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________________ २४ बीडी राखवू । (६.५) आ रमणीनी लीलागति आगळ हंसीनी सरवरक्रीडा टके खरी ? (६.६) आ रमणीना त्रिवलीतरंग एटले त्रिभुवनविजय करीने कामदेवे खेंचेली त्रण रेखा । (६.३७) चंचळ नयनरूपी भ्रमरे अने दन्तकान्तरूपी केसरे शोभतुं आ रमणीनुं मुखारविंद लक्ष्मीनुं विलासभवन छ । (६.३८) हे गोरोचना शी गौर रमणी, लोलुप चंद्र तारा गालमा प्रतिबिंबित थईने तने चूमी रह्यो छे । (६.७०) आ रमणीनां मीन समां चंचळ नयन-कहोने के फरकता मीन-ध्वज, स्तनतंबुमां मदननो मुकाम होवानुं सूचवे छे । (६.२४) आ युवतीओनी सहजसलूणी, प्रशस्य नेत्रलक्ष्मीने क्यांक नजर न लागी जाय, ते कारणे सखीओए तेने काजळ लगाड्युं छे । मेशनी लीटी ताणी छे ।) (४.३२) (प्राकृत) तारां अधरोष्ठ-दल एटले जासुदनां फूल, दांत एटले कुंद-कुसुम, हाथ, पग, नयन अने वदन एटले विकसित अरविंद : आम, हे सुंदरी, तारो देह 'कुसुमपुर' होवा छतां तुं उत्तम 'मध्यदेश'ने पण धारण करी रही छे ए एक भारे मोटी विपरीतता छे । (५.६) स्नान करी पाणीमांथी बहार नीकळेली गोरीनो केशपाश मोट मोटो टीपां टपकावतो जाणे के रडी रह्यो छे-कुसुममाळाना विरहदुःखे । (४.४१) (प्राकृत) __ हे हंसी, तारो गतिविलास ठालो-नकामो लागे छे; हे कोयल, तारो खंठ बोदो-बेसूरो बनी रहे छे, कारण के अत्यारे विरहीवृक्ष अने अशोकतरु नां दोहद पूरती आ कुवलयनयना गीत गाती भ्रमण करी रही छे । (५.९) हजी नयनोए चंचळता नथी प्राप्त करी, हजी वदन परथी भोळपण नथी हट्यु, हजी स्तननो उभार नथी प्रगट्यो, अने तो पण आ मुग्धाने जोई लोको मुग्ध बनी जाय छे । (५.३९) कंकण अने नुपूरनी किंकिणी रणके छे, पवनमां फरफरती साडी अवकाशने रमणीयता अर्पे छे, ऊंची हीलोळा लेवानी क्रीडामां देह डोलंडोल थई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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