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[ 52 | त्रिभुवन मनोहर बन्युं छे,
जे ऋतुमां दक्षिणसमुद्रनी तरंगमाळाना स्पर्श शीतळ बनेला मलयानिलनी लहरीओथी डोलती जातजातनी अनेक वल्लरीओना भरपूर अने सघन कुसुमगुच्छोमांथी ऊछळता परागथी रक्तवर्ण बनेल दशे दिशाओना समूहने जोईने प्रियतमानुं स्मरण थवाथी मूर्छाविवश बनीने नीचे पडेला प्रवासीओने लीधे मार्गो आवजा माटे मुश्केल बन्या छे;
जे ऋतुमां विकसित बनेल घाटा किंशुकतरुओ, करेणनी कुंजो, सुंदर कांचनार, बोरसल्ली, लविंग, चंपक, प्रियंगु, मल्लिका, विस्तृत माधवीमंडपो, अशोक, तिलक, कुरबक, प्रियाल, पुन्नाग, नागकेसर, सोनेरी केवडानी कुंजो, पाटल, तमाल, नवमालिका-एमना प्रसरता प्रचुर भीना परिमलना गुच्छोथी समस्त वनांतराल मघमघी रयुं छे;
अने जे ऋतु तरुणीओना स्पर्धायुक्त चर्चरीनृत्यना उत्सवमां दांडियाओना । तालबद्ध ठपकारानी वच्चे जोरथी वगाडाता मृदंग साथे गवाता मधुर हिंडोळरागना आलापनी सुंदर छटाओ साथे वांसळीनां छिद्रोमांथी ऊछळता विविध स्वरोना सुमेळथी संपन्न छ ।'
नोंध :- आ छंदमां बेकी स्थाने जगण अथवा चार लघु होवा जोईए अने छेल्ला चतुष्कलनी पहेलाना एक चतुष्कलने स्थाने जगण के चार लघु न होवा जोईए एवी प्रथा छ । विषमशीर्षक
जो मालागलितक छंदना प्रत्येक चरणने अंते एकी संख्यानी चतुष्कलनी जोडीओ उमेरवामां आवे तो जे छंद बने तेनुं नाम विषमशीर्षक । मालागलितक छंदनी जेम आ छंदमां पण बेकी स्थाने जगण के चार लघु होवा जोईए अने एकी स्थाने जगण न होवो जोईए ।
विषमशीर्षक, उदाहरण :
हयवर-खुर-खणिज्जमाण-महि-रेणु-पडल-बहलिज्जमाण-गयणंगणुत्थरिद-अविरलंधार-पुंज-संवलण-रुद्ध-लोअण-विलोअण-पवंचमच्छरिअ-पर-वसो अवयरइ समंतदो तुरिदममर-निसरो,
निब्भर-संचरंत-चउरंग-सेन्न-पब्भार-चलिर-नीसेस-भू-वलय-खडहडंतमंदर-सुमेरु-कइलास-विंझ-गिरिनार-पभुदि-गिरि-सिहर-निवडणाइ-भर
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