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________________ [36] निवसउ मे मणम्मि भयवं सिरि-वीर-जिणो, विलयं जंति काम-पमहा जह ते अरिणो ॥ १०५ 'जेना चरणना तळियाने सर्व असुरेन्द्र अने सुरेन्द्र वंदन करे छे, अनुपम ध्यान अने ज्ञानने बळे जेणे कर्मरूपी मळनो नाश को छे, तेवा भगवान श्रीवीरजिन मारा मनमां निवास करो, जेथी पेला काम वगेरे शत्रुओ नाश पामे ।' नोध : जेमां प्रत्येक चरण न, ल, ग, ज, स, स, स - एवा, अनुक्रमे आवता गणोना मापवाळु होय ते छंदनुं नाम समनकुंटक, एवं जे एक मते कहेवायु छे तेनो संस्कृत नर्कुटक छंदमां समावेश थई जतो होईने अमे तेनुं निरूपण कर्यु नथी। तरंगक जे छंदमां प्रत्येक चरणमां, मागधनकुटी, नर्कुटक, समनकुंटक ए त्रणेय छंदोमांना छेल्ला चतुष्कलने स्थाने जो विकल होय, तो ते छंदनुं नाम तरंगक । तरंगक, उदाहरण : बहुविह-भाव-मुद्ध-महुरत्तण-मंदिरं, पवणुद्धअ-साम-सरसीरुह-सुंदरं । निम्मल-संति-पुंज-परिलद्धय-चंगयं, सोहइ तीइ दीह-नयणाण 'तरंगिअं' ॥ १०६ 'जे अनेक प्रकारना मुग्ध भावोनी मधुरतानो निवास छे, जे पवनथी डोलता नीलकमल जेवां सुंदर छे, निर्मळ क्रांति प्राप्त करवाने लीधे जे रमणोय छे तेवां ते तरुणीनां दीर्घ नयनोनी तरंग समी चंचळता शोभी रही छे ।' पवनोद्भुत जो तरंगक छंदना प्रत्येक चरणने अंते एक वधारे गुरु होय, तो ते छंदनुं नाम पवनोद्भुत । पवनोद्भुतनुं उदाहरण : भसला दंसयंति महु-पाण-परव्वसाण, उक्कंठा-तरलिअ-मणाण निअ-वल्लहाण । निब्भर-महुर-गीइ-रवमुच्चरिउं इमासु, दोला-कीलणाई 'पवणुद्धअ'-वल्लिआसु ॥ १०७ 'पवनथी डोलती आ वल्लरीओमां भरपूर मधुर गीतरवे गणगणता भ्रमरो, जे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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