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________________ [55] गोवी अण-दिज्जंत- 'रासय' निसुणंतहं, वासारत्ति पहुच्चइ पहिअहं पवसंतहं । निअ - वल्लह तिवँ केवँइ हिअयंतरि निवडिअ, जिवँ जंतह न वहंति चलण नावइ निअडिअ ॥ ४ 'प्रवासे नीकळता प्रवासीओनो ज्यारे वर्षाकाळ आवी पहोंचे छे, त्यारे गोपीओ वडे रमाता रासोने सांभळतां पोतानी प्रियतमा तेमना हृदयनी भीतर कंईक एवी रीते आवी पडे छे, जेथी करीने तेमना चरण जाणे के बेडीमां बंधायां होय तेम प्रयाणवेळा चाली शकतां नथी' । अवतंसक जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, एक पंचकल, बे जगण अने एक यगण (~ - ) होय, ते छंदनुं नाम अवतंसक | अवतंसकछंदनुं उदाहरण : सायरु रयणायरु बोल्लहिं जें बुह-सत्थ, तं सच्चु जि जाय निसायर - कुच्छुह जत्थ । जह एक हूउ सिरिकंठ - सिरे 'अवयंसु', अवरु सिरि-नाह - उरि भूसणु उल्लसिअंसु ॥ ५ 'डाह्या लोको सागरने रत्नाकर कहे छे ते साचुं जे छे, कारण के सागरमांथी चंद्र अने कौस्तुभनो उद्भव थयो छे : तेमांथी एक (चंद्र) शंभुना मस्तकनुं आभूषण बन्यो छे अने चमकतां किरणोवाळो बीजो (कौस्तुभ ) लक्ष्मीपति विष्णुना वक्षःस्थळनुं आभूषण बन्यो छे ।' कुंद जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, बे पंचकल, एक ज गण अने बे गुरु होय, ते छंदनुं नाम कुंद | कुंदछंदनुं उदाहरण : अहरुट्ठ दलइ जवा-पसूण दंत 'कुंद', पाणि-चरण- नयण - वयण विअसिआरविंद । कुसुमपुरु पच्चक्खु वि सुंदरि तुझ देहु, तुहुं वरु मज्झु - देसु वहसि विवरीउ एहु ॥ ६ 'हे सुंदरी, तारा अधरोष्ठ जासुदना फूलने, दांत कुंद पुष्पने अने तारा हाथ चरण, नयन अने वदन विकसित अरविंदने पराजित करे छे । आ रीते तारो देह प्रत्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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