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________________ [117] कुंकुमतिलकावली । कुंकुमतिलकावली द्विपदीनुं उदाहरण : महु दूसह-विरह-करालिअहि मयण मेलसु जणु मण-वंछिउ । पई पडिम ठवेविणु करिसु सामि 'कुंकुमतिलयावलि' लंछिउ ॥ १३ 'हे कामदेव, असह्य विरहदुःखे हुं त्रासेली छु, तो तुं मने मारा मनवांछित जननो मेळाप कराव । हे स्वामी, हुं तारी प्रतिमा स्थापीने तेने कुंकुमतिलकावलीथी विभूषित करीश ।' रत्नकंठिका । उपर्युक्त कमलाकर अने कुंकुमतिलकावलीना प्रत्येक चरणमां जो बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ए बंने द्विपदीओनुं नाम रत्नकंठिका । रत्नकंठिकाना बंने प्रकारनां उदाहरण : जइ न हससि न य कुप्पसि, न लवसि ता तुहु, सहइ ‘रयण-कंठिअ' । अन्नह फुरिआहर-दर-, दीसंत णवर, सहइ दसण-पंतिआ ॥ १४ _ 'जो तुं हसे नही, कोपे नहीं, बोले नहीं तो ज तारी रत्नकंठी शोभी ऊठे छ । नहीं तो फरकता होठो वच्चेथी सहेज देखाती तारी दंतपंक्तिनी ज शोभा विलसे छे' । पाडिअ-बहुविह-नरवइ-कुंजर-सइ पर-साहिज्ज-विवज्जिउ । महिअलि निरुवम-विक्कमु तुहुं राय- रयण कंठी'-रवु निच्छिउ ॥ १५ 'अनेक राजवीओना सेंकडो हाथीओने कोई बीजानी सहाय विना हणी नाखनार हे राजरत्न, नक्की तुं आ पृथ्वी पर अतुल्य पराक्रमी सिंह छे ।' शिखा जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, पांच चतुष्कल अने एक पंचकल होय तथा बार मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, ते द्विपदीनुं नाम शिखा । शिखा द्विपदीनुं उदाहरण : जसु अतुलिअ-गय-बल-भरि कंपहिं कुल-महिहर सवि स-वसुंधर ॥ निअ-कुल-नहयल-ससहर वीर-'सिहा'-मणि जय-मज्झि तुहुँ जि पर ॥१६ 'जेनी अतुल्य गजसेनाना भारथी पृथ्वी सहित बधा कुलपर्वतो कंपी ऊठे छे तेवा, पोताना कुळरूपी गगनमां चंद्रसमा (हे राजवी), जगतमां तुं एकमात्र वीरशिरोमणि छे ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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