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________________ [116] भ्रमररुत जेना प्रत्येक चरणमां पांच षट्कल होय तथा दस मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपद- नाम भ्रमररुत । भ्रमररुत द्विपदीनुं उदाहरण : वर-जाइ सरंतहु, 'भमर रुअंतहु तुहु, चिरु सुहु परिदीसइ । मायंगि मयंधइ, तुज्झु रमंतहु, कण्ण-चवेड जि होसइ ॥ १० ___'हे भ्रमर, उत्तम चमेलीने संभारीने तुं लांबुं रुदन करतो होवा छतां ए तारा माटे सुखरूप छे । पण जो तुं मदांध मातंगनी पासे रमतो रहीश, तो तेना काननी झपट तुं खाईश ।' हरिणीपद जेना प्रत्येक चरणमा एक षट्कल होय अने छ चतुष्कल होय, ए द्विपदीनुं नाम हरिणीपद। हरिणीपद द्विपदीनुं उदाहरण : एत्तहे गब्भ-भरालस 'हरिणी पउ' न हु एक्को-वि संचरइ । एत्तहे कण्णारोविअ-सरु हय-लुद्धउ भण मिउ किं करइ ॥ ११ 'एक तरफ गर्भना भारना कारणे अशक्त हरणी एक पण पगलुं भरी शके तेम नथी । तो बीजी तरफ दुष्ट शिकारी धनुष्यनी दोरी पर बाण चडावीने ऊभो रह्यो छ । कहे, (आवी परिस्थितिमां) हरण (बिचारो) शुं करे ?' कमलाकर __ जेना प्रत्येक चरणमां चार षट्कल, एक चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते द्विपदीनुं नाम कमलाकर ।। कमलाकर द्विपदीनुं उदाहरण : सयलु वि दिणु संनिहिअहं खेल्लंतहं चक्कवाय-मिहुणहं निअवि । विरह-दुत्थ मित्तत्थवणि नाइ दुक्खिअ मउलिहिं 'कमलायर'-वि ॥ १२ 'जेओ आखो दिवस एकबीजानी निकटमां रमतां हतां एवां चक्रवाकोनी जोडीने, सूर्य आथमतां विरहे दु:खी थयेली जोईने, कमळसरोवरनां कमळो पण जाणे के दुःखे बीडाई गयां ।' कुंकुमतिलकावली जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक त्रिकल होय, ते द्विपदीनुं नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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