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________________ [ 35 ] मागधनर्कुटी जेमां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल, एक गुरु अने ते पछी बे गुरु होय ते छेदनुं नाम मागधनर्कुटी । मागधनर्कुटीनुं उदाहरण : नव-मयरंद- पाण- पायड- मय - उत्ताला, भमरा रुणरुणंति कायलि-कयसद्दाला । पंचममुग्गिरंति एआ अविदिट्ठिओ, चूअंकुर कसाय-कंठा कलयंठीओ ॥ १०३ 'ताजा मकरंदना पानथी जेनो मद ऊछळी रह्यो छे तेवा भ्रमरो काकली स्वरना नादे गूंजी रह्या छे अने आम्रमंजरीना आस्वादथी जेमनो कंठ कषाय बन्यो छे एवी आ मनहर नयनवाळी कोयलो पंचम स्वर उद्गारी रही ' नर्कुटक मां प्रत्येक चरणमां एक षट्कल, एक लघु, एक द्विकल, एक लघु, एक चतुष्कल, एक द्विकल एक गुरु अने पछी सगण ( - ) होय ते छंदनुं नाम नर्कुटक | नर्कुटकनुं उदाहरण : परिमल - लुद्ध-लोल-अलि - गीअ-स' णक्कुडयं', जाव न जग्गवेइ विसमत्थ - महाभयं । माणं मोत्आण माणंसिणि सप्पणयं, पेम्प - भरेण ताव अणुसर सहि वल्लहयं ॥ १०४ 'हे मानिनी सखी, ज्यां सुधीमां परिमलमां लुब्ध बनी डोलता भ्रमरोनुं गूंजन जेना उपर थई रह्युं छे तेवां कुटजपुष्प कामदेवरूपी महान सुभटने जाग्रत न करे त्यां सुधीमां तुं तारुं मान मूकी दईने, प्रेमपूर्वक याचना करीने, तारा प्रियतमनुं शरण ले ।' समनर्कुटक Jain Education International जेमां प्रत्येक चरणमा एक षट्कल, एक जगण अने त्रण सगण (~ ~ -) होय ते छंदनुं नाम समनर्कुटक । समनर्कुटकनुं उदाहरण : सयल - सुरासुरिंद-परिवंदिअ-पाय-तलो, निरुवम - झाण-नाण-वस- नासिअ - कम्म- मलो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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