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[44] जेमां सखीओना हाथे वींझातो कमलनो वींझणो लांबा निसासाथी बळी जाय छे, . जेमां चंद्र महादेवना त्रीजा नेत्रनी अग्निज्वाळा जेवो कराळ लागे छे,
एवा तारा विरहमां अंगअंग दुःखी थती ए नीलकमळ जेवां नेत्रवाळी एटली कृश थई गई छे
के कामदेव सूक्ष्म लक्षने केम वींधवं ते तेना अंग परथी शीखे छ ।'
नोंध : आ सिवाय बीजा पण बब्बे छंदोने जोडीने द्विभंगी बनती होवार्नु केटलाक पिंगळकारोए कयुं छे । जेम के गाथानी साथे भद्रिकाने जोडवाथी । गाथा + भद्रिकानी द्विभंगी- उदाहरण :
उद्धाइअ-झंझानिल-झडप्प-झंपण-पडंत-विडवोहे, अविरल-बहल-झलक्कंत-विज्जुला-वलय-लल्लक्के ॥ सरहस-रडंत-दद्दुरे कणंत-मोरे पडत-जल-निवहए, गज्जंत-मेह-मंडले को जिअइ विणा पिअह पाउसम्मि ॥ १२६ 'जेमां वेगथी फुकाता वंटोळनी झापटथी ऊछळीने डाळो तूटी पडे छे, जे वारंवार झबक्या करती वीजळीना वलयोने लीधे भीषण छे, जेमां देडका जोरशोरथी ड्रांउं ड्रांउं करी रह्या छे, जेमां मोर किंगारव करी रह्या छे, जेमां जळनो धोध पडी रह्यो छे, जेमा मेघमंडळी गर्जना करे छे,
तेवा वर्षाकाळमां प्रियतम विना कोण जीवती रही शके ?' वस्तुवदनक+कर्पूरनी द्विभंगी, उदाहरण :
निक्कंदल कय कच्छ नलिणि-वज्जिअ कय सर-सरि, निच्चंदणु किउ मलउ तुहिण-वज्जिउ किउ हिम-गिरि । निप्पल्लव किअ करि पयत्तु कंकेल्लि-विडवि-सय, पत्त-चत्त कय बाल-कयलि अकुसुम कय तरुलय ॥ सिसिरोवयार-किहिं परिणिहिं निम्मुत्ताहल कय भुवण । तो-वि हु न तीइ तुह विरह-भरि खसइ दाह-दारुण-विउण ॥ १२७ 'सखीओए तेना शीतोपचारने माटे नदीना तटने कूमळा घास विनाना करी
दीधा, सरोवरो अने नदीओने कमळ विनानां करी दीधां,
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