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________________ [ 48 ] थूलामल-मुत्तावलि - मंडिअ - थण - कमल । सेअंसुअ- पंगुरण - बहल - सिरिहंड - रसुज्जल, बहु-पहुल्ल-विअइल्ल-फुल्ल-फुल्लाविअ - कुंतल ॥ तो पयड धाइ दंसण - जणिअ - खलयण - डर - भर - भारिअ । अहिसरइ चंद-सुंदर-निसिहिं पई पिअयम अहिसारिअ ।। १३४ 'जेणे पोताना कानमां झगमगती हीराना कुंडळनी जोड पहेरी छे, जेणे पोताना स्तनकमळने मोटा निर्मळ मोतीनी माळाथी विभूषित कर्यां छे । जेणे श्वेत वस्त्र धारण कर्यां छे, जेनुं शरीर श्वेत चंदनना लेपथी गौर बन्युं छे । जेना केश सुविकसित विचकिल पुष्पोथी शणगारेला छे, तेवी आ अभिसारिका, चांदनीथी उज्ज्वळ रात्रिमां दुष्ट लोको तेने जोई जशे अने ते खुल्ली पडी जशे एवा डरथी भयभीत बनेली, हे प्रियतम तारा तरफ अभिसार करी रही छे । वदनक + कर्पूरनी द्विभंगीनुं उदाहरण : किं न फुल्लइ पाडल पर परिमल, महमहेइ किं न माहवि अविरल । नवमालिअ किं न दलइ पहिल्लिअ, किं न उत्थरइ कुसुम - भरि मल्लिअ ॥ दीहिअ - तलाय - सर - तल्लडिहिं, किं न पसाहि पउमिणि फुडइ । तु-वि जाइ - जाय-गुण-संभरणु, झाणु कि भसलहु मणि खुडइ ॥ १३५ 'शुं भरपूर परिमलवाळी पाटला विकसित नथी ? शुं माधवी अविरत मघमघती नथी ? शुं डोलती नवमालिका खीलती नथी ? शुं मल्लिका पुष्पसमूहे समृद्ध बनती नथी ? शुं वाव, तळाव, सरोवर अने तळावडीमां कमलिनीनां दल विस्तरतां नथी ? ते छतांये जाईना गुणोनुं स्मरण करतां भ्रमरना चित्तनी एकाग्रता तूटती नथी ।' वदनक + कुंकुमनी द्विभंगी नुं उदाहरण : जइ तुहुं महु करयलु उम्मोडवि, चल्लिअ चीरंचलु अच्छोडवि । माणिणि तु-वि पसाउ करि सुम्मउ, पई पिइ उत्तावलिअ म गम्मउ ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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