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________________ [ 57] हंसि तुहारउ गइ - विलासु पडिहासइ रित्तओ, ' कोइल' - रमणिअ तुह-वि कंठु कुंठत्तणु पत्तओ । विरहय-कंकेल्लिहिं दोहल संपड़ पूरंतिअ, जं किर कुवलय - नयण एह हिंडइ गायंतिअ ॥ ९ 'हे हंसी, तारो गतिविलास जाणे के शून्य समो लागे छे, हे कोयल, तारो कंठ जाणे के जड़ बनी गयो लागे छे, कारण के विरहकतरु अने अशोकना दोहदने पूरा करती आ नीलकमळ जेवां नयनवाळी सुंदरी गाती गाती भ्रमण करी रही छे ।' दर्दुर जेना प्रत्येक चरणमा एक चतुष्कल, बे पंचकल एक लघु अने एक गुरु होय, ते छंदनुं नाम दर्दुर । दर्दुरछंदनुं उदाहरण : मत्तंबुवाह वरसंतिण पइं समहिउ, आयण्णसु संपय महिअलि जं विरइड । हंसहं कल - सद्दिण जं आसि मणोहरु, 'दद्दुर' - रडिआउलु निम्मिउ तं सरवरु ॥ १० 'हे मदमत्त जळधर, तें पुष्कळ वरसीने हवे धरती उपर केवी दशा करी छे ते सांभळ ! जे सरोवर हंसोना कलरवथी रमणीय हतुं, तेने तें देडकाओना ड्राउं ड्राउंथी भरी दीधुं छे' । आमोद -) जेना प्रत्येक चरणमां एक चतुष्कल, एक रगण ( ) एक जगण ), एक मगण (- - ) अने एक गुरु होय ते छंदनुं नाम आमोद | आमोदछंदनुं उदाहरण : असोअ-मंजरी - फुरंत - 'आमोए 'सुं, कल - रोलंब - वंद्र - कायली - सद्देसुं । अणवरयं वहंत-सारणी-तोएसुं, धन्ना के वि जे रमंति उज्जाणेसुं ॥ ११ 'जेमां अशोकमंजरीनो परिमल स्फुरी रह्यो छे, जेमां भ्रमरगणोनो मधुर गीतध्वनि संभळाय छे, जेनी नीकोमां सतत जळ वही रह्युं छे, तेवां उद्योनोमां जे कोईक लोक क्रीडा करता होय ते धन्य छे ।' विदुम जेना प्रत्येक चरणमां एक मगण (लघु, एक गुरु, बे पंचकल अने एक सगण ( Jain Education International -), एक रगण ( -), एक - ) होय, ते छंदनुं नाम विद्रुम । For Private & Personal Use Only V www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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