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________________ [62 ] फुडिअ-केसर-तिलय-मायंदि, पप्फुलिअ-कमल-वणि, सुरहि-मासि संपइ पयट्टइ। मत्त-महअरि-रविण, मयण-चरिउ वण-लच्छि गायइ ॥ २३ 'जेमां बोरसल्ली, तिलक अने आम्रतरु खील्यां छे, कमळवन विकस्युं छे तेवो वसंतमास अत्यारे प्रवर्ते छे, जेमां वनलक्ष्मी मदमत्त भ्रमरीओना गुंजारव मिषे कामदेवना चरित्रनुं गान करी रही छे' । जेमां बीजा अने चोथा ए बंने चरणोमां त्रीजा चतुष्कलने स्थाने त्रिकल होय एवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण : गुण-विवज्जिइ पुरिसि रच्चेइ, गुणवंति परम्मुहि, तह य पंकउप्पन्नि निवसइ। 'मत्त-महअरि' कमलि, अहह लच्छि अविआर विलसइ ॥२४ 'निर्गुण पुरुषमा राचे छे, गुणवान पुरुषथी मोढुं फेरवी ले छे अने कादवमां उत्पन्न थता, मदमत्त मधुकरवाळा कमळमां निवास करे छे : अरेरे ! अविचारी लक्ष्मीनो आ केवो विलास छे !'. मत्तविलासिनी मात्रा __ जे मात्राछंदमां त्रीजा अथवा पांचमा चरणमां, अथवा तो ते बंने चरणोमां रहेला बे पंचकलने स्थाने जो बे चतुष्कल होय, तो तेनुं नाम मत्तविलासिनी ।। जेमां त्रीजा चरणमां बे पंचकलने स्थाने बे चतुष्कल होय, तेवा मत्तविलासिनी छंद- उदाहरण : समय-मयगल-गमण-रमणिज्जु, मय-भिंभल-नयण-जुउ, आरत्त-कवोल-सोहिरु। 'मत्त-विलासिणि'-निअरु , हरइ चित्तु लल्लुर-पयंपिरु, ॥ २५ 'मदमत्त हाथीनी जेवी गतिने लीधे रमणीय, मदपानथी विह्वळ बनेल नयनयुगलवाळु, रताशवाळा गालथी शोभतुं, तूटक तूटक वचनो बोलतुं एवं मदमत्त विलासिनीओ, वृंद चित्तने हरी ले छे ।' जेमां पांचमा चरणमा रहेला बे पंचकलोने स्थाने बे चतुष्कल होय एवा मत्तविलासिनीछंदनुं उदाहरण : मत्त-जलहर गहिरु गज्जंति, केक्कारहिं मत्त-सिहि, मत्तु मयणु पहरेइ दुज्ज। विणु 'मत्त-विलासिणिहिं', भणि संपइ काइं किज्जउ ॥ २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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