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________________ [ 125] ___ 'हे पृथ्वीपति, स्वर्गमां पहोंचेला तारा शत्रुओए नक्की त्यां भारे भीड करी मूकी छे, जेने लीधे नंदनवननी समीपमां देवो अप्सराओनी साथे स्वेच्छाए क्रीडा करी शकता नथी ।' सिंहविक्रान्त जो ए भ्रमरद्रुत द्विपदीना प्रत्येक चरणमां चौद मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदी, नाम सिंहविक्रान्त । सिंहविक्रान्त द्विपदीनुं उदाहरण : अच्छउ ता उब्भड-भुअ-बलु, चक्खुक्खेविण, विहडयंतु रिउ-भड-हिअउ। सुर-नर-सीह-विक्वंत-चरिउ, लंघेविणु ठिउ, रेहइ पुहइसर-तिलउ ॥ ३९ ‘ए पृथ्वीपतिओना तिलकरूप (राजवी), प्रबळ भुजयुगल तो दूर रां, मात्र पोताना दृष्टिपातथी ज शत्रुओना सुभटोनां हृदय विदारे छे : आ रीते नरसिंहना पराक्रमी चरित्रने पण अतिक्रमी जतो ते शोभे छ ।' कुंकुमकेसर जो भ्रमद्रुतना प्रत्येक चरणमां सोळ मात्रा अने आठ मात्रा पछी यति होय, तो ते द्विपदीनुं नाम कुंकुमकेसर । ___ कुंकुमकेसर द्विपदी, उदाहरण : नयण-विलासिण निज्जिअ कुवलय, कंति-कडप्पिण, 'कुंकुम-केसर 'निअरु'। डसण-झलक्कड़ हीरय विनडिअ ससहर, वयणिण कांइ न मुद्धिहि पवरु ॥४० ___ए मुग्धानुं शुं सुंदर नथी ? पोतानां नेत्रोनी संदरताथी तेणे नीलकमळने पराजित कर्यां छे, अतिशय कांतिथी केसरना तंतुओ पर विजय मेळव्यो छे, दांतनी उज्ज्वळताथी हीराने जीती लीधा छे अने वदनथी चंद्रने पाछो पाडी दीधो छ ।' बालभुजंगमललित ___ जेना प्रत्येक चरणमां नव चतुष्कल होय, ते द्विपदीनुं नाम बालभुजंगमललित। बालभुजंगमललित द्विपदीचं उदाहरण : दुद्दम-रिउ-महि वाल-भुअंगम-ललिअ'-झडप्पणि तुहुं निच्छइ गरुडोवमु । जं पुण पुरिसोत्तिम-सिर-चूडामणि वुच्चसि पुहइ-वल्लह तं निरुवसु ॥ ४१ ___ 'वश करवा मुश्केल एवा शत्रुराजारूपी सोनी क्रीडा नष्ट करवाने कारणे तने निश्चितपणे गरुडनी उपमा आपी शकाय । परंतु हे पृथ्वीवल्लभ, तारी पुरुषोत्तमना (१. उत्तम पुरुषोना २. विष्णुना ) शिरोमणि तरीके जे ख्याति छे, तेथी तो तुं निरुपम ज छे' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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