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________________ [ 115 ] ‘हे शत्रुरूपी नाग प्रत्ये गरुड समा, बृहस्पति, शुक्राचार्य वगेरे पण जेनो कदी पार पामी शकता नथी तेवो तारो गुणसमूह समग्रपणे कई रीते वर्णवी शकाय ?' उपगरुडपद जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक त्रिकल होय ते द्विपदीनुं नाम उपगरुडपद । उपगरुडपद द्विपदीनुं उदाहरण : हरिअ - दुजीह - प्पसरणु पिअ-पुरिसोत्तम विणयाणंदणु । 4 'उअ गरुड -पय 'म्मि निबद्ध-रइ नरवइ हरइ न कासु मणु ॥ ७ 'जेम गरुड सर्पोनी गति रूंधे छे, तेम जे दुर्जनोनी गति रूंधे छे; जेम गरुडने विष्णु वहाला छे, तेम जेने उत्तम पुरुषो वहाला छे; जेम गरुड विनताने आनंद आपे छे (विनतापुत्र छे), तेम जे प्रणाम करनारने आनंद आपे छे-एम, गरुडना जेवा आचरणमां आसक्ति राखतो आ राजवी कोनुं मन न हरी ले' ।' हरिणीकुल जेना प्रत्येक चरणमां सात चतुष्कल अने एक द्विकल होय तथा बार मात्रा पछी अने आठ मात्र पछी यति होय ते द्विपदीनुं नाम हरिणीकुल । हरिणीकुल द्विपदीनुं उदाहरण : तुहुं उज्जाणि म वच्चसु, जइ वि हु विलसइ, मयणूसवु पबलु । गइ - नयणिहिं लज्जीहइ, तुह हंसीउलु, सहि तह 'हरिणिउलु' ॥ ८ 'उद्यानमां जोरशोरथी मदनोत्सव विलसी रह्यो होवा छतां तुं त्यां न जती, केम के हे सखी, तारी गतिथी हंसीओ लज्जित थशे अने आंखोथी हरणीओ लज्जित थशे । ' गीतिसम ज्यारे हरिणीकुल द्विपदीमां दस मात्रा पछी अने आठ मात्रा पछी यति होय, त्यारे ए द्विपदी गीतिने मळती होवाने कारणे तेनुं नाम गीतिसम छे । गीतिसम द्विपदीनुं उदाहरण : नच्चिरु किसल - करिहिं, फुड- पयडिअ-, पुलउग्गमु मउलावलिहिं । उववणु नाइ मुइउ, कय-' गीइ समं', चिअ तरलिहिं अलि-उलिहिं ॥ ९ 'कूंपळरूपी कर वडे नाचतुं, स्पष्टपणे कळीओना समूहथी रोमांच प्रगट करतुं, तो साथोसाथ चंचळ भ्रमरोना गुंजनथी गीत गातुं आ उपवन जाणे के आनंदित थई रह्युं छे ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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