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[601 'मत्त'-कोडल-नाय-णंदीहिं.
सिंगार-रसोग्गमिण, नच्चमाण-मायंद-पत्तिहिं । अहिणिज्जइ मयण-जय-, नाडउ-व्व संपइ वसंतिण ॥ १७
'जेमां मदमत्त कोयलना कलरवनी नांदी छे, शृंगाररसनुं प्रकटन छे, आम्रतरुओनां पर्णोनुं नृत्य छे, तेवा वसंतकाळ वडे अत्यारे मदनविजय नाटक भजवाई रह्यं छे ।'
नोंध :- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश वगेरे विभागमां निरूपित छंदोनो घj खरं ते ते भाषामा प्रयोग थाय छे, एम अमे कह्यु होवाथी आ मात्राछंदनो संस्कृत भाषामां पण प्रयोग मळे छे । जेम के (धनपालकृत 'तिलकमंजरी' मां) :
शुष्क-शिखरिणि कल्प-शाखीव, निधिरधन-ग्राम इव, कमल-खंड इव मारवेऽध्वनि । भव-भीष्मारण्य इह, वीक्षितोऽसि मुनि-नाथ कथमपि ॥ १८
__'हे मुनिराज, निर्जळ पर्वत उपर कल्पवृक्षनी जेम, निर्धन गाममां धनभंडारनी जेम, मरूभूमिना मार्ग पर कमळसरोवरनी जेम केमे करीने आ संसाररूपी भयानक अरण्यमां तमारां दर्शन थयां छे ।' मात्रा छंदना प्रकारो मत्तबालिका मात्रा
जो मात्रा छंदना त्रीजा के चोथा चरणमां अथवा तो ए बंने चरणोमां, पहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तो ते मात्रानुं नाम मत्तबालिका ।।
जे मत्तबालिकामां बीजा चरणमा पहेलां चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेनुं उदाहरण :
कुमुअ-कमलहं एक्क उत्पत्ति, मउलेइ तु वि कमल-वणु, कुमुअ-संडु निच्चु-वि विआसइ । सच्छंद विआरिणिअ, चंद-जोण्ह किं 'मत्त-बालिअ' ॥ १९
'कुमुदनी अने कमळनी उत्पत्ति एक सरखी होवा छतां चंद्रनी ज्योत्स्ना कमळोने करमावे छे अने कुमुदोने विकसावे छे । जेणे मदपान कएँ छे तेवी बालिकानी जेम ज्योत्स्ना स्वछंदपणे वर्ते छे ।'
जेना चोथा चरणमा पहेला चतुष्कलने स्थाने पंचकल होय तेवा मत्तबालिकाछंद- उदाहरण :
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