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त्रयोऽप्यवलम्बकः ॥ ५६ पश्चीर्युग्जो लीर्वा हेला ॥ ५७ सान्ते दोनावली ॥५८ चूपगा विनता ॥ ५९ तौ चस्तौ विलासिनी ॥६० तौ चितौ मञ्जरी ॥६१ सा तान्ता शालभञ्जिका ॥ ६२ चादिः कुसुमिता ॥६३ षश्चुगौ द्वितीयषष्ठौ जो लीर्वा द्विपदी ॥ ६४ साद्ये न्ले छै रचिता ॥ ६५ गन्तारनालम् ॥ ६६ उपान्त्यलोना कामलेखा ॥६७ षचीदाश्चन्द्रलेखा ॥ ६८ चिपताः क्रीडनकं जैः ॥ ६९ षपचतदा अरविन्दकम् ॥ ७० षलदलचदगाद्गौ मागधनकुटी ॥ ७१ सश्चेन्नकूटकम् ॥ ७२ षजौ सिः समात् ॥ ७३ त्रिष्वप्पन्त्यचस्य ते तरङ्गकम् ।। ७४ गान्तं पवनोद्वतम् ॥ ७५ चाभ्यां पाभ्यां पाद्वा तिर्निध्यायिका ॥ ७६ चुपौ युम्न जोऽधिकाक्षरा ॥ ७७ सा तुर्यया मुग्धिका ॥ ७८ आदौ पश्चित्रलेखा ॥ ७९ पौ माल्लिका ॥ ८० सा तुर्यपा दीपिका ॥८१ ताभिर्लक्ष्मिका ॥ ८२ चतुष्पञ्चषट्सप्ताष्टनवपा मदनावतार-मधुकरी
नवकोकिला-कामलीला-सुतारा-वसन्तोत्सवाः ॥ ८३ खञ्जकं दीर्धीकृतं शीर्षकम् ॥ ८४
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