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________________ २३ हाय हाय, मित्र ! जो तो, गगनरूपी विपुल सरोवरना बहोळा जळमां सेलारा देता, घोर निनाद करता, भीषण विद्युत्रूपी जीभ लबकारता, लांबालच, आ नवा मेघरूपी मगरमच्छोए क्रीडा करी रहेला चंद्ररूपी राजहंसने ग्रसी लीधो । ( ४.४८ ) ( प्राकृत) मालतीमाळा उपर मकरंद - पिपासु भ्रमर एवा शोभे छे, जाणे के पर्जन्यप्रियतमे इंद्रनीलजडी रत्नावलि भेट दीधी न होय । (६.३०) आ झबुक झबकती विद्युत् - लेखा (विरहिणीने) मेघराक्षसनी लांबीलच, कराळ जीभ जेवी भासे छे । (६.३६) शरद : नाचता शुकयुगलनो कलरव शालिक्षेत्रने भरी दे छे । खीलेला सप्तपर्णनी उत्कट सौरभ चोदिश मघमघी रही छे, ग्रामीणोने दूध जेवा धवळ लागतां ढगलाबंध काशतृणनुं हास्य स्फुरी रह्युं छे-आवी शरदऋतु आवी पहोंची छे, तो हे प्रिय सखी, तारा प्रियतम उपर कोप करवानुं तुं मांडी वाळजे । ( ४.९७) (प्राकृत) आ गोळमटोळ चंद्र एटले रजनी रमणीनो क्रीडाकंदुक । (६.१७) चंद्र : उदय पामती पिंगळवर्णी चंद्रलेखा एवी भासे छे, जाणे के आकाशरूपी वराहनी दाढ, जाणे के कंदर्परूपी सुभटे भट्ठीमांथी बहार काढेलुं क्षुरप्रबाण, जाणे के ऐंद्री दिशाए पहेरेलुं किंशुकनुं कर्णाभरण । (४.२०.४) आने तारावलि न समजशो : ए तो चंद्र अने रजनीना प्रेमकलहमां तूटी गयेली मुक्तावलि छे । (६.८६), अथवा तो चंद्रे ऊछाळेली घूघरीओ छे । (६.६५) प्रभात : आ कमलिनीनी पासे जे भ्रमरगण रमेभमे छे, ते तो कलखने मिषे सूर्य आवी रह्यो होवानी कमलिनीने वधाई दई रह्यो छे । (६.२०) नारीरूपवर्णन : गौरांगीना अंगनी सुंदरता आगळ चंपाना फूल शोभे खयं ? (६.४) आ उत्कंठित रमणी ज्यारे बोलती होय, त्यारे कलकंठीए पोतानुं मों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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