहेली छे तेवू, जेना उपर भ्रमरवृंद गुंजारव करी रमु छे तेवू आ उत्तम केवडांगें उपवन कोने आनंद आपतुं नथी ?'
ए प्रमाणे बाकीना पेटाप्रकारोनां उदारहण जाणवां । षट्पद-अवजाति
जे षट्पदी ध्रुवाना त्रीजा अने छठ्ठा चरणमां दसथी शरू करीने सत्तर सुधीनी मात्राओ होय छे, अने बाकीनां चरणोमां नव नव मात्राओ होय छे ते ध्रुवानुं नाम अवजाति छे । आगळनी जेम तेना पण आठ पेटाप्रकार छे । (१७)
पहेला पेटप्रकारचं उदाहरण : इअ वण-राइहिं, अहिण वजाइ हिं, छप्पउ परिभमइ । मालइ-रत्तउ, महु-रस-मत्तउ, जलयागम-समइ ॥३
_ 'जेमां चमेलीओ विकसी रही छे तेवी आ वनराजिओमां वर्षाऋतुना आगमनकाळे मधुरसमां मत्त बनेलो, मालतीमां आसक्त एवो भ्रमर चोतरफ भ्रमण करे छे ।'
ए प्रमाणे बाकीना पेटाप्रकारोनां उदाहरणो जाणवां । __ आ रीते षट्पद-जाति, उपजाति अने अवजाति ए प्रत्येकना आठ आठ पेटाप्रकारो अनुसार षट्पदी ध्रुवाना चोवीश पेटाप्रकार थाय छ । चतुष्पदी ध्रुवा / वस्तुक
चतुष्पदी ध्रुवानुं बीजं नाम वस्तुक छ । तेना चार पेटाप्रकार छ : एकी चरण सरखां होय तथा एकी चरण अणसरखां होय ते रीते (१) जेमां एकांतरे समानता रहेली छे ते अंतरसमा, (२) जेमां पहेलुं अने बीजुं
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[ 77] तथा त्रीजुं अने चोथु चरण समान होय छे - एम अर्धा भाग सरखो होवाथी ते अर्धसमा, (३) जेमां समान अने असमान चरणोनुं मिश्रण होय छे ते संकीर्णा, (४) जेमां चारेय चरण एकसरखां होय छे ते सर्वसमा । (१८)
अंतरसमा चतुष्पदीओ आ प्रमाणे छे : अंतरसमा चतुष्पदी : प्रकारो
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां सात मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां आठ मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय, तेना दस पेटाप्रकार छे । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. चंपककुसुम, २. सामुद्गक, ३. मल्हणक, ४. सुभगविलास, ५. केसर, ६. रावणहस्तक, ७. सिंहविजूंभित, ८. मकरंदिका, ९. मधुकरविलसित, १०. चंपककुसुमावर्त ।।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां आठ मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां नव मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना नव पेटाप्रकार छे । तेनां नाम आ प्रमाणे छ :
१. मणिरत्नप्रभा, २. कुंकुमतिलक, ३. चंपकशेखर, ४. क्रीडनक, ५. बकुलामोद, ६. मन्मथतिलक, ७. मालाविलसित, ८. पुण्यामलक, ९. नवकुसुमित
पल्लव.
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां नव मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां दस मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना आठ पेटाप्रकार छ । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. मलयमारुत, २. मदनावास, ३. मांगलिका, ४. अभिसारिका, ५. कुसुमनिरंतर, ६. मदनोदक, ७. चंद्रोद्योत, ८. रत्नावलि ।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां दस मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां अगियार मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना सात पेटाप्रकार छ । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. भ्रूवक्रणक, २. मुक्ताफलमाला, ३. कोकिलावली, ४. मधुकरवृन्द, ५. केतकीकुसुम, ६. नवविद्युन्माला, ७. त्रिवलीतरंग ।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां अगियार मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां बार मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना छ पेटाप्रकार छ । तेमनां नाम आ प्रमाणे छ :
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[ 78 ]
१. अरविंदक, २. विभ्रमविलसितवदन, ३. नवपुष्पंधय, ४. किन्नरमिथुनविलास, ५. विद्याधरलीला, ६. सारंग ।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां बार मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां तेर मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना पांच पेटाप्रकार छे । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. कामिनीहास, २. अपदोहक, ३. प्रेमविलास, ४. कांचनमाला, ५. जलधरविलसित |
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां तेर मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां चौद मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय तेना चार पेटाप्रकार छे । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. अभिनवमृगांकलेखा, २. सहकारकुसुममंजरी, ३. कामिनीक्रीडनक, ४. कामिनीकंकणहस्तक |
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां चौद मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां पंदर मात्राथी लईने एक एक मात्रा वधतां जतां सत्तर सुधीनी मात्रा होय तेना त्रण पेटाप्रकार छे । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. मुखपालनतिलक, २. वंसतलेखा, ३. मधुरालापिनीहस्त ।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां पंदर मात्राओ होय अने बेकी चरणोमा सोळ के सत्तर मात्राओ होय तेना बे पेटाप्रकार छे । तेमनां नाम आ प्रमाणे छे :
१. मुखपंक्ति, २. कुसुमलतागृह ।
जे अंतरसमा चतुष्पदीनां एकी चरणोमां सोळ मात्राओ होय अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्राओ होय तेनो एक पेटाप्रकार छे । तेनुं नाम रत्नमाला छे । आ प्रमाणे अंतरसमा चतुष्पदीना कुल पंचावन पेटा प्रकारो छे । (१९) तेमनां उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे :
चंपककुसुम
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे, अने बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे ते चंपककुसुम छंदनुं उदाहरण :
अंग - चंगिम, जइ गोरंगिहि । 'चंपककुसुम', ता कह अग्घहिं ॥ ४
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[79]
'ए गौरांगीना अंगनी सुंदरता पासे चंपककुसुम कई रीते शोभे ?'
सामुद्गक
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां नव मात्रा छे ते सामुद्गक छंदनुं उदाहरण :
जड़ बोल, धण उक्कंठि ।
'सा मुद्दउ', मुहु कलयंठि ॥ ५
'ज्यारे ए उत्कंठित विरहिणी बोलती होय त्यारे कोकिलाए पोतानुं मों बंध राखवुं जोईए' ।
मल्हणक
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां दस मात्रा छे ते मल्हणक छंदनुं उदाहरण :
कहिं हंसिहिं, तल्लोव्वेल्लणउं ।
दीस, गउ तहि 'मल्हणउं' ॥ ६
'ए सुंदरीनी मलपती गति पासे तळावमां रमती (टळवळती) हंसी शी विसातमां ?"
सुभगविलास
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अंते बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा सुभगविलास छंदनुं उदाहरण :
पइं विणु तहि, 'सुहय विलासु' कवणु । मुहु जामिणिहि कृवणु ॥ ७
विणु चंद,
'हे सुभग, तारा विना एनो विलास केवो ? चंद्र विना निशानुं मुख कृपण (दयामणुं ) ज दीसे ।'
केसर
जेनां एकी चरणोमां सात मात्राओ छे अने बेकी चरणोमां बार मात्रा छे ते केसर छंदनुं उदाहरण :
मेल्लि माणु, वल्लहि करि अणुराउ ।
ओ उड्डिउ, 'केसर' - कुसुम - पराउ ॥ ८
'हे सुंदरी तुं मान मूकी दईने तारा वालम प्रत्ये अनुराग व्यक्त कर । जो बोरसलीना पुष्पनो पराग ऊडी रह्यो छे ।'
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[80]
रावणहस्तक
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते रावणहस्तक छंदनुं उदाहरण :
लेहि वीण, करि धरि 'रावणहत्थउ' । जिण-मज्जणि, सुरहिं दिण्णु रावण-हत्थउ ॥ ९
___ 'तुं वीणा ले अने हाथमां रावणहत्थो राख । जिनभगवानना स्नानविधिमां देवो समहस्त(नी नृत्यमुद्रा) दई रह्या छ । सिंहविजूंभित
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा सिंहविजूंभित छंदनुं उदाहरण :
छुह-खामु वि, जं मय-जूहु न तिणु चरइ । तं अज्ज-वि, 'सीह-विअंभिउ' विप्फुरइ ॥ १०
___ 'भूखथी दुबळं पडी गयुं होवा छतां आ हरणोनुं टोळु घास चरतुं नथी, केम के हजी पण तेमना मनमा सिंहना आक्रमणनो फडको छे.' मकरंदिका
__ जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा मकरंदिका छंदनुं उदाहरण :
कुसुमंतरि, नवि लग्गइ अलि अवनिद्दिअइ । आसत्तउ, मालइहि बहल मयरंदिअ'हि ॥ ११
' 'मकरंदथी सभर एवी विकसित मालतीमां आसक्त भ्रमर बीजां पुष्पो पर बेसतो नथी ।' मधुकरविलसित
__ जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा मधुकरविलसित छंदनुं उदाहरण :
जं जाइहि, कित्ति दिअंतरु धवलइ सयलु । तं जाणसु, माणिणि 'महुअर-विलसिउ' पवलु ॥ १२
__'हे मानिनी, चमेलीनी कीर्ति सकल दिशाओने धवलित करे छे तेनी पाछळ भ्रमरनी क्रीडानो प्रभाव छे ।'
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[81]
चंपककुसुमावर्त
जेनां एकी चरणोमां सात मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे तेवा चंपककुसुमावर्त छंदनुं उदाहरण :
निअइ झुणइ, परिरंभइ चुंबई महु-सुंडउ । अलि मुज्झइ, 'चंपयकुसुमावट्टि' निबुड्डउ ॥ १३
_ 'चंपाना फूलना वमळमां डूबेलो भ्रमर गुंजारव करे छे, रसमत्त बनेलो तेने जोया करे छे, चूमे छे, मुग्ध बनेलो तेने भेटे छे ।
नोंध :- आ प्रमाणे पहेला दस पेटाप्रकारनां उदाहरण थयां । मणिरत्नप्रभा
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां नव मात्रा छे ते मणिरत्नप्रभा छंदनुं उदाहरण :
'मणिरयणपहा'-, पयडिअ-गिरि-गुहु । साहइ भरहु, सयलु-वि दिसि-मुहु ॥ १४
"जेमां मणिरत्नना प्रकाशथी गिरिगुफाओने प्रकाशित करतो भरत(चक्रवर्ती) समग्र दिग्विजय सिद्ध करे छे ।' कुंकुमतिलक
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा अने बेकी चरणोमां दस मात्रा छे तेवा कुंकुमतिलक छंद- उदाहरण :
रेहड़ चंदो, नव-पयडिअ-कलओ।
पुव्व-दिसाए, किर 'कुंकुम-तिलओ' ॥ १५ ___ 'नूतन कलाने प्रकट करतो चंद्र जाणे के पूर्व दिशानुं कुंकुमतिलक होय तेवो शोभे छे ।' चंपकशेखर
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा चंपकशेखर छंदनुं उदाहरण ।
अलि-रव-गीई, कय-'चंपय-सेहर', महु-समय-सिरी, उअ जणहु मणोहर ॥ १६
'जेमां भ्रमरोनां गीतगुंजन रूपी गीत गवाय छे अने जेणे चंपानां फूलनो। मुकुट पहेरेलो छे तेवी लोकोने मनहर वसंतलक्ष्मीने तुं जो ।'
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[82]
क्रीडनक
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा क्रीडनक छंदनुं उदाहरण :
सहि वट्टुलउ, चंदुल्लउ पडिहाइ ।
रयणि- वहूए, 'कीलण' - गेंडुउ नाइ ॥ १७
'हे सखी, आ वर्तुळ चंद्र जाणे के रजनीरमणीनो क्रीडाकंदूक होय तेवो लागे छे ।'
बकुलामोद
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे तेवा बकुलामोद छंदनुं उदाहरण :
मन्नावि प्रिउ, जइ - वि हु सो कय- दुन्न ।
जं महमहइ, दुसहउ 'बउलामोअउ' ।। १८
'हे सखी, अपराध कर्यो होवा छतां तुं तारा प्रियतमने मनावी ले, केम के बोरसल्लीनी दुःसह सुगंध मघमघी रही छे ।'
मन्मथतिलक
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा मन्मथतिलक छंदनुं उदाहरण :
निम्मल गयणि, समुग्गड चंदु विहावइ ।
रइए रइड, 'वम्मह - तिलउ' नवु नावइ ॥ १९
'निर्मळ आकाशमां ऊगेलो चंद्र, रतिए जाणे के नवुं मन्मथतिलक कर्तुं होय तेवो शोभे छे ।'
मालाविलसित
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा मालाविलसित छंदनुं उदाहरण :
कमलिणि- पासि, अलि माला विलसिअ ' संपइ ।
कल-रव- मिसिण, किर मित्त-समागमु जंपइ ॥ २०
'अत्यारे कमलिनीनी पासे भ्रमरवृन्द विलसी रह्युं छे । ते जाणे के गुंजारवने बहाने "मित्रनो” (१ । सूर्यनो २ । प्रियतमनो ) समागम थवानो होवानी जाण करे
छे ।'
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[ 83]
पुण्यामलक
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा पुण्यामलक छंद- उदाहरण :
मई असरण तुहुं, अइ-निद्दय नडसि कुसुमाउह । जं किर 'पुण्णा, मलय'-समीरिण सयल वि कउह ॥ २१
'हे अतिशय निर्दय कुसुमायुध, अत्यारे ज्यारे बधी दिशाओने मलयपवने जाणे के भरी दीधी छे त्यारे तुं अशरण एवी मने त्रास आपी रह्यो छे ।' नवकुसुमितपल्लव
जेनां एकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे तेवा नवकुसुमितपल्लव छंदनुं उदाहरण :
कंपिअ निअवि, 'नव-कुसुमिअ-पल्लव' सललिअ लय । संभरि दइअ, पंथिअ-सत्थ तक्खणि गय विलय ॥ २२
_ 'जेनां पर्णो उपर नवां पुष्पो खील्यां छे तेवी ललित लताने कंपती जोईने, पोतानी प्रियतमा- स्मरण थतां तरत ज पथिको मरणशरण थया ।'
नोंध :- आ प्रमाणे एकी चरणोमां आठ मात्रावाळा नव पेटाप्रकारोनां उदाहरण आप्यां छे।
हवे जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण : मलयमारुत
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां दस मात्रा छे तेवा मलयमारुत छंद- उदाहरण :
देक्खिवि वेल्लडी, 'मलय-मारुअञ-धुआ । सुमरिवि गोरडी, पंथिअ-सत्थ मुआ ॥ २३
'मलयपवने कंपित थती वेलडीने जोईने गोरी सांभरी आवतां पथिको मरणशरण थया ।' मदनावास
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा मदनावास छंदनुं उदाहरण :
जं धण-लोअण, झस-झय-चल दीसहिं । 'मयणावासउ', तं थण-गुड्डुरि सई ॥ २४
'आ रमणीनां नयनो, कामदेवना मकरध्वज समां, चंचळ देखाय छे तेथी
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[ 84 ]
लागे छे के तेना स्तनरूपी तंबूमां साक्षात् कामदेवे निवास कर्यो छे मांगलिका
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा मांगलिका छंदनुं उदाहरण :
प्रियअ - महु- संगमि, उअ 'मंगलिअ 'ई करइ । वणसिरि घट्ट धरइ ॥ २५
किंसुअरूविण,
'जो, आ वनश्री पोताना प्रियतम वसंतना संगमां मांगलिक विधि करे छे : तेणे सूडां रूपे घाटडी (कसुंबल वस्त्र ) पहेरी छे ।'
अभिसारिका
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे तेवा अभिसारिका छंदनुं उदाहरण : काली रत्तडी,
घणिहिं नहंगणु रुद्धउं ।
तो- वि न वट्टहिं, 'अहिसारिअ 'जणु खुद्धउ ॥ २६
'रात घोर अंधारी (काळी) छे, आकाशनो पट वादळोथी ढंकाई गयो छे, तो पण रस्ते जतां अभिसारिकाओ गभराती नथी ।'
कुसुमनिरंतर
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा कुसुमनिरंतर छंदनुं उदाहरण :
सिद्धत्थ पुलय, 'कुसुम निरंतर' हसिउ सिउ । नव-दइआगमि, अंगि जि मंगलु धणइ किउ ॥ २७
'रोमांच थवाथी रूंवाडा ऊभां थयां (पुलकित थई) ए ज सिद्धार्थ (मंगल विधि माटेना सरसव ) अने श्वेत ( उज्ज्वळ ) निरंतर हास्य ए ज पुष्पो : प्रियाए प्रियतमना प्रथम आगमने पोताना अंगथी ज मंगळविधि कर्यो ।'
मदनोदय
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा मदनोदय छंदनुं उदाहरण :
घणरव दूसहा, दूहवइ 'मयणोदउ' हिअउ ।
पिअ - दूर - द्विआ, पवसिअ - रमणिअणु कह जिउ ॥ २८
'मेघनी गर्जना दुःसह छे, मदननो उदय हृदयने पीडे छे, प्रियतम दूर रहेलो छे, प्रवासीओनी पत्नीओ कई रीते जीवतर टकावी शके ?'
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[ 85] चंद्रोद्योत
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा चंद्रोद्योत छंदनुं उदाहरण :
कोइल-कल-रवु, चंदणु 'चंदुज्जोअ'-विलासु । वल्लह-संगमि, . अमय-रसु विरहि जलिउ हुआसु ॥ २९. ..
___ 'कोयलोनो कलरव, चंदन अने चंद्रनी ज्योत्स्नानो विलास - जो प्रियतम संगाथे होय तो ए अमृतरस समान छे, पण विरहमां तो ए धगधगता अग्नि समान छ ।' रत्नावली
जेनां एकी चरणोमां नव मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे तेवा रत्नावलि छंद- उदाहरण :
मालइ-मालहिं; अलि सहहिं नव-मयरंद-सइण्ह । नं 'रयणावलि', नीलमय पाउस-दइइण दिण्ण ॥ ३०
___ 'मालतीनी माळाओ उपर बेठेलो, नवा पुष्परसनी लालसावाळा भ्रमर एवो शोभे छे, जाणे के ते वर्षाऋतुरूपी प्रियतमे भेट आपेली इन्द्रनीलमणियुक्त रत्नावलि न होय !'
नोंध :- आ प्रमाणे एकी चरणोमां नव मात्रावाळा आठ पेटाप्रकारना उदाहरण थयां ।
हवे जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे तेवा पेटप्रकारनां उदाहरण : भ्रूवक्रणक
जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे ते भ्रूवंक्रणक छंदनुं उदाहरण :
रेहइ तरुणिअणु, 'भ्रूवंकण'-चंगउ । आणावइ नाइ, तिहुअण-जइ अंगउ ॥ ३१
'तरुणीओ तेमनी वांकी करेली भ्रमरथी एवी शोभे छे के जाणे ते लोकोने त्रिभुवनविजयी अनंगनी आण देती न होय !' मुक्ताफलमाला
. जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां बार मात्रा छे ते मुक्ताफलमाला छंद- उदाहरण :
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[ 86 ]
तारावलि भणि मा, भणि 'मुत्ताहल-माला' ।
रइ - कलहिण त्रुट्टी, ससि - रयणिहिं सुविसाला ॥ ३२
'एने तारावलि न कहे पण मोटा मोतीनी माळा कहे, जे चंद्र अने रजनी वच्चे थयेला प्रेमकलहमां तूटी पडी छे ।'
कोकिलावलि
जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते कोकिलावलि छंदनुं उदाहरण :
'कोइलावलि' - कए, संगीअइ नच्चावउ ।
नव-लय- विलयाओ, मलयानिलु नट्टावउ ॥ ३३
'जेमां कोयलो, संगीत आपे छे तेवा आ उत्सवमां नर्तनाचार्य मलयपवन विकसेली लतारूपी रमणीओने नृत्य करावो ।'
मधुकरवृंद
जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते मधुकरवृंद छंदनुं उदाहरण :
फुल्लिअ-लय निअवि, 'महुअर-वंद्विण' गीउ तह । पयमवि पहिअ न दिंति जह ॥ ३४
बाहोल्लय- नयण,
'विकसेली लताने जोईने भ्रमरगणोए एवो गीतगुंजारव कर्यो, जेथी जेमनां नेत्रो आसुंभीनां थयां छे तेवा पथिको एक डगलुं पण दई न शक्या ।' केतकीकुसुम
. जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते केतकीकुसुम छंदनुं उदाहरण :
बिंबालिउ भुवणु, नव - 'केअइ-कुसुम - 'पराईण |
नं अहिवासिअउं, मयरद्धय - कम्मण जोड़ण ॥ ३५
'समग्र भुवन उपर विकसेलां केतकीकुसुमनो पराग एवो फेलाई गयो छे जाणे के तेना उपर कामदेवनुं कामण छवाई गयुं होय ।'
नवविद्युन्माला
जेन की चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते नवविद्युन्माला छंदनुं उदाहरण :
ओ चलवलंतिआ, विप्फुरेइ 'नव-विज्जुं - मालिआ ' । जिहिअ-व्व दीहर - करालिआ ॥ ३६
मेह-रक्खसस्स,
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[87]
'अरे ! नूतन वीजळीनी झबक झबक थती रेखा एवी लपके छे, जाणे मेघरूपी राक्षसनी लांबी भयंकर जीभ !' त्रिवलीतरंगक
जेनां एकी चरणोमां दस मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते त्रिवलीतरंगक छंद- उदाहरण :
दिहरच्छिआए, पेच्छ सहए 'तिवली-तरंगयं' ।
कय-तिहुअण-विजए, लीह-तिअंपिव कामिण कडिअं ॥३७ ___ 'आ दीर्घनेत्रोवाळी सुंदरीनी तरंगो जेवी त्रिवली एवी शोभे छे, जाणे के त्रिभुवन उपर विजय मेळव्या पछी कामदेवे त्रण रेखाओ न दोरी होय !'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां एकी चरणोमां दस मात्राओ छे तेवा सात पेटाप्रकारोनां उदाहरणो थयां ।
हवे जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण : अरविंदक
- जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा अरविंदक छंद- उदाहरण
प्रिअहि मुहु 'अरविंदु', चल-नयण-इंदिदिरु। दंत-कंति-केसरु, लच्छि-विलास-मंदिरु ॥ ३८
___ 'जेमां चंचळ नयनरूपी भ्रमर छे अने दांतनी कांतिरूपी केसर छे, तेवू प्रियतमानु मुखारविन्द सुंदरताना विलासभवन जेवू छे ।' विभ्रमविलसितवदन
जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते विभ्रमविलसितवदन छंद- उदाहरण :
कुइ धन्नु जुआणउ, विअसिअ-दीहर-नयणिए । माणिज्जइ तरुणिए, 'विब्भम-विलसिअ'-वयणिए ॥ ३९
'जेनां दीर्घ नयनो विकसेलां छे अने जेना वदन उपर विभ्रमनो विलास छे तेवी तरुणीने कोईक धन्य युवान ज भोगवे ।' नवपुष्पंधय
जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते नवपुष्पंधय छंदनुं उदाहरण :
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[88]
सहि पंकोप्पन्नु-वि, कमलु तं सलहिउ बुह-सइयहिं । जं रस-ऊद्भुसिअहिं, पिज्जइ 'नव-फुल्लुंधुअ' हिं ॥ ४०
___ 'हे सखी, कादवमां उत्पन्न थयेलुं कमळ पण सेंकडो बुधजनोए वखाण्यु छे, एटले रसलोलुप भ्रमरो तेनुं रसपान करे छे' । किन्नरमिथुनविलास
जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते किन्नरमिथुनविलास छंद- उदाहरण :
अविरहिअहं मुइअहं, हरिणहं जि रइ-सुहु सलीसए । पर एवँइ केवँइ, जसु 'किं नर-मिहुण-विलासए' ॥ ४१
'जेओ आमरण अविरहित होय छे तेवा हरणमिथुन- रतिसुख प्रशंसनीय छे, जेम तेम कराता मनुष्यमिथुनोना विलासमां कशो जश बळ्यो छे ?' विद्याधरलीला
जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते विद्याधरलीला छंद- उदाहरण :
मुद्धइ गिज्जंतउं, तुहं कण्ण-रसायणु गीउ सुणि । जिण ओहामिज्जइ, 'विज्जाहर-लीला'-गीई-झुणि ॥ ४२
'आ मुग्धा कर्णने रसायणरूप जे गीत गाई रही छे ते तुं सांभळ । ए गीत विद्याधरो क्रीडा करतां जे गीत गाय छे तेना स्वरने पण झांखो पाडी दे छे ।' सारंग
जेनां एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते सारंग छंद, उदाहरण :
भीरु वि चंद-ट्टिओ, वरि परिमुणिअ-नार्दू 'सारंगओ'। सीहु न सलहिज्जइ, जइ-वि हु दलिअ-मत्त-मायंगओ ॥ ४३
'हरण चंद्रमा रहेलुं होवाथी', भीरु होवा छतां पण तेनुं नाम प्रख्यात थयुं छे, ज्यारे मदमत्त हाथीओने चीरी नाखतो होवा छतां सिंह वखणातो नथी।'
नोंध :- आ प्रमाणे जेना एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा छ पेटाप्रकारोनां उदाहरण आप्यां ।
हवे जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण : कामिनीहास
जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते
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[ 89]
कामिनीहास छंद- उदाहरण :
मणहरु तुह मुह-सररुहु, रयणीअर-विब्भमु धरइ । 'कामिणी हास'-विलासु-वि, जोण्हा-पसरहु अणुहरइ ॥ ४४
... 'हे सुंदरी, तारुं मनोहर मुखकमळ चंद्रनो भ्रम करावे छे, तारी हास्यलीला ज्योत्स्नाविलास, अनुकरण करे छे' । अपदोहक
जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते अपदोहक छंदनुं उदाहरण :
एत्थु करिमि भणि काइं, प्रिउ न गणइ लग्गी पाइ। छड्डेविणु हउं मुक्की, 'अवदोहय' जिवँ किर गावि ॥ ४५
___ 'हे सखी, कहे, हुं शुं करूं? हुं प्रियतमने पगे पडी, तो पण ते मने अवगणे छ । मने तेणे छोडी दीधी छे, जेम दोह्या वगरनी गाय !' प्रेमविलास
जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे प्रेमविलास छंदनुं उदाहरण : . कित्तिउ वण्णउं मयणु, किअउ जिण सो-वि नारायणु । तहु गोवालीअणहु, घण-'पिम्म-विलास'-परायणु ॥ ४६
'हुँ कामदेवनो (प्रभाव) केटलो वर्णवं, जेणे स्वयं नारायणने पण गोपीओनी प्रबळ प्रेमलीलाने वश कर्या ?' कांचनमाला
जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते कांचनमाला छंद- उदाहरण :
दीसइ सुरधणु-लट्ठी, सावल-गोर-वण्ण-सोहिल्ली ।। मरगय-'कंचण-माला', णं घण-लच्छिहि कंठि नवल्ली ॥ ४७
'श्यामल अने गौर रंगे शोभतुं इन्द्रधनुष जाणे मरकत अने सुवर्णनी नूतन माळा मेघलक्ष्मीना कंठमां होय तेवू दीसे छे ।' जलधरविलसित
जेनां एकी चरणोमां बार मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते जलधरविलसित छंदनुं उदाहरण :
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पेक्खिऊण गयणयलि, नव - 'जलहर - विलसिअ' चल-विज्जुल । संभरति निअपिअहं, पहिअदइअ गलिअंसुअ - कज्जल ॥ ४८
'आकाशमां नवा मेघनी वच्चे विलसती चंचळ वीजळीने जोईने प्रवासे गयेला पतिओनी पत्नीओ अश्रुजळ वरसावती पोताना प्रियतमने संभारे छे' । नोंध :- ए प्रमाणे एकी चरणोमां बार मात्रावाळा पांच पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे एकी चरणोमां तेर मात्रावाळां पेटाप्रकारोनां उदाहरण । अभिनवमृगांकलेखा
जेनां एकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते अभिनवमृगांकलेखा छंदनुं उदाहरण :
नहयल - वराह- दाढिआ, वारुणि-वहूइ णिडालिआ । 'अहिणव- मिअंक-लेहिआ', उप्पड़ पीइ निहालिआ ॥ ४९
'आ हमणां ज ऊगेली चंद्रलेखा, नभरूपी वराहनी दाढ जेवी, अथवा तो पश्चिम - दिशा - सुंदरीना भाल परना तिलक जेवी, जोतां ज प्रीति प्रगटावे छे । सहकारकुसुममंजरी
जेनां एकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते सहकारकुसुममंजरी छंदनुं उदाहरण :
'सहयार- कुसुममंजरी',
वण-लच्छि - कणय-रसणिआ, कुसुमाउह - विजय - पडाइआ । अह महु- सम्एण पयडिआ ।। ५० 'जुओ तो, वनलक्ष्मीनी सोनानी कटिमेखला जेवी, अथवा तो कामदेवनी विजयपताका जेवी, वसंतऋतुमां विकसेली आ आम्रमंजरी शोभे छे ।' कामिनीक्रीडनक
जेनां एकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते कामिनीक्रीडनक छंदनुं उदाहरण :
नह- लच्छि भाल- तिलअओ, दिसि - 'कामिणि- कीलण' - गंडुअओ । रेहड़ पुण्ण - मयंकओ, मयणाहिसेअ- अमय - कलसओ ॥ ५१
'आ पूर्णचंद्र नभलक्ष्मीना भाल उपरना तिलक जेवो, दिशासुंदरीना क्रीडाकंदुक जेवो, कामदेवना अभिषेक माटेना अमृतकळश जेवो शोभे छे ।' कामिनीकंकणहस्तक
जेनां एकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छेते
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[91]
कामिनीकंकणहस्तक छंद- उदाहरण :
कवणु सु धन्नउ जिण विणु, 'कामिणी-कंकण हत्थउ' विअलहिं । अन्न कि एवँइ ससि-मुहि, हिंडइ उन्नमिइहिं कर-कमलिहिं ॥ ५२
'एवो कोण ए धन्य छ जेना विरहे आ सुंदरीना हाथमांथी कंकण सरी पडे छे ? नहीं तो ते चंद्रमुखी शुं अमस्ती ज पोतानां करकमळ ऊंचां राखीने हरे फरे
छे ?'
