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________________ [ 37 ] मधपान करवाथी परवश बनी छे अने जेमनुं मन उत्कंठाथी चंचळ बन्युं छे, तेवी पोतानी प्रेयसीओनी झुलणलीला दर्शावी रह्या छे ।' निध्यायिका मां प्रत्येक चरणमां (१) बे चतुष्कल पछी त्रण त्रिकल होय, (२) बे पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय, (३) एक पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय एम त्रणेय प्रकारे जे छंद बने, तेनुं नाम निध्यायिका । मां बे चतुष्कल पछी त्रण त्रिकल छे एवी निध्यायिकानुं उदाहरण : हा खामोअरि कुरंग - नेत्तिए, वयण-मऊह - जिअ - चंद- कंतिए । 'निज्झाइअ' - जीवाविअ - मणसिए, दुसहो तुज्झ विरहानलो पि ॥ १०८ 'जेणे पोताना वदननी कांतिथी चंद्रिकाने पराजित करी छे, जे दृष्टिरागथी काम प्रगटावे छे तेवी हे कृशोदरी, मृगनयना प्रिया, तारा विरहनो अग्नि अतिशय दुःसह छे ।' जेमां प्रत्येक चरणमां बे पंचकल अने त्रण त्रिकल होय एवी निध्यायिकानुं उदाहरण : 'निज्झाइअइ' जत्थ मयमय वल्लरी, ललिअ - कंति-चंगे कलंक - सोअरी । सेवंति तं तुह मुह-चंदयं सया, उब्बिब - बाल - हरिणच्छि चउ ओ )रया ॥१०९ 'जेनां नयन डरथी चकळवकळ थतां मृगबाळनां नयनो समां छे तेवी हे सुंदरी, जे ललित कांतिथी रमणीय छे अने जेना पर कलंकनो भ्रम करावती कस्तूरी वडे रचेली वेलनी भात देखाय छे, ते तारा वदनचंद्रने तारा केशनां झुल्फा (बीजो अर्थ : " चकोरो" ) सेवी रह्यां छे ।' जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल पछी त्रण त्रिकल होय, एवी निध्यायिकानुं उदाहरण : हरइ जम्म-सय- संचिआई, भविआण असेस-दुरिआई । तुह मुहं जणिअ-मयण- माह, 'निज्झाइअं ' पि भुवण - नाह ॥ ११० 'कामदेवनो विनाश करनार हे त्रिभुवनना नाथ जिनदेव, तारा मुखनुं मात्र दर्शन पण भव्यजनोना सेंकडो जन्मथी संचित थयेलां सर्व पाप हरी ले छे ।' जेमां प्रत्येक चरणमां एक पंचकल, एक चतुष्कल अने त्रण त्रिकल होय वी निध्यायिकानुं उदाहरण : वम्मीसर-कंचण - तोमर - ललिआ, Jain Education International दिट्ठा छुडु सुंदरि चंपय- कलिआ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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