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“कुसुमपुर” (१. पुष्पसमूह, २. पाटलिपुत्र नगर) छे। तो पण तुं उत्तम " मध्यदेश" ( १. कटिप्रदेश, २. मध्यदेश) धरी रही छे ए तो एक भारे विरोध छे ।'
करभक
जेना प्रत्येक चरणमां बे पंचकल, बे चतुष्कल, एक जगण अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम करभक ।
करभकछंदनुं उदाहरण :
'कर - हय - 'थणहर - गलिअ - लोल-मणोहर - हारय,
गंडस्थल - लुलिअ - मइल - जडिल - कुंतल - भारय । अणवरय-बाह- निवडण-सूण- सोण - विलोअण,
तुहु हुअ नरवइ - तिलय संपय वेरि-वहुअण ॥ ७ 'हे नृपतिओना तिलकरूप, हाथवती स्तनो पर प्रहार करवाथी जेमना डोलता सुंदर हार तूटी पड्या छे, जेमनो मेलो, गूंचवायेलो केशपाश गाल पर आळोटी रह्यो छे, जेमना लोचन सतत अश्रुपातथी सुझेलां अने लाल बनी गयां छे-एवी तारा शत्रुओनी स्त्रीओनी अत्यारे दुर्दशा थई छे ।'
इंद्रगोप
जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल गुरु होय, ते छंदनुं नाम इंद्रगोप ।
इंद्रगोपछंदनुं उदाहरण :
हहिं अरुण - कंति धरणीअलि 'इंदगोवया',
पाउस - सिरिहि नाइ पय जावय-बिंदु - लग्गया ।
एह-वि विज्जु-लेह झलकंतिअ बहल - कंतिआ,
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अने एक
लक्खिज्जइ जायरूव-निम्मिविअ-व्व कंठिआ ॥ ८
' धरणीतल उपर राता वर्णना इंद्रगोप जाणे के वर्षालक्ष्मीनां अळतानां टपकांवाळां पगलां होय तेवां शोभे छे, अने आ अतिशय प्रकाशे चमकती विद्युत्रेखा वर्षालक्ष्मीनी सोनानी कंठी जेवी लागे छे' ।
कोकिल
जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, बे पंचकल, बे चतुष्कल, एक लघु अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम कोकिल ।
कोकिलछंदनुं उदाहरण :
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