नोंध :- ए प्रमाणे जेनां एकी चरणोमां तेर मात्रा छे एवा चार पेटा प्रकारनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां चरणोमां चौद मात्र छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण ।
जेनां एकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते मुखपालनतिलक छंदनुं उदाहरण : मुखपालनतिलक
इह माहवि वम्मह-निलय, मलयानिल-हल्लिर-किसलय ।
ओ दीसहि कुसुमाउलय, कामिणिहु 'मुहवालण तिलय' ॥५३
'जुओ, आ वसंतऋतुमां कामदेवना आवासरूप, जेमनी कुंपळो मलयपवनथी फरके छे, जेने डोक पाछी वाळीने सुंदरीओ जोया करे छे, एवा पुष्पसभर तिलकतरुओ देखाय छे ।' वसंतलेखा
जेनां एकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते वसंतलेखा छंदनुं उदाहरण :
कुविदो मयणो महाभडो, वणलच्छी अ 'वसंतरेहिआ'। कह जीवउ मामि विरहिणी, मिउ-मलयानिल-फंस-मोहिआ ॥ ५८
'ज्यारे कामदेवरूपी मोटो सुभट कोप्यो छे, वनलक्ष्मी वसंतनी शोभा धरी रही छे, तेवे समये हे सखी, मलयपवनथी मूर्छित बनेली आ विरहिणी केम जीवशे?' मधुरालापिनीहस्त । . जेनां एकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे मधुरालापिनीहस्त छंद, उदाहरण :
सुन्दरु तं किउ एउं सहि, पिउ जं मनिउ विणय-निसण्णउ । तसु अवराहहं सव्वहं वि, 'महुरालाविणि हत्थु' विइण्णउ ॥ ५५
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[92]
'हे सखी, जेणे विनय दर्शाव्यो छे एवा तारा प्रियतमने तें मनावी लीधो अने तेना बधा अपराधोने तें मधुर वार्तालापथी तिलांजली दीधी ते घणुं सारं कर्यु ।
नोंध:- आ प्रमाणे जेनां एकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा त्रण पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा पेटा प्रकारोनां उदाहरण । मुखपंक्ति
जेनां एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते मुखपंक्ति छंदनुं उदाहरण :
पर-नरमुह-पेच्छण-विरयए, पय-नह-मणि-पडिबिंबिअ जि परि । दहमुह-'मुह-पंति' पलोइआ सीअइ भय-विम्हय-हास-करि ॥ ५६
___ 'जे परपुरुषनी सामे कदी जोती नथी तेवी सीताए मात्र पोताना चरणना मणि जेवा नखोमां जेनुं प्रतिबिंब पड्युं छे तेवी रावणना दस मुखोनी श्रेणी जोई, अने ते भय, विस्मय अने हास्यना भाव अनुभवी रही' । कुसुमलतागृह
जेनां एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते कुसुमलतागृह छंद, उदाहरण :
जलइ जइ वि 'कुसुमलयाहरु, तवइ चंदु जह गिम्हि दिवायरु। तु-वि इसा-भर-परितरलिअ, पिअ-सहिययणु न मन्त्रइ बालिअ ॥५७
___ 'पुष्पलतानो कुंज तेने दाह करे छे अने ग्रीष्मना सूर्यनी जेम चंद्र ताप करे छे, तो पण ईर्षाना भारे जेनुं मन अस्थिर बन्युं छे तेवी आ मुग्धा पोतानी वहाली सखीओ, कडं मानती नथी ।'
___ नोंध :- आ प्रमाणे जेनां एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा बे पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
___हवे जेनां एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा एक पेटाप्रकारनुं उदाहरण : रत्नमाला
जेनां एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे अने बेकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते रत्नमाला छंदनुं उदाहरण :
करवाल-पहारिण उच्छलिअ, करि-सिर-मुत्ताहल-'रयण-माल' । रेहइ समरंगणि जय-सिरिए, उक्खिविअ नाइ सयंवर-माल ॥ ५८
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'रणभूमिमां तलवारना प्रहारथी हाथीओनां मस्तकमांथी मोतीओनी श्रेणी ऊछळी : जाणे के विजयलक्ष्मीए स्वयंवरमाळा उपरथी नाखी होय तेवी शोभे छे' । ध :- आ प्रमाणे जेना एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारनं उदाहरण थयुं ।
आ प्रमाणे जेनां एकी चरणोमां सात मात्राथी लईने सोळ सुधीनी मात्राओ छे तेवी अंतरसमा चतुष्पदीना पंचावन पेटाप्रकार थया ।
जो अंतरसमा चतुष्पदीना उपर वर्णवेला पेटाप्रकारोनां चरणोने उलटावीएएटले के तेनां एकी चरणो जे मात्रामापना छे, तेमने स्थाने अनुक्रमे बेकी चरणो जे मात्रामापनां छे तेमने मूकीए, अने तेवी रीते बेकी चरणोने स्थाने एकी चरणो मूकीए, तो अंतरसमा चतुष्पदीना बीजा पंचावन प्रकारो थाय छे। एमनी व्याख्या अने उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे ।
सुमनोरमा
[93]
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां आठ मात्रा छे ते सुमनोरमा छंदनुं उदाहरण : केआरावु, करि मोर मा ।
दूरि स गोरी, 'सुमनोरमा' ॥ ५९
'हे मोर, तुं केकारव न कर, ए अतिशय सुंदर गोरी अत्यारे माराथी
दूर छे ।'
पंकज
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां नव मात्रा छे ते पंकज छंदनुं उदाहरण :
निअवि वयणु तर्हि, विब्भमपउ ।
नं विहिण खित्तु, दहि 'पंकउ' ॥ ६०
'ते सुंदरीनुं भम्मरना विलासवाळं वदन जोईने विधाताए कमळने धरामां नाखी दीधुं ।'
कुंजर
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां दस मात्रा छे ते कुंजर छंदनुं उदाहरण :
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[94]
गज्जइ घणमाला, घण-घडहड ।
नं मयण - निवइणो, 'कुंजर' - घड ॥ ६१
'मेघमाळा घोर गगडाट करी रही छे, जाणे के मदनराजनी गजघटा न होय ।'
मदनातुर
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे ते मदनातुर छंदनुं उदाहरण :
खलिअक्खरडं वयणु, मुहु पंडरु ।
तुह अक्खड़ सहि मणु, 'मयणाउरु' ॥ ६२
'हे सखी, तुं तूटक तूटक वचन बोले छे, तारुं मुख फिक्कुं पडी गयुं छे, ते सूचवे छे के तारुं मन मदनथी उत्कंठित छे ।'
भ्रमरावली
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां बार मात्रा छे ते भ्रमरावली छंदनुं उदाहरण :
ओ रणझणंत भमइ,
'भमरावलि' ।
मयण - धणुह-गुण- वल्लि, णं सामलि ॥ ६३
'जुओ, गुंजारव करती भ्रमरनी हार भ्रमण करी रही छे, जाणे कामदेवना धनुष्यनी काळी दोरी ।'
पंकजश्री
6
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते पंकजश्री छंदनुं उदाहरण :
तहि भुमयहि पडिछंदुलो, धणु मयणहु ।
नव पंकयसिरि' सोअरी, तसु वयणहु ॥ ६४
'तेनी भम्मर ए कामदेवना धनुष्यनी प्रतिमा छे अने तेना वदननी सुंदरता खीलेला कमळनी सुंदरता जेवी छे ।'
किंकिणी
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते किंकिणी छंदनुं उदाहरण :
ससिणा रयणी रइभरे,
उल्ला लिया ।
ओ 'किंकिणि 'आउ न हु इमा, उड्डु-मालिआ ॥ ६५
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[951
'आ ताराओनी हार नथी पण चंद्रे रात्रि साथेनी प्रेमक्रीडामां ऊछाळेली घूघरीओ छे ।' कुंकुमलता
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते कुंकुमलता छंद- उदाहरण :
गोरडिअहि उवमिअइ त पर, अच्चब्भुअ । जइ किर हवइ फुल्लिअ फलिअ, 'कुंकुमलय' ॥६६
___ 'जो केसरलता फूली फळीने अति अद्भुत बने, तो ज ते आ गोरी, उपमान बनी शके ।' शशिशेखर
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते शशिशेखर छंद- उदाहरण :
लंघइ सायर गिरि आरुहइ, तुह अहंग । 'ससिसेहर'-हसिउज्जल नउखी, कित्ति-गंग ॥ ६७
'तारी अनोखी, अतूट अने महादेवना अट्टहास्य जेवी उज्ज्वल कीर्तिगंगा सागरने ओळंगी जाय छे अने पर्वत पर चडी जाय छे ।' लीलालय
जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते लीलामय छंदनुं उदाहरण :
जं सहि कोइल कलु पुक्कारइ, फुल्लु तिलउ । तं पत्तु वसंतु मासु कामहु, 'लीलालउ' ॥ ६८
'कोयलो कलरव करी रही छे । तिलक तरु विकस्युं छे । हे सखी, कामदेवना लीलानिवास जेवो वसंतमास आवी पहोंच्यो छे ।'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां सात मात्रा छे तेवा दस पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
___ हवे जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण । चंद्रहास
जेनां बेकी चरणोमा आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां नव मात्रा छे ते चंद्रहास छंद, उदाहरण :
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रेह तुह करि, 'चंदहासउ' ।
नं रिङ-सिरीए, केस - पास ॥ ६९
'तारा हाथमां चंद्रहास खड्ग एवं शोभे छे, जाणे शत्रुओनी लक्ष्मीनो
चोटलो ।'
गोरोचना
[96]
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां दस मात्रा छे ते गोरोचना छंदनुं उदाहरण :
'गोरोअण' -गोरी, तुज्झ कओलु ।
पडिमाइ चुंबई, ससहरु लोलु ॥ ७०
'गोरोचनना वर्णवाळी हे गोरी, चंद्र लोल बनीने पोताना प्रतिबिंब वडे तारो गाल चूमे छे ।'
कुसुमबाण
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां आगियार मात्रा छे ते कुसुमबाण छंदनुं उदाहरण :
जसु लोह - चक्किण-वि, न दलिउ झाणु
तहिं वीरि किं करउ, सु 'कुसुमबाणु' ॥ ७१
'लोखंडना चक्र (ना प्रहारथी) जेनुं ध्यान तूट्युं नहीं तेवा वीर जिनने पुष्पना धनुषवाळो कामदेव शुं करवानो छे ?”
मालतीकुसुम
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां बार मात्रा छे ते मालतीकुसुम छंदनुं उदाहरण :
'मालइ - कुसुम' न लेइ, चंदणु चयइ ।
तुह दंसण- उम्माही,
मग्गु जिनिअइ ॥ ७२
'तने जोवाने उत्कंठित बनेली ते बाळा मालतीना पुष्पने आदरती नथी, चंदननो त्याग करे छे अने तारा मार्गनी प्रतीक्षा करी रही छे ।'
नागकेसर
जेनां बेकी चरणामां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते नागकेसर छंदनुं उदाहरण :
दीसइ उववणि फुल्लिओ, 'नागकेसरो' ।
'नं माहविण वण- सिरिहि, दिण्णु सेहरो ॥ ७३
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[97]
'उपवनमां नागकेसर एवो खील्यो छे, जाणे वसंते वनश्रीने भेट करेलो
शेखर !'
नवचंपकमाला
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते नवचंपकमाला छंदनुं उदाहरण :
तणु 'नवचंपयमाल' जिण, कर-कम कमल । सहि तुहुं माहव - लच्छि तिण, परिमल बहल ॥ ७४
'तारुं शरीर विकसेला चंपानां फूलोनी माळा जेवुं छे, तारा हाथपग कमळ जेवा छे, तेथी हे सखी, तुं भरपूर सुगंधवाळी वसंतलक्ष्मी जेवी छे ।'
विद्याधर
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते विद्याधर छंदनुं उदाहरण :
मुहि करिवि मयलंछणु गुलिअ, गुलिआ - सिद्धिं । 'विज्जाहरि'ण जिवँ वम्महिण, जगु जिउ बुद्धिं ॥ ७५
'मृगलांछन ( चंद्र) रूपी गुटिका मोढामां राखीने जेणे गुटिकासिद्धि प्राप्त करी छे तेवा विद्याधर जेवा जाग्रत थयेला कामदेवे जगतने जीती लीधुं ।' कुब्जककुसुम
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते कुब्जककुसुम छंदनुं उदाहरण :
पेच्छंतहुं नवमालइ ललिअ,
परिमल - असम ।
भरहुं कि मणु रंजहि णवरि, 'कुज्जय-कुसुम' ॥ ७६ 'असाधारण परिमलवाळी नवविकसित सुंदर मालतीने जोतां भमराओनां मननुं शुं करीने कुब्जकनुं फूल रंजन करी शके ?'
कुसुमास्तरण
जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते कुसुमास्तरण छंदनुं उदाहरण :
मलयानिलु मलयज-रसु ससहरु, 'कुसुमत्थरणु' ।
विरहानल - जलिअहि तसु सव्वु-वि, तणु-संतवणु ॥ ७७
'मलयपवन, चंदनना रस, चंद्र, पुष्पशय्या ए बधुं, जे विरहाग्निथी बळती होय, तेना शरीरने ऊलटो संताप जन्मावे ।'
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[98]
नोंध : आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां आठ मात्रा छे तेवा नव पेटा प्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण :मधुकरीसंलाप
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां दस मात्रा छे ते मधुकरीसंलाप छंदनुं उदाहरण : निसुणिअ माइंदइ,
'महुअरि-संलावु' |
ओ पवसिअ - तरुणिहिं, पत्थुअउ पलावु ॥ ७८
'आंबा उपर थतुं भ्रमरोनुं गुंजन सांभळीने जो, प्रवासीओनी तरुणीओ रुदन करवा लागी । '
सुखावास
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे ते सुखावास छंदनुं उदाहरण :
जइ वम्मह गोरडी, भलइ निहालसि ।
तुह 'सुहआवास 'डी, ता किं जालसि ॥ ७९
'हे कामदेव, जो तने गोरी सुंदर लागे छे तो तारा ए सुखद आवासने तुं केम सळगावे छे ?'
