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बीडी राखवू । (६.५) आ रमणीनी लीलागति आगळ हंसीनी सरवरक्रीडा टके खरी ? (६.६)
आ रमणीना त्रिवलीतरंग एटले त्रिभुवनविजय करीने कामदेवे खेंचेली त्रण रेखा । (६.३७)
चंचळ नयनरूपी भ्रमरे अने दन्तकान्तरूपी केसरे शोभतुं आ रमणीनुं मुखारविंद लक्ष्मीनुं विलासभवन छ । (६.३८)
हे गोरोचना शी गौर रमणी, लोलुप चंद्र तारा गालमा प्रतिबिंबित थईने तने चूमी रह्यो छे । (६.७०)
आ रमणीनां मीन समां चंचळ नयन-कहोने के फरकता मीन-ध्वज, स्तनतंबुमां मदननो मुकाम होवानुं सूचवे छे । (६.२४)
आ युवतीओनी सहजसलूणी, प्रशस्य नेत्रलक्ष्मीने क्यांक नजर न लागी जाय, ते कारणे सखीओए तेने काजळ लगाड्युं छे । मेशनी लीटी ताणी छे ।) (४.३२) (प्राकृत)
तारां अधरोष्ठ-दल एटले जासुदनां फूल, दांत एटले कुंद-कुसुम, हाथ, पग, नयन अने वदन एटले विकसित अरविंद : आम, हे सुंदरी, तारो देह 'कुसुमपुर' होवा छतां तुं उत्तम 'मध्यदेश'ने पण धारण करी रही छे ए एक भारे मोटी विपरीतता छे । (५.६)
स्नान करी पाणीमांथी बहार नीकळेली गोरीनो केशपाश मोट मोटो टीपां टपकावतो जाणे के रडी रह्यो छे-कुसुममाळाना विरहदुःखे । (४.४१) (प्राकृत)
__ हे हंसी, तारो गतिविलास ठालो-नकामो लागे छे; हे कोयल, तारो खंठ बोदो-बेसूरो बनी रहे छे, कारण के अत्यारे विरहीवृक्ष अने अशोकतरु नां दोहद पूरती आ कुवलयनयना गीत गाती भ्रमण करी रही छे । (५.९)
हजी नयनोए चंचळता नथी प्राप्त करी, हजी वदन परथी भोळपण नथी हट्यु, हजी स्तननो उभार नथी प्रगट्यो, अने तो पण आ मुग्धाने जोई लोको मुग्ध बनी जाय छे । (५.३९)
कंकण अने नुपूरनी किंकिणी रणके छे, पवनमां फरफरती साडी अवकाशने रमणीयता अर्पे छे, ऊंची हीलोळा लेवानी क्रीडामां देह डोलंडोल थई
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