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'जे चंदनलताना पलंग पर आळोटी रह्यो छे, लवंगलताओने भेटी रह्यो छे, रमणीय केळोनी वच्चे लथडी रह्यो छे, नागरवेलोमां ऊछळी रह्यो छे, सरळ कंकोल अने लवली लताओमां धूमी रह्यो छे, जेने माधवीलताओ चूमी रही छे, जे कामीओना शरीरने पुलकित करी रह्यो छे ते, भ्रमर समो, प्रबळ मलयानिल वाई रह्यो छे ।'
मात्रा- प्रकरण समाप्त
वस्तुक
जेना प्रत्येक चरणमां बे चतुष्कल, जेने अंते एक लघु होय तेवा बे त्रिकल, बेचतुष्कल अने एक त्रिकल होय, एवां चार चरणोथी जे छंद बने तेनुं नाम वस्तुक । वस्तुक छंदनुं उदाहरण :
सुरवहु - महुअरि-पंति - पीअ-गुण- परिमल - जालहं,
नह-मणि-किरण-कलाव-चारु- केसर-निअरालहं ।
पत्थुअ - ' वत्थुअ' - गीति - चारु- मुणि- निवह- मरालहं,
तिहुअण- सिरि-कुलहरहं नमहु जिण-पहु-पय- कमलहं ॥३३ 'जेना गुणोरूपी प्रचुर परिमलनुं अप्सराओरूपी मधुकरीओए पान कर्तुं छे, जेमां मणि जेवा नखोनी किरणावलिरूपी सुंदर केसरो रहेलां छे, मुनिओरूपी हंसोए वस्तुकछंद वडे जेमनुं गीत गावानुं आरंभ्युं छे, जे त्रण भुवननी सुंदरतानुं कुलगृह छे, तेवा जिनप्रभुना चरणकमळने प्रणाम करो' ।
वस्तुवदनक
जेना प्रत्येक चरणमां एक षट्कल होय, त्रण चतुष्कल होय अने एक षट्कल होय, ए छंदनुं नाम वस्तुवदनक । आमां बेकी स्थाने रहेल चतुष्कलनुं रूप जगणनुं न होय अने एकी स्थाने रहेल चतुष्कल जगण होय अथवा तो चार लघुनो बनेलो होय |
वस्तुवदनक छंदनुं उदाहरण :
मायाविअहं विरुद्ध-वाय-वस- वंचिअ-लोअहं,
पर- तित्थिअहं असार - सत्थ- संपाइअ - मोहहं ।
को पत्तिज्जइ सम्म - दिट्ठि-जह - ' वत्थुअ - वयणहं',
जिणहं मग्गि निच्चल-निहित्त मणु करुणा भवणहं ॥३४
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'जेओनी दृष्टि सम्यक् छे, जेमना वचन यथार्थ छे, जेओ करुणाना भवन जेवा छे - एवा जिनदेवोना मार्गमां जेणे पोतानुं मन स्थिर राख्युं छे, एवो कयो माणस
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