कुंकुमलेखा
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां बार मात्रा छे ते कुंकुमलेखा छंदनुं उदाहरण :
फेडवि 'कुंकुम - लेह', रिउ - वहु-वयहं ।
पंक - लेह निम्मविअ, परं महि- सयणहं ॥ ८०
'तें तारा शत्रुओनी स्त्रीओ जेमने भोंय पर सूवुं पडे छे, तेमनी तिलकरेखा भूसी नाखीने त्यां माटीनी रेखा रची दीधी छे ।'
नवकुवलयदाम
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते कुवलयदाम छंदनुं उदाहरण :
जहिं घल्लइ उप्फुल्लिअ, धण चल- नयणइं ।
तहिं 'नव - कुवलय-दाम' इं, तक्खणि निवडइ ॥ ८१
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199] 'ज्यां ज्यां ते प्रिया पोताना विकसित चंचळ नेत्रोथी दष्टि फेंके छे त्यां त्यां तरत ज ताजा नीलकमलनी माळा पडती होय छे ।' कलहंस
. जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते कलहंस छंदनुं उदाहरण :
कामिणि-हिअय-सरोवरहं, तुहुँ जि 'कलहंसु' । प्रिय रूविण मयणहु किअउ, तई जि परहंसु ॥ ८२
'हे प्रिय, सुंदरीओना हृदयरूपी सरोवरमां तुं ज कलहंस छे । तें ज तारा रूप वडे कामदेवनो पराभव कर्यो छे ।' संध्यावली
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते संध्यावली छंदनुं उदाहरण :
सिंदूरिअ गुरु-कुंभ-स्थल, गय-घड तुह बलि । अगालि नराहिव उत्थरिअ, किर 'संझावलि' ॥८३
"जेमनां विशाळ कुंभस्थळ सिंदूरथी रंग्यां छे तेवी गजघय तारी सेनामां छे। तेथी हे, नरपति, जाणे के अकाळे संध्यानी छाया ऊठी छे ।' कुंजरललित
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते कुंजरललिता छंदनुं उदाहरण :
तोडिअ-गुड-मुहवयऽ-संनाह, छड्डिअ-खग्गय । निदहिं पहु कुंजर-ललिअ-गइ, तुह अरि भग्गय ॥ ८४
'हे राजा, जेमना हाथीनी अंबाडीओ अने हाथी अने घोडाना मोढा परनां आभरणो तूटी पड्यां छे अने जेमणे खड्ग नाखी दीधां छे तेवा भागी रहेला तारा शत्रुओ तेमना हाथीनी धीमी गतिने वखोडी रह्या छे ।' कुसुमावली
जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते कुसुमावली छंदनुं उदाहरण :
निच्छइं पिअ-सहि वम्मह-रायहु, आणु जु भंजइ । 'कुसुमावलि'-किअ-छप्पय-सद्दिहि, तं महु तज्जइ ॥ ८५
'हे प्रिय सखी, नक्की जे मदनराजानी आज्ञानो भंग करे छे तेने वसंत पुष्पो
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[100] पर रहेला भ्रमरोना गुंजारवथी धमकी आपे छ ।'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां नव मात्रा छे तेवा आठ पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण । विद्युल्लता
जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां अगियार मात्रा छे ते विद्युल्लता छंद- उदाहरण :
'विज्जुलय' मेह-मज्झि, अंधारइ गोरी । कवण स हत्थ-भल्लि, कुसुमाउह तोरी ॥ ८६
'मेघ मध्ये अंधारामां गोरी दीसती वीजळी होय पछी हे कामदेव, तारा हाथमां बीजुं क्युं बाण होवू जरूरी ?' पंचाननललिता
जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां बार मात्रा छे ते पंचाननललिता छंद- उदाहरण :
संत?हं मयगलहं, चिक्कारिहिं कलिअ । रण्णाइं वि वज्जरहिं, 'पंचाणण-ललिअ' ॥ ८७
'त्रासेला हाथीओना चित्कारवाळां अरण्यो सिंहोनी लीला सूचवे छे ।' मरकतमाला
जेनां चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते मरकतमाला छंदनुं उदाहरण :
फुल्लंधुअ-धोरणीउ, लया-वण-गोच्छिहिं । नव-'मरगय-मालि'आउ, नाइ मह-लच्छिहिं ॥८८
'लताओना पुष्पगुच्छो उपर रहेली भ्रमरावलिओ जाणे के वसंतलक्ष्मीनी नवी मरकतमाळाओ होय तेवी दीसे छे ।' अभिनववसंतश्री
___जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते अभिनववसंतश्री छंदनुं उदाहरण :
कर असोअ-दल मुहु कमलु, हसिउ नवमल्लिअ । 'अहिणव-वसंत-सिरि' एह, मोहण-छइल्लिअ ॥ ८९ ___ 'अशोकपर्ण जेनां हाथ छे, कमळ जेनुं मुख छे अने नवमल्लिका जेनुं हास्य
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[101] छे तेवी आ नवी वसंतलक्ष्मी संमोहन करवामां निपुण छे ।' मनोहरा
जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते मनोहरा छंदनुं उदाहरण :
तुह गुण अणुदिणु सुमरंतिहि, विरह-करालिअहि । मयण-'मणोहर' तणु-अंगिहि, दय करि बालिअहि ॥९०
__ 'जे प्रत्येक दिवसे तारा गुणोनुं स्मरण करी रही छे तेवी आ विरहथी पीडित कृशांगी बाळा उपर, हे मदनसुंदर, तुं दया कर ।' आक्षिप्तिका
जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते आक्षिप्तिका छंद- उदाहरण :
हिंडइ सा धण जावँ गहिल्ली, विरहिण 'अक्खित्ती'। देक्खिवि वल्लहु ता आणंदी, जणु अमइण सित्ती ॥ ९१
'विहरथी व्यग्र ए प्रिया घेली बनीने भटकती हती । तेवामां पोताना प्रियतमने जोईने ते एवी आनंदित बनी गई, जाणे के तेना उपर अमृत छांट्युं होय !' किनरलीला
जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते किन्नरलीला छंदनुं उदाहरण :
ओ भड-कबंधु नच्चंतु समरि, असिपहर-तुट्टिण । 'किन्नर-लील' कलइ तुरय-सिरिण, तक्खण-चहुट्टिण ॥ ९२
'जो तो, समरांगणमां नाचता आ सुभटना धड उपर तलवारना घाथी कपायेलु घोडा, माथु चोंटी गयाथी ते सुभट किन्नरनी लीला दर्शावी रह्यो छे !'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां दस मात्रा छे तेवा सात पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण । मकरध्वजहास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां बार मात्रा छे ते मकरध्वजहास छंदनुं उदाहरण :
सो जलिअउ मयणग्गि, जु कुसुमिअउ पलासु । जा पप्फुल्लिअ मल्ली, सु 'मयरद्धय-हासु' ॥ ९३
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[ 102 ]
'आ खीलेलो पलाश ते भडकी ऊठेलो मदनाग्नि छे, आ खीलेली मल्लिका ए कामदेवनुं हास्य छे ।'
कुसुमाकुलमधुकर
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते कुसुमाकुलमधुकर छंदनुं उदाहरण :
पत्तउ एहु वसंत,
'कुसुमाउल - महुअरु' । माणिणि माणु मलंतउ, कुसुमाउह- सहयरु ॥ ९४
'जेमां पुष्पो उपर भ्रमरो टोळे वळ्या छे, जे मानिनीओनुं मान मर्दन करी रह्यो छे तेवो आ कामदेवनो सहचर वसंत आवी पहोंच्यो छे ।'
भ्रमरविलास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते भ्रमरविलास छंदनुं उदाहरण :
अलि मालइ -
-परिमल- -लुगु, न अन्नहिं रइ करइ ।
सा ' भ्रमर - विलास' - विअड्ढ, न अन्नहिं मणु धरइ ॥ ९५
'मालतीनी सुगंधमां लुब्ध बनेलो भ्रमर बीजां पुष्पो उपर प्रेम करतो नथी अने ए भ्रमरविलासनी पारखु मालतीनुं मन पण बीजाओमां चोंटतुं नथी ।' मदनविलास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते मदनविलास छंदनुं उदाहरण :
मयण - विलास - गिरि-व्व सहइ, मुद्धहि थण - मंडलु । निज्झरु किर निम्मलु ॥ ९६
तहिं रेहड़ तरल - हार-लय,
'ते मुग्धानुं स्तनमंडळ कामदेवना क्रीडागिरि जेवुं शोभे छे। एना पर रहेली झळकती हारलता पण निर्मळ झरणं होय तेवी शोभे छे ।'
विद्याधरहास
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते विद्याधरहास छंदनुं उदाहरण :
नासंतिहिं समरागम- समइ,
परिचत्त - गइंदिहिं । दिवि 'विज्जाहर हासि 'अ सयल, तुह वेरि-नरिंदिहिं ॥ ९७ 'युद्धनो आरंभ थतां ज हाथीओ छोडी दईने नासी जता तारा शत्रुराजाओए अंतरीक्षमा रहेला बधा विद्याधरोने हसाव्या ।'
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[ 103]
कुसुमायुधशेखर
जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते कुसुमायुधशेखर छंद- उदाहरण :
घोलिर-नव-पल्लवु परिफुल्लिउ, रेहइ असोअ-तरु। विरइउ रम्मु नाइ महु-मासिण, 'कुसुमाउह-सेहरु' ॥ ९८
_ 'जेनां ताजां पर्ण डोली रह्यां छे तेवू आ विकसित अशोकवृक्ष एवं शोभे छे, जाणे के वसंतमासे कामदेवना शिर पर रमणीय शेखर रच्यो होय !'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां अगियार मात्रा छे तेवा छ पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
___ हवे जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण : उपदोहक
_ जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे अने एकी चरणोमां तेर मात्रा छे ते उपदोहक छंदनुं उदाहरण :
महु कंतिण रणि मुक्कउ, एक्कु पहारु अमोहु । 'उअ दो हय' हय चूरिउ, संदणु सारहि जोहु ॥ ९९
'मारा प्रियतमे एवो एक अमोघ प्रहार कर्यो जेने लीधे, जो तो. बन्ने घोडा कपाई गया अने रथ, सारथि तथा योद्धाना चूरेचूरा थई गया !' दोहक
जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते दोहक छंदनुं उदाहरण :
पिअहु पहारिण इक्किण-वि, सहि 'दो हया' पडंति । संनद्धउ असवार-भडु, अनु तुरंगु न भंति ॥ १००
'मारा प्रियतमना एक ज प्रहारथी बंने ढळी पडे छे - जेणे कवच बांध्यु छे तेवो सुभट असवार, तेम ज तेनो घोडो : एमां कशो संदेह नथी ।'
नोंध :- सूत्रमा जे 'घणुं खलं' एम कर्तुं छे तेथी संस्कृतमां पण दोहक होय छे । जेम के :
मम तावन्मतमेतदिह, किमपि यदस्ति तदस्तु ।। रमणीभ्यो रमणीयतरं, अन्यत्किमपि न वस्तु ॥ १०१
___'मारो तो आ बाबतमां आवो ज मत छे-बीजं जे काई होय के न होय पण रमणीओथी वधु रमणीय बीजी कोई पण वस्तु नथी ।'
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[ 104 ]
नोंध :- आ छंदमां समचरणोने अंते बे गुरु होवा जोईए एवी परंपरा छ। चंद्रलेखा ।
जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते चंद्रलेखा छंद- उदाहरण :
तुह विरहिं सा अइ-दुब्बली, धण आवंडुर-देह । अहिमयर-किरणिहिं विक्खिविअ, 'चंदलेह' जिवँ एह ॥ १०२
'ए तारी प्रिया तारा विरहे अतिशय दूबळी थई गई छे अने तेनुं शरीर फिक्कुं पडी गयुं छे । सूर्यनां किरणो वडे क्षुब्ध चंद्रकळा जेवी ए लागे छे' । सुतालिंगन
___ जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते सुतालिंगन छंदनुं उदाहरण :
तुह चंडिण भुअ-दंडिण निवइ, धरमाणिण महि-वलउ । जलहि-सुआलिंगण-पहव-सुहु, देउ जणद्दणु कलउ ॥ १०३
'हे नरपति, तारो प्रचंड भुजदंड पृथ्वीमंडळने धरी रह्यो छे तेथी विष्णुदेव समुद्रकन्या लक्ष्मीना आलिंगननुं सुख भले माणे।' कंकेल्लिलताभवन
जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते कंकेल्लिलताभवन छंद, उदाहरण : __ 'कंकेल्लि-लया-भवण'भंतरि, अलि-रिंछोलि सहति । नावड़ महलच्छी-विणिवेसिअ, कज्जल-हत्थय-पंति ॥ १०४
'अशोकलतानी कुंजमां भ्रमरावलि एवी शोभे छे, जाणे के वसंतलक्ष्मीए दीधेला काजळना थापानी हार ।'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां बार मात्रा छे तेवा पांच पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारनां उदाहरण । कुसुमितकेतकीहस्त
जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने एकी चरणोमां चौद मात्रा छे ते कुसुमितकेतकीहस्त छंद- उदाहरण :
जगु नीसेसु वि निज्जिणिउ, निरु गव्विरु विसमत्थउ । उब्भइ सरल-दलंगुलिउ, 'कुसुमिअ-केअइ-हत्थउ' ॥ १०५
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[ 105]
'समग्र जगतने में जीती लीधुं छे एम जाणी अत्यंत गर्विष्ठ बनेलो कामदेव, आंगळीओ जेवां सीधां पत्रवाळी विकसित केतकीरूपी हाथ ऊंचो करे छे ।' कुंजरविलसित
जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते कुंजरविलसित छंद- उदाहरण :
सल्लइ-पल्लव-कवलप्पणु, रेवा-नइ-जलि मज्जण । तं 'कुंजर-विलसिउ' सुमरइ, गय-विरहिउ करेणु-गणु ॥ १०६
'हाथीना विरहमां हाथणीओ, सल्लकीनां पल्लवोनो कोळियो आपवो, रेवा नदीना जळमां (साथे) स्नान करवू-एवा हाथीना विलास, स्मरण करी रही छे ।' राजहंस
जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते राजहंस छंद- उदाहरण :
जइ गंगाजलि धवलि कालइ, जउणा-जलि जइ खित्तउ । 'रायहंसिन हु व न तुट्ट, सुब्भत्तणु तु-वि तेत्तउ ॥ १०७
'श्वेत गंगाजळमां नाखो के श्याम जमनाजळमां नाखो, तो पण राजहंसनी शुभ्रता नथी वधती नथी घटती : एटली ने एटली ज रहे छ ।' अशोकपल्लवच्छाया
जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते अशोकपल्लवच्छाया छंद- उदाहरण : - वयणु सरोजु नयण कुवलय-दल, हासु नव-फुल्लिअ-मल्लि ।
कर-पाय 'असोअ-पल्लव-च्छाय', सइ जि कुसुमाउह भल्लि ॥ १०८
'वदन ए कमळ, नयन ए नीलकमळनी पांखडी, हास्य ए विकसेली नवमल्लिका, हाथपगनी अशोकपल्लवनी कांति- आम (आ सुंदरी) पोते ज कामदेवनुं बाण छे ।'
नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां तेर मात्रा छे तेवा चार पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां उदाहरण । अनंगललिता
जेनां बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने एकी चरणोमां पंदर मात्रा छे ते
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[1061
अनंगललिता छंद- उदाहरण :
पलिअ केस चल दसणावलि, जर जज्जरइ सरीर-बलु । सव्वि वि गलहिं 'अणंग-ललिअ', किज्जउ धम्मु महंत-फलु ॥ १०९
'वाळ धोळा थया छे, दांत हले छे, घडपण शरीरबळने जर्जरित करे छे, बधो रमणीय प्रेमाचार गळी गयो छे, तो (पछी हवे तो) महान फळ आपनार धर्मनुं पालन करो ।' मन्मथविलसित
जेनां बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते मन्मथविलसित छंदनुं उदाहरण :
मय-वस-तरुणि-विलोअण-तरलु, कलेवरु संपइ जीविउ । मेल्हहु रमणीअणि सहु संगु, चयह हय-'वम्मह-विलसिउ' ॥११०
'शरीर, संपत्ति अने जीवन मदिराथी मत्त तरुणीनी आंखो जेवां चंचळ छे, तो स्त्रीओनो संग छोडो अने दुष्ट मन्मथना विलासनो त्याग करो ।' ओहुल्लणक
___ जेनां बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते ओहुल्लणक छंद- उदाहरण :
महु-रसु धूटिउ जेहिं जहिच्छइ, ते अलि दीसंत भमंत । मालइ-ओहुल्लणउं करंतिण, किं साहिउ पई हेमंत ॥ १११
___ 'जेमणे यथेच्छ मधुपान कयुं छे तेवा भ्रमरो (हवे) अहींतहीं भटकता देखाय छे । हे हेमन्त, मालतीने पुष्परहित करीने तें शुं साध्यु ?'
नोंध :- आ छंद- नाम केटलाकने मते 'वारंगडी' छे ।
आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां चौद मात्रा छे तेवा त्रण पेटाप्रकारोनां उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारनां उदाहरणो : कज्जललेखा
जेनां बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे अने एकी चरणोमां सोळ मात्रा छे ते कज्जललेखा छंद- उदाहरण :
'कज्जल-लेहा 'विल-लोअणहं, गलिअंसु-जलिण पम्हट्टउ । अहरालत्तय-रसु सामरिसु, तुह रिउ-वहु-नयणि पइट्ठउ ॥ ११२
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[ 107]
'तारा शत्रुओनी स्त्रीओनी आंखोनी काजळरेखाथी मलिन बनेल, अने नींगळता आंसजळे धोवाई गयेल एवा अधर उपरना अळताना रसे, क्रोधे भराईने, ए स्त्रीओनी आंखोमां प्रवेश कर्यो छे ।' किलिकिंचित
जेनां बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते किलिकिंचित छंदनुं उदाहरण :
तरुणी-'किलिकिंचिअ'इं विसट्टहिं, ससि-जोण्ह-समुज्जल रत्तडी । मल्लिअ-फुल्लई परिमल-सारइं, जउ तउ गय सग्गहु वत्तडी ॥११३
"तरुणीओ हास्य, भय, रोष, गर्व वगेरे भावो प्रगट करी रही छे, रात्री चांदनी वडे उज्ज्वळ छे, मल्लिकानां फूलोनी सुंदर सुगंध प्रसरे छे : ज्यारे आq होय त्यारे स्वर्गनी वात ज निरर्थक छे ।'
___ नोंध :- आ प्रमाणे जेनां बेकी चरणोमां पंदर मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारोनां बे उदाहरण थयां ।
हवे जेनां बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे तेवा पेटाप्रकारनुं उदाहरण : शशिबिंबित
जेनां बेकी चरणोमां सोळ मात्रा छे अने एकी चरणोमां सत्तर मात्रा छे ते शशिबिंबित छंद- उदाहरण :
तुह मुहु लायण्ण-तरंगिणीए, झलकंतर कंति-करंबिअउं । सोहइ निम्मल-वट्टल-मंडलु, जल-मज्झि नाइ ससि बिंबिअउ ॥ ११८
___ 'तारुं तेजे मढेलुं वदन लावण्यनी सरितामां झळहळतुं एवं शोभे छे, जेवू निर्मळ अने वर्तुळ चंद्रमंडळ जळमां प्रतिबिंबित थयुं होय ।'
नोंध :- आ प्रमाणे एक प्रकारचें उदाहरण थयुं । आ रीते चतुष्पदीना पंचावन प्रकार छ ।
आ प्रमाणे बंने विभागो मळीने अंतरसमा चतुष्पदीना एक सो दस प्रकार छ । ते 'वस्तुक' पण कहेवाय छे । अर्धसमा चतुष्पदी
___ अंतरसमा चतुष्पदीना बीजा अने त्रीजा चरणने उलटाववाथी अर्धसमा चतुष्पदी बने छ । एना पण एक सो दस प्रकार छे अने तेमनां नाम पण 'चंपककुसुम' वगेरे छे।
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[ 108]
अर्धसम चंपककुसम
___एकी चरणोमां सात मात्रा अने बेकी चरणोमां आठ मात्रा होय, त्यारे अंतरसम चंपककुसुम बने छे। ते प्रमाणे तेनां ज बीजा अने त्रीजा चरणने उलटववाथी अर्धसम चंपककुसुम बने छ ।
__ अर्धसम चंपककुसुमनुं उदाहरण : गोरी गोट्ठि, दर-फुरिउट्ठि कलहंसी-गइ-, कलहे लग्गइ ॥ ११५
'जेना होठ सहेज धूजी रह्या छे तेवी गोरी गोष्ठमां कलहंसीनी साथे गतिनी बाबतमां कलह करवा लागी छे ।' अर्धसम मुखपंक्ति
अर्धसम मुखपंक्तिनुं उदाहरण : कृव-कण्ण-कलिंग परज्जिआ, ठिअ नरवइ माण-विज्जिअआ । न हु कोइ अभिट्टा अणिअ-वहि, कहिं वइरि जयद्दह कण्ह कहि ॥११६
'कृपाचार्य, कर्ण, अने कलिंगराजनो पराभव कर्यो, बीजा राजाओ पण मानरहित थई गया, रणमार्गमां कोई पण सामे भीडवा आवतुं नथी । हे कृष्ण, कहे, आपणो शत्रु जयद्रथ कये स्थाने छे ?'
नोंध :- आ प्रमाणे अर्धसमना बीजा प्रकारोनां उदाहरण पण जाणवां । संकीर्णा चतुष्पदी
जे चतुष्पदी ध्रुवामां, आ पहेलां जेमनुं निरूपण कर्यु छे तेमनां मापवाळां बे, त्रण के चार चरणो मिश्ररूपे एक साथे होय, ते चतुष्पदी 'संकीर्णा' कहेवाय छ।
जेमां बे चरणो जुदा जुदा मापनां छे तेवी संकीर्णा चतुष्पदीनुं उदाहरण : चूडुल्लउ बाहोह-जलु, नयणा कंचुअ विसम-थण । इअ मुंजिं रइआ दूहडा, पंच-वि कामहं पंच सर ॥ ११७
- "चूडुल्लउ", "बाहोह-जलु", "नयणा", "कंचुअ", "विसम-थण" - आ शब्दोवाळा पांच दोहा मुंजे कामदेवनां पांच बाण समा रच्या ।'
जुदा जुदा मापवाळां त्रण चरणोनी संकीर्णा चतुष्पदी, उदाहरण : वायाला फरुसा विंधणा, गुणिहिं विमुक्का प्राणहर । जह दुज्जण सज्जण-जण-पउरि, तेवँ पसर न लहंति सर ॥ ११८ 'पवनवेगी, कठोर, वींधी नाखे तेवां, पणछमांथी छोडायेला अने प्राणने हरी
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[ 109]
लेनारां होवा छतां बाणोने, जेम वाचाळ, कठोर अने मर्म वींधती वाणीवाळा, निर्गुण अने प्राणने हरनारा दुर्जनोने सज्जनोनी वच्चे प्रवेश मळतो नथी, तेम प्रवेश मळतो न हतो ।'
अथवा तो आ प्रकार, बीजुं एक उदाहरण : चूडुल्लउ चुण्णीहोइसइ, मुद्धि कओलि निहित्तउ । निद्दड्डउ सासाणलिण, बाह-सलिल-संसित्तउ ॥ ११९
'हे मुग्धा, तें गाल नीचे राखेलो चूडलो, तारा निसासानी आगथी बळी जई, तारा आंसुथी सींचाईने, चूरेचूरा थई जशे ।'
जेमां चारे चरणो जुदा मापनां छे तेवी संकीर्णा चतुष्पदी, उदाहरण : तं तेत्तिउ बाहोहजलु, सिहिणंतरि-वि न पत्त । छिमिछिमिवि गंड-स्थलिहि, सिमिसिमिवि सिमिवि समत्तु ॥ १२०
__'आंसुना प्रवाहनुं जळ एटलुं बधुं होवा छतां पण ते स्तनोना वचगाळा सुधी पहोंच्युं नहीं : गाल उपर छमछम थईने पडतुं ते समसम करतुं ऊडी गयु ।' । सर्वसमा चतुष्पदी
जे चतुष्पदीनां चारे चरणो एकसरखा मापनां होय तेनुं नाम 'सर्वसमा' चतुष्पदी ।
तेना केटलाक खास प्रकारो आ प्रमाणे छे । ध्रुवक जेनां प्रत्येक चरणमां एक पंचमात्र अने एक चतुर्मात्र होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम ध्रुवक छ ।
ध्रुवकनुं उदाहरण : जइ वि संखु न करि, तुहुं 'ध्रुवु' मुणिउ हरि । जं विरह-भीअइ, अणुसरिउ सिरिअइ ॥ १२१ ___'जो के तारा हाथमां शंख नथी ते छतां तुं विष्णु होवानुं निश्चितपणे जणाय छे, कारण के जाणे के तारा विरहथी बीती होय तेम श्री तने अनुसरे छ ।' शशांकवदना
जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुर्मात्र अने एक द्विमात्र होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम शशांकवदना छे ।
___ शशांकवदनानुं उदाहरण : नव-कुवलय-नयण, 'ससंक-वयण' धण । कोमल-कमल-कर, उअ सरय-सिरि किर ॥ १२२
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[ 110 ]
'विकसेला नीलकमल जेवां नयनवाळी, चंद्र जेवा वदनवाळी, कमळ जेवा कोमल हाथवाळी तारी प्रिया, जो तो, शरदऋतुनी लक्ष्मी जेवी लागे छे ।' मारकृति
जेना प्रत्येक चरणमां कां तो एक चतुर्मात्र, एक पंचमात्र अने एक द्विमात्र होय, अथवा तो बे चतुर्मात्र अने एक त्रिमात्र होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम मारकृति छे ।
मारकृतिनुं उदाहरण :
तुह मार 'मार - किदी', क- वि एह नवल्लिअ । दूरि सबाल - भल्लि, जं हिअडइ सल्लिअ ॥ १२३
'हे कामदेव, तारुं आ मारणकार्य अपूर्व छे : ए बाळारूपी बाण दूर होवा छतां हृदय वधाई जाय छे ।'
महानुभावा
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक द्विकल होय, अथवा तो त्रण चतुष्कल होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम महानुभावा छे । महानुभावानुं उदाहरण :
जे अहिं न पर-दोस, गुणिहिं जि पयडिअ - तोस ।
ते जगि 'महाणुभावा', विरला सरल-सहावा ॥ १२४
'जेओ बीजानो दोष जोता नथी, बीजाना गुणो प्रत्ये संतोष प्रगट करे छे, जे सरळ स्वभावना छे, तेवा महानुभावो आ जगतमां विरल होय छे ।' अप्सरोविलसित
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक चतुष्कल, एक त्रिकल होय, अथवा बे चतुष्कल अने एक पंचकल होय, अथवा तो बे पंचकल अने एक त्रिकल होय, ते सर्वसमा चतुष्पदीनुं नाम अप्सरोविलसित छे ।
अप्सरोविलसितनुं उदाहरण :
पइं ससि वयणिए विब्भमि, हसिअ ' अच्छर- विलसिअ 'इं । भुमहि किउ पाइकर, मयणु मोहिअ - जण - माई ॥ १२५
'हे चंद्रवदना, तें प्रेमोपचारमां करेला हास्यथी, अप्सरा जेवा विलासथी अने लोकोना मनने मोहित करती तारी भमरथी कामदेवने पगपाळा सैनिक जेवो बनावी दीधो छे ।'
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[ 111]
गंधोदकधारा
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय, अथवा तो त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम गंधोदकधारा ।
गंधोदकधारानुं उदाहरण : रमणि-कवोल-कुरंगमय-, पत्त-लयाविल-अंसु-भवि । घण-'गंधोदय-धार'-भरि, वइरिअ तुह पहायंति सवि ॥ १२६
_ 'तारा बधा शत्रुओ तेमनी स्त्रीओना गाल परनी कस्तूरीनी पत्रभंगीथी खरडायेलां आंसुमाथी प्रगटेली भरपूर सुगंधीजळनी धारामां नहाई रह्यां छे ।' पारणक
जेना प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, अथवा तो एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम पारणक छे ।
पारणकनुं उदाहरण : कइअहिं होएसइ तं दिवसु, आणंद-सुहा-रस-पावणउं । होही प्रिय-मह-ससि-चंदिमइ, जहिं नयण-चओरहं 'पारणउं' ॥ १२७
'आनंदरूपी अमृतरस प्राप्त करावतो एवो दिवस क्यारे आवशे, ज्यारे (मारां) नेत्ररूपी चकोर प्रियाना चंद्रवदननी चांदनीथी पारणुं करशे ?' पद्धडिका
जेना प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम पद्धडिका। पद्धडिकानुं उदाहरण : पर-गुण-गहणु स-दोस-पयासणु, महु-महुरक्खर हिअ-मिअ-भासणु । उवयारिण पडिकिउ वेरिअणहं, इअ 'पद्धडी' मणोहर सुअणहं ॥१२८
'पारकाना गुण लेवा, पोताना दोष प्रगट करवा, मधमीठां, हितकारी अने मापसरनां वचन बोलवां, शत्रुओनो उपकारथी प्रतिकार करवो-एवो सुंदर होय छे सज्जनोनो व्यवहार ।'
नोंध :- त्रीजा अध्यायमां (३,७३)जे 'पद्धति' नामना छंदनी व्याख्या आपी छे, ए पद्धतिमां पण प्रत्येक चरणमां चार चतुष्कल होय छे ए खरं, पण त्यां एवो पण नियम छे के एकी स्थाने रहेला चतुष्कलमां जगण न आवी शके अने छेल्ला चतुष्कलनुं स्वरूप कां तो जगणनुं होय, अथवा तो चार लघु- होय, ज्यारे अहीं जे पद्धडिकानी व्याख्या आपी छे तेमां एवो कोई नियम लागु पडतो नथी ।
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[112]
रगडाध्रुवक
जेना प्रत्येक चरणमां त्रण चतुष्कल होय, एक पंचकल होय, अथवा तो एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते चतुष्पदीनुं नाम रगडाध्रुवक ।
। रगडाध्रुवकनुं उदाहरण : अइ-चंगंगइ मोरइ वल्लहिं, जइ तुम्ह रूव-मडप्फरु भग्गउ । काइं त एवहिं तहु विरह-खणि, महु वम्मह 'रगडउ ध्रुवु' लग्गउ ॥ १२९
हे कामदेव, अति सुंदर शरीरवाळा मारा वालमे तारा रूपना गर्वना चूरा करी नाख्या, तेथी करीने तुं शा माटे एना विरहकाळे आ रीते मन लगातार रगडवा मांड्यो छे ?'
