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________________ ऋतुवर्णन वसंत जुओ, वसंतवालमना मिलने आ वनश्री किंशुकनो कसुंबो सजीने मंगळ मनावी रही छे । (६.२५) २२ उपवनमां पुष्पित थयेलो नागकेसर एवो शोभी रह्यो छे, जाणे के वसंते वनश्रीने पहेरावेलो खूप । (६.७३) मलयानिले कंपती वेलडीने जोईने पोतानी गोरडीने संभारता पथिको मरणशरण थया । [देक्खिवि वेल्लडी, मलय- मारुअ-धुअ सुमरिवि गोरडी, पंथिअ-सत्थ- मुअ (६.२३)] पुष्पित बनेली लताने जोईने भ्रमरवृंदे एवो गीतगुंजारव कर्यों के प्रवासे नीकळनारानी आंखे आंसु उभरायां अने तेओ एक डगलुं पण भरी न शक्या । (६.३४) पुष्पित पलाश एटले प्रज्वलित बनेल मदनाग्नि, खीलेली मल्लिका एटले मदननुं हास्य । (६.९३) आ हृष्टपुष्ट मलयानिल, भ्रमरनी जेम, चंदनलताना पलंगमां आळोटतो, लवंगलताना झुंडने भेटतो, रमणीय कदलीओ आगळ खंचकातो, नागरवेल पासे ऊछळतो, सरल, कंकोल अने लवलीनी पासे घुमरातो, माधवीलतानुं चुंबन पामतो, कामीओने पुलकित करतो, संचरी रह्यो छे । [लुढिदु चंदण - वल्लि-पल्लंकि संमिलिदु लवंग- वणि, खलिदु वत्यु - रमणीय- कयलिहि । उच्छलिदु फणिलयहिं, धुलिदु सरल - कंक्कोल - लवलिहिं ॥ चुंबिदु माहवि - वल्लरिहिं, पुलईद - कामि - सरीरु । भमर - सरिच्छउ संचरइ, रड्डउ मलय- समीरु ॥ ( ५.३२) वर्षा धरतीतळ पर अरुणरंगी इंद्रगोप एवा लागे छे, जाणे के वर्षालक्ष्मीए चरण मांडतां पगलांमां पडेलां अळतानां टपकां, अने आ झबूकती, झळहळती वीजळी एटले वर्षालक्ष्मीनी सोनानी कंठी । (५.८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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