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[ 51] हे सखी, कामदेवनां बाणोथी वींधायेलो कई रीते जीवी शके ?' समशीर्षक
ज्यारे गाथ छंदना पहेला अर्धना छेल्ला गुरुनी पहेला बेकी संख्याना चतुष्कल गण उमेरवामां आवे, अने छेल्ला गुरुने स्थाने एक त्रिकल योजवामां आवे, त्यारे ए रीते बनेलां चार चरणोनो जे छंद बने, तेनुं नाम समशीर्षक ।
समशीर्षक छंदनुं उदाहरण :
सरसयर-सुरहि-सुस्साय-तरुण-मायंद-मउल-मंजरि-दलोह-कवलणकसाय-संसुद्ध-कंठ-कलयंठि-निअर-कंठोच्छलंत-पंचम-पलाव-वोल्लालयम्मि रुंदारविंद-मयरंद-बिंदु-संदोह-पाण-साणंद-भमर-निउरंब-बहल-झंकारमुहलिउज्जाण-चारु-लच्छीए तिहुअण-मणहरे,
दक्खिण-समुद्द-कलोल-मालिआ-तरण-संग-निव्वविअ-मलय-मारुअझडप्प-हल्लंत-विविह-बहु-वेल्लि-गहण-घण-कुसुम-गोच्छ-उच्छलिअ-पउरपिंजर-पराय-पडिहत्थ-दह-दिसा-चक्क-दसणुप्पण्ण-पिअयमा-भरण-मिलिअमुच्छा-पहार-निवडत-पहिअ-संघाय-रुद्ध-मग्गंतर-दूसंचर-धरे ।
पप्फुडिअ-सघण-किंसुअ-समूह-कणिआर-कुंज-वर-कंचणार-केसरलवंग-चंपय-पिंअंगु-मल्ली-महल्ल-माहवि-विआण-कंकेल्लि-तिलय-कुरुबयपिआल-पुन्नाग-नागकेसर-सुवण्ण-केअइ-कुडंग-पाडल-तमाल-नोमालिउल्लपसरंत-परम-परिमल-थवक्क-महमहिअ-समत्त-वणंतरे,
मा वच्च कंत चत्तूण मं इमं मयण-पीडिअंतरुणि-सत्थ-चच्चरि-विणोअ'समसीस'-नट्ट-दंडाहिघाय-सइंतराल-तालाणुलग्ग-घुम्मंत मद्दलोल्लसंत-सरभेअ-साहण-ट्ठाण-सहम्मि वसंतए ॥ १४०
___हे कान्त, मदनथी पीडित एवी मने त्यजी दईने तुं आ वसंतऋतुमा प्रवासे न जा।
केवी छे ए वसंतऋतु ?
जे सरस, सुगंधी, स्वादिष्ठ ताजी विकसेली कोमळ, आम्रमंजरीनी पांदडीओ खावाथी जेमनो कंठ कषायित अने शुद्ध बन्यो छे तेवी कोयलोना कंठमांथी ऊछळता पंचम सूरोना कोलाहलनो निवास छे,
जे ऋतुमां विकसेलां कमळोनां मकरन्दबिंदुओ, पान करवाथी आनंदित बनेला भ्रमरवृंदना प्रबळ गुंजारवथी मुखरित बनेला उद्यानोनी रमणीय शोभाथी
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