हेमचंदाचार्य-रचित वृत्तियुक्त छंदोनुशासननो 'षट्पदी-चतुष्पदी-वर्णन' नामनो
छठ्ठो अध्याय समाप्त थयो।
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सातमो अध्याय द्विपदी - वर्णन
द्विपदी ध्रुवा
कर्पूर
जेना प्रत्येक चरणमां बे द्विकल, एक चतुष्कल, बे द्विकल, एक लघु, बे द्विकल, एक चतुष्कल, बे द्विकल अने त्रण लघु होय ते द्विपदीनुं नाम कर्पूर । तेमां पंदर मात्रा पछी यति होय छे । व्याख्यामां ज्यां द्विकल कह्यो छे ते जगणना निषेध माटे छे ।
हवे द्विपदी ध्रुवाओनुं निरूपण करवामां आवे छे ।
कर्पूरनुं उदाहरण :
'कप्पूर' - धवल - गुण अज्जिणिअ, आजम्मु विनिव - चक्कव पई । कित्ति का उल्लाल करि, घल्लिअ चउ- सायर परइ ॥ १
'हे चक्रवर्ती राजवी, तें जन्मथी मांडीने तारा कपूर जेवा उज्ज्वळ गुणो वडे जे कीर्तिने प्राप्त करी छे, तेने केम तें उछाळीने चार समुद्रोनी पेले पार फेंकी दीधी छे ?'
कुंकुम
उपर जेनी व्याख्या आपी छे ते कर्पूर चंदमां छेल्लो लघु ओछो होय तेवां चार चरणोनी बनेल द्विपदीनुं नाम कुंकुम छे ।
कुंकुम द्विपदीनुं उदाहरण :
घणसारु मेल्लि 'कुंकुम' चयहि, परइ करहि मयनाहि वि ।
विणु पिअयमिं इहु सवु निष्फलउं, मणु रइ करइ न कत्थ वि ॥ २ 'तुं कपूर मूकी दे, केसर तजी दे, कस्तूरीने आघी कर । प्रियतम विना ए बधुं निरर्थक छे । मारा मनने कशुं ज गमतुं नथी ।'
नोंध :मागधोनी परंपरामां कर्पूर अने कुंकुम ए बने छंदोने उल्लालक कह्या छे । केटलाक छंदः शास्त्रीओए आठ लघुथी शरू करीने बब्बे लघुनी वृद्धि करतां जे उल्लालना प्रकारो बने छे तेमने वर्णव्या छे, परंतु ए छंदोना एक करोड जेटला प्रस्तारमां एमनो समावेश थई जतो होईने अमे एमनुं जुदुं निरूपण कर्तुं नथी ।
लय
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल होय ते द्विपदीनुं नाम लय छे ।
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[ 114 ]
लय द्विपदीनुं उदाहरण
किउ उरि लच्छिहिँ नि' लउ' करिण कलिउ चक्कु महिअलु धरिउ । बलि - नावँ साहिउ न हु कह-वि हु पहु तुहुं पुरिसोत्तिम चरिउ ॥ ३ 'तारा वक्षःस्थळ पर लक्ष्मीए निवास कर्यो छे, तें हाथमां चक्र धारण कर्यु छे, तें पृथ्वी पर स्वामीत्व मेळव्युं छे, तें केमेय "बलिनुं” (१ | बळवान शत्रुओनुं, २ | बलिदानवनुं) नाम पण सह्युं नथी । हे स्वामी, तें पुरुषोत्तमनुं (विष्णुनुं ) चरित्र प्रगट कर्तुं छे ।'
भ्रमरपद
ज्यारे लय द्विपदीमां दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय त्यारे ते द्विपदीनुं नाम भ्रमरपद छे ।
भ्रमरपद द्विपदीनुं उदाहरण :
॥ ४
ललिअ - विलासोचिअ तविण किलेसहि, सहि किं तणु अप्पणु । मालइ - कुसुम सहइ, 'भमर-पउं', न उण, खर- सउणि- झडप्पणु 'हे सखी, तुं तो ललित विलासने योग्य छो, तो शा माटे तुं तप करीने पोताना देहने कष्ट आपे छे ? मालतीनुं पुष्प भ्रमरनो चरणपात सही शके, नहीं के कोई कठोर पक्षीनो झपाटो ।'
उपभ्रमरपद
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक द्विकल होय अने दस मात्रा पछी तथा आठ मात्रा पछी यति होय ते द्विपदीनुं नाम उपभ्रमरपद । उपभ्रमरपद द्विपदीनुं उदाहरण :
तहि मुद्धहि नेहंधहि किवँ किवणय तुह खलिउ पयट्टु I
'उअ भमर-पएण' वि भज्जइ मालइ - नव- कुसुम विट्टु ॥ ५
'हे अजाण, ए प्रेमांध मुग्धानो तें केम अपराध कर्यो ? जो, मालतीनुं ताजुं विकसेलुं फूल भ्रमरना चरणप्रहारथी पण तूटी पडे छे ।'
गरुडपद
जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते द्विपदीनुं नाम गरुडपद छे ।
गरुडपद द्विपदीनुं उदाहरण :
जसु पारु लहंति कया-वि न वि सुर-गुरु- भिउ-नंदण- पमुह । अरि-पन्नग-‘गरुड पयं 'पिअइ सयलु-वि गुण- गणु सु किवँ तुह ॥ ६
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[ 115 ]
‘हे शत्रुरूपी नाग प्रत्ये गरुड समा, बृहस्पति, शुक्राचार्य वगेरे पण जेनो कदी पार पामी शकता नथी तेवो तारो गुणसमूह समग्रपणे कई रीते वर्णवी शकाय ?'
उपगरुडपद
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक त्रिकल होय ते द्विपदीनुं नाम उपगरुडपद । उपगरुडपद द्विपदीनुं उदाहरण :
हरिअ - दुजीह - प्पसरणु पिअ-पुरिसोत्तम विणयाणंदणु ।
4
'उअ गरुड -पय 'म्मि निबद्ध-रइ नरवइ हरइ न कासु मणु ॥ ७ 'जेम गरुड सर्पोनी गति रूंधे छे, तेम जे दुर्जनोनी गति रूंधे छे; जेम गरुडने विष्णु वहाला छे, तेम जेने उत्तम पुरुषो वहाला छे; जेम गरुड विनताने आनंद आपे छे (विनतापुत्र छे), तेम जे प्रणाम करनारने आनंद आपे छे-एम, गरुडना जेवा आचरणमां आसक्ति राखतो आ राजवी कोनुं मन न हरी ले' ।'
हरिणीकुल
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा बार मात्रा पछी अने आठ मात्र पछी यति होय ते द्विपदीनुं नाम हरिणीकुल । हरिणीकुल द्विपदीनुं उदाहरण :
तुहुं उज्जाणि म वच्चसु, जइ वि हु विलसइ, मयणूसवु पबलु । गइ - नयणिहिं लज्जीहइ, तुह हंसीउलु, सहि तह 'हरिणिउलु' ॥ ८ 'उद्यानमां जोरशोरथी मदनोत्सव विलसी रह्यो होवा छतां तुं त्यां न जती, केम के हे सखी, तारी गतिथी हंसीओ लज्जित थशे अने आंखोथी हरणीओ लज्जित
थशे । '
गीतिसम
ज्यारे हरिणीकुल द्विपदीमां दस मात्रा पछी अने आठ मात्रा पछी यति होय, त्यारे ए द्विपदी गीतिने मळती होवाने कारणे तेनुं नाम गीतिसम छे । गीतिसम द्विपदीनुं उदाहरण :
नच्चिरु किसल - करिहिं, फुड- पयडिअ-, पुलउग्गमु मउलावलिहिं । उववणु नाइ मुइउ, कय-' गीइ समं', चिअ तरलिहिं अलि-उलिहिं ॥ ९ 'कूंपळरूपी कर वडे नाचतुं, स्पष्टपणे कळीओना समूहथी रोमांच प्रगट करतुं, तो साथोसाथ चंचळ भ्रमरोना गुंजनथी गीत गातुं आ उपवन जाणे के आनंदित थई रह्युं छे ।'
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[116]
भ्रमररुत
जेना प्रत्येक चरणमां पांच षट्कल होय तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपद- नाम भ्रमररुत ।
भ्रमररुत द्विपदीनुं उदाहरण : वर-जाइ सरंतहु, 'भमर रुअंतहु तुहु, चिरु सुहु परिदीसइ । मायंगि मयंधइ, तुज्झु रमंतहु, कण्ण-चवेड जि होसइ ॥ १० ___'हे भ्रमर, उत्तम चमेलीने संभारीने तुं लांबुं रुदन करतो होवा छतां ए तारा माटे सुखरूप छे । पण जो तुं मदांध मातंगनी पासे रमतो रहीश, तो तेना काननी झपट तुं खाईश ।' हरिणीपद
जेना प्रत्येक चरणमा एक षट्कल होय अने छ चतुष्कल होय, ए द्विपदीनुं नाम हरिणीपद।
हरिणीपद द्विपदीनुं उदाहरण : एत्तहे गब्भ-भरालस 'हरिणी पउ' न हु एक्को-वि संचरइ । एत्तहे कण्णारोविअ-सरु हय-लुद्धउ भण मिउ किं करइ ॥ ११
'एक तरफ गर्भना भारना कारणे अशक्त हरणी एक पण पगलुं भरी शके तेम नथी । तो बीजी तरफ दुष्ट शिकारी धनुष्यनी दोरी पर बाण चडावीने ऊभो रह्यो छ । कहे, (आवी परिस्थितिमां) हरण (बिचारो) शुं करे ?' कमलाकर
__ जेना प्रत्येक चरणमां चार षट्कल, एक चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते द्विपदीनुं नाम कमलाकर ।।
कमलाकर द्विपदीनुं उदाहरण : सयलु वि दिणु संनिहिअहं खेल्लंतहं चक्कवाय-मिहुणहं निअवि । विरह-दुत्थ मित्तत्थवणि नाइ दुक्खिअ मउलिहिं 'कमलायर'-वि ॥ १२
'जेओ आखो दिवस एकबीजानी निकटमां रमतां हतां एवां चक्रवाकोनी जोडीने, सूर्य आथमतां विरहे दु:खी थयेली जोईने, कमळसरोवरनां कमळो पण जाणे के दुःखे बीडाई गयां ।' कुंकुमतिलकावली
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते द्विपदीनुं नाम
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[117]
कुंकुमतिलकावली ।
कुंकुमतिलकावली द्विपदीनुं उदाहरण : महु दूसह-विरह-करालिअहि मयण मेलसु जणु मण-वंछिउ । पई पडिम ठवेविणु करिसु सामि 'कुंकुमतिलयावलि' लंछिउ ॥ १३
'हे कामदेव, असह्य विरहदुःखे हुं त्रासेली छु, तो तुं मने मारा मनवांछित जननो मेळाप कराव । हे स्वामी, हुं तारी प्रतिमा स्थापीने तेने कुंकुमतिलकावलीथी विभूषित करीश ।' रत्नकंठिका
। उपर्युक्त कमलाकर अने कुंकुमतिलकावलीना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ए बंने द्विपदीओनुं नाम रत्नकंठिका ।
रत्नकंठिकाना बंने प्रकारनां उदाहरण : जइ न हससि न य कुप्पसि, न लवसि ता तुहु, सहइ ‘रयण-कंठिअ' । अन्नह फुरिआहर-दर-, दीसंत णवर, सहइ दसण-पंतिआ ॥ १४
_ 'जो तुं हसे नही, कोपे नहीं, बोले नहीं तो ज तारी रत्नकंठी शोभी ऊठे छ । नहीं तो फरकता होठो वच्चेथी सहेज देखाती तारी दंतपंक्तिनी ज शोभा विलसे
छे' ।
पाडिअ-बहुविह-नरवइ-कुंजर-सइ पर-साहिज्ज-विवज्जिउ । महिअलि निरुवम-विक्कमु तुहुं राय- रयण कंठी'-रवु निच्छिउ ॥ १५
'अनेक राजवीओना सेंकडो हाथीओने कोई बीजानी सहाय विना हणी नाखनार हे राजरत्न, नक्की तुं आ पृथ्वी पर अतुल्य पराक्रमी सिंह छे ।' शिखा
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक पंचकल होय तथा बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम शिखा ।
शिखा द्विपदीनुं उदाहरण : जसु अतुलिअ-गय-बल-भरि कंपहिं कुल-महिहर सवि स-वसुंधर ॥ निअ-कुल-नहयल-ससहर वीर-'सिहा'-मणि जय-मज्झि तुहुँ जि पर ॥१६
'जेनी अतुल्य गजसेनाना भारथी पृथ्वी सहित बधा कुलपर्वतो कंपी ऊठे छे तेवा, पोताना कुळरूपी गगनमां चंद्रसमा (हे राजवी), जगतमां तुं एकमात्र वीरशिरोमणि छे ।'
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[ 118 ]
छड्डुणिका
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा दस मात्रा पछी अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदी- नाम छड्डणिका ।
छड्डणिका द्विपदीनुं उदाहरण : जा किन्नर-मिहुणिहिं, तुहु पुहइसर, पत्थुअ सुचरिअ-पद्धडिअ । ता गिरि-गुह-संधिहिं, कायर तक्खणि, हुअ रिउ-धोरणि 'छड्डुणिअ' ॥१७
___ 'हे पृथ्वीपति, जेवू किन्नरमिथुनोए तारा सुंदर चरितोनी श्रेणीनुं (गान) शरू कर्यु, ते ज क्षणे तारा शत्रुओनी टोळी जे गिरिगुफाओना सांधामां (संताई रहेती) ते स्थान छोडीने कायरताथी नासी गई ।' स्कंधकसम
जेना प्रत्येक चरणमां आठ चतुष्कल होय तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम स्कंधकसम ।
स्कंधकसम द्विपदी, उदाहरण : नारिहुं वयणुवल्इं, सर 'खंधय-सम'-, जलहिं मज्झि मज्जंतिअहं । ओ गिण्हहिं विब्भमु, मणहर-अहिणव-, विअसिअ-सररुह-पंतिअहं ॥१८
'सरोवरना जळमां खभा सुधी डूबीने नहाती रमणीओनां वदन, जो तो, ताजां ज खीलेलां रमणीय कमळोनी श्रेणीनी सुंदरता धरावे छे ।' मौक्तिकदाम
ए स्कंधकसमना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम मौक्तिकदाम ।
मौक्तिकदाम द्विपदीनुं उदाहरण : जइ तह पवयण सामिअ, हिअइ ठविज्जइ, छण-ससहर-कर-निम्मलु । ता निच्छउ अहिरावहुं, 'मुत्तिअ-दावहुँ', तरलहुं संगहु निप्फलु ॥ १९
'हे (तीर्थंकर) प्रभु, जो तारुं पूर्णिमाना चंद्रनां किरणो जेवू निर्मळ प्रवचन हृदयमां (हृदय पर) स्थापित कराय पछी तो रमणीय झगमगती मोतीनी माळा पहेरवी निरर्थक छे ए वात नक्की ।' नवकदलीपत्र
जो ए स्कंधक सम द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम नवकदलीपत्र ।
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[119]
नवकदलीपत्र द्विपदीनुं उदाहरण : 'नवकयलीपत्ति 'हिं वीअणु, पत्थुउ कमलिहिं, विरइउ सत्थरउ । तह-वि हुदाहु पवड्डइ महु, सीउ उवयरणु, पिअ-सहि संवरउ ॥ २०
___'हे वहाली सखी, तें लीलां केळनां पानथी पवन नाखवा मांड्यो, कमळोनी पथारी करी, तो पण मारा शरीरनी बळतरा वधती जाय छे । तो तुं हवे शीतोपचार करवा मांडी वाळ ।' स्कंधकसमा, मौक्तिकदाम्नी, नवकदलीपत्रा
जो स्कंधकसम, मौक्तिकदाम अने नवकदलीपत्र. ए द्विपदीओना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, छ चतुष्कल अने एक द्विकल ए प्रमाणे मात्रागणो होय तो ए द्विपदीओनां नाम अनुक्रमे स्कंधकसमा, मौक्तिकदाम्नी अने नवलदलीपत्रा छे । यतिनो नियम मूळ प्रमाणे ज छे ।
। स्कंधकसमा द्विपदीनुं उदाहरण : गय-पत्त-परिग्गह, सुमणस-विरहिअ, फल-वज्जिअ तरु-'खंध-सम'। कंटय-परिवारिअ, गिरि-कंदर-गय, तुह रिउ वसहिं विमुक्क-कम ॥२१.१॥
___ 'हे राजवी, जेम वृक्षनुं ढूंटु पत्रसमूह विनानु, फळपुष्परहित अने कांटाथी घेरायेलुं होय छे, तेम तारा शत्रुओ हाथी, वाहनो अने अंत:पुर रहित, सज्जनोना साथ वगरना, सुखभोगे वर्जित अने दुष्टजनोथी वीटळायेला एवा, पर्वतोनी गुफामां वसे
छ।'
नोंध :- ए ज प्रमाणे बाकीना बे प्रकारनी द्विपदीओनां उदाहरणो जाणवां । आयामक
जो प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल होय अने एक पंचकल होय, तो ए द्विपदीनुं नाम आयामक ।
आयामक द्विपदीनुं उदाहरण : 'आयामय'-धवलत्तण-गुण-कलिए पेच्छिवि केअइ-दलि अलि विलसिरु। संभरि पिअ-नयणइं विरहज्जर-जज्जरिअ-गमणु मुज्झइ पहिउ चिरु ॥२२
'दीर्घ अने धवल एवा केतकीपत्र पर रहेला चंचळ भ्रमरने जोईने पोतानी प्रियानां नयन सांभरी आवतां विरहज्वरे जेनी गति अटकी पडी छे, तेवो प्रवासी ऊंडी मूर्छामां ढळी पडे छे ।'
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[120 ] कांचीदाम
जो आयामकना प्रत्येक चरणमां दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय तो ते द्विपदीनुं नाम कांचीदाम ।
___ कांचीदाम द्विपदी, उदाहरण : अंगय फुडिअ तुडिअ, नव-कंचुअ-गुण, दलिउ कंचि-दामु' स-निअंसणु। तहिं तुह गुण-सवणिण, ऊससिअंगिहिं, अप्पडिहय-सासणु हुअ मयणु ॥२३
'तेना अवयवो रोमांचित थया, नवी कंचुकीनी कस तूटी गई, कटिमेखला सहित तेनुं वस्त्र सरी पड्युं : तारा गुणोनुं वर्णन सांभळीने निःश्वास नाखती एवी तारी प्रियाना देह पर, जेनो प्रतिकार न थई शके तेवू कामदेवनुं शासन स्थपायुं ।' रसनादाम
ते आयामक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्र अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम रसनादम । ___ रसनादाम द्विपदीनुं उदाहरण : तुह दंसण-तूरंतिए, सुंदर मुद्धए, सुणि जं किउ पच्चलिउ । हारु निअंबि निवेसिउ, 'रसणा-दामु', वि-थण-सिहरोवरि घल्लिउ ॥ २४
____ 'हे सुंदर, तने जोवाने उतावळी बनेली ते मुग्धाए केवू ऊलटुंसुलटुं कर्यु ते तुं सांभळ : तेणे हार कटिप्रदेश पर पहेर्यो अने स्तनप्रदेश पर कटिमेखला !' चूडामणि
ए आयामक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम चूडामणि ।
चूडामणि द्विपदीनुं उदाहरण : बहुविह-समरंगणि खग्गिण, नवनव जय-सिरि, जं पइं परिणिज्जइ । निव-चूडामणि' तुह कित्तिहि, मंगल-कारणि, तं जगु धवलिज्जइ ॥२५
'अनेक समरांगणोमां तारा खड्गबळे तुं नवी नवी विजयश्रीने वरे छे तेथी, हे नृपशिरोमणि, तारो मांगलिक उत्सव करवा माटे तारी कीर्तिथी जगतने धोळवामां आवी रह्यं छे ।' उपायामक, उपकांचीदाम, उपरसनादाम, उपचूडामणि
उपर्युक्त आयामक वगेरे चारेय द्विपदीओना प्रत्येक चरणमां जो एक षट्कल, . छ चतुष्कल अने एक विकल होय, तो ते द्विपदीओनां नाम अनुक्रमे उपायामक,
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[121] उपकांचीदाम, उपरसनादाम अने उपचूडामणि एवां छे । तेमां यतिनो नियम पण आगळ कह्या प्रमाणे छ ।
उपायामक द्विपदी, उदाहरण : तणु-अंगिहिं लोअण-नलिणिहिं 'उअ आयामिण' केअइ-दलु निज्जिउ । वयणुल्लई कंति-कडप्पिण तह मयलंछण-मंडलु अवहत्थिउ ॥ २६
_ 'ए कृशांगीए पोतानां नेत्रकमळोनी दीर्घताथी केतकीपत्र उपर पण विजय मेळव्यो छे, अने तेना वदने पोतानी अतिशय कांतिथी चंद्रमंडळने पण अपमानित कर्यु छे ।'
नोंध :- ए प्रमाणे बाकीना प्रकारोनां पण उदाहरण समजवां । स्वप्नक
जेना प्रत्येक चरणमां आठ चतुष्कल अने एक द्विकल होय, ते द्विपदीनुं नाम स्वप्नक ।
स्वप्नक द्विपदीनुं उदाहरण : पिउ आइउ निवडिउ पइहिं सपणय-वयणिहिं अणुणिवि माणु मुआविअ । इअ 'सिविणय'-भरि आलिंगिमि जाहिं ताहिं सहि हय-कुक्कुड रडिअ ॥ २७
___ 'प्रिय आव्यो, पगमां पड्यो, प्रणयवचनथी मने मनावीने मान छोडाव्युं अने स्वप्नमां हुं ज्यां तेने आलिंगन आपुं छु, त्यां तो, हे सखी, दुष्ट कूकडाओ बोली ऊठ्या ।' भुजंगविक्रान्त
ए स्वप्नक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम भुजंगविक्रान्त ।
भुजंगविक्रान्त द्विपदी, उदाहरण : तुह रणि नट्ठ रसायलि, गय अरि कारणि, इणि किर 'भुअंग विक्कंतय' । ताहं विलासभवणि पुरि, लीला-वणि परिअंचहिं निवसहि चिरु गय-भय ॥२८
'तारा शत्रुओ रणसंग्राममांथी नासी जईने पाताळमां पहोंच्या लागे छे : ते कारणे तेमना नगरमां लीला माटेना उद्यानमां अने विलासभवनमां सर्पो निर्भय बनीने वसे छे अने बहादुरीथी हरेफरे छे । ताराध्रुवक
ए स्वप्नक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी
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[ 122 ]
यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम ताराध्रुवक ।
ताराध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण :
तुह रिउ वण-गय दिसि मोहिअ, 'ताराध्रुव' अवलोअहिं जावँहिं अवहिअ । बाह - जलाविल- - नयण निअहिं, न हु तावहिं हुअ, हिअडइ मरणासंकिअ॥ २ 'वनोमां भागी गयेला तारा शत्रुओ दिग्मूढ बनीने ध्यानपूर्वक ध्रुवनो तारो जोवा मथे छे, परंतु आंसुथी डहोळायेली आंखोने लीधे ते जोई नथी शकता, तेथी तेमना हृदयमां मरणनो भय प्रगटे छे ।'
नवरंगक
