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गहिरु गज्जइ धरइ मय-वारि, विहलंधलु नहु कमइ, दुन्निवारु दिसि-दिसि पलोट्टइ ।
ओ ‘मत्त-बालिअ'-सरिसु, विसम-चेट्ट पाउसु पयट्टइ ॥ २०
_ 'वर्षाऋतु घेरी गर्जना करे छे, अमृत जेवं जळ धरावे छे, व्याकुळपणे आकाश पर आक्रमण करे छे, अने न निवारी शकाय एवी रीते ते दिशोदिश आळोटे छ : एम विचित्र चेष्टा करे छे— जेम कोई मदपान करेली बालिका मोटेथी बबडाट करे, व्याकुळ होईने चाली न शके, लाचारीथी आमतेम बधे आळोटे - एम अस्वस्थपणे वर्ते ।'
___ जेना बीजा तेम ज चोथा चरणना पहेला चतुष्कलना स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तबालिकाछंदनुं उदाहरण :
पेच्छ पाउस-ल्च्छि उच्छलइ, मउलंति सव्वाउ दिस, धडहडंति घण-'मत्त वालिअ' । फुटुंति केअइ-कुसुम, पिइ पउत्थि कह जिअइ बालिअ ॥ २१
___ 'जो तो, बधी दिशाओने ढांकी देती वर्षालक्ष्मी प्रसरी रही छे । अत्यंत मत्त बनेला मेघो गडगडे छे । केतकीपुष्पो विकसे छे । जेनो प्रियतम प्रवासे गयेलो होय तेवी बाळा (आ ऋतुमां) कई रीते जीवन धारण करे ?' । मत्तमधुकरी मात्रा
जे मात्राछंदना बीजा के चोथा चरणमां, अथवा तो बने चरणोमां त्रीजा चतुष्कलने स्थाने एक त्रिकल होय-त्यारे ते मात्रानुं नाम मत्तमधुकरी ।
___ जेमां बीजा चरणना त्रीजा चतुष्कल ने स्थाने त्रिकल होय तेवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण :
'मत्त-महुअरि'-तार-झंकार, कलयंठि-कलयलहिं, मयण-धणुह-टंकार-सरिसिहि । कह जीवहुं विरहिणिउ, दूर-देस-पवसंत-रमणिउ ॥ २२
___ 'ज्यारे कामदेवना धनुष्यना टंकार जेवा मदमत्त भ्रमरोना उत्कट गुंजारव थता होय, कोयलोनो कलरव थतो होय, त्यारे जेमना प्रियतम दूर देशमां प्रवासमां होय, तेवी विरहिणीओ कई रीते जीवन धारण करी शके ?'
जेमां चोथा चरणमां त्रीजा चतुष्कलना स्थाने विकल होय, तेवा मत्तमधुकरीछंदनुं उदाहरण :
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