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________________ [501 जेमां नीलकमळना परिमलमां लुब्ध बनेला भ्रमरोए विवध रीते गीत गावानुं आरंभ्युं छे, जेमां कमळवनमां कलरव करती कलहंसीओना नाद प्रसरी रह्या छे, जेमां कीचड सूकाई गयो छे, जे निर्मळ जळथी शोभे छे, जे राजवीओना संग्रामउत्सवना दूत छे, जेमां कलमी चोखानी आछी सुगंध आवे छे, जे त्रिभुवननी सुंदरताना आवास छे, जेमां आकाशना विस्तारने ज्योत्स्नाजळ भरी दे छे, तेवा आ शरदऋतुना दिवसो आ जगतमां को, चित्त हरी लेता नथी ?' _आ ज प्रमाणे बीजा पण कर्णमधुर त्रण त्रण छंदोने जोडवाथी त्रिभंगिका बने छ । मंजरी खंडिता+भद्रिकानी त्रिभंगी- उदाहरण : उच्छलंत-छप्पय-कल-गीति-भंगि-धरे, विप्फुरंत-कलयंठि-कंठ-पंचम-सरे । गिज्जमाण-हिंदोलालवण-पसाहिए, चच्चरि-पडहोद्दाम-सद्द-संबाहिए । विअसिअ-रत्तासोअ-लए, केसर-कुसुमामोअमए । पप्फुल्लिअ-मायंद-वणे, घण-घोलिर-दक्खिण-पवणे ॥ इअ एरिसम्मि चेत्तए जस्स न पासम्मि अस्थि पिअ-माणुसं । सो कह जिअइ वयंसिए विद्धो मयरद्धयस्य भल्लिआहिं ॥ १३९ 'जेमां भ्रमरना मधुरगाननी भंगि ऊछळी रही छे, जेमां कोयलना कंठमांथी पंचमस्वर स्फुरी रह्या छे, जे गवाता हिंडोळरागना आलापथी विभूषित छ, जेमां चर्चरीमां बजता मृदंगनो प्रबळ धमधमाट छे, जेमां रक्त अशोकनी लता विकसी छे, जेमां केसर पुष्पनो परिमल मघमघे छे, जेमां अमराई महोरी छे, जेमां दक्षिणानिल वेगथी घूमी रह्यो छे, तेवा चैत्रमासमां जेना संगमां पोता- प्रियजन नथी ते माणस, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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