ए स्वप्न द्विपदीना प्रत्येक चरणमां जो सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम नवरंगक । नवरंगक द्विपदीनुं उदाहरण :
दहिअ - अक्खय- घण- चंदण-मालिअ-, नव- 'नव- रंगय' - वावड निअवि पिअ । गाढोक्कंठा - सरलिअ-भुअ- जुउ, अवरुंडई रइ - रस-भर- कंदलिअ ॥ ३०
'प्रियतमाने दहीं अने अक्षतथी मंगळविधि करती, चंदननो गाढ अंगलेप करेली, पुष्पमाला धारण करेली अने नवो कसूंबो पहेरेली जोईने प्रियतम गाढ उत्कंठाथी बने हाथो लंबावीने, भरपूर रतिरसे रोमांचित बनीने, तेने आलिंगन दे छे ।' स्थविरासनक
जेना प्रत्येक चरणमां त्रण षट्कल अने चार चतुष्कल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम स्थविरासनक 1
स्थविरासनक द्विपदीनुं उदाहरण :
दार- विवज्जिअ विसय-परम्मुह, खलिअ - गइ - क्कम, अइ- पसरिअ - वेविअ । वेरग्गिण तवसित्तु पवज्जिवि, ठिअ ' थेरासणि', तुह तरुण-वि वेरिअ ॥३१ 'तारा शत्रुओ पत्नीरहित, विषयविमुख (बीजो अर्थ पोताना राज्यथी रहित), भ्रमणनी गति विनाना, अत्यंत कांपता अने वैराग्निथी तपता वैराग्यने लीधे, ओ तरुण वयना होवा छतां पण, तापस बनीने स्थिर आसन लगावीने बेठा छे ।'
सुभग
जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक षट्कल होय, ते द्विपदीनुं
नाम सुभग |
सुभग द्विपदीनुं उदाहरण :
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[ 123 ]
जलइ सरोवर नीलुप्पल-वणु वणि लय फुल्लिअ नहयलि हिम-किरणु । विरह-रह कई तुह तणु- अंगिहि 'सुहय' विणिम्मिड जलु थलु नहु जलणु ॥ ३२ 'सरोवरमां नीलकमल धगधगी रह्यां छे, वनमां पुष्पित लता धगधगी रही छे अने आकाशमां चंद्र धगधगी रह्यो छे । हे सुंदर, तारा उत्कट विरहमां ए कृशांगीए जळ, स्थळ अने आकाशने धगधगतुं करी दीधुं छे ।'
पवनध्रुवक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, चार चतुष्कल, एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, द्विपदीनुं नाम पवनध्रुवक ।
पवनध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण :
बहु - हय - खर- खुर - खंडिअ - महि-, उट्ठिअ - रइं रिउ - वहु- नीसास - 'पवणधुई' । जसु पाण- छणि अच्छ-जुअल - अणिमिस- नयणत्तणु सुरसुंदरि निंदहिं ॥ ३३ 'ए ( राजवी रणसंग्राम माटे) ज्यारे प्रयाण करे छे, त्यारे अनेक घोडाओनी कठण खरीओथी भोंय तूटी पडतां जे धूळ ऊडे छे अने ए शत्रुनी स्त्रीओना निश्वासना पवनथी आमतेम फंगोळाय छे तेथी, अप्सराओ पोतानी अनिमिष रहेती बने आंखोने वखोडे छे ।'
कुमुद
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, बे चतुष्कल, एक षट्कल, त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम कुमुद ।
कुमुद द्विपदीनुं उदाहरण :
नरु लच्छि - विवज्जिउ, मुच्चइ लोइण, सव्वु - वि ईसर-कय- अणुसरणु । मउलिअ कमलायर, निसि अलि मेल्लिवि, सेवहिं विअसंतउं 'कुमुअ' - वणु ॥३४ 'जगतमां जे माणस लक्ष्मीरहित होय तेने सहु त्यजी दे छे अने जे श्रीमंत होय तेने अनुसरे छे । रात पडतां भ्रमरो बीडायेलां कमळोने छोडीने खीलतां कुमुदो सेवे छे ।'
भाराक्रान्त
जो ए कुमुद द्विपदीना प्रत्येक चरणमां बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम भाराक्रान्त |
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[ 124]
भाराक्रान्त द्विपदीनुं उदाहरण : कंचण-भूसण छड्डिअ, खंडिवि वसणु,-वि लहुइउ तुरिअ पलाइरिहिं । तु-वि किच्छिण रमण-त्थल-भारक्कंति हिं गम्मइ तुह रिउ-सुंदरिहिं ॥ ३५
'सोनानां आभूषण काढी नाखी अने वस्त्रो पण काढी नाखी हळवी बनीने, झडपथी पलायन करवा मथती तारा शत्रुनी स्त्रीओने, तो पण नासीने जतां मुश्केली पडे छे ।' कंदोट्ट
जेना प्रत्येक चरणमां आठ चतुष्कल अने एक विकल होय, ते द्विपदीनुं नाम कंदोट्ट ।
___कंदोट्ट द्विपदी, उदाहरण : किं झाइउ तिण अविचल-चित्तिण किं निम्मलु तवु किउ सम-रिउ मित्तिण । जं तुह मुह-विब्भम-हरु 'कंदोट्ट' विसट्ट तरुणि चुंबिज्जइ भमरिण ॥३६
___ 'हे तरुणी, ते भ्रमरे एकाग्र चित्ते केवं ध्यान कर्यु अने शत्रु तथा मित्र प्रत्ये समभाव राखीने केवु निर्मळ तप कर्यु के जेथी तेने तारा मुखनी सुंदरताने धारण करतुं (अथवा तो, तेनुं हरण करतुं) विकसित कमळ चूमवा मळे छे ?' भ्रमरद्रुत
जेना प्रत्येक चरणमां बे षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम भ्रमरद्भुत ।
भ्रमरद्रुत द्विपदीनुं उदाहरण : कुसुमुग्गमु अज्जुण-केअइ-कुडयहं, पेच्छिवि कह-वि न हु रइ मंडहिं । नव-पाउसि संपइ, पइसंतइ ओ, जाइ निअंत 'भमर दुउ' हिंडहिं ॥ ३७
'जुओ तो, अर्जुन, केतकी अने कुटजनां वृक्षोने फूल बेठेलां जोईने पण भ्रमर केमे करी तेमां रुचि धरतो नथी । हवे वर्षाऋतुनो प्रवेश थतां चमेलीनी तपासमां ते उतावळे भमी रह्यो छे ।' सुरक्रीडित
जो ए भ्रमद्भुत द्विपदीना प्रत्येक चरणमां बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम सुरक्रीडित ।
सुरक्रीडित द्विपदीनुं उदाहरण : सग्गु पहुत्तिहिं तुह परिपंथिहिं किउ अइ-संकडु पुहईसर निच्छिउ । सच्छर-गण 'सुर-कीलिउं' सक्कहिं नाहिं ति, नंदण-वण-परिसरि इच्छिउ ॥३८
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[ 125] ___ 'हे पृथ्वीपति, स्वर्गमां पहोंचेला तारा शत्रुओए नक्की त्यां भारे भीड करी मूकी छे, जेने लीधे नंदनवननी समीपमां देवो अप्सराओनी साथे स्वेच्छाए क्रीडा करी शकता नथी ।' सिंहविक्रान्त
जो ए भ्रमरद्रुत द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदी, नाम सिंहविक्रान्त ।
सिंहविक्रान्त द्विपदीनुं उदाहरण : अच्छउ ता उब्भड-भुअ-बलु, चक्खुक्खेविण, विहडयंतु रिउ-भड-हिअउ। सुर-नर-सीह-विक्वंत-चरिउ, लंघेविणु ठिउ, रेहइ पुहइसर-तिलउ ॥ ३९
‘ए पृथ्वीपतिओना तिलकरूप (राजवी), प्रबळ भुजयुगल तो दूर रां, मात्र पोताना दृष्टिपातथी ज शत्रुओना सुभटोनां हृदय विदारे छे : आ रीते नरसिंहना पराक्रमी चरित्रने पण अतिक्रमी जतो ते शोभे छ ।' कुंकुमकेसर
जो भ्रमद्रुतना प्रत्येक चरणमां सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम कुंकुमकेसर ।
___ कुंकुमकेसर द्विपदी, उदाहरण : नयण-विलासिण निज्जिअ कुवलय, कंति-कडप्पिण, 'कुंकुम-केसर 'निअरु'। डसण-झलक्कड़ हीरय विनडिअ ससहर, वयणिण कांइ न मुद्धिहि पवरु ॥४०
___ए मुग्धानुं शुं सुंदर नथी ? पोतानां नेत्रोनी संदरताथी तेणे नीलकमळने पराजित कर्यां छे, अतिशय कांतिथी केसरना तंतुओ पर विजय मेळव्यो छे, दांतनी उज्ज्वळताथी हीराने जीती लीधा छे अने वदनथी चंद्रने पाछो पाडी दीधो छ ।' बालभुजंगमललित ___ जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल होय, ते द्विपदीनुं नाम बालभुजंगमललित।
बालभुजंगमललित द्विपदीचं उदाहरण : दुद्दम-रिउ-महि वाल-भुअंगम-ललिअ'-झडप्पणि तुहुं निच्छइ गरुडोवमु । जं पुण पुरिसोत्तिम-सिर-चूडामणि वुच्चसि पुहइ-वल्लह तं निरुवसु ॥ ४१
___ 'वश करवा मुश्केल एवा शत्रुराजारूपी सोनी क्रीडा नष्ट करवाने कारणे तने निश्चितपणे गरुडनी उपमा आपी शकाय । परंतु हे पृथ्वीवल्लभ, तारी पुरुषोत्तमना (१. उत्तम पुरुषोना २. विष्णुना ) शिरोमणि तरीके जे ख्याति छे, तेथी तो तुं निरुपम ज छे' ।
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[ 1261
उपगंधर्व
जेना प्रत्येक चरणमांत्रण षट्कल, चार चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम उपगंधर्व ।
उपगंधर्व द्विपदीनुं उदाहरण : गय-घड-तुरय-घट्ट-रहवूह-महा-भड-निवह-रयण-भंडार-समिद्ध-वि । 'उव गंधव्व'नयर-समु पुहइवइत्तणु तिणु जिवँ चयहिं विवेअवंत कि-वि ॥४२
___'गजघटा, अश्वोनी श्रेणी, रथोनुं जूथ, सुभटोनो मोटो समूह अने रत्नभंडार ए बधाथी समृद्ध होवा छतां जुओ, जे केटलाक विवेकी छे तेओ नृपतिपणाने, गंधर्वनगर समुं, तृण जेवू (तुच्छ) गणीने तेनो त्याग करे छे ।' संगीत
जो ए उपगंधर्व द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदी- नाम संगीत ।
संगीत द्विपदीनुं उदाहरण : वज्जहिं गज्जिर-घण-मद्दल, नच्चहिं नहयण-अंगणि नव चंचल विज्जुल । गायहिं सिहि इअ 'संगीअउ', पाउस-लच्छिहिं, करइ जुआणह मण आऊल ॥ ४३
_ 'गर्जना करतां वादळोरूपी मृदंगो बजी रह्यां छे, आकाशप्रदेशमां चंचळ वीजळीओ नृत्य करी रही छे, मोर गान करी रह्या छ । वर्षालक्ष्मीनो आ संगीतसमारोह युवानोना मनने व्याकुळ करी रह्यो छे ।' उपगीत
जो ए उपगंधर्व द्विपदीना प्रत्येक चरणमां सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम उपगीत ।
उपगीत द्विपदीनुं उदाहरण : . जसु भुअ-बलु हेलुद्धरिअ-धरणि, निसुणिवि वणयर-गण-उवगीउ' सुविक्कमु। अज्ज-वि हरिसिअ नवदब्भंकुर-दंभिण पयडहिं कुल-महिहर पुलउग्गमु ॥४४
' "एना भुजबळे रमतमात्रमा भूमिनो उद्धार कर्यो छे''-ए प्रमाणे जेना पराक्रमनुं वनचरोथी थतुं महिभागान सांभळीने हर्ष पामेला कुलपर्वत हजी पण ताजा फूटेला दर्भाकुरने मिषे रोमांच प्रगट करी रह्या छ ।' गोंदल
जेना प्रत्येक चरणमां आठ चतुष्कल अने एक पंचकल होय, ते द्विपदीनुं नाम गोंदल ।
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[ 127]
गोंदल द्विपदी, उदाहरण : सई विज्जुल-अविउत्तउ तुहुँ जलहर करि 'गुंदलु' निट्ठ न जाणसि विरहिअहं । इअ भणि चिंतिवि किंपि अमंगल दइअहं अंसु-पवाह पलट्टरपंथिअहं ॥४५
- "हे मेघ, तुं पोते वीजळीनो वियोग न अनुभवतो होवा छतां पण धमाल करी रह्यो छे । तं विरही लोकोनी पीडा जाणतो नथी"-ए प्रमाणे बोलीने पोतानी प्रियाओगें कशुक अमंगल चिंतवता प्रवासीओनी अश्रुधारा वरसी रही छे।' रथ्यावर्णक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, सात चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम रथ्यावर्णक ।
रथ्यावर्णक द्विपदी, उदाहरण : विरह-रहक्कइ सुहय न, जंपइ न हसइ, जीवइ केवलु पिय-पच्चासइ । अहवा कित्तिउ 'रत्थावण्णणु' करिसहुं, निच्छइ स म तुह जसु नासइ॥४६
___ 'हे सुंदर, तारा उत्कट विरहमां नथी ते बोलती के नथी हसती। प्रियतमने मळवानी आशामां ते मात्र जीवी रही छे । अथवा तो अमे निरर्थक केटलुं वर्णन करीए? तेनुं नक्की मरण थशे अने तारो अपजश थशे ।' चर्चरी
जो ए रथ्यावर्णक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम चर्चरी ।
चर्चरी द्विपदीनुं उदाहरण : 'चच्चरि' चारु चवहिं अच्छर, कि-वि रासउ, खेल्लहिं कि-वि कि-वि
गायहि वरधवलुं । रयहिं रयण-सत्थिअ कि-वि दहि-अक्खय गिण्हहिं, कि-वि जम्मूसवि
तुह जिण-धवल ॥ ४७ . 'हे जिनवर, तारा जन्मोत्सवमां (जन्मकल्याणक समये) केटलीक अप्सराओ सुंदर चर्चरी खेले छे, केटलीक रास रमे छे, केटलीक धवलगीतो गाय छे, केटलीक रत्नना साथिया पूरे छे, तो केटलीक दही अने अक्षत ले छे ।' अभिनव
जो ए रथ्यावर्णक द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम अभिनव ।
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[ 128] अभिनव द्विपदी, उदाहरण : किं अज्ज-वि माणंसिणि-, माणसि माणु विसट्टइ माणइ न पयाणउ रमणु । इअ संजाइण कोविण णावइ आरत्तय-तणु अहिणव-उग्गमि हिमकिरणु ॥ ४८
- "हे मनस्विनी, हजी पण तारा मनमां मान केम प्रसरी रह्यं छे ? पगमां पडेला तारा प्रियतमने केम सन्मानती नथी?"- ए प्रमाणे जाणे के रोष उत्पन्न थयो होय तेथी चंद्रनुं बिंब उदयना आरंभे रताश पडतुं बन्युं छे ।' चपल
जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल, एक षट्कल, एक चतुष्कल अने एक विकल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम चपल ।
चपल द्विपदीनुं उदाहरण : सुरसरि-तुंग-तरंग-सहोअर कित्ति 'चवल' तुह ठाण-ट्ठिउ जगु धवलइ । पुट्टि भमंतिहु रिउ-अवकित्तिहु कालत्तणु न हु निव-चूलामणि कवलइ ॥ ४९
'हे नृपशिरोमणि, गंगानदीना ऊंचे ऊछळता तरंगोना जेवी श्वेत अने चपळ तारी कीर्ति, पोताने स्थाने स्थिर रहेल होवा छतां जगतने धोळी दे छे । तेनी पाछळ पाछळ भमती शत्रुओनी अपकीर्तिनी काळाश तेने स्पर्शती नथी ।' अमृत
जेना प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल, एक षट्कल अने बे चतुष्कल होय तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम अमृत ।
अमृत द्विपदी, उदाहरण : उण्हय 'अमय'मउह-मउह-वि दूसहु चंदण-पंकु-वि जलइ लयाहरू-वि । इअ तुह विरहिण तहि तणु-अंगिहि सुहय सुहाइ न किंपि वि पसिअहि दय
करिवि ॥ ५० _ 'चंद्रनां अमृतशीतळ किरण तेने उष्ण लागे छे, चंदननो लेप दुःसह बन्यो छे, अने लताकुंज तेने बाळे छे । हे सुंदर, तारा विरहे कशुं पण ते कृशांगीने शाता आपतुं नथी । तुं दया करीने तेना पर कृपा कर ।' सिंहपद
जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल अने एक द्विकल होय, तथा सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम सिंहपद ।
सिंहपद द्विपदीनुं उदाहरण :
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[ 129 ] जावय-रस-रंजिअ - वर- कामिणि-पडिबिबिहिं लंछिय जइ किर आसि सइ । संपइ हय-वण-गय- रुहिरारुण-'सीह-पयं किअ तुह रिउ घरइं
ति पिच्छिअहि ।। ५१
'तारा शत्रुओना महेल, जे सदा उत्तम सुंदरीओनां अळताथी रंगेलां चरणोनां पगलांथी अंकित रहेता हता, ते हवे सिंहना, जंगली हाथीओ मारवाथी लोहीथी लाल बनेला पंजाओ वडे अंकित थयेला देखाय छे ।'
दीर्घक
जो सिंहपद द्विपदीना प्रत्येक चरणमा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम दीर्घक ।
दीर्घक द्विपदीनुं उदाहरण :
'दीहर' - भुअ-दंड- विडंबिअ-, सुर-सिंधुर- करु, उरयड तुलिअ-विसाल
सिलायलु ।
उब्भड - कोअंड-पयंडिम, हसिअ - धणंजड, पिउ एक्कंगिण जिणइ वेरिबलु ॥ ५२
'जेना दीर्घ भुजदंड ऐरावतनी सूंढ समा छे, जेनुं विशाळ वक्षस्थळ शिलापट्ट समुं छे, पोताना प्रबळ धनुष्यनी प्रचंडताने लीधे जे अर्जुन करतां पण चडी जाय छे, तेवो मारो प्रियतम एकले हाथे शत्रुसेनाने जीते छे ।'
कलकंठीरुत
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने आठ चतुष्कल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम कलकंठीरुत | कलकंठीरुत द्विपदीनुं उदाहरण :
मिउ मलय- समीरणु अंगिहिं, अहिणव-पल्लव, दिट्ठिहिं कलयंठिरुउ' कण्णिहिं । विस-कंदलि- सन्निह मुद्धह, दूसह खणि खणि, पाणंतिउ मुच्छा-भरुअप्पहिं ॥५३ 'अंगोने स्पर्श करतो कोमळ मलयानिल, दृष्टि सामे रहेलां ताजा लीलां पर्ण अनेकाने संभळातो कोयलनो टहूकार - ए मुग्धाने विषकंद समो दुःसह लागे छे । अने क्षणे क्षणे ते तेने प्राण ऊडी जाय तेवी मूर्छामां ढाळी दे छे ।'
शतपत्र
जेना प्रत्येक चरणमा बे षट्कल, छ चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम शतपत्र |
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. [130]
शतपत्र द्विपदी- उदाहरण : एक्कु पसाड् जइ दिअवइ, करु तु-वि मउलइ, 'सयवत्तु' निरारिउ आउलउं। पहु तुह पुण कर-सरसीरुहु, दिअवइ-लक्खि-वि, दिट्ठइ फुडु विअसइ
अग्गलउं ॥५४ 'हे महाराज, जो द्विजपति (= चंद्र) एक पण कर (=किरण) प्रसारे तो पण शतपत्र (= सो पांखडीवाळु कमळ), व्याकुळ बनीने निश्चितपणे बीडाई जाय छे। परंतु लाख द्विजपति(= उत्तम ब्राह्मण)ने जोवा छतां तारुं करकमळ प्रगटपणे भरपूर विकसे. छे ।' अतिदीर्घ
जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम अतिदीर्घ ।
अतिदीर्घ द्विपदी उदाहरण : जइ जाहिं सुरसरिअ जइ गिरि-, निज्झर सेवहिं जइ, पइसहिं काणण
तरु-संडय। रिउ-निव तु-वि न-वि छुट्टहिं पहु, तुज्झ पयावहु, कालहु 'अइ-दीहर'
भुय-दंडय ॥ ५५ 'अतिदीर्घ भुजदंडवाळा हे महाराज, शत्रुराजाओ स्वर्गगंगा सुधी पहोंची जाय, पहाडी झरणांने सेवे अथवा तो जंगलनी झाडीमां पेसी जाय, तो पण काळसमा तारा प्रतापथी तेओ छूटी शकता नथी । मत्तमातंगविजूंभित
जेना प्रत्येक चरणमां बे षट्कल, छ चतुष्कल अने एक त्रिकल होय तथा चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम मत्तमातंगविजूंभित ।
मत्तमातंगविजूंभित द्विपदीनुं उदाहरण : पयडिअ-लंछण-मय-लेहिण, उल्लासिअ-कर-, दंडिण
ताराहरणिण निसि-सरिण । उअ नीसंकिण भउ विरहिणि-, जणहु
जणिज्जइ, असमु 'मत्त-मायंग-विअंभिइण' ॥५६ 'विरहिणीओने माटे मदमत्त हाथीनी जेम चंद्र अतिशय भय प्रगटावे छ । तेनुं लांछन मदलेखा जेवू, तेनां किरणो (कर) सूंढ समा अने तारा आभरण समा लागे छ ।'
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[ 131]
मालाध्रुवक
जे द्विपदीमां चाळीश, एकताळीश के बेताळीश मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम मालाध्रुवक ।
चाळीश मात्रानी मालाध्रुवक द्विपदीनुं उदाहरण : • तुह पुहइसर-सेहर कित्ति अकित्तिम
सुरहिअ-दिसि-मुह जावँहि सग्गि पइट्टिअ । तावहिं तक्खणि सुरसुंदरि-लोअहु
सुरतरु-कुसम-'माल ध्रुव' हअ मण-उव्विट्रिअ ॥ ५७ _ 'हे नृपशिरोमणि, जेवी तारी अकृत्रिम कीर्ति दिशाओने सुगंधित करती स्वर्गमा पेठी, तेवी ज अप्सराओने मन कल्पवृक्षोनां पुष्पोनी माळा निश्चितपणे अकारी बनी गई।'
आ ज प्रमाणे एकताळीश मात्रानी अने बेताळीश मात्रानी मालाध्रुवक द्विपदीनां उदाहरण समजवां ।
नोंध :- आ प्रमाणे चोसठ प्रकारनी द्विपदी ध्रुवा छे । ध्रुवा अने द्विपदी वच्चे भेद आ प्रमाणे छे :
सिंहावलोकितार्थेषु, विज्ञप्तौ संविधानके । मङ्गले च ध्रुवा प्रोक्ता, द्विपद्यन्यत्र कीर्त्यते ॥ ५७ .
