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अने एक पंचकल अथवा तो षट्कल, चतुष्कल अने त्रिकल एवा गण होय छ । (१०)
चौद मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां त्रण चतुष्कल अने एक द्विकल, अथवा तो षट्कल अने बे चतुष्कल एवा गण होय छे । (११)
पंदर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां त्रण चतुष्कल अने एक त्रिकल, अथवा तो त्रण पंचकल एवा गण होय छे । (१२)
सोळ मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां षट्कल, बे चतुष्कल अने एक द्विकल अथवा तो चार चतुष्कल एवा गण होय छे । (१३)
सत्तर मात्राना चरणवाळी ध्रुवामां एक षट्कल, बे चतुष्कल अने एक त्रिकल, अथवा तो त्रण चतुष्कलने अंते एक पंचकल एवा गण होय छे । प्रासनियम
आ प्रमाणे सात मात्राथी लईने सत्तर मात्रा सुधीनां (१) असमान, अने (२) समान अथवा तो (३) सर्वसमान-एवां चरणो जेना अर्धमां होय छे, तेवी विदग्धोनी गोष्ठीमा उत्तम षट्पदी ध्रुवा होय छे । षट्पदी ध्रुवामां पहेला चरणनो बीजा चरण साथे, त्रीजा चरणनो छठ्ठा चरण साथे अने चोथा चरणनो पांचमा चरण साथे प्रास होवो जोईए ।
चतुष्पदी ध्रुवामां पहेला चरणनो बीजा चरण साथे अने त्रीजा चरणनो चोथा चरण साथे प्रास होवो जोईए ।
अंतरसमा ध्रुवामां तथा संकीर्णा ध्रुवामां घणुंखरूं बीजा चरण साथे चोथा चरणनो प्रास होय छे । षट्पदी ध्रुवा : षट्पद-जाति
___ हवे षट्पदी ध्रुवाना प्रकारो वर्णवाय छ । जेनां त्रीजा अने छठ्ठा चरणमां दस मात्राथी शरू करीने एक एक मात्रा वधारतां जतां सत्तर सुधीनी मात्राओ होय छे, तथा बाकीनां चार चरणोमां सात सात मात्रा होय छे, तेवा प्रकारनी षटपदी ध्रुवार्नु नाम षट्पद-जाति छे । दस मात्राथी शरू करीने सत्तर मात्रा सुधीनां चरणो अनुसार तेना आठ पेटाप्रकार होय छे ।
__ पहेला पेटाप्रकारनुं उदाहरण : इअ नारिहिं, रससारिहिं, मुह-परिमल-लुद्धउ । दुरुदुल्लइ, न हु मेलइ, 'छप्पय'-गणु मुद्धउ ॥ १
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