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________________ 1431 शीर्षक-प्रकरण खंजकने विस्तृत करवाथी जे छंदो बने तेमनुं नाम शीर्षक । केटलाक विशिष्ट शीर्षकोनुं निरूपण करीए छीए । द्विपदी - खंड जो गीतिनी पछी बे अवलंबको होय तो ते छंदनुं नाम द्विपदी - खंड | जेम के 'रत्नावलि' मांथी द्विपदी - खंडनुं उदाहरण : कुसुमाउह - पिअ - दूअयं, मउलावंतो चूअयं । सिढिलिअ - माण- गहणओ, वाअइ दाहिण -पवणओ ॥ विअलिअ - बउलामेलओ, इच्छिअ-पिअयम-मेलओ । पडिवालण-असमत्थओ, तम्मइ जुअइ- सत्थओ | इअ पढमं महु- मासओ जणस्स हिअयाइं कुणइ मउआई । पच्छा विंधइ कामओ लद्धावसरेहिं कुसुम - बाणेहिं ॥ १२४ 'ज्यारे कामदेवना प्रिय दूत जेवा आम्रतरुने मुकुलित करतो, ग्रहण करेला मानने शिथिल करतो दक्षिणनो पवन वाय छे, अने ज्यारे जेमनो बकुलनो पुष्पमुकुट ढीलो पडी गयो छे अने जे पोताना प्रियतम साथे मिलन माटे प्रतीक्षा करी रही छे तेवी युवतीओनो समूह तडपे छे, तेवो आ वसंतमास पहेलां लोकोना हृदयने नरम करी दे छे, अने पछी कामदेव लाग जोईने पुष्पबाणोथी तेमने वींधे छे ।' द्विभंगिका जो द्विपदी पछी गीति होय तो ते छंदप्रकारनुं नाम द्विभंगिका । तेमां बे भंग के वळांक होवाथी ते द्विभंगिका कहेवाय छे । द्विभंगिकानुं उदाहरण : दारुण-देह - दाह - पविअंभण- फुड-फुट्टंत-हारए, हिअय-स्थल - निहित्त-घण- -चंदण-पंकुच्चोड-कारए । दीहर- सास- दड्ढ - सहि- करयल - धुअ-विअणारविंदए, तिणयण- तइअ - नेत्तानल - जाल - कराल - -चंद ॥ विरहम्मि तुज्झ एरिसे तह झीणा कुवलयच्छ सं दुहंगिआ' । जह सह- लक्ख-हणणयं तीए अंगम्मि सिक्खड़ अणंगओ ॥ १२५ 'जेमां शरीरमां दारुण दाह प्रसर्यो होवाथी हार एकाएक तूटी पडे छे, जे वक्षःस्थळ पर रहेला चंदनना गाढ लेपने सूकवी नाखे छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001454
Book TitleChhandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages204
LanguagePrakrit, Apabhramsha, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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