___ 'अर्थ- सिंहावलोकन करवा माटे, विनंती माटे अने मंगळ विधि होय त्यां ध्रुवा कहेवाय छे, पण ते अन्यत्र द्विपदी कहेवाय छे ।' अन्य प्रकारनी द्विपदी
द्विपदीओनो जे एक बीजो प्रकार छे, तेनी व्याख्या आ प्रमाणे छ : विजया
जेना प्रत्येक चरणमां चार मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम विजया । विजय द्विपदी, उदाहरण : सजया, 'विजया' ॥ ५८
"विजयादेवी विजयी छे ।' रेवका
जेना प्रत्येक चरणमां पांच मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम रेवका । रेवका द्विपदीनुं उदाहरण :
बहुवया, 'रेवया' ॥ ५९
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[ 132]
'रेवा नदीमा' घणुं जळ (अथवा तो 'घणां बगलां') छे ।' गणद्विपदी
जेना प्रत्येक चरणमा छ मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम गणद्विपदी । गणद्विपदीनुं उदाहरण : निअ जुवइ, 'गणदु' वइ ॥ ६०
'पतिए पोतानी पत्नी सन्मान करवू ।' स्वरद्विपदी
जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल अने एक त्रिकल ए प्रमाणे सात मात्रा होय, तेनुं नाम स्वरद्विपदी ।।
स्वरद्विपदीनुं उदाहरण : 'पसरदु वइ,' अखलिअ-गइ ॥ ६१
'पति अस्खलित गतिए आगळ वधो ।' अप्सरा
जेना प्रत्येक चरणमां एक पंचकल अने एक द्विकल ए प्रमाणे सात मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम अप्सरा ।
अप्सरा द्विपदीनुं उदाहरण : उअ 'अच्छा ', गय-मच्छरा ॥ ६२
_ 'जो, अप्सरा द्वेषरहित होय छे ।' वसुद्विपदी
जेना प्रत्येक चरणमां आठ मात्रा होय, तेनुं नाम वसुद्विपदी ।
वसुद्विपदीनुं उदाहरण : सु तव सुदु वइ', जयइ नरवइ ॥६३
'ए प्रख्यात नृपति के जे तारो पति छे. तेनो जय हो ।' करिमकरभुजा
जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कलनी बनेली आठ मात्राओ होय, ते द्विपदीन नाम करिमकरभुजा ।
करिमकरभुजा द्विपदीनुं उदाहरण : 'करिमयरभुओ', उव्व-हुअभुओ ॥ ६४
'वडवानळ हाथीओ अने मगरोने भरखी जाय छे ।'
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[ 1331 चंद्रलेखा
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक लघु, एक द्विकल अने एक लघु ए प्रमाणे आठ मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम चंद्रलेखा ।
चंद्रलेखा द्विपदी, उदाहरण : नव-'चंद लेह', जिवँ मुद्ध एह ॥ ६५
‘ए मुग्धा, उदय पामेली चंद्रलेखा जेवी शोभे छ ।' मदनविलसिता
जेना प्रत्येक चरणमां एक पंचकल अने एक त्रिकल ए प्रमाणे आठ मात्रा होय, ते द्विपदीनुं नाम मदनविलसिता ।
___ मदनविलसिता द्विपदीनुं उदाहरण : 'मयण-विलसिअं', पाव-ववसिअं ॥६६
'मदनने वश थईने विलास करवो ए पापमय व्यवहार छे ।' जंभेट्टिका
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल अने एक पंचकल ए प्रमाणे नव मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम जंभेट्टिका ।
जंभेट्टिका द्विपदी- उदाहरण : सा तसु बेट्टिआ, सुट्ट 'जं भेट्टिआ' ॥ ६७
'जेने ते सारी रीते भेट्यो, ते तेनी बेटी छे ।' लवली
__जेना प्रत्येक चरणमां एक पंचकल अने एक चतुष्कल ए प्रमाणे नव मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम लवली ।
लवली द्विपदी, उदाहरण : उअ वणावलिआ, फुल्लिअ-'लवलिआ' ॥ ६८
'जेमां लवली लता खीली छे, तेवी आ वनराजी तुं जो ।' अमरपुरसुंदरी
जेना प्रत्येक चरणमां एक सप्तकल, एक द्विकल अने एक लघु ए प्रमाणे दस मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम अमरपुरसुंदरी ।
अमरपुरसुंदरी द्विपदीनुं उदाहरण : 'अमरपुर-सुंदरिहिं', भड वरिअ सयंवरिहिं ॥ ६९।
'स्वर्गनी सुंदरीओए सुभटोने स्वयंवरमां वर्या ।'
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[ 134] कांचनलेखा
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल अने एक चतुष्कल ए प्रमाणे दस मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम कांचनलेखा ।
कांचनलेखा द्विपदीनुं उदाहरण : मणि-'कंचणरेहिअ', सुरसुंदरि जेहिअ ॥ ७० __'रत्न अने कांचनथी शोभती ए अप्सरा समी दीसे छे ।'
चारु
जेना प्रत्येक चरणमां बे पंचकलनी बनेली दस मात्राओ होय, ते द्विपदीनाम चारु ।
चारु द्विपदी, उदाहरण : 'चारु' चंपय-रुइ, उअ सोहइ जुअइ ॥ ७१
'जो, सुंदर चंपकनी कांति धरावती ए युवती केवी शोभे छे !' पुष्पमाला
जेना प्रत्येक चरणमा एक त्रिकल, एक षट्कल अने एक त्रिकल ए प्रमाणे बार मात्राओ होय, ते द्विपदीनुं नाम पुष्पमाला ।
पुष्पमाला द्विपदी- उदाहरण : एह ललिअ-देह बाल, नाइ जाइ-'फुल्ल-माल' ॥ ७२ 'ललित देह वाळी आ बाळा चमेलीनी पुष्पमाळा जेवी शोभे छ ।'
नोंध : आ द्विपदीनुं नाम केटलाकने मते 'तोमर' छ । अन्य द्विपदीओ
आ ज प्रमाणे बीजी केटलीक, प्रत्येक चरणमां त्रीश सुधीनी मात्राओ धरावती द्विपदीओ समजवी । तेमनां नामो जाणीतां होवाथी तेमनी व्याख्या आपी नथी। कहुं छे के
- 'जेना प्रत्येक चरणमां चारथी मांडीने त्रीश सुधीनी मात्राओ होय, अने जेमां एक के वधु वर्णना बनेला अंत्ययमक होय, तेवां बे चरणना बनेला छंद द्विपदी नामे जाणीता छ ।'
चतुर्मात्रादिक-त्रिंशत्-प्रान्तैरहियुगैः ॥ एकानेकैरन्तवर्णैर्यमके द्विपदी विदुः ॥ ७२
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[ 135]
गाथा
आ छंदशास्त्रमा आ उपरांत जे कोई छंद प्रचलित होय, पण तेनुं निरूपण न कर्यु होय तेनुं नाम गाथा समजवू ।
गाथानुं उदाहरण : दश धर्मं न जानन्ति, धृतराष्ट्र निबोधनात् । मत्तः प्रमत्त उन्मत्तः, क्रुद्धः श्रान्तो बुभुक्षितः त्वरमाणश्च भीरुश्च, लुब्धः कामीति ते दश ॥ ७३
'हे धृतराष्ट्र, एवा दस प्रका. को छे, जे उपदेश करवा छतां पण धर्म समजता नथी । ए दस आ प्रमाणे छे : मदमत्त, प्रमादी, उन्मत्त, क्रोधी, थाक्यो, भूख्यो, उतावळो, कायर, लोभी अने कामी ।'
नोंध :- गाथामांत्रण के छ चरणोनो श्लोक होय छे ।
हेमचंद्राचार्य-रचित वृत्तियुक्त छंदोनुशासननो 'द्विपदी वर्णन' नामनो सातमो अध्याय समाप्त ।
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| 1361
सूत्रपाठ
चोथो अध्याय (आर्या-गलितक-खञ्जक-शीर्षक-वर्णन) चुगौ षष्ठो जो लौ वा पूर्वेऽर्धेऽपरे षष्ठो लार्या गाथा ॥ १ षष्ठे न्ले लाद् द्वितीयात्सप्तमे त्वाद्यात्पदमन्यार्धे च पञ्चमे ॥२ आद्यचियतिः पथ्या ॥३ विपुलान्याद्यन्तसर्वभेदात् त्रेधा ॥ ४ ग्मध्ये द्वितीयतु? जौ चपला ॥ ५ द्विः पूर्वार्धं गीतिः ॥६ परार्धमुपगीतिः ॥ ७ द्वयोर्व्यत्यये उद्गीतिः ॥ ८ गीतिः सप्तमे पे रिपुच्छन्दाः ॥ ९ ततीये ललिता ॥ १० द्वाभ्यां भद्रिका ॥ ११ षष्ठं विनेष्टपैर्विचित्रा ॥ १२ चेऽष्टमे स्कन्धकम् ॥ १३ तत्षष्ठे ल्युपात् ॥ १४ आद्येऽर्धे उदः ॥ १५ अन्त्येऽवात् ॥ १६ गीतिस्कन्धके संकीर्णम् ॥ १७ गाथाद्यर्धेऽन्त्यगात्प्राक् चो वृद्धो जातीफलम् ॥ १८ चयोर्गाथः ॥ १९ क्रमवृद्धयोद्व्यसमुपात् ॥ २० गाथिनी ॥ २१ यथेष्टं मालागाथः ॥ २२ जातीफलाद्यर्धे गाथवद् दामादयः ॥ २३ मात्रा वर्णोना गो वर्णा गूना लः ॥ २४ पौ चौ तो गलितकं यमितेंऽह्रौ ॥ २५
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| 137]
तृतिये षष्ठे ल्युपात् ॥ २६ समेऽन्तरात् ॥ २७ पौ चौ पो वेः ॥ २८ चौ पः समः ॥ २९ षतीगा: शुभात् ॥ ३० चः पौ चौ तः समात् ॥ ३१ तदोजे चतौ मुखात् ॥ ३२ षाच्चभॊजे जः समे जो लीर्वा मालायाः ॥ ३३ चुर्गन्तो मुग्धात् ॥ ३४ चूरुग्रात् ॥ ३५ पौ तः सुन्दरा ॥ ३६ पौ तौ भूषणा ॥ ३७ चपचापचाल्गा मालागलिता ॥ ३८ षश्चीः समे जो लीर्वा विलम्बिता ॥ ३९ गन्तचः पचुपाः खण्डोद्गतम् ॥ ४० चपाचीपाः प्रसृता ॥ ४१ चर्दो नौजे जो लम्बिता ॥ ४२ सौजे पैर्विच्छित्तिः ॥ ४३ चापचपदा ललिता ॥ ४४ उभे विषमा ॥ ४५ तीचौ मुक्तावली ॥ ४६ पिचौ रतिवल्लभः ॥ ४७ पौ चषौ हीरावली ॥ ४८ गलितकमेवायमकं सानुप्रासं समांहि खञ्जकम् ॥ ४९ तौ चितगाः खञ्जकम् ॥ ५० पचपचपा महातोणकः ॥ ५१ चीगौ सुमङ्गला ॥ ५२ चौ पः खण्डम् ॥ ५३ षचता उपात् ॥ ५४ षश्चौ खण्डिता ॥ ५५
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[ 138]
त्रयोऽप्यवलम्बकः ॥ ५६ पश्चीर्युग्जो लीर्वा हेला ॥ ५७ सान्ते दोनावली ॥५८ चूपगा विनता ॥ ५९ तौ चस्तौ विलासिनी ॥६० तौ चितौ मञ्जरी ॥६१ सा तान्ता शालभञ्जिका ॥ ६२ चादिः कुसुमिता ॥६३ षश्चुगौ द्वितीयषष्ठौ जो लीर्वा द्विपदी ॥ ६४ साद्ये न्ले छै रचिता ॥ ६५ गन्तारनालम् ॥ ६६ उपान्त्यलोना कामलेखा ॥६७ षचीदाश्चन्द्रलेखा ॥ ६८ चिपताः क्रीडनकं जैः ॥ ६९ षपचतदा अरविन्दकम् ॥ ७० षलदलचदगाद्गौ मागधनकुटी ॥ ७१ सश्चेन्नकूटकम् ॥ ७२ षजौ सिः समात् ॥ ७३ त्रिष्वप्पन्त्यचस्य ते तरङ्गकम् ।। ७४ गान्तं पवनोद्वतम् ॥ ७५ चाभ्यां पाभ्यां पाद्वा तिर्निध्यायिका ॥ ७६ चुपौ युम्न जोऽधिकाक्षरा ॥ ७७ सा तुर्यया मुग्धिका ॥ ७८ आदौ पश्चित्रलेखा ॥ ७९ पौ माल्लिका ॥ ८० सा तुर्यपा दीपिका ॥८१ ताभिर्लक्ष्मिका ॥ ८२ चतुष्पञ्चषट्सप्ताष्टनवपा मदनावतार-मधुकरी
नवकोकिला-कामलीला-सुतारा-वसन्तोत्सवाः ॥ ८३ खञ्जकं दीर्धीकृतं शीर्षकम् ॥ ८४
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[ 139]
गीत्यन्ताववलम्बको द्विपदीखण्डम् ॥ ८५ द्विपद्यन्ते गीतिभिङ्गिका ॥ ८६ अन्यथापि ॥ ८७ द्विपद्यवलम्बकान्ते गीतिस्त्रिभङ्गिका ॥ ८८ त्रिभिरन्यैरपि ॥ ८९ गाथस्याद्याद्धं समैश्चैर्गात् प्राग्वृद्धं गस्य ते पादः समशीर्षकम् ॥ ९० मालागलितकपादान्ते विषमचावृद्धौ वेः ॥ ९१
पांचमो अध्याय
( उत्साहादि-वर्णन) अथ प्रायोऽपभ्रंशे ॥१ अजश्चूस्तृतीपञ्चमौ जो लीर्वोत्साहः ॥ २ दामात्रा नो रासको ढैः ॥ ३ चुल्गा वा ॥४ चपजाया अवतंसक़ः ॥ ५ चः पौ जो गौ कुन्दः ॥ ६ पाचाजगाः करभकः ॥७ चपाचागा इन्द्रगोपः ॥ ८ चपाचाल्गाः कोकिलः ॥९ चपाचल्गा दुर्दरः ॥ १० चरजमगा आमोदः ॥ ११ प्रल्गपासा विद्रुमः ॥ १२ रो मीर्मेधः ॥ १३ त्रयल्गा विभ्रमः ॥१४ चपजगगाः कुसुमः ॥ १५ ओजयुजोश्छडा रासः ॥ १६ पाचदाश्चिस्तृतीये पञ्चमे चो जो लीर्वा ।
पञ्चांहिस्त्रिपात्पूर्वार्धा मात्रा ॥ १७ द्वितीये तुर्ये तयोर्वाद्यस्य चः स्थाने पो मत्तबालिका ॥ १८
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तृतीयस्य तो मत्तमधुकरी ॥ १९ तृतीये पञ्चमे तयोर्वा पोश्चौ मत्तविलासिनी ॥ २० चस्य पो मत्तकारिणी ॥ २१ आभिर्बहुरूपा ॥ २२ । आसां तृतीयस्य पञ्चमेनानुप्रासेऽन्ते
दोहकादि चेद्वस्तु रड्डा वा ॥ २३ चौ लान्ततौ चौ तो वस्तुकम् ॥ २४ षचिषा युज्यज ओजे जो लीर्वा वस्तुवदनकम् ॥ २५ षोऽजचः षपौ रासावलयम् ॥ २६ द्वयोरर्धसङ्करे सङ्कीर्णम् ॥ २७ षचचाद्दो वदनकम् ॥ २८ त उपवदनकम ॥ २९ ते यमितेऽन्तेऽडिला ॥ ३० पिदावुत्थक्कः ॥ ३१ धवलमष्टषट्चतुष्पात् ॥ ३२ तत्राष्टांहावोजे चिदौ समे चौ श्रीधवलम् ॥ ३३ आद्ये तृतीये चिदौ द्वितीये तुर्ये चिः शेषे ।
त्वौजे चातौ समे चादौ चिर्वा यशोधवलम् ॥ ३४ षंडहावाद्ये तुर्ये पादौ द्वितीये पञ्चमे
चौ शेषे षाभ्यां चः पो वा कीर्तिधवलम् ॥ ३५ चतुरंहावोजे षश्चौ समे षचचाद्दस्तो वा गुणधवलम् ॥ ३६ षचताः षचौ भ्रमरः ॥३७ षचताः षचचा अमरभ् ॥ ३८ आद्ययोः षची अन्त्ययोश्चः सर्वत्रान्ते तो दो वा मङ्गलम् ॥ ३९ उत्साहादिना येनैव धवलमङ्गलभाषागाने तन्मामाद्ये धवलमङ्गले ॥४०॥ देवगानं फुल्लडकम् ॥ ४१ गाने चिदौ झम्बटकम् ॥ ४२
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| 141|
छष्ठो अध्यायः
(षट्पदी-चतुष्पदी-वर्णन) सन्ध्यादौ कडवकान्ते च ध्रुवं स्यादिति ध्रुवा ध्रुवकं घत्ता वा ॥ १ सा त्रेधा षट्पदी चतुष्पदी द्विपदी च ॥ २ कडवकान्ते प्रारब्धार्थोपसंहारे आद्ये छडुणिका च ॥३ ध्रुवायां छैः कलाभिः पादे चतौ पदौ वा ॥ ४ जैः पतौ षदौ चौ वा ।। ५ झैः षतौ तिः पचौ वा ॥ ६ जैश्चादौ षचौ पौ वा ॥ ७ टैश्चपदं पचदं पदतं चातौ वा ॥ ८ छैश्चपतं षचदं पादौ चिर्वा ॥ ९ डैः पातौ चापौ पचतं वा ॥ १० द्वैश्चिदौ षचचं वा ॥ ११ *श्चितौ पिर्वा ॥ १२ तैः षचादं चीर्वा ॥ १३ थैः षचातं चिपौ वा ॥ १४ तृतीयष्ठयोर्दशादिसप्तदशान्तां कलाः शेषेषु
सप्त षट्पदी षट्पदजातिरष्टधा ॥ १५ अष्टोपजाति : ॥ १६ नवावजातिः ॥ १७ चतुष्पदी वस्तुकं वान्तरसमासमा संकीर्णा सर्वसमा च ॥ १८ तत्रान्तरसमाः प्राह
चतुष्पदी कला ओजे सप्ताद्यां षोडशान्ताः समे प्रत्येकं सैकाः सप्तदशान्त 'चम्पककुसुम-सामुद्रक-सल्हणक-सुभगविलास-केसर-रावण-हस्तकसिंहवजृम्भित-मकरन्दिका-मधुकरविलसित-चम्पककुसुमावर्ताः (१०)। मणिरत्नप्रभा-कुङ्कमतिलक-चम्पकशेखर-क्रडनकबकु लामोद-मन्मथतिलक-मालाविलसित-पुण्यामलक -- नवकुसुमितपल्लचाः (९) । मलयमास्त-मदनावास-माङ्गलिकाअभिसारिका-कुसुमनिरन्तर-मदनोदक-चन्द्रोद्योत-रत्नावल्यः (८)।
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[ 142 ]
भ्रूवक्रणक-मुक्ताफलमाला - कोकिलावली - मधुकरवृन्द- केतकीकुसुमनवविद्युन्माला त्रिवलीतरङ्गकाणि ( ७ ) 1 अरविन्दकविभ्रमविलसितवदन- नवपुष्पन्थय- किन्नरमिथुनविलास - विद्याधरलीलासारङ्गाः ( ६ ) | कामिनीहास - अपदोबक- प्रेमविलास काञ्चनमालाजलधरविलासिताः (५) । अभिनवमृगाङ्कलेखा - सहकारकुसुममञ्जरी - कामिनीक्रीडमनक-कामिनी - कङ्कणहस्तका: ( ४ ) । मुखपालनतिलकवसन्तलेखा - मधुरालापिनीहस्ता: ( ३ ) । मुखपङ्क्त-क्स्मलतागृहे ( २ ) | रत्नमाला' ( १ ) । इति पञ्चपञ्चाशद्भेदा ॥१९॥
व्यत्यये सुमनोरमा - पङ्कज - कुञ्जर-मदनातुर - भ्रमरावली - पङ्कजश्री - किङ्किणी- कुङ्कुमलता- शशिशेखर - लीलालयाः (१०) । चन्द्रहासगोरोचना - कुसुमबाण - मालतीकुसुम- नागकेसर - नवचम्पकमालाविद्याधर- कुब्जककुसुम - कुसुमास्तरणा: ( ९ ) । मधुकरीसंलापसुखावास- कुसुमले खा- कुवलयदाम - कलहंस-सन्ध्यावलीकुञ्जरललिता - कुसुमावल्य: ( ८ ) । विद्याल्लता - पञ्चाननललितामरकतमाला-अभिनववसन्त श्री मनोहरा-क्षिप्तिका - किन्नरलीला: ( ७ )। मकरध्वजहास- कुसुमाकुलमधुकर - भ्रमरविलास - मदनविलासविद्याधरहास- कुसुमायुधशेखराः ( ६ ) । उपदोहक - दोहक - चन्द्रलेखिकासुतालिङ्गन - कङ्केल्लिलताभवनानि (५) । कुसुमित - केतकीहस्तकुञ्जरविलसित - राजहंस - अशोकपल्लवच्छायाः ( ४ ) । अनङ्गललितामन्मथविलसित-ओहुल्लणकानि (३) । कज्जललेखा - किलिकिञ्चिते (२) । शशिबिम्बितं चेति (१) । तावद्वा ॥२०॥ अन्तरसमा एव द्वितीयतृतीयांह्निव्यत्ययेऽर्धसमाः ॥ २१ द्वित्रिचतुर्भिर्लक्षणैर्मिश्रा सङ्कीर्णा ॥ २२
समौः पादैः सर्वसमा ॥ २३
पचौ ध्रुवकम् ॥ २४ चौ दः शसाङ्गवदना ।। २५ चपदाश्चातौ वा मारकृतिः ॥ २६
षचदाश्चिर्वा महानुभावा ॥ २७ षचताश्चापौ पातौ वाप्सरोविलसतम् ॥ २८
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[ 143 ]
चचाश्चिदौ वा गन्धोदकधारा ॥ २९ चितौ षचपा वा पारणकम् ॥ ३० ची: पद्धडिका ॥ ३१
चिपौ षचाता वा रगडाध्रुवकम् ॥ ३२
द्विपदी ॥ १ दाचदालदाचदालि कर्पूरो णैः ॥ २ सोऽन्त्यलोनः कुङ्गमः ॥ ३
चृ लयः ॥ ४
स भ्रमरपदं ञजैः ॥ ५
सातमो अध्याय
(द्विपदी - वर्णन )
षचुदा उपात् ॥ ६ चूपौ गरुडपदम् ॥ ७ षचुता उपात् ॥ ८ दौ हरिणीकुलं ठजैः ॥ ९ तद्गीतिसमं अजैः ॥ १० षुर्भ्रमररुतम् ॥ ११
षश्चर्हरिणीपदम् ॥ १२
षीचताः कमलाकरम् ॥ १३ चृतौ कुङ्कुमतिलकावली ॥ १४ ते रत्नकण्ठिके ठजैः ॥ १५ षचुपाः शिखा ॥ १६ चृतौ छड्डुणिका अजै: ॥ १७ चूः स्कन्दकसमम् ॥ १८ तत् मौत्तकदाम ठजैः ॥ १९ नवकदलीपत्रं ढजैः ॥ २० षचूदैः कृतेष्वेषु स्त्रीत्वम् ॥ २१
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[ 144]
पावामायकम् ॥ २२ तत्काञ्चीदाम अजैः ॥ २३ रसनादाम ठजैः ॥ २४ चूडामणिढजैः । २५ षचूतैः कृतान्यायामकादीन्युपात् ॥ २६ चूदौ स्वप्नकम् ॥ २७ तद् भुजङ्गविक्रान्तं ठजैः ॥ २८ ताराध्रुवकं ढजैः ॥ २९ नवरङ्गकं तजैः ॥ ३० षिश्चीः स्थविरासनकम् ॥ ३१ घृषौ सुभगम् ॥ ३२ षचीषचदाः पवनध्रुवकं ढजैः ॥ ३३ षचाचिदाः कुमुदं अजै ॥ ३४ तभाराक्रान्तं ठजैः ॥ ३५
