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छछो अध्याय ध्रुवा-ध्रुवक-घत्ता-चतुष्पदी-षट्पदी-वर्णन
कडवकना समूहरूप जे संधि, तेना आदिमां; अने पद्धडिका वगेरेनी चार कडी रूप जे कडवक, तेने अंते, जे ध्रुवपणे होय -निश्चित रूपे होय- ते माटे ते 'ध्रुवा' कहेवाय छे. 'ध्रुवक' अने 'घत्ता' तेनां नामान्तर छ । (१) ध्रुवाना प्रकार
ध्रुवा त्रण प्रकारनी छे : षट्पदी, चतुष्पदी अने द्विपदी । (२) छड्डुणिका
___ 'प्रारब्ध' एटले प्रस्तुत विषय अनुसार आवता अर्थने कडवकने अंते जदी भंगीथी कहे त्यारे षट्पदी अने चतुष्पदी 'छड्डणिका' पण कहेवाय । तेमनुं नाम मात्र 'ध्रुवा' वगेरे ज नहीं, 'छड्डणिका' पण खरं एम कहेवानुं छे । (३) गणनियम
षट्पदी अने चतुष्पदी ध्रुवानां सात सात मात्राथी लईने सत्तर मात्रा सुधीना चरण होय छे, एटले तेमां गणनियम बतावाय छे :
सात मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल अने त्रिकल, अथवा तो पंचकल अने द्विकल एवा बे गण होय छे । (४)
आठ मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां पंचकल अने त्रिकल, षट्कल अने द्विकल, अथवा तो बे चतुष्कल एवा बे गण होय छे । (५)
नव मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां षट्कल अने त्रिकल, त्रण विकल, अथवा तो पंचकल अने चतुष्कल एवा बे गण होय छे । (६)
दस मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां बे चतुष्कल अने एक द्विकल, षट्कल अने चतुष्कल, अथवा तो बे पंचकल एवा गण होय छे । (७)
____ अगियार मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल, पंचकल अने द्विकल, पंचकल, चतुष्कल अने द्विकल अथवा तो षट्कल, द्विकल अने त्रिकल एवा गण होय छे । (८)
बार मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां चतुष्कल, पंचकल अने त्रिकल, षट्कल, चतुष्कल अने द्विकल, बे पंचकल अने एक द्विकल अथवा तो त्रण चतुष्कल एवा गण होय छे । (९)
तेर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां बे पंचकल अने एक त्रिकल, बे चतुष्कल
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