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हे मदमत्त मेघ, धरती पर भरपूर वरसीने तें शुं सिद्ध कर्यु ते सांभळ : जे सरोवर हंसोना कलरवे मनोहर हतुं, तेने तें देडकाओना ड्राउं ड्राउंथी भरी दीर्छ । (५.१०) पौराणिक :
___ परपुरुष पर दृष्टिपात न करती सीता पोतानां चरणनी उज्ज्वळ नखपंक्तिमां प्रतिबिंबित थतां रावणना दश मुख भय, विस्मय अने हास्यना मिश्रभावे निहाळी रही । (६.५६) । प्रकीर्ण :
प्राज्ञजन सागरने रत्नाकर कहे छे ते साचुं छे, केम के तेमांथी चंद्र अने कौस्तुभमणि जेवां बे रत्न नीकळ्यां छ : एमांनुं एक श्रीकंठ- (शिव-) शिरोभूषण बन्युं, तो बीजुं श्रीवल्लभनुं (विष्णु) झळहळतुं उर-आभरण बन्यु । (५.५)
ज्यां 'जल'ने (एटले के 'जळने' अथवा 'जडमतिने') माटे स्थान नथी एवो, अने जेनुं मध्य 'विबुधो' (एटले के 'देवो' अथवा 'प्राज्ञजनो') पण कदी तागी शक्या नथी एवो प्राचीन कविओनो वाणी-गुंफ कोईक अनन्य सागर छे, जेनुं अवगाहन करतां निरंतर अमृतरसनो आस्वाद मळे छ । (४.४४) (प्राकृत)
आ दृष्टांतो परथी पण हेमचंद्रनो अपभ्रंश अने प्राकृतना एक अग्रणी मुक्तक कवि तरीकेनो काईक परिचय मळशे ।
वळी 'छंदोनुशासन'ना प्राकृतविभागमां गलितक वर्गना छंदोनां उदाहरणोमां हेमचंद्रनी चरणांत यमको रचवानी शक्तिनां, तो समशीर्षक अने मालागलितक छंदोनां उदाहरणोमां गौडी शैली परना तेमना प्रभुत्वना दर्शन करी शकीए छीए। समशीर्षकना उदाहरणनां चार चरणोमां एवा पांच समास छे जेमा १५थी मांडीने ४० सुधीनां पदो छे, तो मालागलितकनां चार चरणोमां वीशेक पदोनां त्रण समास प्रयोजाया छ । संस्कृत काव्यपरंपरानी जेम प्राकृत अने अपभ्रंश काव्यपरंपरा हेमचंद्रे केटली आत्मसात् करी हती तेनां आ द्योतक उदाहरण छ ।
२. 'देशीनाममाला'नां उदाहरणोने आधारे हेमचंद्रनी 'देशीनाममाला'मां जे आठ वर्ग-एटले के प्रकरणो छे, तेमां नोंधेला देश्य शब्दोना प्रयोगना उदाहरण लेखे (तेम ज तेमना निर्दिष्ट अर्थनी
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