चूतौ कन्दोट्टम् ॥ ३६ षाचुता भ्रमरद्रुतं अजैः ॥ ३७ तत्सुरक्रीडितं ठजैः ॥ ३८ सिंहविक्रान्तं ढजैः ॥ ३९ कुङ्कमकेसरं तजैः ॥ ४० च्लु बालभुजङ्गमललितम् ॥ ४१ षिचीदा उपगन्धर्वं ठजैः ॥ ४२ तत्सङ्गीतं ढजैः ॥ ४३ उपगीतं तजैः ॥ ४४ चुपौ गोन्दलम् ॥ ४५ षचूता रथ्यावर्णकं ठजैः ॥ ४६ तच्चच्चरी ढजैः ॥ ४७ अभिनवं तजैः ॥ ४८ चूषचताश्चलम् ॥ ४९ चूषौ चावमृतम् ॥ ५०
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लृदौ सिंहपदम् ॥ ५१ तद्दीर्घकं ढजैः ॥ ५२ षचुः कलकण्ठीरुतम् ॥ ५३
षाचूदाः शतपत्रम् ॥ ५४
[ 145 ]
लृतावतिदीर्घं ढजैः ॥ ५५
षाचूता मत्तमातङ्गविजृम्भितम् ॥ ५६
चत्वारिंशत्कला एकद्वयधिका वा मालाध्रुवकम् ॥ ६७
चौ विजया ॥ ५८
पो रेवका ॥ ५९
षो गणद्विपदी ॥ ६० चतौ स्वराद्विपदी ॥ ६१
पदावप्सराः ॥ ६२ अष्टौ कला वसुद्विपदी ॥ ६३ चौ करिमकरमुजा ॥ ६४ चलदलाश्चन्द्रलेखा ॥ ६५ पतौ मदनविलसिता ॥ ६६ चपौ जम्भेट्टिका ॥ ६७
पचौ लवली ॥ ६८
सप्त कला दलौ चामरपुरसुन्दरी ॥ ६९ चौ काञ्चनलेखा ॥ ७०
पौ चारुः ॥ ७१
तषताः पुष्पमाला ॥ ७२ गाथात्रानुक्तम् ॥ ७३
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[146]
टिप्पण प्रा. वेलणकरे घणा परिश्रमपूर्वक 'छंदोनुशासन'नो पाठ संपादित करेल छ । तो पण जे केटलेक स्थाने व्याकरण, अर्थ के छन्दनी दृष्टिए शुद्धि करवी मने जरूरी लागी छे तेवां स्थानो अने सुधाराओ टिप्पणमां आ दर्शाव्यां छे । क्वचित् साहित्यमांथी समान भाव के विचारवाळा, पद्य प्रत्ये, अथवा तो पुरोगामीमांथी अपनावेल उदाहरण प्रत्ये पण वाचकोनुं ध्यान खेंच्यु छ ।
द्विभंगीनां उदाहरणोनी चर्चा १. 'छंदोनुशासन'मां हेमचंद्राचार्ये सामान्य रीते स्वरचित उदाहरणो आप्यां छ । ज्यां कोई पूर्ववर्ती ग्रंथना उदाहरणनो उपयोग कर्यो छे, त्यां पण उदाहरणमां छंदनुं नाम गूंथवार्नु होवाथी तेमणे जरूरी फेरफार कर्या छ । पण केटलीक वार कोई पूर्ववर्ती स्रोतमांथी उदाहरण उद्धृत करेल छे । जेम के चोथा अध्यायना ८७मा सूत्र नीचे विविध छंदोना संयोजनथी थती द्विभंगीओ तरीके (१) गाथा + भद्रिका, (२) वस्तुवदनक + कर्पूर, (३) वस्तुवदनक + कुंकुम, (४) रासावलय + कपूर, (५) रासावलयक + कुंकुम, (६) वस्तुवदनक अने रासावलयनुं मिश्रण + कर्पूर, (७) वस्तुवदनक अने रासावलय, मिश्रण + कुंकुम, (८) रासावलय ने वस्तुवदनक, मिश्रण + कर्पूर, (९) रासावलय अने वस्तुवदनकनुं मिश्रण + कुंकुम, (१०) वदनक + कपूर, (११) वदनक + कुंकुम - एटला छंदप्रकारोनां उदाहरण संभवतः कोई पूर्ववर्ती छंदोग्रंथमांथी लीधेलां छे । अहीं आपेला क्रमांक प्रमाणे तेमनो क्रमांक ४.१२६ थी १३६ छ । ए उदाहरणोमांथी आठ उदाहरण 'कविदर्पण'मां पण मळे छ । कविदर्पणकारे 'छंदोनुशासन'मांथी ते लीधां होय एवो प्रबळ संभव छे, केम के केटलेक स्थळे तेणे 'सिद्धहेम'ना प्राकृत विभागमांथी प्रयोगना समर्थन माटे उद्धरण आप्यां छे। जो के थोडाक पाठ भिन्न छ । रासावलय अने कर्पूरनी द्विभंगीना उदाहरणनो (क्रमांक १२९) पाठ नीचे प्रमाणे छे :
परहुअ-पंचम-सवण-सभय मन्नउं स किर तिभणि भणइ न किं पि मुद्ध कलहंस-गिर । चंदु न दिक्खण सक्कइ जं सा ससि-वयणि दप्पणि मुहु न पलोअइ तिंभणि मय-नयणि ॥
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[147] वइरिउ मणि मन्त्रवि कुसुम-सरु, खणि खणि सा बहु उत्तसइ । अच्छरिउ रूव-निहि कुसुम-सरु, तुह दंसणु जं अहिलसइ ॥
('कविदर्पण'मां 'कलयंठि-गिर' अने 'मन्निवि' पाठ छे ते वधु सारा छ। छेल्ली पंक्तिमा 'कुसुम-सर' एवो पाठ जोईए, ते संबोधन होवाथी)।
'हुं मार्नु छ के ते मुग्धा कोकिलनो पंचम सूर सांभळवाथी डरे छे, अने ते कारणे ज ते कोकिलकंठी पोते कशुं ज बोलती नथी । ए चंद्रवदना चंद्र जोई शकती नथी, ते कारणे ए दर्पणमां पोतार्नु मुख जोती नथी । मनमा रहेला कंदर्पने शत्रु मानीने ते क्षणे क्षणे घणो त्रास पामी रही छे, ने तेम छतां ए एक अचरज छे के, हे रू पनिधि कंदर्प, ए तारुं दर्शन करवानी अबळखा सेवे छे ।'
उदा. ४.१२७ : मूळ पाठमां पांचमी पंक्तिमा 'सिसिरोवयारकिर्हि' एवा शब्दो छ । तेमां 'किर्हि' ए हिंदी, 'के' (= 'के लिये')- पूर्वरूप छे । सं. 'कृते' परथी, 'कएहि', 'कइहि', "किर्हि' एवो विकासक्रम होय ।
हवे दसमी शताब्दीमां रचायेली धनंजयना 'दशरूपक' उपरनी धनिकनी 'अवलोक' टीकानी एक हसतप्रतमां चोथा प्रकाशनी ६६मी कारिका उपरनो जे पाठ मळे छे तेमां प्रवासविप्रयोगमा प्रवासचर्चा- नीचे- एक उदाहरण मळे छ। (ए ज पद्य ई.स. १२५८ मां रचेयाल जल्हणकृत 'सूक्तिमुक्तावलि'मां पण मळे छे) :
नीरागा शशलांछने मुखमपि स्वे नेक्षते दर्पणे जस्ता कोकिलकूजितादपि गिरं नोन्मुद्रयत्यात्मनः । चित्रं दुःसह-दुःख-दायिनि कृत-द्वेषाऽपि पुष्पायुधे मुग्धा सा सुभग ! त्वयि प्रतिकलं प्रेमाणमापुष्यति ॥
स्पष्टपणे आ बे अपभ्रंश अने संस्कृत पद्योमांचें कोई एक बीजानो चोख्खो अनुवाद ज छे । कयुं पूर्ववर्ती अने कयु पश्चाद्वर्ती एनो निर्णय दुष्कर छे।
उपर 'छंदोनुशासन'मां आपेला जे द्विभंगीप्रकारोनां उदाहरणोनो निर्देश कर्यो छे तेना प्रा. वेलणकरना संपादनमां आपेला पाठमां केटलाक सुधारा करवा इष्ट छे । ते नीचे प्रमाणे छ :
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[148] उदा. ४.१२८ : पहेली पंक्तिमां 'किनरि विक्खरहि' ने बदले 'कि न रि विक्खिरहि' (पाठांतर) जोईए ।
उदा. ४.१२९ : उपर सूचव्युं छे तेम बीजी पंक्तिमां 'कलयंठि-गिर' ('कविदर्पण'नो पाठ) अने 'मन्निवि' (पाठांतर) जोईए, अने अर्थने अनुसरीने 'कुसुमसर' जोईए।
उदा. ४.१३० : पहेली, त्रीजी अने पांचमी पंक्तिने आरंभे 'जइ अ' के 'जइ' छे त्यां 'जइअ' (= यदा) जोईए । आने एक पाठांतर- पण समर्थन छ। टीकाकारे पण संपादकनी जेम 'यदि' अर्थ कर्यो छे ते बराबर नथी । 'सिद्धहेम' ८-४-३६५ नीचे ‘यदा'ना अर्थमां प्राकृतमा 'जाहे', 'जाला', 'जइआ'नो प्रयोग थतो होवार्नु नोंध्युं छे।
बीजी पंक्तिमां कुसुमदलम्मि पाठ करतां ०दलग्गि पाठ वधु सारो छ। पांचमी पंक्तिमां 'वयणगुंफ'ने बदले उकार जाळवतो 'वयणगुंफु' पाठ वधु सारो छे।
उदा. ४.१३१ : (पहेली चार पंक्ति ५.२७मां पण) 'करिहि' ने बदले 'करहि', 'इच्छि मयच्छ इ पणयमुहं'ने बदले 'इच्छि म इच्छिउ पणय-सुह' ('कविदर्पण'नो पाठ), अने अंतिम पंक्ति 'माणिक्किमणंसिणि करिव वलु, हेल्लि खेल्लिता जूउ तुहुं'ने बदले 'माणिकि मणंसिणि करि ठवलु, हेल्लि खेल्लि ता जूउ तुहं' जोईए । आ छेल्ली पंक्तिनो अर्थ टीकाकार पण खोटा पाठने कारणे समज्यो नथी । तेणे 'तदा हे हस्तिगमने प्रणतमुखं भर्तृमुखं 'इच्छि' दृट्वा हे मानकमनस्विनी हे सखि बलं अपि कृत्वा क्रीडितुं युक्तं तव ।' एवो अर्थ कर्यो छे, जे तद्दन भ्रान्त छ । साचो अर्थ छे 'मानम् एकं (श्लेषथी 'माणिक्यम्') हे मनस्विनि कृत्वा दायम्, हे सखि रमस्व तावत् द्यूतं त्वम् ।' अहीं 'ठवलु' एटले 'जुगारनी बाजीमां जे होडमां मुकाय ते, दाव ।' ए अर्थमां 'ठउलु' शब्दनो प्रयोग स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ'मां पण मळे छे । त्यां पण रणभूमिने शारिपट्टनुं उपमान आपीने तेमां जीवनने होडमां मूकवानुं रूपक छ । 'तिंभणि' (चोथी पंक्तिमां)नो प्रयोग ए दृष्टिए रसप्रद छे के ते 'ते माटे'ना अर्थमां (सं. 'इति भाणित्वा') मराठी 'म्हणून'नो पुरोगामी छे ।
उदा. ४.१३२ : त्रीजी पंक्तिमां 'ल्हसडउ'ने बदले 'ल्हुसडउ' (=
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[149]
लुण्टाक) जोईए । छेल्ली पंक्तिमा 'झुलक्कड़' ने बदले 'झुलुक्कउ' जोईए । (आठमा उदाहरणानी बीजी पंक्तिमा ए ज पाठ छे ।)
उदा. ४.१३३ : 'सहि इ'ने बदले 'सहिइ' जोईए । छेल्ली बे पंक्तिनो अर्थ टीकाकार समज्यो नथी । 'तुह'ने बदले 'तुहुं', 'मयणबाणवेयण कलह 'ने बदले 'मयणबाण-वेयण - कलहि' अने 'तुलह' ने बदले 'तुलहि' पाठ जोईए । अर्थ : 'हे तन्वंगी, तुं जेमां मदनबाणनी वेदना छे तेवा प्रेमकलहमां लथडती पड नहीं । हे मानिनी, वल्लभ साधेनुं मान तजी दे, तारा प्राणनी संशयतुला उपर चड नहीं ।'
उदा. ४.१३४ : पांचमी पंक्ति । 'पयड धाई' ने बदले 'पयडत्थय' ('कविदर्पण 'नो पाठ) जोईए ।
उदा. ४.१३५ : बीजी पंक्तिमा 'पहिल्लय'ने बदले 'पहल्लिय' (पाठांतर) अने छेल्ली पंक्तिमा 'जाइ० जाय० ' ने बदले 'जाइजाय०' जोईए ।
उदा. ४.१३६ : पांचमी पंक्तिमा 'संचह' (पाठा० 'संवह', 'संवहु') नो अर्थ स्पष्ट नथी । टीकाकारे 'संचयात् संचाराद्, वा' एवो अर्थ अटकळे कर्यो लागे छे ।
1
उदा. ४.१४० : पहेली पंक्तिमा 'बोल्लालयंमि' (= टीकाकार प्रमाणे 'बोल्लाः शब्दास्तद्वति') करतां 'वोलालयंमि' पाठ वधु सारो छे । 'वोल' / 'बोल' = 'कोलाहल' । सरखावो 'हलबोल' ।
पांचमो अध्याय
=
उदा. १४ : त्रीजी पंक्तिमां 'जे' ने बदले 'जा' ( होवो जोईए ।
'यावत्') पाठ
उदा. १६ : एक वचन होवाथी ('पहिउ' ) 'हुउ' एम जोईए । उदा. १९ : 'स्वयंभूच्छंद' ४.९ नीचे आपेल गोविन्द कविना उदाहरणमां थोडाक फेरफार करीने छंदना नामनो समावेश करतुं आ उदाहरण रचेल छे । उदा. २५ : 'छेल्ली पंक्तिमां 'लल्लुर' ने बदले 'लल्लर' जोईए । उदा. ३२ : सरखावो :
सन्तानक - वनेषु परिमुह्यति धावति बकुल - वृक्षके, विकसित - माधवीषु धृतिमेति विलुभ्यति सिन्दुवारके ।
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[150] पाटल-पल्लवेषु न च तृप्यति नूनमशोक-पादपे, चूत-वनेषु याति चन्दन-तरु-गहनमथावगाहते । इति मधु-मास-विकसिते रमणीयतरे द्विरेफ-मालिकेव, एतेषां ननु दृष्टिका विलसति सुचिरं वरे तरु-प्रताने ।
('उपमितिभवप्रपंचाकथा' प्रस्ताव चोथो, आना तरफ मारुं ध्यान खेंचवा माटे आचार्य शीलचन्द्रसूरिनो आभार)
उदा. ४२ : 'उअ थक्क' करतां 'ओ थक्क' पाठ वधु सारो छ । 'घंघल' शब्द अहीं 'संकट' (टीकाकार : 'दुःख')ना अर्थमां वपरायो छे, ते हकीकत सिहे. (४.४२२.२मां 'झकटस्य घंघलः' एने बदले 'संकटस्य घंघलः' एवो मूळ पाठ होवानी मारी अटकळने समर्थित करे छे ।।
उदा. ४७ : 'जुज्झमणु' ने बदले 'जुज्झणमणु' एम पाठ सुधार्यो छ।
उदा. ४८ : 'वहु' ने बदले 'वह' पाठ लीधो छ । 'पिहुला' ए. बहुवचनने अनुरूप ।
उदा. ५० : 'वाहिअउ' नहीं पण 'चाहिअउ' एम पाठ सुधार्यो छ । टीकाकारे 'दृष्टः' एवो अर्थ बराबर कर्यो छे । छठ्ठो अध्याय
पृ. ७९ : मूळ सूत्रपाठमां छे तेम 'सामुद्रक' नहीं पण 'सामुद्गक' एवं नाम जोईए । 'स्वयंभूच्छन्द' १९.२ मां पण 'सामुग्गए' जोईए, 'सामुद्दए' नहीं। 'छंदःशेखर'मां (५.३९) 'सामुद्गके' ए प्रमाणे संस्कृत अनुवाद छ ।
उदा. १ : 'दुरुढुल्लइ' एम 'दुरुढोल्लइ'ने बदले सुधार्यु छ ।
उदा. ३५ : 'बिंबालिउ'ना मूळमां 'वमालिउ' (> वम्मालिउ) > वम्वालिउ > बिम्बालिउ) छे । 'वमाल' = संमर्द, समूह । 'वमालिय' = व्याप्त । सरखावो विजयसेनसूरिकृत 'रवंतगिरि-रासु' वाले (२.३), वमालो (३.९), बंबालिउ (४.१) तथा रत्ना श्रीयन A Critical Study of Desya Words (१९६९), क्रमांक १२३३ : वमाल।
उदा. ३६ : आ 'स्वयम्भूच्छन्द'(१.२१.२)मांथी अपनावेल छे. उदा. ४३ : आ 'स्वयम्बूच्छन्द'मांथी अपनावेल छे :
चंदम्मि ठिओ, अवर-भीरु-वि जहा मओ । ण-हु सूरो, केसरी मुणिअ-णामओ ॥ (६.३१.१)
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[151] उदा. ४५ : आ 'स्वयम्भूच्छंद'मांथी अपनावेल छे :
काई करउं हडं माए, पिउ ण गणइ लग्गी पाए । __मण्णु धरंतहो जाइ, कढिण उत्तरंग भणाइ ॥ (४.७.१)
उदा. ४९ : सरखावो : 'उअ हरइ मयंकलेहिउआ...णह-पलय-वराह दाढिआ ॥ ('स्वंभूच्छद', ६.२३.१)
उदा. ५२ : सरखावो सिहे. (४.४४४.३) : वलयावलि-निवडणभएण, धण उद्धब्भुअ जाइ । उदा. ६० : सरखावो :
पंकज-पंकि वहेलिय, कुवलय खित्त दहि । उदा. ८३ : 'तुहुं'ने बदले 'तुह' (= तव) एम सुधार्यु छ । उदा. ८४ : 'कुंजर ललिअगई' एम असमस्त पद गण्युं छे ।
उदा. १२१ : 'तुं' ने बदले 'तुहुं' एम सुधार्यु छे । . सातमो अध्याय उदा. १ : 'उल्लालिकरि' प्रयोग ए रीते रसप्रद छे के ते हिन्दी
'उछाल कर', गुज. 'उछाळी करी' जेवा प्रयोगोनो पुरोगामी
छ।
उदा. १० : 'भमरु' ने बदले 'भमर' (संबोधन) एम सुधार्यु छ । उदा. २० : बीजी पंक्तिमा 'मज्झ' ने बदले 'महु' एम सुधार्यु छ । उदा. २४ : 'पञ्चल्लिउ' ने बदले 'पच्चल्लिउ' एम सुधार्यु छ । अहीं नायकने जोवानी उतावळमां आभूषणो पहेरवामां थतो संभ्रमनो जाणीतो वर्णनघटक प्रयोजेलो छ ।
उदा. २७ : बीजी पंक्तिमा 'कुक्कुडि'ने बदले 'कुक्कुड' (बहुवचन : 'रडिअ' ने अनुरूप) एम सुधार्यु छे ।
उदा. ५१ : आमां 'रघुवंश'ना सोळमा सर्गमां आपेला अयोध्यानी पडतीना वर्णनमां आवता एक चित्रनो ज आधार लीधो होवार्नु जणाय छे । ते पद्य नीचे प्रमाणे छे:
'सोपानमार्गेषु च येषु रामा, निक्षिप्तवत्यश्चरणान् सरागान् ।
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[152]
सद्योहत - न्यंकुभिरस्त्र- दिग्धं, व्याघ्रैः पदं तेषु निधीयते मे ॥
( १६, १५ )
'(वैभवी आवासोनी) जे सोपानपंक्ति पर पहेलां रमणीओनां अळताभीनां चरणोनी रंगीन पगलीओ पडती हती, त्यां हवे हरणने मारीने आवेला वाघना रक्तरंग्या पंजा पडी रह्या छे' ।
बने वच्चेनुं साम्य उघाडुं छे । 'सिंहपद' (सिंहपय) नाम गूंथाय ते रीतनुं उदाहरणपद्य रचवा माटे हेमचंद्राचार्यने 'रघुवंश'ना उपर्युक्त पद्यनुं अवलंबन लेवा माटे संस्मरण थयुं । तेने तेमना 'रघुवंश'ना अनुशीलननुं, काव्यरसना भावकत्वनुं अने तीक्ष्ण स्मृतिनुं सूचक गणी शकीए ।
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अडिला 68 अतिदीर्ध 130
अधिकाक्षरा 38
अनङ्गललिता 105
अन्तरगलितक 16
अन्तरसमा चतुष्पदी 77 अपदोहक 89
अप्सरा 1321
अप्सरोविलसित 110
अभिनव 127 अभिनवमृगाङ्कलेखा 90
अमिनववसन्तश्री
100
अभिसारिका 84
अमरघवल 72
अमरपुरसुन्दरी 133
अमृत 128
अरविन्दक - १ 34
अरविन्दक - २ 87
अर्धसमा चतुष्पदी 108
[ 153 ]
छंदनाम- सूचि
( पृष्ठांकना निर्देश साधे )
अवगाथ 11
अवतंसक 55
अवदाम 13
अवलम्बक 29
अवस्कन्धक 9
अवस्थितक = उत्थक्क 69 अशोकपल्लवच्छाया 105
आक्षिप्तिका 110
आमोद 57
आयामक 119
आरनाल 33
आवली 29
इन्द्रगोप 56 उग्रगलितक 20
उत्थक्क 69
उत्साह 54
उत्स्कन्धक 9
उद्गाथ 11
उद्गीति 6
उद्दाम 13 उपकाञ्चीदाम 120
उपखण्डक 28
उपगन्धर्व 126
उपगरुडपद 115
उपगलितक 16
उपगाथ 11
उपगीत 126
उपगीति 6
उपचूडामणि 120
उपदाम 13
उपदोहक 103
उपभ्रमपद 114
उपरसनादाम 120
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उपवदनक 68 उपस्कन्धक 9 उपायामक 120 ओहुल्लणक 106 कङ्केल्लिलताभवन 104 कज्जललेखा 106 कन्द्रोट्ट 124 कमलाकर 116 करभक 56 करिमकरभुजा 132 कर्पूर 113 कलकण्ठीरुत-१ 99 कलकण्ठीरुत-२ 129 कलहंस 99 काञ्चनमाला 89 काञ्चनलेखा 134 काञ्चीदाम 120 कामलीला 40 कामलेखा 33 कामिनीकङ्कणहस्तक 89 कामिनीक्रीडनक 90 कामिनीहास 88 किङ्किणी 94 किन्नरमिथुनविलास 88 किन्नरलीला 101 किलिकिञ्चित 107 कीर्तिघवल 71 कुङ्कम 113 कुङ्कमकेसर 125
[154]
कुङ्कुमतिलक 81 कुङ्कुमतिलकावली 116 कुङ्कुमलता 95 कुङ्कुमलेखा 68 कुञ्जर 93 कुञ्जरललित 101 / 11 कुञ्जरविलसित 105 कुन्द 55. कुब्जककुसुम 97 कुमुद 123 कुसुम 59 कुसुमनिरन्तर 84 कुसुमबाण 96 कुसुमलतागृह 92 कुसुमाकुलमधुकर 102 कुसुमायुधशेखर 103 कुसुमावली 99 कुसुमास्तरण 97 कुसुमितकेतकीहस्त 104 कुसुमिता 31 केतकीकुसुम 86 केसर 79 कोकिल 56 कोकिलावली 86 क्रीडनक-१ 34 क्रीडनक-२ 82 खञ्जक 27 खण्ड 28 खण्डोद्गत 22
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________________
खण्डिता 28 गणद्विपदी 132 गन्धोदकधारा 111 गरुडपद 114 गलितक 16
गाथ 10.
