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5+ रासावलयार्ध + कुंकुमनी द्विभंगीनुं उदाहरण : पंडि-गंडयल - पुलय-पयर- पयडण- बद्धायरु,
वस्तुवदनक+
कंचिवाल-बाला - विलास - बहलिम-गुण- नायरु ।
दविडि- दिव्व-चंपय-चय- परिमल - ल्हसडउ,
कुंतल - कुंतल - दप्प - झडप्पण - लंपडउ ॥ मरहट्ठ- माण-निट्ठाह-वय-विहव-विहंसण- सक्कउ ।
कसु करइ न मणि हल्लोहलउ मलयानिलहु झुलक्कउ ॥ १३२ 'जे पांड्यदेशनी सुंदरीओना गालने पुलकित करवा माटे तत्पर छे, जे कांचीदेशनी बालाओना विलासोने समृद्ध करवामां दक्ष छे,
जे द्राविडदेशनी सुंदरीओनां चंपककुसुमोना दिव्य परिमलनो लूंटारो छे, जे कुंतलदेशनी सुंदरीओना केशकलापना दर्पनुं हरण करवामां लंपट छे, जे महाराष्ट्रनी सुंदरीओना दृढ व्रतरूप मानवैभवने नष्ट करवाने तत्पर छे, तेवा मलयानिलनी लहरी कोना चित्तमां सानंद उत्कंठा न जन्मावे ?' रासावलयार्ध + वस्तुवदनकार्ध + कर्पूरनी द्विभंगीनुं उदाहरण : तरुणि-हूणि-गंड-प्पह-पुंछिअ - तिमिर-मसि,
उक्क - झुलुक्कावडणु दुसहु मा करउ ससि । मलयानिलु मय- नयणि धुणिअ-कप्पूर-कयलि-वणु, संधुकिअ-मयणग्गि सहि इ मा तुज्झ तवउ तणु ॥ तणुअंगि म खडहडि पडहि तुहुं, मयण-बाण- वेअण- कलहि ।
चय माणु माणि वल्लहिण सहुं, चडि म शवसंसय - तुलहि ॥ १३३ 'जेणे हूण तरुणीओना गाल प्रदेश परनी मेश जेवी काळाशने भूंसी काढी छे तेवो आ चंद्र रखे असह्य उल्कानो खंड फेंके ।
हे मृगनयनी, जे कपूर अने कदलीना तरुओने धुणावी रह्यो छे अने कामाग्नि प्रदीप्त करी रह्यो छे ते मलयानिल तारा शरीरने रखे बाळे ।
हे कृशांगी, तुं प्रेमकलह करीने कामदेवना बाणोनी वेदनामां लथडीने पड
नहीं,
तुं मान तजी दे, तारा प्रियतम साथे भोग भोगव । प्राणना संशयनी तुला उपर तुं चड नहीं ।' रासावलयार्ध+वस्तुवदनकार्ध+कुंकुमनी दिभंगीनुं उदाहरण :
सवण- निहिअ - हीरय- हसंत - कुंडल-जुअल,
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