गाथा 1 गाथा+भद्रिका 44 गाथिनी 2 गीति 5 गीतिसम 115 गुणधवल 71 गोन्दल 126 गोरोचना 96 चतुष्पदी ध्रुवा 76 चन्द्रलेखा-१ 33 चन्द्रलेखा-२ 104 चन्द्रहास 95 चन्दोद्योत 85 चपल 128 चपला 3 चम्पककुसुम 78 चम्पककुसुम(अर्धसम) 108 चम्पककुसुमावतं 81 चम्पकशेखर 81 चारु 134 चित्रलेखा 38 चूडामणि 120 छडुणिका 74, 118
[155]
जंभेट्टिका 133 जलधरविलसित 89 जातिफल 10 . झम्बटक 73 तरङ्गक 36 ताराध्रुवक 121 त्रिभङ्गिका 49 त्रिवलीतरङ्गक 87 दर्दुर 57 दामिनी 13 दीपिका 39 दीर्घक 129 दोहक 103 द्विपदी 32 द्विपदी+अवलम्बक+गीति 49 द्विपदीखण्ड 43 द्विभङ्गिका 43 धवल 69 ध्रुवक 109 ध्रुवा 13 नर्कुटक 35 नवकदलीपत्रा 118 नवकुवलयदाम 98 नवकुसुमितपल्लव 83 नवकोकिला 40 नवचम्पकमाला 97 नवपुष्पंधय 87 नवरङ्कक 122 नवविद्युन्माला 96
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________________
[156]
नागकेसर 96 निध्यायिका 37 पङ्कज 93 पङ्कजश्री 94 पञ्चाननललिता 100 पथ्या 2 पद्धडिका 11 पवनध्रुवक 123 पवनोद्भुत 36 पारणक 111 पुण्यामलक 83 पुष्पमाला 134 प्रसृतागलितक 23 प्रेमविलास 89 फुल्लडक 73 बकुलामोद 82 बहुरूपा मात्रा 64 बालभुजङ्गमललित 125 भद्रिका 8 भाराक्रान्त 123 भुजङ्गविक्रान्त 121 भूषणागलितक 21 भ्रमद्भुत 124 भ्रमरधवल 71 भ्रमरपद 114 भ्रमररुत 116 भ्रमरविलास 102 भ्रमरावली 94 भ्रूवक्रणक 85
मकरध्वजहास 101 मकरन्दिका 80 मङ्गल 72 मञ्जरी 31 मञ्जरी+खण्डिता+भद्रिका 50 मडिला 69 मणिरत्नप्रभा 81 मत्तकरिणी 63 मत्तबालिका 60 मत्तमधुकरी 61 मत्तमातङ्गविजृम्भित 130 मत्तविलासिनी 62 मदनविलास 102 मदनातुर 94 मदनावतार 40 मदनावास 83 मदनोदय 84 मधुकरविलसित 80 मधुकरवृन्द 86 मधुकरीसंलाप 98 मधुरालापिनीहस्त 91 मनोहरा 101 मन्मथतिलक 82 मन्मथविलसित 106 मरकतमाला 100 मलयभारुत 83 मल्लिका 39 मल्हणक 79 महातोणक 27
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________________
[ 157]
महानुभावा 110 मागधनकुटी 35 माङ्गलिका 84 मात्रा 59 मारकृति 110 मालतीकुसुम 96 मालागलितक 19 मालागलिता 21 मालागाथ 12 मालादाम 13 मालाध्रुवक 131 मालाविलसित 82 मुक्ताफलमाला 85 मुक्तावलीगलितक 25 मुखगलितक 18 मुखपक्ति 92 मुखपङ्क्ति (अर्धसमा) 108 मुखपालनतिलक 91 मुग्धगलितक 20 मुग्धिका 38 मेघ 58 मौक्तिकदाम 118 मौक्तिकदाम्नी 119 यशोधवल 70 रगडाध्रुवक 112 रचिता 32 रड्डा 64 रतिवल्लभगलितक 25 रत्नकण्ठिका 117
रत्नमाला 92 रत्नावली 85 रथ्यावर्णक 127 रसनादाम 120 राजहंस 105 रावणहस्तक 80 रासक-१ 54 रासक-२ 54 रासा 59 रासावलय 66 रासावलय+कर्पूर 45 रासावलय+कुङ्कम 46 रासावलयार्ध+वस्तुवदनकार्ध+कर्पूर 47 रिपुच्छन्दा 7 रेवका 131 लक्ष्मिका 40 लघुद्विपदी 131 लम्बितागलितक 23 लय 113 ललिता 8 ललितागलितक 24 लवली 133 लीलालय 95 वदनक 68 वदनक+कर्पूर 48 वदनक+कुङ्कम 48 वसन्तलेखा 91 वसन्तोत्सव 40 वसुद्विपदी 132
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________________
[158] वस्तु 64
शिखा 117 वस्तुक 65
शीर्षक 43 वस्तुवदनक 65
शुभगलित 18 वस्तुवदनक+रासावलय 67
श्रीधवल 69 वस्तुवदनक+कर्पूर 45
षट्पद 49 वस्तुवदनक+रासावलया+कर्पूर 46 षट्पदजाति-अवजाति 76. वस्तुवदनक+रासावलया+कुङ्कम 47 षट्पदजाति 75 विगलितक 117
संकीर्ण स्कन्धक 9 विगाथ 11
संकीर्णा चतुष्पदी 108 विचित्रा 8
संकुलक 68 विजया 131
संगलितक 17 विदाम 13
संगाथ 11 विद्याधर 97
संगीत 126 विद्याधरलीला 88
संदानितक 13 विद्याधरहास 102
संदाम 13 विद्युल्लता 100
सन्ध्यावली 99 विद्रुम 57
समगलितक 18 विनता 30
समनऊटक 35 विपुला 2
समशीर्षक 5 विभ्रम 58
सर्वसभाचतुष्पदी 109 विभ्रमविलसितवदन 87
सहकारकुसुम मञ्जरी 90 विलम्बितागलितक 22
सामुद्गक 79 विलासिनी 30
सारङ्ग 88 विषमशीर्षक 52
सार्धछन्द 49 विषमगलितक 24
सिंहपद 128 शशाङ्कवदना 109
सिंहविक्रान्त 125 शशिबिम्बित 107
सिंहविजृम्भित 80 शशिशेखर 95
सुखावास 98 शालभज्जिका 31
सुतारा 40
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________________
सुतालिङ्गन 104 सुन्दरागलितक 21 सुभग 122 सुभगविलास 79 सुमङ्गला 27 सुमनोरमा 93 सुरक्रीडित 124 स्कन्धक 8
[159]
स्कन्धकसम 118 स्कन्धकसमा 119 स्थविरासनक 122 स्वप्नक 121 स्वरद्विपदी 132 हरिणीकुल 115 हरिणीपद 116 हीरावलीगलितक 26 हेला 29
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________________
[160]
उदाहरण-सूचि अइचंगई मोरई ६.१२९ उअ वणावलिआ अच्छउ ता उब्मड ७.३९ उअ वयंस वित्थ अज्जवि नयण न
५.३९ उअह तुज्झ अणुरयणि चंदकिरण ४.५३ उक्करडा खवलउ अमरपुरसुंदरिहिं
७.६९ उच्छलंतछप्पय । अलिमालइपरि
६.९५ उज्जग्गरओ कवोल अलिरवगीई
६.१६ उज्जागरकसाय अवमन्निअदु?
५.१ उण्हय अमयमउह अविरलबाहवारि
४.९८ उद्दाम-मारुत अविरहिअहं
६.४२ उद्धाइअझंझानिल अविहडअवरु ४.१३१; ५.३७ उपगीति कुरंग असोअमंजरी
५.१२ उपगीति गन्ध अहरु? दलइ
५.६ उब्भिज्जउ मायंद अंगचंगिम
६.१ उपदिश्यते तव अंगय फुडिअ
७.२३ एकोऽपि बाल अंगुलिआहिं ललिअं ४.३० एक्कु पसारइ जइ आमूल वि बहु
५.४० एत्तहे गब्मभरा आयामयधवल
७.२२ एत्थु करिमि भणि इंदहु तुहुँ गुणि
५.५० एह ललिअदेह इअ उवजाइहि
६.४ ओ चलचलंतिआ इअ नारिहिं
६.३ ओ दामाइं रयंतीइ इअ वणराइहिं
६.५ ओ भडकबंधु इह माला गाहाण व ४.४८ ओ रणझणंत इह माहवि वम्मह ६.५३ कइअहिं होएसइ उअ अच्छरा
७.६२ कइलासतुलणपय उअ खंधाहइ
४.३४ कज्जललेहाविल उअ महुसमओ
४.६२ कद्दमभग्गा मग्गु
७.६८ ४.६० ४.१०२ . ५.४७ ४.१३९ ४.११२ ४.८८ ७.५० ४.१३ ४.१२६ ४.२१ ४.२३ ४.११५
४.९
७.५४
७.११
६.४५ ७.७२
ب
६.३६
و
४.५२
६.९२ ६.६३
६.१२७
४.७६ ६.११२ ५.४८
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________________
[161]
कप्पूरधवला गुण कमलिणिपासि कर असोअदल करवालपहारिण करहयथणहर करिमयरभुओ कलसभवतवस्सि कवणु सु धन्नउ कष्टां जनस् कस्य कृते कहिं हंसिहिं कंकण किंकिणि कंकेल्लिलयाभवण कंचणभूसण छड्डिअ कंपिअ निअवि कामिणिहिअअसरो काली रत्तडी किउ उरि लच्छिहिं कित्तिउ वण्णउं कित्ति तुहारी कि अज्जवि माणं कि झाइउ तिण कि न फुल्लइ कुइ धन्न जुआ कुमुअकमलहं कुवलयदलनयणे कुविदो मयणो कुसुमंतरि कुसुमाउहपिअ
७.१ कुसुमुग्गमु ६.२० कृव कण्ण कलिंग ६.८९ केआरावु ६.५८ केलाससेल
५.७ केसरकुरबय ७.६४ कोअंडं पसूण
४.२ कोइलकलवु ६.५१ कोइलावलिकए ४.२० खलिअक्खरउं ४.१४ खंडुग्गयमिंदु
खीरसमुद्दिण ४.१०१ खेलिरकामिणी ६.१०४ गज्जइ धणमाला ७.३५ गयधडतुरय ६.२२ गयणुप्परि कि न ६.८२ गयपत्तपरिग्गह ६.२६
गलिअंजणधवले ७.३ गहिरु गज्जइ ६.४६ गाविँ पट्टणि ५.४९ गिज्जति गीइअ ७.४८ गुणविवज्जिइ ७.३६. गोरडिअहिं उव ४.१३५ गोरीइ चिहुर ६.३९ गोरी गोट्ठी दर ५.१९
गोरोअणगोरी ४.८२ गोवीअणदिज्जंत ६.५४ घणरवदूसहा ६.११ घणसारु मेल्लि ४.१२४ घोलिरनवपल्लवु
७.३७ ६.११६ ६.५९
४.२९ ४.११७ ४.४९ ६.२९ ६.३३ ६.६२ ४.७४ ५.४५ ४.६७ ६.६१ ७.४२ ४.१२८ ७.२१
४.५८
५.२० ५.३१ ४.११८ ५.२४ ६.६६ ४.४० ६.११५ ६.७०
५.४
६.२८
७.२
६.१८
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________________
चच्चरि चारु
चतुरम्बुराशि
चपलं न
चपले प्रयातु चरणकमललग्गे
चरणेण वि नव
चंदणयं पहु चंदुजोओ
चारुचंपयरुइ
चीणं चएसु चूअमंजरि मंजु चूडुल्लउ चुण्णी चूडुल्लउ बाहोह
चूताङ्कुरा
चोलुक्क तुज्झ नयरी
छुहखामु वि
जइअ झल्लकहि
गंगाजल
जइ जाहिं सुरसरिअ
जर तुह पवयणु जर तुहुं महु कर
जइ न हससि
जइ बोलाइ धण
जइ वम्मह गोरडी
जइ वि संखु न
जनसेव जयति विजिता
जलइ जइ वि
७.४७
४.४
४.१५
४.२७
४.९४
४.११९
४.८०
३.७०
७.७१
४.८५
४.९३
६.११९
६.११७
४.२४
४.५०
६.१०
४.१३०
६.१०५
७.५५
७.१९
४.१३६
७.१४
६.२
६.७९
६.१२१
६.१०५
४.५७
६.५७
[162]
जलइ सरोवर
जसु अतुलिअ गय
जसु पारु लहंति
जासु भुअबलु
जसु लोहचक्किण
जह जह तुह पहु
जहिं घल्लिअ उप्फु
जहिं छिज्जइ नर
जं किर मुद्धिआइ
जं जाइहि
जं धणलोअण
जं सहि कोइल
जा किन्नर मिहुणि
जा बलमडप्फरेणं
जावयरसरंजिअ
जासु अंगहि घणु
जीए लग्गेइ चंदणं
जुवईण नयण
जूहाउ व वूहाओ जे तुह पिच्छहिं
जेथु गज्ज
जे निअहिं न पर
तणुअंगिहि लोअण
तणु नव चंपयमाल
तरलं दीहत्तणेणं
तरुणिहूणिगंड
तरुणीकिलिकिंचि
तस्या नितान्त
७.३२
७.१६
७.६
७.४४
६.७१
४.३७
६.८१
५.४२
४.७५
६.१२
६.२४
६.६८
७.१७
४.३५
७.५१
५.२८
४. ११३
४.३१
४.४९
५.४६
५.३०
६.१२४
७.२६
६.७४
४.७९
४.१३३
६.११३
४.१२
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
तहि भुमयहि तं तेत्तिउ बाहोह ताहि मुद्धिहि नेहंधहिं तारावलि मणि मा तुह असिलट्ठिहिं तुह गुण अणुदिणु तुह चंडिण मुअ तुह दंसण तूरं तुह पयावेण तुह पुहईसर तुह मार मारकिदी तुह मुहलायण्ण तुह रणि नट्ठ तुह रिउणो निवसंता तुह रिउराय तुह रिउ वणगय तुह विजयपयाण तुह विरहिं सा तुहं उज्जाणि मा ते ज्जि पंडिअ तोडिअगुडमुह दयितस्तव दश धर्मं न दहिअक्खयघण दारविवज्जिआ विसय दारुणदेहदाहप दिव्व कहिं ते मत्त दीसइ उववणि
[163] ६.६८ दीसइ सुरधणु ६.११ दीसए एस तरुणि
७.५ दीहरच्छिआए ६.३२ दीहरभुअदंड ५.५१ दुद्दमरिउमहि ६.९०
दुद्धरवारिट्ठि ६.१०३ देक्खिवि वेल्लडी ७.२४ द्वीपादन्य ४.८४ नच्चाविअचंदण ७.५७ नच्चिर कीरमिहुण ६.१२३ नच्चिरु किसलकरि ६.१२४ नमिरसुरासुरिंद . ७.२८ न मुणिज्जइ गलाउ ४.३९ नयणविलासिण ४.३३ नरवरिंद तुह ७.२९ नरु लच्छिविव ४.५९ नवकयलीपत्तिहिं ६.१०२ नवकुवलयनयण
नवकोइलरवा ५.२७
नवघणभमभमंत ६.८४ नवधणमालिअत्ति ४.११ नवचंदलेह ७.७४ नवमयरंदपाण ७.३० नहकोलस्स व ७.३१ नहयलम्मि सयल ४.१२५ नहयलवराह
नहलच्छिमाल ६.७३ नाभी-निम्ना
६.४७ ४.८१ ६.३७ ७.५२ ७.४१ ४.६५ ६.२३
४.१ ४.८६ ४.९७
७.९ ४.६८ ४.७२ ७.४०
४.७०
७.३४ ७.२० ६.१२२ ४.१२० ५.४१ ४.९०
७.८
।
७.६५
४.१०३
४.४४ ४.१२४ ६.४९ ६.५२ ४.७
५.२९
Page #199
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________________
५.५४ ४.१३३
७.१५ ४.१२२
६.१००
७.२७
४.७१ ४.६४
६.४८
६
नारिहुं वयणुल्लई नासंतिहिं समरा निअइ झुणइ निअजुवई गणदु निअवि वयणु निक्कंदल कय निच्छई पिअसहि निच्छिवि करिवि निज्झाइअइ जत्थ निद्दड्ड डड्ड निब्भरदलिअ निम्मलनाणदिट्ठि निम्मलि गयणि निसुणिअ माई नेपथ्यानि निरस्यति पइं विणु तहि पई ससिवयणिए पत्तउ एहु वसंतउ पत्तलच्छि सुहयं पनमध पनयपकु पयडिअलंछणमय परगुणगहणु परनरमुहपेच्छण परहुअपंचम परिमललुद्ध पलिअ केस पवणपहल्लिर पसरदु वई
[164] ७.१८ पहु तुह वेरि ६.९७ पंडिगंडयल ६.१३ पाडियबहुविह ७.६०
पिअयम कहं ६.६० पिअहु पहारिण ४.१२७ पिउ आइउ निवडिउ ६.८५ पिच्छ पीवरमहा ५.१५ पुणरवि निअ ४.१०९ पेक्खिउण गण
पेच्छंतहु नवमालिअ ४.१३८ पेच्छ पाउसलच्छि ४.६९ प्रियमधुसंगमि ६.१९ प्रियहि मुहु अर ६.७८ फुडिअकेसर
फुलंधुअधोरणीउ ६.७ फुल्लिअलय निअवि ६.१२५ फुल्लिआणेअकंकेल्लि ६.९४ फेडवि कुंकुमलेह ४.६१ बहुवया रेवया
बहुविहभावमुद्ध ७.५६ बहुविहसमरंगणि ६.२२ बहुहयखरखुर ६.५६ बाला कुतोऽपि ४.१२९ बिंबालिउ भुवणु ४.१०४ भसला दंसयंति ६.१०९ भासासु विचित्तासु ४.३६ भीरु वि चंदट्ठिओ ७.६१ भ्रूवाल चावय
४.५
६.७६ ५.२१ ६.२५ ६.३८ ५.२३ ६.८८ ६.३४ ४.१२३ ६.८० ७.५९ ४.१०६ ७.२५ ७.३३ ४.२८ ६.३५ ४.१०७ ४.३२
४.३
६.४३
५.१२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
मई असरण तुहुं मणहरु तुहु मुहु मणिकंचणरेहि मणिरयणपहा मत्तकोइलनाय मत्तकोइलामहुर मत्तजलहर मत्तद्विरेफ मत्तपिअमाहवी मत्तमयरपुच्छ मत्तमहुअमंडल मत्तमहुअरितार मत्तवारिहरपंति मत्तंबुवाह मन्नावि प्रिओ मम सावन् मयणविआरसमुद्द मयणविलसिअं मयणविलासगिरि मयपरिपुट्ठघुट्ठ मयवसतरुणि मलयानिलु मलय मसिसब्बंभयारि महु कंतिण रणि महु दुसह विरह महुरसु छुटिउ माणु म मेल्हि मायाविअहं
[165] ६.२१ मा रे वच्च पहिअ ६.४४ मालइकुसुम न ७.७० मालइमालहिं ६.१४ मिउ मलयसमीरण ५.१७ मुख-विपुला ४.९२ मुद्धइ गिज्जंतउ ५.२६ मुहसिरकलाव ४.१८ मुहि करिवि मय ४.१२१ मृदु वाच्य ४.७८ मेल्लि माणु ४.८३ मेहयं नच्वंतं ५.२२ यावल्लुनामि ४.११६ युगपत् - फुल्ल ५.१० रणरणिति जत्थ ६.२८ रमणिकवोलु कुरंग ६.१०१ राइ चंदकिरण ४.१०० रेहइ तरुणिअणु ७.६६ रेहइ तह करि ६.९६ रेहहिं अरुणकंति ४.९५ लंधइ सायर ६.११० ललिअविलासो ६.७७ लायण्णविब्ममं ४.७३ लुढिदु चंदण ६.९९ लेहि वीण ७.१३ वज्जहिं गज्जिर ६.१११ वणफलमरसं ५.३६ वणलच्छिकणय ५.३४ वम्मीसरकंचण .
४.९६ ६.७२ ६.३० ७.५३
४.६ ६.४२ ४.९१ ६.७५ ४.१०
६.८ ५.१३ ४.१९ ४.१६
४.७७ ६.१२६
४.९९ ६.३१ ६.६९
५.८ ६.६७
७.४ ५.१४ ५.३२
६.९
७.४३ ४.६३ ६.५० ४.१११
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[166]
४.४१
वरजाइ सरंतहुं वायाला फरुसा विज्जुलमेहमज्झि विपुलोद्गीति विरचित-कुसुम विरहरहक्कई वीरवरेण्य शस्त्राभ्यासे शुष्कशिखरिणि सग्गु पहुत्तिहिं सजया विजया समय मयगल समरमहोअहिमुत्भड सयलसुरासुरिंद सयलु वि दिणु सयवत्तयं सरसयरसुरहि सल्लइपल्लव सवणनिहिअ संतद्रुहं मय संप्रति शिली ससिणा रयणीए सहि पंकोप्पन्नु वि सहि वद्दलओ सहि विज्जुलअ सा तसु बेट्टिआ
७.१० सा बाला तुह
४.३८ ६.११८ सायरु रयणायरु ६.८६ साहीणो चित्तण्णुओ ४.८७ ४.२६ सिद्धत्थपुलय
६.२७ ४.१७ सिरिकुमारवालभूवइ ४.४२ ७.४६ सिरिकुमरवाल मुच्चसि ४.५१ ४.२५ सिरिमूलरायभूवइ...तिहुअण ४.४७
४.८ सिरिमूलराय तुह दिस ४.५४ ५.१८ सिरिवद्धमाणजिण ७.३८ सिरिसिद्धरायनंदण
४.५५ ७.५८ सिंदूरिअगुरुकुंभ
६.८३ ५.२५ सुणिवि वसंति
५.१६ ४.४५ सु तव सुदु
७.६३ ४.१०५ सुररमणीअण
५.२ ७.१२ सुरवहुमहुअरि ४.६६ सुरसरितुंग
७.४९ ४.१४० सुंदरु तं किउ
६.५५ ६.१०६ सो जयइ अजल
४.४३ ४.१३४; ५.३० सो जलिअउ मय
६.९३ ६.२१ हणिअदुजीह
७.७ ४.२२ हयखुरखणि
४.१४१ ६.६५ हरइ जम्मसय
४.११० ६.४० हंसि तहारउ ६.१७ हंहो जुआणय
४.५६ ७.४५ हा खामोअरि
४.१०८ ७.६७ हिंडइ सा धण
६.९१
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सुधारो (पृ. ५४, पंक्ति १० पछी उमेर) संस्कृत अने प्राकृत छन्दोना निरूपण पछी हवे घणुंखएं अपभ्रंशमां मळता छंदोनुं निरूपण करवामां आवे छे । 'घ'ख' एम का छे तेथी एम समजवू के ए छंदो बीजी भाषाओमां पण वपराता होय छे ।
उत्साह (पृ. ५४, पंक्ति १७ पछी उमेर) जेमां प्रत्येक चरणमा छ चतुष्कल होय अने तेमांनो त्रीजो तथा पांचमो चतुष्कल जगण के चार लघुनो बनेलो होय ते छंदनुं नाम उत्साह ।
उत्साह छंदनुं उदाहरण :
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________________ हेमचंद्राचार्य- 'छंदोनुशासन' ए संस्कृत अने प्राकृत छंदोर्नु आठ अध्यायो अने 746 सूत्रोमां निरूपण करतो, तथा स्वरचित वृत्ति अने 1000 जेटलां उदाहरणो धरावतो, त्रण हजारथी पण वधारे श्लोकप्रमाण वाळो एक प्रमाणभूत अनन्य पिंगळग्रंथ छे। तेना प्राकृत-अपभ्रंश विभाग विशे ते विषयना सर्वाधिक निष्णात ह. दा. वेलणकरे कां छे के हेमचंद्राचार्ये बधी महत्त्वनी पूर्ववर्ती सामग्री उपयोगमां लईने ए छंदोनुं प्रमाणभूत, अने सुव्यवस्थित निरूपण कर्यु छे / ए विषयनो एनी कक्षानो बीजो कोई ग्रंथ प्राप्त नथी. तेनां उदाहरणोनुं कवित्व पण नोंधपात्र छ / प्रस्तुत अनुवाद पहेली ज वार प्राकृत-अपभ्रंश छंदोनी नाणकारी गुजरातीमां सुलभ करी आपे छ /